परमेश्वर की सेवकाई के बारे में वचन (अंश 73)

स्वयं के कर्तव्यों को ठीक से पूर्ण करने हेतु और जो कार्य परमेश्वर ने उन्हें सौंपे हैं उन्हें अच्छे से निभाने हेतु, अगुआओं व कर्मियों को सर्वप्रथम परमेश्वर के इरादों को समझना होगा और अपने कार्य के आकार या गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। बल्कि उन्हें इस बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि उन्होंने जीवन प्रवेश किया है कि नहीं और अपने स्वभाव बदलने चाहिए। परमेश्वर को अगुआओं व कर्मियों से ऐसी ही अपेक्षा है। क्या अब तुम लोग स्वभाव में बदलाव को सच में समझ गए हो? स्वभाव में बदलाव से क्या अभिप्राय है? क्या तुम व्यवहार में बदलाव व स्वभाव में बदलाव का अंतर पहचान सकते हो? किन दशाओं में माना जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन स्वभाव में बदलाव आ गया है, व कौन-सी दशाओं में यह बदलाव सिर्फ बाहरी व्यवहार में ही होता है? व्यक्ति के ऊपरी बर्ताव में परिवर्तन और व्यक्ति की अंदरूनी जिंदगी में परिवर्तन में फर्क क्या होता है? क्या तुममें से कोई मुझे यह फर्क बता सकता है? तुम देखते हो कि कोई बहुत ही उत्साह से, भाग-दौड़ कर रहा है, कलीसिया के कामों में लगा हुआ है, अपना वक्त दे रहा है, यह देखकर तुम कहते हो : “उसके स्वभाव में परिवर्तन आ गया है!” तुम देखते हो कि किसी ने अपना घर-परिवार छोड़ दिया है, काम-धंधा छोड़ दिया है, तब तुम कहते हो : “इसके स्वभाव में परिवर्तन आ गया है!” तुम्हें लगता है कि अगर इन लोगों के स्वभाव में परिवर्तन नहीं हुआ होता, तो वे इस तरह का त्याग नहीं कर पाते। तुममें से ज्यादातर लोगों का दूसरों को देखने का नजरिया यही है, मगर क्या इस तरह का नजरिया ठीक है? कुछ ऐसे भी हैं जो इससे भी ज्यादा बेढंगी बाते करते हैं; जब कोई ऐसा व्यक्ति जिसने अपने घर-परिवार, काम-धंधे को तिलांजलि दे रखी है, उन्हें नजर आता है, तो वे कहते हैं : “यह इंसान वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करता है!” आज तुम कहते हो कि अमुक इंसान परमेश्वर से प्रेम करता है, कल तुम कहोगे कि कोई दूसरा इंसान परमेश्वर से प्रेम करता है। अगर कोई लगातार बिना रुके प्रवचन दे रहा हो तो तुम कहते हो : “इस व्यक्ति ने परमेश्वर को जान लिया है। इस व्यक्ति ने सत्य पा लिया है। यदि वह परमेश्वर को नहीं जानता तो क्या उसके पास कहने को इतना कुछ होता?” तुम लोगों का दृष्टिकोण ऐसा ही है ना? बेशक तुममें से ज्यादातर का लोगों और चीजों को देखने का नजरिया ऐसा ही होता है। तुम सदैव ताज पहनाकर दूसरों को सम्मान देते हो, उनकी चाटुकारिता में लगे रहते हो। तुम आज अमुक व्यक्ति की ताजपोशी करते हो क्योंकि वह परमेश्वर से प्रेम करता है, कल किसी अन्य व्यक्ति की ताजपोशी करोगे क्योंकि वह परमेश्वर को जानता है, क्योंकि वह परमेश्वर के प्रति वफादार है। तुम दूसरों की ताजपोशी करने में “विशेषज्ञ” हो। रोजाना लोगों की ताजपोशी करके उन्हें सम्मान देते और उनकी चाटुकारिता करते हो, इससे उनका घाटा ही होता है, इसके बावजूद भी तुम्हें इससे गर्व की अनुभूति होती है। तुम लोग ऐसे तरीकों से औरों की सराहना कर उन्हें घमंडी बना देते हो। जिन लोगों की तारीफ इस प्रकार से की जाती है वे मन-ही-मन सोचते हैं, “मेरे अंदर परिवर्तन आ गया है, मैं मुकुट पाने का अधिकारी बन गया हूँ, मुझे पक्के तौर पर स्वर्ग के राज्य में दाखिला मिल जाएगा!” पौलुस जैसे कुछ व्यक्ति इससे भी खराब हालात में हैं, वे हमेशा यही बताते रहते हैं कि उन्होंने क्या-क्या तकलीफें सही हैं और कितनी ज्यादा गवाहियाँ दी हैं। वे परमेश्वर के इरादों की जरा-सी भी परवाह किए बिना अपनी ही तारीफ करने में लगे रहते हैं और अपनी धारणाओं और प्राथमिकताओं के अनुसार बात करते हैं। यह साफ तौर पर पता होने के बावजूद भी कि उनके अपने स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया है, वे अन्य लोगों से बोलते हैं कि वे भी उनके अनुसार ही काम करें, इसका नतीजा यह होता है कि जो लोग परमेश्वर में आस्था तो रखते हैं पर विवेकहीन होते हैं—और खासकर जो ऐसे लोगों को पूजते हैं—उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है और वे रास्ते से भटक जाते हैं। उन्होंने अभी भी परमेश्वर पर विश्वास करने के सही रास्ते पर चलना शुरू नहीं किया है, मात्र जोश में आकर परमेश्वर के खातिर खुद को खपा रहे हैं और कष्ट भुगत रहे हैं। वे गिरफ्तार किए गए और जेल में डाले गए लेकिन किसी को न धोखा दिया न यहूदा बने—इस कारण वे सोचने लगे कि वे अपनी गवाही पर मजबूती से कायम हैं और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य बन चुके हैं। वे इस जरा-से अनुभव को एक गवाही मानकर हर स्थान पर इसका दिखावा करते हैं। क्या यह लोगों को गुमराह करने के लिए खुद का दिखावा करना नहीं है? बहुत-से लोग इस प्रकार की “गवाही” देते हैं और कितने लोग गुमराह किए गए हैं? क्या ऐसे लोगों को विजेता मानना बेतुका नहीं है? क्या तुम्हें मालूम है कि परमेश्वर लोगों को किस तरह से देखता है? क्या तुम लोगों को यह स्पष्ट है कि असली विजेता कौन होता है? इस तरीके से झूठी गवाही देना परमेश्वर द्वारा शापित है। तुमने इस तरह से कितने गलत कर्म किए हैं? तुम न तो दूसरों को जीवन दे सकते हो, न ही दूसरों की अवस्था का विश्लेषण कर सकते हो। तुम मात्र लोगों को मुकुट पहना सकते हो और परिणामस्वरूप, उन्हें विनाश की ओर धकेल सकते हो। क्या तुम्हें पता नहीं कि एक भ्रष्ट व्यक्ति तारीफ नहीं झेल सकता? यदि कोई उनकी तारीफ नहीं भी करे, तब भी वे बहुत ही गर्व महसूस करते हैं, अहंकार में जीते हैं। परन्तु लोगों से तारीफ पाकर क्या वे और शीघ्र नहीं मर जाते? तुम लोगों को नहीं पता कि परमेश्वर से प्रेम करने, परमेश्वर को जानने और ईमानदारी से स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाने का मतलब क्या है। तुम्हें इनमें से कोई भी बात समझ नहीं आती। तुम चीजों के केवल बाहरी रूप को देखते हो और फिर अन्य लोगों के बारे में फैसला सुनाते हो, लोगों को मुकुट पहनाते हो और उनकी चापलूसी करते हो, और इस तरह कई लोगों को गलत राह दिखाकर उनका नुकसान करते हो—और यह काम तुम प्रायः करते हो। तुमसे इस प्रकार तारीफ सुनकर कई लोग सही रास्ते से भटक चुके हैं और गिर चुके हैं। हो सकता है वे वापस उठ जाएँ, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के विकास में बहुत देरी कर दी है, और वे पहले ही नुकसान उठा चुके होते हैं। ज्यादातर लोग अभी भी परमेश्वर पर विश्वास रखने की उचित राह पर नहीं चल रहे हैं और सत्य का अनुसरण नहीं कर पा रहे हैं, और वे अपने आप के बारे में भी बहुत कम ही जानते हैं। अगर उनकी इस तरीके से तारीफ की जाती है, तो वे आत्मसंतुष्ट हो जाएँगे और, यह महसूस करते हुए कि वे परमेश्वर में विश्वास के सही रास्ते पर पहले से ही चल रहे हैं और उनके पास थोड़ी सत्य वास्तविकताएँ हैं, वे अपने तौर-तरीकों पर अड़े रहेंगे। वे अपने भाषण में और साहसी हो जाएँगे, कलीसिया में लोगों को डांटेंगे और एक निरंकुश व्यक्ति जैसा बर्ताव करेंगे। क्या तुम इस तरीके से काम करके लोगों को हानि नहीं पहुँचा रहे हो, उनका नाश नहीं कर रहे हो? किस तरह के लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं? जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं उन्हें पतरस जैसा होना चाहिए, उन्हें पूर्ण बनाया जाना चाहिए, और परमेश्वर का प्रेम प्राप्त करने हेतु उन्हें रास्ते के अंतिम छोर तक परमेश्वर का अनुगमन करना चाहिए। परमेश्वर लोगों के दिलों की गहराइयों की जाँच-परख करता है और केवल परमेश्वर ही यह निर्णय कर सकता है कि कौन उससे प्रेम करता है। लोगों के लिए खुद इसे स्पष्ट रूप से देख पाना आसान नहीं है, फिर वे अन्य लोगों के बारे में फैसला कैसे दे सकते हैं? केवल परमेश्वर ही यह जानता है कि कौन लोग उससे सच्चा प्रेम करते हैं। चाहे लोगों के पास परमेश्वर से प्रेम करने वाला हृदय ही क्यों न हो, फिर भी वे यह कहने की हिम्मत नहीं कर सकते कि वे खुद परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हैं। परमेश्वर ने कहा कि पतरस परमेश्वर से प्रेम करने वाला व्यक्ति था, लेकिन पतरस ने ऐसा खुद कभी नहीं कहा। तो फिर, परमेश्वर से प्रेम करना क्या कोई ऐसी चीज है जिसे लेकर कोई यूँ ही डींगें हाँक सकता है? परमेश्वर से प्रेम करना मनुष्य का कर्तव्य है, अतः हृदय में परमेश्वर के प्रति तनिक प्रेम उत्पन्न होते ही इसके बारे में डींगें हाँकना शुरू कर देना विवेकरहित है। यह और भी अधिक तर्कहीन बात है कि तुम खुद तो परमेश्वर से प्रेम करते नहीं हो मगर दूसरों की यह कहकर प्रशंसा करते हो कि वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं। यह पागलपन है। कौन व्यक्ति परमेश्वर से प्रेम करता है यह केवल परमेश्वर ही जानता है, और सिर्फ वही बता सकता है कि कौन ऐसा है। अगर कोई व्यक्ति अपने मुँह से ऐसे शब्द कह रहा है तो वह गलत स्थान पर है। तुम परमेश्वर का स्थान ले रहे हो, लोगों की तारीफ कर रहे हो, चापलूसी कर रहे हो—यह सब किसकी ओर से कर रहे हो? परमेश्वर लोगों की चापलूसी तो कतई नहीं करता, न ही उनकी तारीफ करता है। पतरस को पूर्ण बनाने के बाद, परमेश्वर ने उसका उपयोग एक आदर्श के रूप में तब तक नहीं किया जब तक परमेश्वर ने अंत के दिनों का कार्य नहीं किया। उस समय तक, परमेश्वर ने दूसरों से यह कभी नहीं कहा : “पतरस परमेश्वर से प्रेम करता है।” परमेश्वर ने ऐसी बातें तभी कहीं जब उसने इस चरण का कार्य किया, उसने पतरस को उन लोगों के लिए एक आदर्श व उदाहरण के रूप में स्थापित किया जो परमेश्वर के न्याय का अनुभव करते हैं और अंत के दिनों में परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं। परमेश्वर जो भी करता है उसका कुछ अभिप्राय होता है। लोगों का मनमाने ढंग से यह कहना कि अमुक परमेश्वर से प्रेम करने वाला व्यक्ति है, कितना बेतुका है! यह बहुत ही हास्यास्पद है। पहली बात तो, ये लोग गलत स्थान पर खड़े है। दूसरी बात, यह कोई इस तरह का मामला नहीं है जिस पर लोग स्वयं फैसला दे सकें। दूसरों की चाटुकारिता करने का क्या अर्थ है? इसका अभिप्राय है दूसरे लोगों को गुमराह करना, उन्हें चकमा देना और क्षति पहुँचाना। तीसरी बात, इसके वस्तुनिष्ठ प्रभाव के संबंध में, इस तरह का बर्ताव न केवल दूसरों को उचित रास्ते पर ले जाने में अक्षम है, अपितु यह उनके जीवन प्रवेश में भी व्यवधान डालता है व उनके जीवन को नुकसान पहुँचाता है। अगर तुम हमेशा कहते रहते हो कि अमुक व्यक्ति परमेश्वर से प्रेम करता है, चीजें त्याग सकता है, और परमेश्वर के प्रति निष्ठावान है, तो क्या हर कोई उसके बाह्य कार्यों की नकल नहीं करेगा? न केवल तुमने अन्य लोगों को उचित राह नहीं दिखाई, बल्कि तुमने बाहरी कार्यों पर ही ध्यान केंद्रित करने में भी बहुत लोगों की अगुआई की है, ताकि वे अनजाने में पौलुस के रास्ते का अनुगमन करते हुए, बदले में मुकुट पाने के लिए सिर्फ इन बाहरी क्रिया-कलापों पर ही विश्वास करते रहें। क्या इसका यह प्रभाव नहीं होता है? जब तुम ये शब्द कहते हो, तो क्या तुम्हें इन परेशानियों की जानकारी होती है? तुम किस स्थिति में खड़े हो? तुम्हारी भूमिका क्या है? तुम्हारे बोले हुए शब्दों का वस्तुनिष्ठ असर क्या होता है? अंततः यह दूसरों को अनुसरण के किस मार्ग पर ले जाता है? यह किस सीमा तक हानि पहुँचा सकता है? जब लोग इस तरीके से कार्य करते हैं तो इनके परिणाम बहुत गंभीर होते हैं।

कलीसिया में कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपने अनुभवों के बारे में बातें नहीं कर सकते और गवाही नहीं दे सकते, और समस्याओं का समाधान निकालने के लिए सत्य का प्रयोग नहीं कर पाते। वे हमेशा इस बात की गवाही देते हैं कि उन्होंने किस तरह कष्ट झेले, किस तरह उन्होंने अपनी काट-छाँट स्वीकार की, किस तरह अनेक शिकायतों के बावजूद भी वे कभी नकारात्मक नहीं हुए और कैसे वे अपने कर्तव्य निभाते रहे। पौलुस के समान वे हमेशा अपने लिए ही गवाही देते हैं, अपने को ही स्थापित करते रहते हैं, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग उनकी तारीफ करें, उनका सम्मान करें और उन्हें सम्मानजनक नजरों से देखें। और, जब इस तरह के लोग किसी ऐसे आदमी को देखते हैं जो शब्दों व धर्म-सिद्धांतों को ठीक तरीके से बता सकता है और जो प्रवचन दे सकता है, तो वे उसकी चाटुकारिता करते हैं, और वे पौलुस की तरह के अगुआओं और कार्यकर्ताओं की प्रशंसा करते हैं, उनकी वाहवाही करते हैं और इस तरह से दूसरे लोगों से भी उनकी सराहना करवाते हैं। वे न केवल सिंचन और सत्य प्रदान करने का कार्य ठीक तरह से करने में असफल रहते हैं, बल्कि कुछ विनाशकारी और परेशानियाँ पैदा करने वाले कार्यों में भी लिप्त हो जाते हैं जिसके कारण अन्य लोग पौलुस के रास्ते पर चल देते हैं। भूलवश वे हमेशा यह सोचते रहते हैं कि वे खुद काबिल और अच्छे अगुआ हैं, और वे इसके लिए परमेश्वर से इनाम चाहते हैं। क्या तुममें से ज्यादातर लोग इसी अवस्था में नहीं हैं? मात्र शब्दों व धर्म-सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित कर, लोगों को लगातार फटकारते रहने के अपने मौजूदा तरीके के आधार पर, क्या तुम लोगों को सही राह पर ले जा सकते हो? यह आखिरकार उन्हें किस रास्ते पर पहुँचा सकता है? क्या यह उन सभी को पौलुस की राह पर नहीं ले जाएगा? मैं देख पा रहा हूँ कि यह ऐसा ही है, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यह कहा जा सकता है कि तुम सब पौलुस के जैसे अगुआ हो और दूसरे लोगों को भी पौलुस के रास्ते पर ले जा रहे हो। क्या तुम्हारी अब भी किसी प्रकार का मुकुट पाने की इच्छा है? अगर तुम लोगों को इसके लिए दंडित नहीं किया गया तो तुम भाग्यशाली होगे। तुम्हारे कार्यों के अनुसार, तुम सब ऐसे लोग बन गए हो जो परमेश्वर के खिलाफ हैं, जो परमेश्वर की सेवा तो करते हैं पर परमेश्वर का विरोध भी करते हैं, और तुमने परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने में दक्षता हासिल कर ली है। अगर तुम इसी रास्ते पर चलते रहोगे, तो आखिर में तुम झूठे चरवाहे, झूठे कार्यकर्ता, झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी बन जाओगे। अभी तुम्हारे लिए राज्य के लिए प्रशिक्षण लेने का समय है। यदि तुम सत्य के लिए प्रयत्न नहीं करते हो और केवल कार्य पर ध्यान देते हो, तो तुम अनजाने में पौलुस का रास्ता पकड़ लोगे। इसके अलावा, तुम अपने साथ पौलुस जैसे दूसरे लोगों के समूह को भी लेकर आओगे। तो क्या तुम एक ऐसे व्यक्ति नहीं बन जाओगे जो परमेश्वर-विरोधी है और परमेश्वर के कार्य में बाधाएँ खड़ी करता है? इसलिए, अगर कोई व्यक्ति जो परमेश्वर की सेवा तो करता है, पर वह उसके लिए गवाही नहीं दे सकता है, या परमेश्वर द्वारा चयनित व्यक्तियों को सही राह पर नहीं ले जा सकता है, तो वह व्यक्ति परमेश्वर का विरोधी है। ये दो ही रास्ते हैं। पतरस का रास्ता सत्य के अनुसरण का, और अंततः, अपने विश्वास में सफल होने का रास्ता है। पौलुस का रास्ता सत्य के अनुसरण का रास्ता नहीं है, यह मात्र आशीर्वाद व पुरस्कार के लिए प्रयत्नरत रहने का रास्ता है। यह असफलता का रास्ता है। आज, पतरस के सफलता के रास्ते पर चलने वाले बहुत ही कम लोग हैं, जबकि पौलुस के असफलता के रास्ते पर चलने वाले लोग बहुत अधिक हैं। यदि तुममें से जो बतौर अगुआ और कार्यकर्ता काम कर रहे हैं वे आरंभ से अंत तक सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, तो तुम सब लोग झूठे अगुआ और झूठे कार्यकर्ता बन जाओगे, और तुम सब लोग मसीह-विरोधी और बुरे लोग बन जाओगे जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। अगर तुम अब से ही सही राह पर आ जाते हो और ईमानदारी से पतरस का रास्ता अपनाते हो, तो तुम लोग अभी भी ऐसे अच्छे अगुआ और कार्यकर्ता बन सकते हो जो परमेश्वर को स्वीकार हों। यदि तुम पूर्ण बनाए जाने और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने का प्रयत्न नहीं करते हो, तो तुम खतरे में हो। तुम्हारी मूर्खता और अज्ञानता, तुम्हारे उथले और अपर्याप्त अनुभव, तुम्हारे छोटे आध्यात्मिक कद, और तुम्हारी अपरिपक्वता को ध्यान में रखते हुए, केवल एक काम जो किया जा सकता है वह यह है कि तुम्हारे साथ सत्य पर और संगति की जाए, ताकि तुम सत्य समझ सको परन्तु, तुम सत्य पा सकते हो या नहीं यह तुम्हारे निजी अनुसरण पर ही निर्भर करता है। क्योंकि आज का समय पतरस और पौलुस के समय से बहुत भिन्न है। उन दिनों में, यीशु ने मनुष्य का न्याय करने, मनुष्य को ताड़ना देने, या मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन लाने का कार्य नहीं किया था। आज, देहधारी परमेश्वर ने बहुत ही स्पष्ट रूप में सत्य बता दिया है। यदि लोग अब भी पौलुस के रास्ते पर चलते हैं, तो इससे यह पता चलता है कि उन लोगों की समझने की क्षमता दोषपूर्ण है, और यह ये भी दर्शाता है कि पौलुस की तरह ही ये लोग भी बहुत ही बुरे चरित्र के हैं, और बहुत ही अहंकारी स्वभाव के हैं। वह जमाना आज के समय से भिन्न था और उस समय के संदर्भ भी भिन्न थे। आज, परमेश्वर के वचन बहुत ही साफ और स्पष्ट हैं; यह ऐसा है जैसे परमेश्वर ने स्वयं तुम्हें सिखाने के लिए और तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है, इसलिए यदि तुम अब भी गलत मार्ग पर चलते हो तो यह अक्षम्य है। इसके अलावा, आज, पतरस और पौलुस के दो उदाहरण तुम्हारे सामने हैं, एक उदाहरण सकारात्मक है, दूसरा नकारात्मक। पहला आदर्श है और दूसरा चेतावनी। यदि तुम गलत मार्ग पर चल रहे हो, तो इसका आशय यह है कि तुम्हारा चुनाव गलत है और तुम बहुत दुष्ट हो। तुम्हारे सिवाय दूसरा कोई व्यक्ति इसके लिए दोषी नहीं है। केवल वही व्यक्ति जिसके पास सत्य वास्तविकता है, अन्य लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करा सकता है, लेकिन जिसके पास सत्य वास्तविकता नहीं है वह दूसरों को केवल भटकाने का कार्य कर सकता है।

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