परमेश्वर की सेवकाई के बारे में वचन (अंश 70)

अगर कलीसिया के एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और परमेश्वर की अच्छी गवाही देने में अगुआई करनी है, तो सबसे महत्वपूर्ण बात लोगों का परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और सत्य की संगति करने में अधिक समय व्यतीत करने में मार्गदर्शन करना है। इस तरह से, परमेश्वर के चुने हुए लोग मनुष्य को बचाने में परमेश्वर के उद्देश्यों और परमेश्वर के कार्य के प्रयोजन का गहरा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, और परमेश्वर के इरादों और मनुष्य के लिए उसकी विभिन्न आवश्यकताएँ समझ सकते हैं, और इस प्रकार वे अपना कर्तव्य उचित ढंग से कर सकते हैं और परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं। जब तुम संगति और प्रचार करने इकट्ठा होते हो, तो तुम्हें व्यावहारिक रूप से अपने अनुभवात्मक गवाहियों की बात करनी चाहिए, और शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देने से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। जब तुम परमेश्वर के वचन खाते-पीते हो, तो तुम्हें सत्य समझने पर ध्यान केंद्रित करना होगा—और जब सत्य समझ लेते हो, तो तुम्हें इस पर अमल करने का प्रयास करना होगा, जब तुम सत्य का अभ्यास करोगे, तभी तुम वास्तव में उसे समझ पाओगे। जब तुम परमेश्वर के वचनों पर संगति करते हो, वही बोलो जो तुम जानते हो। डींगें न मारो, गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी मत करो, और केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को मत बोलो, बढ़ा-चढ़ा कर मत बोलो। अगर तुम बढ़ा-चढ़ा कर बोलोगे, तो लोग तुमसे घृणा करेंगे और तुम बाद में खुद को दोष दोगे और तुम्हें पछतावा और दुख होगा—और यह सब तुमने अपने लिए खुद न्योता होगा। अगर तुम केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देकर भाषण झाड़ते हो और उनकी काट-छाँट करते हो, तो क्या तुम उन्हें सत्य समझा सकते हो और वास्तविकता में प्रवेश करा सकते हो? जिसके बारे में तुम संगति करते हो, अगर वह व्यवहारिक नहीं है, अगर वह शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के अलावा कुछ नहीं है, तो तुम कितना भी उनकी काट-छाँट करो और उन्हें भाषण दो, उसका कोई लाभ नहीं होगा। क्या तुम्हें लगता है कि लोगों का तुमसे डरना और जो तुम उनसे कहते हो वह करना, और विरोध करने की हिम्मत न करना, उनके सत्य को समझने और समर्पण करने के समान है? यह एक बड़ी गलती है; जीवन प्रवेश इतना आसान नहीं है। कुछ अगुआ एक मजबूत छाप छोड़ने की कोशिश करने वाले एक नए प्रबंधक की तरह होते हैं, वे अपने नए प्राप्त अधिकार को परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर थोपने की कोशिश करते हैं ताकि हर व्यक्ति उनके अधीन हो जाए, उन्हें लगता है कि इससे उनका काम आसान हो जाएगा। अगर तुममें सत्य वास्तविकता का अभाव है, तो जल्दी ही तुम्हारे असली आध्यात्मिक कद का खुलासा हो जाएगा और तुम्हारे असली रंग उजागर हो जाएँगे, और तुम्हें हटाया भी जा सकता है। कुछ प्रशासनिक कार्यों में थोड़ी काट-छाँट और अनुशासन स्वीकार्य है। लेकिन अगर तुम सत्य पर संगति करने में अक्षम हो, तो अंत में तुम समस्याएँ हल करने में भी असमर्थ रहोगे और इससे कार्य के नतीजे प्रभावित होंगे। अगर, कलीसिया में चाहे जो भी समस्याएँ आएँ, तुम लोगों को व्याख्यान और दोष देना जारी रखते हो—अगर तुम हमेशा बस अपना आपा खोकर पेश आते हो—तो यह तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव है जो प्रकट हो रहा है, और तुमने अपनी भ्रष्टता का बदसूरत चेहरा दिखा दिया है। अगर तुम हमेशा किसी आसन पर खड़े होकर इसी तरह लोगों को भाषण देते रहे तो समय बीतने के साथ लोग तुमसे जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकेंगे, वे कुछ भी व्यावहारिक हासिल नहीं करेंगे, बल्कि उन्हें तुमसे घृणा और मितली आएगी। इसके अलावा, कुछ लोग ऐसे होंगे जो भेद पहचानने की कमी के कारण तुमसे प्रभावित होंगे और इसी तरह दूसरों को भाषण देंगे और उनकी काट-छाँट करेंगे। वे भी इसी तरह क्रोधित हो जाया करेंगे और अपना आपा खो दिया करेंगे। न केवल तुम लोगों की समस्याएँ हल करने में अक्षम होगे—तुम उनके भ्रष्ट स्वभाव को बढ़ावा भी दोगे। और क्या यह उन्हें विनाश के मार्ग पर नहीं ले जा रहा? क्या यह कुकर्म नहीं है? अगुआ को प्राथमिकता से सत्य और जीवन प्रदान करने के बारे में संगति करते हुए अगुआई करनी चाहिए। अगर तुम हमेशा मंच पर खड़े होकर दूसरों को व्याख्यान देते हो, तो क्या वे सत्य समझ पाएँगे? अगर तुम कुछ समय तक इसी तरह से काम करते रहे, तो जब लोग तुम्हारी असलियत देख लेंगे, वे तुम्हें छोड़ देंगे। क्या तुम इस तरह से काम करके लोगों को परमेश्वर के सामने ला सकते हो? तुम निश्चित रूप से नहीं ला सकते; तुम सिर्फ कलीसिया का काम खराब कर सकते हो और परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को तुमसे घृणा करने और तुम्हें छोड़ देने के लिए बाध्य कर सकते हो। अतीत में, कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस वजह से हटा दिया गया था। वे वास्तविक समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य पर संगति करने में अक्षम थे और, परमेश्वर के वचन खाने और पीने या खुद को समझने में लोगों की अगुआई नहीं कर सके। उन्होंने इनमें से कोई भी आवश्यक कार्य नहीं किया; उन्होंने सिर्फ खुद को उच्च स्थिति पर रखने, लोगों को भाषण देने, और आदेश देने पर ही ध्यान केंद्रित किया, वे सोच रहे थे कि ऐसा करते हुए वे कलीसिया के अगुआ का कार्य कर रहे हैं। परिणाम के तौर पर, उन्होंने ऊपरवाले द्वारा जारी किए गए कार्य प्रबंधन नहीं किए भले ही वे उन्हें जानते थे, ना ही उन्होंने विशिष्ट कार्य ठीक से किए। उन्होंने शब्द और धर्म-सिद्धांत उगलने और नारे लगाने के अलावा जो कुछ किया वह था खुद को उच्च स्थिति पर रखना और आँखें मूंद कर भाषण देना और लोगों की काट-छाँट करना। इस वजह से हर कोई इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं से डरने और बचने लगे, और लोगों की हिम्मत नहीं हुई कि वे उन्हें समस्याएँ बताएँ। इस तरीके से कार्य करके अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अपना काम बिगाड़ लिया और उसे ठप कर दिया। जब परमेश्वर के घर ने उन्हें बर्खास्त कर दिया तभी उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने कोई वास्तविक कार्य नहीं किया था। शायद उन्हें बहुत पश्चात्ताप हुआ, लेकिन पछतावे किसी काम के नहीं हैं। उन्हें फिर भी बर्खास्त कर दिया गया और हटा दिया गया।

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