अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 90)
परमेश्वर क्यों चाहता है कि लोग उसे जानें? वह क्यों चाहता है कि लोग अपने आप को जानें? खुद को जानने का क्या उद्देश्य है? इसका क्या परिणाम होगा? और परमेश्वर को जानने का क्या उद्देश्य है? यदि लोग परमेश्वर के बारे में जानेंगे तो उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या तुम लोगों ने कभी इन सवालों पर विचार किया है? परमेश्वर विभिन्न साधनों का उपयोग करता है ताकि लोग खुद को जान सकें। उसने लोगों की भ्रष्टता प्रकट करने और अनुभव के माध्यम से थोड़ा-थोड़ा करके उन्हें खुद को जानने के लिए सभी प्रकार के परिवेश तैयार किए हैं। चाहे परमेश्वर के वचनों का प्रकाशन हो या उसका न्याय और ताड़ना हो, क्या तुम लोगों को पता है कि परमेश्वर द्वारा इस कार्य को करने का परम उद्देश्य क्या है? इस तरह से अपना कार्य करने के पीछे परमेश्वर का परम उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उसके कार्य का अनुभव करने वाला हर व्यक्ति जान ले कि मनुष्य क्या है। और इसका क्या अर्थ है कि “जानना कि मनुष्य क्या है”? इसका अर्थ मनुष्य को अपनी पहचान, स्थिति, कर्तव्य और जिम्मेदारी के प्रति जागरूक करना है। इसका अर्थ तुम्हें यह बताना है कि मनुष्य होने से क्या अभिप्राय है, तुम्हें यह समझाना है कि तुम कौन हो। लोगों को खुद को जानने में सक्षम बनाने के पीछे परमेश्वर का परम लक्ष्य यही है। तो परमेश्वर क्यों चाहता है कि लोग उसे जानें? यह वह विशेष अनुग्रह है जो वह मानवजाति को प्रदान करता है, क्योंकि परमेश्वर को जानकर मनुष्य कई सत्यों को समझ सकता है और कई रहस्यों को जान सकता है। परमेश्वर को जानने से लोगों को बहुत कुछ प्राप्त होता है। जब लोग परमेश्वर को जान लेते हैं, तो वे सबसे सार्थक तरीके से जीने का तरीका सीखते हैं, इसलिए लोगों को परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के लिए कहना परमेश्वर का सबसे बड़ा प्रेम, उसका सबसे बड़ा आशीष है। और परमेश्वर लोगों को अपने बारे में ज्ञान देने के लिए कई तरीकों का उपयोग करता है, जिसमें सबसे प्राथमिक तरीका न्याय और ताड़ना, मार्गदर्शन और उसके वचनों का पोषण है। बेशक, वह न्याय और ताड़ना के माध्यम से लोगों को अपने स्वभाव का ज्ञान भी देता है—यह परमेश्वर को जानने का शॉर्टकट है। परमेश्वर के स्वभाव को देखने और जानने से लोगों को क्या अन्तिम परिणाम मिलता है? इससे लोगों को पता चलता है कि परमेश्वर कौन है, उसका सार क्या है, उसकी पहचान और स्थिति क्या है, उसकी चीज़ें और अस्तित्व क्या हैं और उसका स्वभाव कैसा है। इससे प्रत्येक व्यक्ति स्पष्ट रूप से जान लेता है कि वह सृजित प्राणी है, कि केवल परमेश्वर ही सृजनकर्ता है और कैसे सृजित प्राणियों को सृजनकर्ता के प्रति समर्पण करना चाहिए। यह सब जानने से जीवन में मनुष्य का मार्ग पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है। जब लोग वास्तव में खुद को जान लेंगे तो क्या वे धीरे-धीरे अपनी असाधारण इच्छाओं और विभिन्न अन्यायपूर्ण इरादों को छोड़ नहीं देंगे? (हाँ।) तो क्या वे तब इस स्तर पर पहुँच जाएंगे जहाँ वे इन बुराइयों को पूरी तरह से त्यागने में सक्षम हों? यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। कोई व्यक्ति अपनी असाधारण इच्छाएँ और परमेश्वर से विभिन्न मांगें वास्तव में केवल तभी छोड़ पाता है जब वह परमेश्वर के कार्य के माध्यम से उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करता है और उसके सार, पहचान और स्थिति की सटीक जानकारी और परिभाषा जान लेता है। केवल इस प्रकार का व्यक्ति पतरस की तरह अपने दिल की गहराई से परमेश्वर से प्रेम करने की इच्छा और कामना व्यक्त कर सकता है, और परमेश्वर के प्रति प्रेम करने का अभ्यास कर सकता है। अतः परमेश्वर को जानना और खुद को जानना—दोनों में से किसी भी कार्य को छोड़ा नहीं जा सकता। तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर से प्यार करना चाहते हो, लेकिन यदि तुम उसे समझे ही नहीं तो क्या तुम जान सकते हो कि उससे प्यार कैसे करना है? उसके कौन-से हिस्से प्यारे हैं? उसके सबसे प्यारे पहलू कौन-से हैं? यदि तुम्हें यह सब नहीं पता तो तुम उससे प्यार नहीं कर सकते। तुम चाहकर भी उससे प्यार नहीं कर सकोगे और हो सकता है कि तुम देखो कि तुम्हारे मन में उसके बारे में धारणाएँ भी हैं और तुम्हारे अंदर अनायास ऐसा विद्रोह पैदा हो रहा है जो तुम्हें नकारात्मकता की ओर ले जा रहा है। क्या इस प्रकार के व्यक्ति को परमेश्वर की स्वीकृति मिलेगी? बिल्कुल नहीं। जब कोई व्यक्ति परमेश्वर को नहीं जानता और फिर भी कहता है कि वह उससे प्यार करता है तो यह तथाकथित “प्रेम” केवल एक खोखला सिद्धांत होता है जो मानवीय तर्क और सोच विचार का नतीजा होता है। यह परमेश्वर के ज्ञान से उत्पन्न नहीं होता है और यह परमेश्वर के सामने बिल्कुल भी नहीं टिकता। तो क्या अब तुम लोग समझ गए कि मैं इन दो मामलों के बारे में क्या कह रहा हूँ? (हाँ।) तो फिर तुम लोग यह अभी थोड़ा समय पहले क्यों नहीं कह पाए? इससे सिद्ध होता है कि व्यावहारिक अनुभव के दौरान तुम लोगों का अपने बारे में ज्ञान पूरी तरह से गड़बड़ है और तुम लोगों को परमेश्वर का सच्चा ज्ञान नहीं है। क्या तुम लोग जानते हो कि इसमें समस्या क्या है? (हमें अभ्यास का सही रास्ता नहीं मिला है। हम परमेश्वर को जानने और खुद को जानने के दो पहलुओं से एक साथ प्रवेश नहीं कर पाते। हम केवल एक ही पहलू से प्रवेश करने पर ध्यान देते हैं और इस प्रकार हम अपने जीवन के विकास को सीमित कर देते हैं।) चूँकि तुम लोग अभी इस दशा में हो, तो तुम लोगों का आध्यात्मिक कद क्या है? क्या यह अविकसित नहीं है? क्या तुम लोग खुद को जानने के मामले में परमेश्वर की अपेक्षा और मानक से बहुत दूर नहीं हो? कम से कम तुम अभी भी अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और इरादों को नहीं छोड़ पा रहे हो। क्या परमेश्वर के प्रति तुम्हारा समर्पण सत्य के अनुरूप हो सकता है? क्या तुम यह जान सकते हो कि तुम्हारे दिल में परमेश्वर की कोई हैसियत है या नहीं? अभी भी ऐसे बहुत-से लोग हैं जो यह सवाल करते हैं कि क्या परमेश्वर का देहधारण मानव है या परमेश्वर; वे दोनों नावों पर सवार हैं, एक पल तो वे पृथ्वी पर मौजूद परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और अगले ही पल वे आकाश में एक अज्ञात परमेश्वर में विश्वास करने लगते हैं। और कुछ ऐसे भी लोग हैं जो परमेश्वर के सार पर भी सवाल उठाते हैं और कहते हैं, “देहधारी परमेश्वर और आकाश में मौजूद परमेश्वर एक ही परमेश्वर कैसे हो सकते हैं? यदि वह वास्तव में परमेश्वर है तो वह चमत्कार और चिह्न क्यों नहीं दिखाता है?” इससे पता चलता है कि तुम लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान की भारी कमी है। यह है तुम लोगों का आध्यात्मिक कद कि परमेश्वर द्वारा इतना कुछ बताए जाने के बावजूद भी तुम अभी भी इसे समझ नहीं पा रहे हो। अभी तुम लोग केवल यह स्वीकार करते हो कि परमेश्वर देहधारी हुआ है, तुम लोग केवल देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को ही स्वीकार करते हो; लेकिन जब परमेश्वर के सार, पहचान और दर्जे की बात आती है तो तुम्हारे पास इसके बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं होता है। तुम लोग कह सकते हो कि तुम्हारे दिलों में यह ज्ञान शून्य के बराबर है, है न? (ऐसा ही है।) और इस बात को वास्तव में सिद्ध किया जा सकता है : परमेश्वर के सार या परमेश्वर के इरादों जैसे सत्य के पहलुओं पर मेरे संगति करने से पहले तुम सोचते थे कि परमेश्वर के बारे में तुम्हारा ज्ञान बहुत गहरा है और तुम सोचते थे कि परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास दृढ़ और अटूट है। लेकिन जब मैंने तुम लोगों के साथ स्वयं परमेश्वर, परमेश्वर के स्वभाव और परमेश्वर के सार जैसे सत्यों के बारे में संगति की तो इन वचनों और विषयवस्तु ने तुम लोगों के दिलों में एक कड़ी प्रतिक्रिया जगाई। यह प्रतिक्रिया बहुत तीव्र थी और इसके कारण तुम लोगों के लिए इसे स्वीकार करना कठिन हो गया और इसने तुम लोगों के दिल में कल्पित परमेश्वर के साथ एक बड़ा संघर्ष पैदा कर दिया। क्या यह एक तथ्य नहीं है? (बिल्कुल है।) इसलिए जब मैं कोई ऐसी बातें बताता हूँ जो तुम लोगों ने पहले नहीं सुनी हैं, तो तुम लोगों को पहली बार में उन्हें स्वीकार करना असंभव लगता है, मानो तुम लोग समझ ही नहीं पा रहे हो कि मैं क्या कह रहा हूँ। इससे सिद्ध होता है कि तुम लोगों का आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, इतना छोटा कि तुम परमेश्वर के वचनों को समझ भी नहीं सकते या उन तक पहुँच भी नहीं सकते। इन्हें समझने के लिए अभी तुम्हें कई और सालों के अनुभव की आवश्यकता होगी।
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।