सत्य की खोज और इसका अभ्यास करने के बारे में वचन (अंश 11)

कोई भी काम ठीक से करने के लिए सत्‍य-सिद्धांत का पता लगाना जरूरी है। व्‍यक्ति को इस पर एकाग्रता के साथ विचार करना चाहिए कि किसी काम को करते हुए उसे ठीक तरह से कैसे किया जाए, और परमेश्वर के समक्ष प्रार्थना और खोज करते हुए खुद को शांत रखना जरूरी है। कुछ भी करने से पहले दूसरों के साथ संवाद करना आवश्‍यक है, और अगर संवाद के लिए कोई उपलब्‍ध न हो, तो व्‍यक्ति को खुद ही चिंतन-मनन और प्रार्थना करनी चाहिए, और उस काम को सही ढंग से करने के तरीके की खोज करनी चाहिए। परमेश्वर के समक्ष स्‍वयं को शांत करना यही है। परमेश्वर के समक्ष शांत रहने के लिए तुम्हें विचार-शून्य होने की जरूरत नहीं है; तुम्‍हें अपने हृदय में खोज और प्रतीक्षा के रवैये के साथ, इस मसले को संभालने के उपयुक्त तरीके़ की खोज करते हुए कार्य और चिंतन-मनन करना भी अनिवार्य है। अगर तुम्‍हें उस मसले के बारे में जरा भी अनुमान नहीं है, तो उसके बारे में जानने और पूछताछ करने के लिए किसी को खोजो। पूछताछ करने की इस अवधि में तुम्‍हारा रवैया कैसा होना चाहिए? दरअसल तुम्‍हें खोज और प्रतीक्षा करते हुए यह देखना चाहिए कि परमेश्वर किस तरह काम करता है। पवित्र आत्‍मा तुम्‍हारा प्रबोधन और मार्गदर्शन इस तरह नहीं करता जैसे वह कोई रोशनी जलाकर तुम्हारे दिल को अचानक रोशन कर देता हो। परमेश्वर निरंतर तुम्हें उत्‍प्रेरित करने और समझाने के लिए किसी व्‍यक्ति या किसी घटना का इस्‍तेमाल करता है। प्रार्थना करते हुए गंभीर भाव से घुटने टेकने और घंटों तक उसी मुद्रा में बने रहने से परे भी खोज करने के बहुत-से तरीके हैं; घुटने टेककर बैठे रहने से दूसरे काम लटके रहते हैं। कभी-कभी, कोई व्‍यक्ति चलते हुए भी किसी मसले पर सोच-विचार कर सकता है; कभी-कभी कोई मसला पैदा होने पर कोई सामूहिक संवाद करने के लिए उतावला हो सकता है; कभी कोई ऊपरवाले से मदद माँग सकता है; कभी कोई खुद ही परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकता है; अगर मामला तात्‍कालिक हो, तो तुम स्थिति की वास्‍तविकता को समझने के लिए भाग सकते हो, और फिर सिद्धांतों के मुताबिक मसले से निपटते हुए सत्य की खोज कर सकते हो और मन-ही-मन प्रार्थना और खोज करते रह सकते हो। यही वह तरीका है जो तुम लोगों को अपनाना चाहिए—परिपक्व तरीका! कुछ भी अप्रत्‍याशित घटित होने पर, यदि तुम परेशान हो जाते हो, घबरा जाते हो, और अभिभूत हो जाते हो, तो फिर तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, तुमने पहले कुछ भी अनुभव नहीं किया है, और अपने आध्यात्मिक कद को बढ़ाने के लिए तुम्हें चीजों को अनुभव करना होगा और खुद को प्रशिक्षित करना होगा। तुम लोगों को खोज करने के कई तरीके सीखने चाहिए : जब तुम अपने कर्तव्‍य में व्‍यस्‍त हो, तो अपनी व्‍यस्‍तता के साथ तालमेल बनाकर खोज करो; जब तुम्‍हारे पास समय हो, तो समय की उपलब्‍धता के अनुरूप खोज और प्रतीक्षा करो। बहुत-से अलग-अलग तरीके़ हैं। अगर प्रतीक्षा के लिए पर्याप्‍त समय है, तो कुछ देर प्रतीक्षा करो। बड़े मामलों में तुम हड़बड़ी नहीं कर सकते; हड़बड़ी में गलतियाँ करने के परिणाम अकल्‍पनीय हो सकते हैं। श्रेष्‍ठ परिणाम हासिल करने के लिए तुम्‍हें प्रतीक्षा करते हुए देखना चाहिए कि आगे क्‍या होता है, या फिर यह देखना चाहिए कि क्या तुम किसी ऐसे व्‍यक्ति से उत्प्रेरित होते हो जिसे उस स्थिति का ज्ञान है। ये सब खोज करने के तरीके हैं। परमेश्वर लोगों को प्रबुद्ध करने के लिए किसी एक तरीके का इस्‍तेमाल नहीं करता है; न तो वह मात्र अपने वचनों से तुम्‍हें प्रबुद्ध करता है, न ही वह तुम्‍हारे आस-पास मौजूद लोगों से तुम्‍हें हमेशा मार्गदर्शन मुहैया कराता है। परमेश्वर तुम्‍हें तुम्‍हारी दक्षता के दायरे में न आने वाले मसलों के बारे में, ऐसी चीजों के बारे में जिनसे तुम्‍हारा सामना कभी नहीं हुआ है, किस तरह प्रबुद्ध करता है? परमेश्वर कभी-कभी तुम्हें विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के माध्यम से प्रबुद्ध करता है, इस मामले में तुम्हें किसी विशेषज्ञ की खोज करने या ऐसे व्यक्ति की सलाह लेने की जरूरत है जो इस क्षेत्र को समझता है। कोई भी व्यक्ति जो इस क्षेत्र को समझता है उसे ढूंढने के लिए तुम्हें जल्दी करनी चाहिए, उनसे कुछ मदद लो, फिर सिद्धांतों के अनुसार काम करो, और जब तुम ऐसा करते हो परमेश्वर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। फिर भी तुम्हें पेशेवर कौशल के बारे में या उपलब्ध विशेषज्ञता के बारे में थोड़ा समझना चाहिए, और इसके बारे में तुम्हारी कुछ अवधारणा होनी चाहिए; तुम्हें क्या करना चाहिए इसके बारे में परमेश्वर तुम्हें इसी आधार पर प्रबुद्ध करेगा।

व्यक्ति जो कुछ भी करता है, उसका संभावित पथ निर्धारित करने के लिए सोच सकता है, रूपरेखा बना सकता है, योजनाएँ बना सकता है, सलाह ले सकता है, और कई स्रोतों से इसके बारे में पूछताछ कर सकता है, लेकिन सफलता फिर भी परमेश्वर पर ही निर्भर है। यह कहावत कि, “मनुष्य प्रस्ताव रखता है, लेकिन निपटारा तो परमेश्वर ही करता है” सच है। यह भी गजब की बात है कि अविश्वासी लोगों ने अनुभव के माध्यम से इस कहावत का निचोड़ निकाला है, और यदि परमेश्वर पर विश्वास करने वाले लोग इसे स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते हैं, तो वे बहुत अज्ञानी हैं और वे किसी भी सत्य को समझ नहीं पाए हैं। लोगों को अपने हृदय में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है, और लोग जो करना चाहते हैं, यदि वह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है तो उसे परमेश्वर का आशीष मिलेगा। यह नियम तुम्हारे हृदय में मौजूद होना चाहिए, तुम्हें पता होना चाहिए कि परमेश्वर सभी पर संप्रभुता रखता है, और यह कि अंतिम निर्णय मनुष्य के हाथों में नहीं है। इसलिए, कोई चाहे कुछ भी करे, पहले उसे परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, यह देखने के लिए कि क्या उसके हृदय में कोई परिवर्तन हुआ है, फिर यह देखने के लिए सत्य खोजना चाहिए कि क्या वह कार्रवाई सत्य के अनुसार है और क्या यह कार्य संभव है। यदि यह तुरंत निर्धारित नहीं किया जा सकता है, तो तुम्हे प्रतीक्षा करनी चाहिए। कार्य करने के लिए जल्दबाजी मत करो। तब तक प्रतीक्षा करो जब तक कि तुम मसले को ठीक से समझ नहीं जाते, जब तक तुम यह महसूस नहीं करते कि सही समय आ गया है, अब और प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है और तुम्हें इसे करना ही चाहिए, और तुम्हारे हृदय में पर्याप्त निश्चितता है कि तुम इसे कर सकते हो—तब तुम यह कार्य कर सकते हो। यदि मामले को पूरी तरह से समझने में तुम सक्षम नहीं हो, कुछ दिनों तक प्रतीक्षा करने के बाद इसमें तुम्हारी कोई रुचि नहीं है, और तुम निश्चित नहीं हो कि यह कार्य सफल होगा, तो इससे यह साबित होता है कि यह मामला व्यक्ति की इच्छा से उत्पन्न हुआ है, और परमेश्वर ने इसके लिए अनुमति नहीं दी है, इसलिए तुम्हें इसे जल्दी से त्याग देना चाहिए। जब परमेश्वर से कुछ आता है, तो तुम्हें हमेशा इसमें विश्वास की अनुभूति होगी, और यह विश्वास किसी भी स्थिति में खत्म नहीं होगा। अंततः, तुम्हारे हृदय में और अधिक स्पष्टता आएगी, मानो तुमने इस मसले को स्पष्ट रूप से देखा हो। ऐसा ही होता है जब परमेश्वर की ओर से कुछ आया हो। परमेश्वर लोगों से प्रतीक्षा करवाता है, और इसका मतलब है परमेश्वर के रहस्योद्घाटन की प्रतीक्षा करना, जिसके बाद तुम्हारे लिए सब कुछ स्पष्ट हो जाता है, इसलिए यह प्रतीक्षा आवश्यक है। हालांकि, जिन तरीकों से तुम्हें सहयोग करना चाहिए उनके संबंध में, तुम्हें कार्य करना चाहिए और पूछताछ करनी चाहिए, और इस पूछताछ की प्रक्रिया में, परमेश्वर किसी व्यक्ति या घटना के माध्यम से तुम्हें तथ्य बता सकता है। यदि तुम पूछताछ नहीं करते हो, और तुम्हारे हृदय में उलझन और अनिश्चितता है, तो तुम नहीं जान पाओगे कि तथ्य क्या हैं। लेकिन यदि तुम पूछताछ करते हो, तो तुम तथ्यों की खोज कर पाओगे, और यह परमेश्वर ही होगा जो तुम्हें उन तथ्यों से अवगत करवाएगा। क्या परमेश्वर के कार्य व्यावहारिक नहीं हैं? परमेश्वर लोगों, घटनाओं और चीजों के माध्यम से तुम्हारा मार्गदर्शन करता है और तुम्हें प्रबुद्ध करता है, और वह तुम्हें अपने अनुभव की प्रक्रिया में मामलों को समझने और अंतर्दृष्टि प्राप्त करने का निर्देश देता है, तुम्हें बताता है कि कैसे कार्य करना है। परमेश्वर तुम्हें कोई कथन, कोई विचार या कोई सुझाव ऐसे ही हवा में नहीं दे देता, परमेश्वर ऐसा नहीं करता है। जब तुमने पूछताछ कर ली है और स्थिति के बारे में सभी तथ्य तुम्हारे सामने आ गए हैं, तो तुम्हें पता चल जाएगा कि तुम्हारे मन में पहले ऐसे विचार और भावनाएँ क्यों थीं, तुम इसे अपने मन में समझोगे। क्या यह परिणाम तुम्हारे पूछताछ समाप्त करते ही नहीं आता? जब यह बात आती है कि तुम्हें कार्य कैसे करना चाहिए, तो परमेश्वर इसमें शामिल नहीं होगा; तुम्हें पहले से ही पता होगा कि कार्य कैसे करना है। इसी तरह से परमेश्वर कार्य करता है और लोगों का मार्गदर्शन करता है जो अद्भुत और व्यावहारिक दोनों है, जो कि जरा भी अलौकिक नहीं है। आलसी लोग हमेशा चाहते हैं कि यह अलौकिक तरीकों से हो, वे चाहते हैं कि परमेश्वर उन्हें सीधे-सीधे बताए कि उन्हें क्या करना है, वे सबसे छोटा रास्ता अपनाना चाहते हैं और यह कार्य वे परमेश्वर से करवाना चाहते हैं। वे सक्रिय रूप से खोजबीन नहीं करते हैं, और बिल्कुल भी सहयोग नहीं करते हैं, इसलिए उनकी इच्छाएँ असफल हो जाती हैं। धर्मनिष्ठ लोग, सत्य-प्रेमी लोग, सभी चीजों में परमेश्वर के समक्ष रहते हैं और परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखते हैं। जब उन पर कोई मुसीबत आती है, और वे नहीं जानते कि क्या करना है, तो वे परमेश्वर से प्रार्थना करने और परमेश्वर से माँगने में सक्षम होते हैं और देखते हैं कि परमेश्वर क्या चाहता है। उनके पास खोजी हृदय है, और इसलिए परमेश्वर इस मामले में उनका मार्गदर्शन करता है। और जब अंत में परिणाम आता है, तब वे परमेश्वर के हाथ के आयोजनों को देख सकते हैं। यह कहना कोई खोखला वाक्यांश नहीं है कि परमेश्वर की संप्रभुता सभी चीजों पर कायम है। इसलिए, ऐसे मामलों का अधिक अनुभव होने पर, तुम्हें पता चल जाएगा कि परमेश्वर कोई कल्पना नहीं है, वह कोई मिथक नहीं है, और वह खोखला नहीं है। परमेश्वर तुम्हारे आस-पास ही होगा; तुम उसके अस्तित्व को महसूस कर पाओगे, उसके मार्गदर्शन को महसूस कर पाओगे, और उसके हाथ के आयोजनों और व्यवस्थाओं को महसूस कर पाओगे। इस तरह, तुम परमेश्वर की वास्तविकता और व्यावहारिकता को और अधिक महसूस करोगे। हालाँकि, यदि तुम इस तरह से अनुभव करने में असमर्थ हो, तो तुम कभी भी इन चीजों को महसूस नहीं कर पाओगे। तुम सोचोगे, “परमेश्वर है कि नहीं? कहाँ है वह? मैंने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है और हर कोई कहता है कि वह अस्तित्व में है, तो फिर मैं उसे क्यों नहीं देख पाया? वे सभी कहते हैं कि वह मनुष्य को बचाता है, तो फिर मुझे यह महसूस कैसे नहीं हुआ कि परमेश्वर किस तरह लोगों पर कार्य करता है?” तुम इन चीजों को कभी महसूस नहीं करोगे, इसलिए तुम अपने हृदय में कभी भी सहजता महसूस नहीं करोगे। केवल स्वयं महसूस करके ही तुम यह सत्यापित कर पाओगे कि दूसरे जो कहते हैं और अनुभव करते हैं वह परमेश्वर द्वारा पूरा किया जाता है। परमेश्वर का कार्य चमत्कारी है और इसकी थाह पाना कठिन है, फिर भी यह व्यावहारिक है; तुम्हें इन दो पहलुओं को अवश्य समझना चाहिए। यह चमत्कारी है और इसकी थाह पाना कठिन है, इसका मतलब यह है कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह बुद्धिमतापूर्ण है, और मनुष्य के लिए अप्राप्य है; यह परमेश्वर की पहचान और उसके सार से निर्धारित होता है। फिर भी एक और पहलू है, जो यह है कि परमेश्वर के कार्य अविश्वसनीय रूप से व्यावहारिक हैं। यहाँ “व्यावहारिक” का क्या अर्थ है? इसका मतलब यह है कि मनुष्य परमेश्वर के कार्यों को समझ सकता है, यह कि मनुष्य की सोच, मन, विचार, बुद्धि, मौजूदा क्षमता और सहज-ज्ञान परमेश्वर के कार्यों को समझ सकता है—परमेश्वर के कार्य अलौकिक या खोखले नहीं हैं। जब तुम कुछ सही ढंग से करते हो, तो परमेश्वर तुम्हें बताएगा कि यह सही है, और तुम इसकी पुष्टि कर पाओगे; जब तुम कुछ गलत करते हो, तो परमेश्वर धीरे-धीरे तुम्हें समझाएगा, वह तुम्हें प्रबुद्ध करेगा, और तुम्हें बताएगा कि तुमने यह गलत किया है, और बताएगा कि यह तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन है, और तब तुम परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करोगे। यहाँ “व्यावहारिक” का यही अर्थ है।

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