कर्तव्य निभाने के बारे में वचन (अंश 32)

बहुत से लोग अपने कर्तव्य अनमने ढंग से निभाते हैं, इन्हें कभी गंभीरता से नहीं लेते, मानो वे अविश्वासियों के लिए काम कर रहे हों। वे चीजों को फूहड़, सतही, उदासीन और लापरवाह ढंग से करते हैं, मानो मजाक चल रहा हो। ऐसा क्यों है? वे श्रम करने वाले अविश्वासी हैं; कर्तव्य निभा रहे छद्म-विश्वासी हैं। ये लोग अत्यधिक दुष्ट हैं; ये लम्पट और बेलगाम हैं, और ये अविश्वासियों से अलग नहीं हैं। अपने लिए कुछ करते समय वे बिल्कुल भी अनमने नहीं होते, तो फिर जब अपने कर्तव्य निभाने की बात आती है तो वे थोड़े-से भी ईमानदार या लगनशील क्यों नहीं होते? वे जो कुछ भी करते हैं, जो भी कर्तव्य निभाते हैं, उसमें चंचलता और शरारत का गुण रहता है। ये लोग हमेशा अनमने होते हैं और इनमें धोखा देने की खासियत होती है। क्या ऐसे लोगों में मानवता होती है? उनमें निश्चित रूप से मानवता नहीं होती; न ही उनमें थोड़ा-सा भी जमीर और विवेक होता है। जंगली गधों या जंगली घोड़ों की तरह उन्हें लगातार साधने और उन पर नजर रखने की जरूरत होती है। वे परमेश्वर के घर के साथ छल-प्रपंच करते हैं। क्या इसका मतलब उन्हें परमेश्वर पर कोई सच्चा विश्वास है? क्या वे खुद को उसके लिए खपा रहे हैं? वे निश्चित रूप से कमतर हैं और श्रम करने के योग्य नहीं हैं। यदि ऐसे लोगों को कोई और काम पर रखता तो उन्हें कुछ ही दिनों में निकाल देता। परमेश्वर के घर में यह कहना पूरी तरह से सही है कि वे श्रमिक और काम पर रखे गए मजदूर हैं, और उन्हें केवल हटाया ही जा सकता है। बहुत से लोग अपने कर्तव्य निभाते समय अक्सर अनमने होते हैं। काट-छाँट का सामना करने पर भी वे सत्य स्वीकारने से इनकार कर देते हैं, अपनी बात पर अड़कर बहस करते हैं, और यहाँ तक शिकायत करते हैं कि परमेश्वर का घर उनके साथ अन्याय करता है, उसमें दया और सहनशीलता की कमी है। क्या यह विवेकरहित होना नहीं है? तटस्थ ढंग से कहें तो यह अहंकारी स्वभाव है, और उनमें लेशमात्र भी जमीर और विवेक नहीं है। जो लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें कम-से-कम इतना सक्षम तो होना ही चाहिए कि वे सत्य स्वीकार सकें और जमीर और विवेक की मर्यादा तोड़े बिना काम कर सकें। जो लोग काट-छाँट को स्वीकारने या समर्पण करने में असमर्थ हैं, वे अत्यधिक अहंकारी, आत्मतुष्ट और बिल्कुल विवेकरहित हैं। उन्हें जानवर कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि वे अपने हर काम के प्रति पूरी तरह उदासीन रहते हैं। वे चीजें बिल्कुल मन-मुताबिक करते हैं और परिणामों की परवाह नहीं करते; यदि समस्याएँ आती हैं तो उन्हें परवाह नहीं होती। ऐसे लोग श्रम करने योग्य नहीं हैं। चूँकि वे अपने कर्तव्य इस तरह निभाते हैं, इसलिए दूसरे लोग उन्हें देखना बर्दाश्त नहीं करते और उन पर विश्वास नहीं करते। तो क्या परमेश्वर उन पर भरोसा कर पाता है? इस न्यूनतम मानक को भी पूरा न करने के कारण वे श्रम करने के लिए अयोग्य होते हैं और उन्हें हटाया ही जा सकता है। कुछ लोग कितने अहंकारी और आत्मतुष्ट हो जाते हैं? वे हमेशा यही सोचते हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं; उनके लिए क्या व्यवस्था की गई है, इसकी परवाह किए बिना वे कहते हैं, “यह आसान है; यह कोई बड़ी बात नहीं है। मैं इसे सँभाल सकता हूँ। मुझे सत्य सिद्धांतों के बारे में किसी से संगति कराने की जरूरत नहीं है; मैं खुद पर नजर रख सकता हूँ।” हमेशा इस प्रकार का रवैया अपनाने के कारण ऐसे लोग अगुआ और कार्यकर्ता दोनों को ही देखना बर्दाश्त नहीं करते और वे इनके कार्य पर विश्वास नहीं कर पाते। क्या ये अहंकारी और आत्मतुष्ट लोग नहीं हैं? यदि कोई अत्यधिक अहंकारी और आत्मतुष्ट है, तो यह शर्मनाक व्यवहार है, और यदि उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता तो वे अपने कर्तव्य कभी भी पर्याप्त रूप से नहीं निभाएँगे। अपने कर्तव्य निभाने के प्रति व्यक्ति का रवैया कैसा होना चाहिए? उसमें कम-से-कम जिम्मेदारी का रवैया तो होना ही चाहिए। किसी के सामने चाहे कितनी ही कठिनाइयाँ और समस्याएँ आएँ, उसे सत्य सिद्धांत खोजने चाहिए, परमेश्वर के घर के अपेक्षित मानकों को समझना चाहिए, और यह जानना चाहिए कि उसे अपने कर्तव्य निभाकर कौन-से नतीजे हासिल करने चाहिए। इन तीन बातों को समझकर कोई भी आसानी से अपने कर्तव्य पर्याप्त रूप से निभा सकता है। कोई चाहे कोई भी कर्तव्य निभाए, अगर वह सबसे पहले सिद्धांत समझ लेता है, परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं को समझता है, और जानता है कि उसे क्या नतीजे प्राप्त करने चाहिए, तो क्या उसके पास अपने कर्तव्य निभाने का मार्ग नहीं होता? इसलिए कर्तव्य निभाने के प्रति व्यक्ति का रवैया बहुत महत्वपूर्ण होता है। जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते, वे अपने कर्तव्य अनमने ढंग से निभाते हैं—उनके पास सही रवैया नहीं होता, वे कभी भी सत्य सिद्धांत नहीं खोजते और वे परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के बारे में नहीं सोचते हैं और यह नहीं सोचते कि उन्हें क्या परिणाम हासिल करने चाहिए। वे अपने कर्तव्य पर्याप्त रूप से कैसे निभा सकते हैं? यदि तुम वह हो जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करता है, तो अनमने होने पर तुम्हें उससे प्रार्थना करनी चाहिए और आत्म-चिंतन कर खुद को जानना चाहिए; तुम्हें अपने भ्रष्ट स्वभावों के खिलाफ विद्रोह करना होगा, सत्य सिद्धांतों पर कड़ी मेहनत करनी होगी और उसके अपेक्षित मानकों को पूरा करने का प्रयास करना होगा। इस तरह से अपना कर्तव्य निभाकर तुम धीरे-धीरे परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं को पूरा कर लोगे। सच तो यह है कि अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना बहुत कठिन नहीं है। यह सिर्फ जमीर और विवेक होने, ईमानदार और मेहनती होने की बात है। ऐसे कई अविश्वासी हैं, जो ईमानदारी से काम करते हैं और नतीजतन सफल हो जाते हैं। वे सत्य सिद्धांतों के बारे में कुछ नहीं जानते, तो वे इतना अच्छा कैसे कर लेते हैं? वह इसलिए, क्योंकि वे विवेकशील और मेहनती होते हैं, इसलिए वे ईमानदारी से काम कर सकते हैं, और सावधान रह सकते हैं और इस तरह से, वे चीजें आसानी से करवा सकते हैं। परमेश्वर के घर का कोई भी कर्तव्य बहुत कठिन नहीं है। अगर तुम अपना पूरा दिल उसमें लगाओ और भरसक प्रयास करो, तो तुम अच्छा काम कर सकते हो। अगर तुम ईमानदार नहीं हो, और जो कुछ भी तुम करते हो उसमें मेहनती नहीं हो, अगर तुम हमेशा खुद को परेशानी से बचाने की कोशिश करते हो, अगर तुम हमेशा अनमने रहते हो और हर चीज में गड़बड़ी करते हो, नतीजतन तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं निभाते, चीजें बिगाड़ देते हो और परमेश्वर के घर को हानि पहुँचाते हो, तो इसका मतलब है कि तुम बुराई कर रहे हो, और यह एक ऐसा अपराध बन जाएगा जो परमेश्वर द्वारा घृणित है। सुसमाचार फैलाने के महत्वपूर्ण क्षणों के दौरान, अगर तुम अपने कर्तव्य में अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं करते और सकारात्मक भूमिका नहीं निभाते, या अगर तुम व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हो, तो स्वाभाविक रूप से परमेश्वर तुमसे घृणा करेगा और तुम हटा दिए जाओगे और उद्धार का अपना मौका खो दोगे। इसे लेकर तुम सदा पछताओगे! परमेश्वर द्वारा तुम्हें अपना कर्तव्य करने के लिए उन्नत करना उद्धार का तुम्हारा एकमात्र अवसर है। अगर तुम गैर-जिम्मेदार रहते हो, उसे हल्के में लेते हो और अनमने हो, तो यही वह रवैया है जिसके साथ तुम सत्य और परमेश्वर के साथ पेश आते हो। अगर तुम जरा भी ईमानदार या समर्पण करने वाले नहीं हो, तो तुम परमेश्वर का उद्धार कैसे प्राप्त कर सकते हो? अभी समय बहुत कीमती है; हर दिन और हर मिनट महत्वपूर्ण है। अगर तुम सत्य की खोज नहीं करते, अगर तुम जीवन-प्रवेश पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, और अगर तुम अनमने हो और अपने कर्तव्य में खानापूरी कर परमेश्वर को धोखा देते हो, तो यह वास्तव में अनुचित और खतरनाक है! जैसे ही परमेश्वर तुमसे घृणा करता है और तुम्हें हटा देता है, तो पवित्र आत्मा तुममें कार्य नहीं करता, और इसका कोई इलाज नहीं है। कभी-कभी इंसान का एक मिनट का काम उसकी जिंदगी बर्बाद कर सकता है। कभी-कभी परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाने वाले अकेले शब्द के कारण व्‍यक्ति को बेनकाब करके हटा दिया जाता है—क्या यह ऐसी बात नहीं है जो चंद मिनटों में घट सकती है? यह बिल्कुल वैसी ही बात है कि कुछ लोग अपने कर्तव्य निभाने के बावजूद लगातार गैर-जिम्मेदाराना ढंग से कार्य करते हैं, लापरवाही से पेश आते हैं और संयम नहीं बरतते हैं। वे मूलतः अविश्वासी और छद्म-विश्वासी हैं, और वे जो कुछ भी करें, काम बिगाड़ देते हैं। लिहाजा ऐसे लोग परमेश्वर के घर को नुकसान तो पहुँचाते ही हैं, अपने उद्धार का अवसर भी गँवा देते हैं। इस प्रकार वे कर्तव्य निभाने की अपनी योग्यता समाप्त करा बैठते हैं। इसका मतलब है कि उन्हें बेनकाब करके हटा दिया गया है, जो एक दुखद मामला है। उनमें से कुछ पश्चात्ताप करना चाहते हैं, लेकिन क्या तुम लोगों को लगता है कि उन्हें मौका मिलेगा? एक बार हटा दिए जाने के बाद वे अपना मौका खो चुके होंगे। और एक बार परमेश्वर द्वारा त्याग दिए जाने के बाद उनके लिए अपना उद्धार करना लगभग असंभव हो जाएगा।

परमेश्वर किस तरह के व्यक्ति को बचाता है? तुम कह सकते हो कि उन सभी में जमीर और विवेक होता है और वे सत्य स्वीकार सकते हैं, क्योंकि सिर्फ जमीर और विवेक से युक्त लोग ही सत्य स्वीकार कर उसे संजो पाते हैं, और अगर वे सत्य समझते हैं तो उसका अभ्यास कर सकते हैं। जमीर और विवेक से रहित लोग वे होते हैं, जिनमें मानवता का अभाव होता है; बोलचाल की भाषा में हम कहते हैं कि वे गुणरहित हैं। गुणरहित होने की प्रकृति क्या होती है? वह मानवता से रहित प्रकृति होती है, और ऐसी प्रकृति वाला व्यक्ति मानव कहलाने के योग्य नहीं होता। जैसी कि कहावत है, एक व्यक्ति के पास सद्गुणों के अलावा किसी भी चीज़ की कमी हो सकती है, वे अब मनुष्य नहीं हैं, बल्कि मनुष्य के रूप में जानवर हैं। उन दानवों और दानव-राजाओं को देखो, जो परमेश्वर का विरोध करने और उसके चुने हुए लोगों को सिर्फ नुकसान पहुँचाने का ही काम करते हैं। क्या वे गुणरहित नहीं हैं? हैं; उनमें वास्तव में गुण नहीं है। जो लोग बहुत से ऐसे काम करते हैं जिनमें सद्गुणों की कमी है, उन्हें निःसंदेह प्रतिशोध का सामना करना पड़ेगा। जिनमें सद्गुणों का अभाव है वे मानवता से रहित हैं; वे अपने कर्तव्य अच्छी तरह से कैसे निभा सकते हैं? वे कर्तव्य निभाने योग्य नहीं हैं क्योंकि वे जानवर हैं। जिन लोगों में सद्गुणों की कमी होती है वे कोई भी कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाते। ऐसे लोग इंसान कहलाने लायक नहीं हैं। वे जानवर हैं, इंसान के रूप में जानवर। केवल विवेक और अंतरात्मा वाले लोग ही मानवीय मामलों को संभाल सकते हैं, अपनी बात के प्रति सच्चे, भरोसेमंद और “ईमानदार सज्जन” कहलाने योग्य हो सकते हैं। “ईमानदार सज्जन” शब्द का प्रयोग परमेश्वर के घर में नहीं किया जाता है। इसके बजाय परमेश्वर का घर लोगों से ईमानदार होने की अपेक्षा करता है, क्योंकि यही सत्य है। केवल ईमानदार लोग ही भरोसेमंद होते हैं, उनके पास विवेक और अंतरात्मा होती है और वे इंसान कहलाने योग्य होते हैं। यदि कोई अपने कर्तव्य निभाते हुए सत्य स्वीकार सकता है और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकता है, अपने कर्तव्य समुचित रूप से निभा सकता है, तो यह व्यक्ति सचमुच ईमानदार और भरोसेमंद है। और जो लोग परमेश्वर से उद्धार प्राप्त कर सकते हैं वे ईमानदार लोग हैं। एक ईमानदार और भरोसेमंद व्यक्ति होने का संबंध तुम्हारी क्षमताओं या चेहरे-मोहरे से नहीं है, तुम्हारी काबिलियत, योग्यता या प्रतिभा से तो और भी कम है। अगर तुम सत्य स्वीकारते रहते हो, जिम्मेदारी से कार्य करते हो, तुम्हारे पास अंतःकरण और विवेक है और तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हो, तो यह पर्याप्त है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति के पास कितनी क्षमताएँ हैं, असली चिंता यह है कि उसमें सद्गुण की कमी है कि नहीं। एक बार जब कोई सद्गुण रहित हो जाता है, तो वह मनुष्य नहीं बल्कि जानवर माना जाएगा। परमेश्वर के घर से लोग इसलिए हटा दिए जाते हैं क्योंकि उनमें मानवता और सद्गुण नहीं होते। इसलिए, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें सत्य स्वीकारने में सक्षम होना चाहिए, ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए, उनके पास कम-से-कम अंतःकरण और विवेक होना चाहिए, उन्हें अपने कर्तव्य अच्छी तरह निभाने और परमेश्वर का आदेश पूरा करने में सक्षम होना चाहिए। केवल यही लोग परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकते हैं; ये लोग ही उस पर ईमानदारी से विश्वास करते हैं और ईमानदारी से खुद को उसके लिए समर्पित करते हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाता है।

क्या तुम लोग काम करते समय और अपने कर्तव्य निभाते समय अपने व्यवहार और इरादों की बार-बार जाँच करते हो? (शायद ही कभी।) यदि तुम शायद ही कभी अपनी जाँच करते हो, तो क्या तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव पहचान सकते हो? क्या तुम अपनी वास्तविक स्थिति को समझ सकते हो? यदि तुम सचमुच भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हो, तो इसके दुष्परिणाम क्या होंगे? तुम्हें इन सभी चीजों के बारे में बहुत स्पष्ट होना चाहिए। यदि कोई अपनी जाँच नहीं करता, लगातार अनमने ढंग से और रत्तीभर सिद्धांत के बिना काम करता है, तो इसके परिणामस्वरूप वह कई बुराइयाँ करेगा और बेनकाब करके हटा दिया जाएगा। क्या यह गंभीर परिणाम नहीं है? आत्म-परीक्षण ही इस समस्या को हल करने का तरीका है। मुझे बताओ, चूँकि मानव भ्रष्टाचार बहुत गहरे तक व्याप्त है, क्या कभी-कभार ही आत्म-चिंतन करना स्वीकार्य है? क्या कोई अपने भ्रष्ट स्वभाव हल करने के लिए सत्य खोजे बिना अपने कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकता है? यदि भ्रष्ट स्वभाव दूर न किए गए तो गलत काम करना, सिद्धांतों का उल्लंघन करना और यहाँ तक कि बुराई करना भी आसान है। यदि तुम कभी भी आत्म-परीक्षण नहीं करते तो यह परेशानी भरा है—तुम किसी अविश्वासी से अलग नहीं हो। क्या बहुत से लोगों को सिर्फ इसी कारण से हटा नहीं दिया जाता? सत्य का अनुसरण करते समय इसे हासिल करने के लिए व्यक्ति को किस प्रकार अभ्यास करना चाहिए? महत्वपूर्ण बात यह है कि अपना कर्तव्य निभाते समय बार-बार आत्म-परीक्षण करो, यह चिंतन करो कि क्या किसी ने सिद्धांतों का उल्लंघन कर भ्रष्टता प्रकट की है, और क्या उसके इरादे गलत हैं। यदि तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार आत्म-चिंतन करो और देखो कि वे तुम पर कैसे लागू होते हैं तो खुद को जानना आसान हो जाएगा। यदि तुम इस तरह से आत्म-चिंतन करते हो तो धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव दूर कर लोगे और अपने दुष्ट विचार, हानिकारक इरादे और प्रेरणाएँ भी आसानी से हल कर लोगे। अगर तुम कुछ गड़बड़ी होने, कोई गलती करने या कोई बुराई करने के बाद ही जाँच करते हो, तो बहुत देर हो चुकी होगी। परिणाम पहले ही घटित हो चुके हैं, और यह एक अपराध है। यदि तुम बहुत अधिक बुराई करते हो और हटा दिए जाने के बाद ही अपनी जाँच करते हो, तो बहुत देर हो जाएगी और तुम रोने-धोने और दाँत पीसने के सिवाय और कुछ नहीं कर पाओगे। जो लोग सचमुच परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे अपने कर्तव्य निभा सकते हैं—यह परमेश्वर का उत्कर्ष और आशीष है, और यह एक अवसर है जिसे तुम्हें संजोना चाहिए। इसलिए, यह और भी महत्वपूर्ण है कि तुम अपने कर्तव्यों का पालन करते समय बार-बार आत्म-चिंतन करो। व्यक्ति को अक्सर जाँच करनी चाहिए, सभी चीजों की जाँच करनी चाहिए। अपने इरादों और अपनी दशा की जाँच करनी चाहिए, यह देखना चाहिए कि क्या वह परमेश्वर के सामने रहता है, क्या उसके कार्यों के पीछे के इरादे उचित हैं, और क्या उसके कार्यों के उद्देश्य और स्रोत दोनों परमेश्वर के निरीक्षण में टिक सकते हैं और क्या इन्हें परमेश्वर की पड़ताल के अधीन लाया गया है। कभी-कभी लोगों को लगता है कि अपने कर्तव्य निभाते हुए कठिनाइयाँ पेश आने पर सत्य खोजना बोझिल हो जाता है। वे सोचते हैं, “यह चलेगा। यह काफी अच्छा है।” यह चीजों को लेकर व्यक्ति का रवैया और अपने कर्तव्य के प्रति मानसिकता दर्शाता है। यह मानसिकता एक प्रकार की दशा है। यह दशा क्या है? क्या यह दायित्व बोध के बिना कर्तव्य निभाना नहीं हुआ, एक प्रकार का अनमना रवैया नहीं हुआ? (बिल्कुल।) इतनी गंभीर समस्या होने के बावजूद अपनी जाँच न करना बहुत खतरनाक है। कुछ लोग इस दशा के प्रति उदासीन रहते हैं। उन्हें लगता हैं, “थोड़ा अनमना होना सामान्य बात है, लोग ऐसे ही होते हैं। इसमें समस्या क्या है?” क्या ये उलझे हुए लोग नहीं हैं? क्या चीजों को इस तरह से देखना व्यक्ति के लिए बहुत खतरनाक नहीं है? उन लोगों को देखो जिन्हें हटा दिया गया है। क्या वे अपने कर्तव्य हमेशा अनमने ढंग से नहीं निभाते हैं? ऐसा तब होता है जब कोई अनमना होता है। जो लोग आसानी से लापरवाह हो जाते हैं वे देर-सवेर खुद को बर्बाद करके रहेंगे, और मौत की दहलीज पर पहुँचने तक अपना रास्ता बदलने से इनकार करते रहते हैं। अनमने तरीके से कर्तव्य निभाना गंभीर समस्या है, और यदि तुम अपने बारे में अच्छी तरह आत्म-चिंतन कर समस्याएँ हल करने के लिए सत्य नहीं खोज सकते तो यह वास्तव में बेहद खतरनाक है—तुम्हें किसी भी समय हटाया जा सकता है। यदि इतनी गंभीर समस्या है और तुम अभी भी आत्म-परीक्षण नहीं करते और इसे हल करने के लिए सत्य नहीं खोजते हो, तो तुम खुद को नुकसान पहुँचाकर बर्बाद कर दोगे, और जब तुम्हें हटाए जाने का दिन आएगा और तुम रोने-धोने और दाँत पीसने लगोगे तो तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

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