अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 87)

अगर, इस समय, तुम लोगों के लिए एक संत होने की भावना और सिद्धांतों को पाना अभी तक बाकी है, तो यह साबित करता है कि तुम लोगों का जीवन-प्रवेश बहुत सतही है, और यह कि तुम अभी तक सत्य समझ नहीं पाए हो। अपने साधारण व्यवहार और आचरण, और उस वातावरण में जिसमें तुम प्रतिदिन रहते हो, तुम्हें रस लेना और चिंतन करना, एक-दूसरे से संगति, एक-दूसरे को प्रोत्साहित, एक-दूसरे को याद दिलाना, एक-दूसरे की मदद और देखभाल करनी होगी, और एक-दूसरे का समर्थन और संपोषण करना होगा। इसके जरूर सिद्धांत होंगे कि भाई और बहनें कैसे बातचीत करें। हमेशा दूसरों के दोषों पर ध्यान केंद्रित न करो, इसके बजाय निरंतर अपनी पड़ताल करो, फिर दूसरों के सामने सक्रियता से उसे स्वीकार करो जिन चीजों को करने से तुमने उन्हें बाधित किया हो या नुकसान पहुँचाया हो, और खुलकर अपने बारे में बोलना और संगति करना सीखो। इस तरह से, तुम आपसी समझ प्राप्त कर सकते हो। इससे भी ज्यादा, चाहे तुम्हारे साथ कोई भी बात हो जाए, तुम्हे चीजें परमेश्वर के वचनों के आधार पर देखनी चाहिए। अगर लोग सत्य सिद्धांत समझने और अभ्यास का मार्ग खोजने में सक्षम हों, तो वे एक हृदय और दिमाग के हो जाएँगे, और भाई-बहनों के बीच संबंध सामान्य हो जाएगा, वे अविश्वासियों जितने अलग, उदासीन और क्रूर नहीं होंगे, और वे एक-दूसरे के प्रति आपसी संदेह और सतर्कता की मानसिकता छोड़ देंगे। भाई-बहन एक-दूसरे के साथ ज्यादा घनिष्ठ हो जाएँगे; वे एक-दूसरे का सहारा बनने और प्रेम करने में सक्षम हो सकेंगे; उनके हृदयों में सद्भावना होगी, और वे एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता और करुणा रखने में सक्षम होंगे, और वे एक-दूसरे को अलग-थलग करने, एक-दूसरे से ईर्ष्या करने, एक-दूसरे से तुलना करने और गुप्त रूप से एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने और एक दूसरे के प्रति विद्रोही होने के बजाय एक-दूसरे का समर्थन और सहायता करने में सक्षम होंगे। अगर लोग अविश्वासियों जैसे होंगे, तो वे अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह कैसे निभा सकते हैं? यह न केवल उनके जीवन प्रवेश को प्रभावित करेगा, बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुँचाएगा और प्रभावित करेगा। उदाहरण के लिए, जब लोग तुम्हें गलत तरीके से देखते हैं तो तुम्हें गुस्सा आ जाता है, या जब वे कुछ ऐसा कहते हैं जो तुम्हारी इच्छा के अनुरूप नहीं होता और जब कोई ऐसा कुछ करता है जो तुम्हें अपना दिखावा करने से रोकता है, तो तुम उनसे नाराज हो सकते हो, और तुम असहज और अप्रसन्न महसूस कर सकते हो, और तुम हमेशा यह सोचते हो कि अपनी प्रतिष्ठा को कैसे बहाल करूँ। महिलाएँ और युवा विशेष रूप से इस पर काबू पाने में असमर्थ होते हैं। वे हमेशा छोटे-मोटे विवादों और असहमतियों पर ध्यान देते हैं, स्वेच्छाचारी होते हैं और नकारात्मकता की स्थिति में रहते हैं। वे परमेश्वर से प्रार्थना करने या परमेश्वर के वचन को खाने-पीने के इच्छुक नहीं हैं, जिसका प्रभाव उनके जीवन प्रवेश पर पड़ता है। जब लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार जीते हैं, तो उनके लिए परमेश्वर के सामने शांति से रहना बहुत कठिन होता है, और उनके लिए सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीना बहुत कठिन होता है। परमेश्वर के सामने जीने के लिए तुम्हें पहले आत्मचिंतन कर खुद को जानना और वास्तव में परमेश्वर से प्रार्थना करना सीखना चाहिए, और फिर तुम्हें सीखना चाहिए कि भाई-बहनों के साथ कैसे पेश आना है। तुम्हें एक-दूसरे के प्रति सहिष्णु होना चाहिए, एक-दूसरे के साथ उदार होना चाहिए, और यह देखने में सक्षम होना चाहिए कि दूसरों के गुण और ताकतें क्या हैं—तुम्हें दूसरों की राय और सही चीजें स्वीकार करना सीखना होगा। खुद को लिप्त मत करो, महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ मत रखो और हमेशा यह मत सोचो कि तुम अन्य लोगों से बेहतर हो, और फिर खुद को एक महान व्यक्ति समझकर अन्य लोगों को तुम्हारा कहा मानने, तुम्हारी आज्ञा मानने, तुम्हारा आदर और बड़ाई करने के लिए मजबूर मत करो—यह विचलन है। अगर किसी व्यक्ति के अहंकारी स्वभाव का समाधान नहीं हुआ है, और फूलती महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ भी साथ मिल गई हैं, तो यह स्थिति उसे आसानी से पथ-भ्रष्टता की ओर ले जा सकती है। इसलिए जो लोग सत्य स्वीकार नहीं सकते और खुद को जानने के लिए आत्म-चिंतन नहीं कर सकते हैं, वे बहुत बड़े खतरे में हैं। वे हमेशा महत्वाकांक्षाएँ पालते हैं, हमेशा महान और सुपरमैन बनना चाहते हैं—यही पथ-भ्रष्टता है, यह अत्यधिक अहंकार है। वे अपनी सारी समझ खो चुके हैं, वे सामान्य लोग नहीं हैं, वे पथभ्रष्ट लोग हैं, और वे राक्षस हैं। अहंकारी स्वभावों के वशीभूत होकर, वे अपने हृदयों में दूसरों को नीचा समझते हैं, उन्हें तुच्छ और अज्ञानी मानते हैं। वे दूसरों की खूबियाँ नहीं पहचान पाते हैं लेकिन दूसरों की कमियाँ खूब बढ़ा-चढ़ा कर बता सकते हैं; वे अपने हृदय में उनसे घृणा करते हैं, और हर मोड़ पर वे इन कमियों को सार्वजनिक करते हैं और इनकी खिल्ली उड़ाते हैं, दूसरों को परेशान और आहत करते हैं, और अंततः दूसरों को उनकी बात सुनने और मानने के लिए, या फिर उनसे डरने और छिपने के लिए बाध्य करते हैं। जब लोगों के बीच ऐसा रिश्ता बनता है या पहले ये ही मौजूद होता है, तो क्या तुम लोग यही देखना चाहते हो? क्या तुम लोग इसे स्वीकार सकते हो? (नहीं।) उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम दूसरों से कद में थोड़े लंबे और बेहतर दिखते हो, जिसकी वजह से कुछ लोग तुम्हारी तारीफ करते हैं। परिणामस्वरूप, तुम अपने आप से बहुत खुश रहते हो और अंततः उन लोगों को नीचा समझते हो जो तुमसे कद में छोटे और कम अच्छे दिखते हैं। इससे किस तरह के स्वभाव का खुलासा हुआ है? जो लोग इतने अच्छे नहीं दिखते, जो कद में थोड़े छोटे हैं, और जो थोड़े ज्यादा मूर्ख हैं और उतने तेज-तर्रार नहीं हैं, ऐसे लोगों को कुछ लोग हेय दृष्टि से देखते हैं और यहाँ तक कि उनका मजाक उड़ाने के लिए तंज कसते हैं। क्या लोगों से इस तरह का बर्ताव करना उचित है? क्या यह सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति है? बिल्कुल नहीं। तो, इस तरह की स्थिति से निपटने का सबसे सही तरीका क्या है? (दूसरों का उनकी कमियों के लिए उपहास नहीं करना, और दूसरों का सम्मान करना।) यह एक सिद्धांत है। ऐसा लगता है कि तुम लोगों को इसकी कुछ समझ है। तो लोगों से परमेश्वर कैसा व्यवहार करता है? परमेश्वर इसकी परवाह नहीं करता कि लोग कैसे दिखते हैं, वे कद में लंबे हैं या छोटे। इसके बजाय, वह देखता है कि क्या उनके हृदय दयालु हैं, क्या वे सत्य से प्रेम करते हैं, और क्या वे उसे प्रेम करते हैं और उसके समक्ष समर्पण करते हैं। परमेश्वर का लोगों के प्रति व्यवहार इसी पर आधारित है। अगर लोग भी ऐसा ही कर सकें तो वे दूसरों के साथ निष्पक्ष और सत्य सिद्धांतों के अनुरूप व्यवहार करने में सक्षम होंगे। सबसे पहले, हमें परमेश्वर के इरादे समझने होंगे, और जानना होगा कि परमेश्वर लोगों के प्रति कैसा व्यवहार करता है, फिर हमारे पास एक सिद्धांत और मार्ग होगा कि लोगों के प्रति कैसे व्यवहार करना है। आमतौर पर, सभी लोगों में थोड़ा-सा घमंड होता है। जब वे तारीफ के कुछ शब्द सुनते हैं, वे खुद से थोड़े खुश हो जाते हैं, वे एक धुन गुनगुनाते हैं और अपने सिर ऊंचे उठाकर चलते हैं। यह शैतान के स्वभाव की अभिव्यक्ति है। अगर वे भी दूसरों का मूल्यांकन करें और उन्हें नीची नजरों से देखें, तो यह किस तरह का स्वभाव है? यह दुष्ट, अहंकारी और बुरा स्वभाव है। अगर लोग अपने भ्रष्ट स्वभावों के अनुसार जीने की कुरूपता पहचानने और देखने में विफल रहते हैं, तो उनके लिए इन भ्रष्ट स्वभावों को उतार फैंकना मुश्किल होता है, और वे वास्तविक मानव के समान नहीं जी सकते।

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