सत्य की खोज और इसका अभ्यास करने के बारे में वचन (अंश 13)

अब ऐसे बहुत लोग हैं, जो सत्य का अनुसरण करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और जब उन पर दुर्भाग्य आता है तो सत्य की खोज करने में सक्षम होते हैं। अगर तुम अपने भीतर के गलत उद्देश्य और असामान्य अवस्थाएँ सुलझाना चाहते हो, तो ऐसा करने के लिए तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए। सर्वप्रथम, तुम्हें परमेश्वर के वचनों के आधार पर संगति में अपने बारे में खुलकर बोलना सीखना चाहिए। बेशक, तुम्हें खुली संगति के लिए सही पात्र का चयन करना चाहिए—कम से कम, तुम्हें कोई ऐसा व्यक्ति चुनना चाहिए जो सत्य से प्रेम करता हो और उसे स्वीकार करता हो, जिसकी मानवता अपेक्षाकृत बेहतर हो, जो अपेक्षाकृत ईमानदार और सच्चा हो। निस्संदेह यह बेहतर होगा कि तुम कोई ऐसा व्यक्ति चुनो जो सत्य समझता हो, जिसकी संगति से तुम्हें महसूस हो कि तुम्हारी मदद हुई है। इस तरह का व्यक्ति ढूँढ़ना, जिसके साथ संगति में तुम्हें खुलना है और अपनी कठिनाइयाँ हल करनी हैं, कारगर हो सकता है। अगर तुम गलत व्यक्ति चुनते हो, ऐसा व्यक्ति जो सत्य से प्रेम नहीं करता बल्कि जिसमें सिर्फ कोई गुण या प्रतिभा है, तो वह तुम्हारा मजाक उड़ाएगा, तुम्हारा तिरस्कार करेगा और तुम्हें नीचा दिखाएगा। यह तुम्हारे लिए लाभदायक नहीं होगा। एक लिहाज से, खुद को खोलना और प्रकट करना वह दृष्टिकोण है, जिसे व्यक्ति को परमेश्वर के सामने आने और उससे प्रार्थना करने के लिए अपनाना चाहिए; इसका ताल्लुक इस बात से भी है कि कैसे व्यक्ति को सत्य के बारे में दूसरों के साथ संगति करनी चाहिए। यह सोचकर भावनाएँ छिपाए न रखो, “मेरे मकसद और कठिनाइयाँ हैं। मेरी आंतरिक स्थिति अच्छी नहीं है—वह नकारात्मक है। मैं किसी को नहीं बताऊँगा। मैं बस इसे छिपाकर रखूँगा।” अगर तुम हमेशा चीजें हल न करके उन्हें छिपाकर रखते हो, तो तुम और ज्यादा नकारात्मक हो जाओगे, और तुम्हारी स्थिति और भी खराब हो जाएगी। तुम परमेश्वर से प्रार्थना करने को तैयार नहीं होगे। इसे उलटना मुश्किल काम है। और इसलिए, तुम्‍हारी हालत कैसी भी क्‍यों न हो, चाहे तुम नकारात्‍मक हो, या मुश्किल में हो, तुम्‍हारे उद्देश्‍य या योजनाएँ चाहे जो भी हों, छानबीन के माध्यम से तुमने जो कुछ भी क्‍यों न जाना या समझा हो, तुम्‍हें खुलकर बात कहना और संगति करना सीखना ही होगा, और जैसे ही तुम संगति करते हो, पवित्र आत्‍मा काम करता है। और पवित्र आत्‍मा अपना काम कैसे करता है? वह तुम्‍हें प्रबुद्ध और रोशन करता है और समस्‍या की गंभीरता समझने देता है, वह तुम्‍हें समस्‍या की जड़ और सार से अवगत कराता है, फिर तुम्हें थोड़ा-थोड़ा करके सत्य और अपने इरादे समझाता है, और तुम्हें अभ्यास का मार्ग देखने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने देता है। जब व्यक्ति खुलकर संगति कर सकता है, तो इसका मतलब है कि उसका सत्य के प्रति ईमानदार रवैया है। कोई व्यक्ति ईमानदार है या नहीं, यह सत्य के प्रति उसके दृष्टिकोण से मापा जाता है। जब कोई ईमानदार व्यक्ति कठिनाइयों का सामना करता है, तो चाहे वह कितना भी नकारात्मक या कमजोर क्यों न हो, वह हमेशा परमेश्वर से प्रार्थना करेगा और संगति करने के लिए दूसरों की तलाश करेगा, समाधान ढूँढ़ने की कोशिश करेगा, और यह खोजेगा कि अपनी समस्या या कठिनाई कैसे दूर की जाए ताकि परमेश्वर के इरादे पूरे किए जा सकें। वह किसी आंतरिक परेशानी के कारण शिकायत करने के लिए किसी को नहीं तलाशता : वह तो सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने की कठिनाई का समाधान और उससे बाहर आने का उपाय ढूँढ़ता है। अपने दिल में अनसुलझी नकारात्मक और बुरी चीजें छिपाने से अपना कर्तव्य-निर्वाह और जीवन-प्रवेश सीधे तौर पर प्रभावित होगा। परमेश्वर के प्रति शुद्ध और खुला न रहना, बल्कि अपने दिल में हमेशा कपट पाले रखना बहुत खतरनाक है। कपटी लोग मुखौटा लगाने में माहिर होते हैं, चाहे उन पर कुछ भी मुसीबत आ पड़े, और चाहे वे जो भी धारणाएँ या असंतोष महसूस करें, वे संगति नहीं करेंगे। बाहर से वे सामान्य दिखते हैं, लेकिन वास्तव में उनके दिल नकारात्मकता से इतने ज्यादा भरे होते हैं कि वे मुश्किल से ही उठ पाते हैं, और तुम बता नहीं पाओगे। अगर तुम उनके साथ संगति करते भी हो, तो वे तुम्हें सत्य नहीं बताएँगे। वे किसी को नहीं बताएँगे कि वे कितनी शिकायतों, गलतफहमियों और धारणाओं से भरे हुए हैं; वे इस डर से चीजों पर हमेशा बहुत अधिक नियंत्रण रखते हैं कि अगर दूसरे लोग उनके बारे में जान गए तो वे उनका पहले जितना आदर नहीं करेंगे और उन्हें अस्वीकार कर देंगे। भले ही वे अपने कर्तव्य निभाते हैं, फिर भी उनके पास जीवन-प्रवेश नहीं होता और जो कुछ भी करते हैं, उसमें सत्य-सिद्धांत नहीं खोजते; बाहर से, वे शिथिल प्रतीत होते हैं, उनमें न तो आगे बढ़ने की शक्ति होती है न ही पीछे हटने की, और यह संकट का लक्षण है। जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, उनके दिल में एक बीमारी होती है; बीमारी उनके दिलों में होती है, और वे प्रकाश में आने से डरते हैं। वे हर चीज को एकदम गुप्त रखते हैं, कभी दूसरों के सामने खुलने की हिम्मत नहीं करते; उनमें जीवन का संचार नहीं होता, जिससे उनके दिल में मौजूद बीमारी एक घातक ट्यूमर बन जाती है, और इस तरह वे संकट में पड़ जाते हैं। अगर लोग सत्य स्वीकारने में शुद्ध और खुले नहीं हो सकते, और अगर वे सत्य पर संगति के माध्यम से अपनी समस्याएँ हल नहीं कर सकते, तो ऐसे लोग अपने कर्तव्य ठीक से नहीं निभा सकते, और देर-सबेर उनका खुलासा करके उन्हें हटा दिया जाना चाहिए।

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