अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 84)
ताइवान एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ सामाजिक स्थिरता और समृद्धि है। सार्वजनिक व्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता, सांस्कृतिक मूल्य इत्यादि सभी कुछ मुख्य भूमि चीन की तुलना में बहुत बेहतर है। यहाँ लोग बहुत सुविधाजनक जीवन जीते हैं। सुविधा से रहना अच्छी बात है, लेकिन सुविधापूर्ण जीवन जीते हुए परमेश्वर में विश्वास करने वाले बहुत-से लोग उसके लिए पीड़ा सहना या कीमत चुकाना तो दूर, उसका अनुसरण करने को भी तैयार नहीं हैं। उनके लिए अपना सब कुछ त्यागना और स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना बहुत कठिन है। क्या सच में ऐसा ही नहीं है? जब लोग सुविधापूर्वक रहते हैं, तो वे हमेशा खाने-पीने और मौज-मस्ती करने, देह और जीवन का आनंद उठाने के बारे में सोचते रहते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने वालों और सत्य का अनुसरण करने वालों पर इसका एक निश्चित प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि ऐसे सुविधापूर्ण सामाजिक माहौल में बहुत-से लोग अपने कर्तव्यों का पालन करना तो चाहते हैं लेकिन ऐसा करने में उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। वे थोड़ा सा भी कष्ट उठाने को तैयार नहीं होते और जब वे कलीसिया के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन या विभिन्न प्रकार के कार्य कर रहे होते हैं, तो वे कुशलतापूर्वक काम नहीं करते। कई बार इससे उनके काम की प्रगति प्रभावित होती है और इस बात का उनके सामाजिक परिवेश से एक निश्चित संबंध होता है। मैं यह देख कर भावुक हो जाता हूँ कि हर बार जब हम एकत्रित होते हैं, तो तुम लोग यहाँ बैठ कर शुरू से अंत तक उपदेश सुन लेते हो। मुख्य भूमि चीन में कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास कर पाते हैं क्योंकि उनके परिवेश ने उनका दम घोंट रखा है, वे उत्पीड़ित हैं, समाज उनके साथ भेदभाव करता है और उन्हें गंभीर अत्याचारों का सामना करना पड़ता है, जबकि कुछ लोग परमेश्वर में इसलिए विश्वास करते हैं क्योंकि वे निष्पक्षता और तार्किकता तलाश रहे हैं या आध्यात्मिक समर्थन और भरोसा करने लायक किसी चीज की तलाश में हैं। कुछ लोगों के उत्साह, विश्वास और वफादारी के भाव बड़े लाल अजगर के क्रूर अत्याचार के कारण जागे। कुछ लोगों को विदेश भागने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि मुख्य भूमि चीन में परमेश्वर पर विश्वास करना बहुत कठिन है और अनेक लोगों को इसी वजह से खोजा जा रहा है—उनके पास छिपने की कोई जगह नहीं है। यही वजह है कि वे विदेश भाग जाते हैं। मुख्य भूमि चीन में दमनकारी और कठोर जीवनदशाओं की तुलना में ताइवान में लोगों का जीवन बहुत आसान है। इस सुविधापूर्ण जीवन के साथ, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे कोई कष्ट सहने या कीमत चुकाने को तैयार नहीं हैं और जब उन्हें किसी उत्पीड़न या क्लेश का सामना करना पड़ता है तो वे अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए तैयार नहीं होते। जीवन जब इतना सुविधापूर्ण होता है तो लोग बस खाने, पीने और मौज-मस्ती करने में लगे रहते हैं। वे हमेशा ऐसी बातों को लेकर चिंतित रहते हैं कि “मुझे क्या खाना चाहिए? मुझे कहाँ घूमने जाना चाहिए? मैं अभी तक किन देशों में नहीं गया हूँ? मनुष्य का जीवन केवल कुछ दशकों का होता है। अगर मैं दुनिया भर के देशों में नहीं जा सका और अपने क्षितिज का विस्तार नहीं कर सका, तो क्या मेरा जीवन व्यर्थ नहीं रह जाएगा?” इस तरह किसी व्यक्ति का मन अराजक हो जाता है और उस पर लगाम नहीं लगाई जा सकती। क्या कोई इन हालात में भी परमेश्वर के सामने शांति से उसके वचनों को खा और पी सकता है? क्या कोई अब भी सभाओं में उपदेशों को ध्यान से सुन सकता है? ऐसा करना निश्चित ही कठिन होगा। तो जब किसी को परमेश्वर में विश्वास करने, सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो उसे लगता है कि उसके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है, उसका दमन किया जा रहा है और उसे महसूस होता रहता है कि उसका जीवन निरर्थक है। क्या यह सुविधाजनक परिवेश लोगों के सामने गंभीर प्रलोभन और बाधा उत्पन्न नहीं करता है? करता है। सभी लोग भौतिक सुखों की लालसा रखते हैं, लेकिन जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, उनके लिए जीवन विकास के संदर्भ में सुविधा जरूरी तौर पर कोई अच्छी बात नहीं है। अधिकतर लोग थोड़ा कष्ट होने पर ही नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं और उनमें जरा भी इच्छाशक्ति नहीं होती; क्या यह सुविधापूर्ण वातावरण का परिणाम नहीं है? अनुभवजन्य गवाही के ऐसे अनेक प्रकार के वीडियो हैं जिनमें देखा जा सकता है कि मुख्य भूमि चीन में भाइयों और बहनों को जेल में यातनाएँ दी जाती हैं, सजा दी जाती है और कैद रखा जाता है। क्या तुम सबने इन्हें देखा है? (हमने देखा है।) और उन्हें देखने के बाद तुम लोग उन लोगों के बारे में कैसा महसूस करते हो? (परमेश्वर, मैं इस बारे में थोड़ा बताना चाहूँगा कि मैं कैसा महसूस करता हूँ। मुख्य भूमि चीन में भाई-बहनों को यातना द्वारा तमाम उत्पीड़न का अनुभव करते हुए देखने और यह देखने के बाद कि किस तरह से वे परमेश्वर से प्रार्थना कर पाते हैं, उस पर भरोसा कर पाते हैं और इतने कठिन माहौल में भी अपनी आस्था पर कायम रह पाते हैं, अपनी गवाही पर दृढ़ रहते हुए और परमेश्वर को धोखा न देते हुए वे उसकी अगुआई में कदम-दर-कदम अनुभव प्राप्त कर रहे हैं, मुझे लगता है कि वे लोग हमसे अधिक आस्थावान हैं और उनका आध्यात्मिक कद हमसे काफी बड़ा है। अगर मुझे उस तरह के परिवेश में रहना होता, तो जरूरी नहीं कि मैं उन लोगों की तरह दृढ़ता से खड़ा रह पाता और इससे मुझे लगता है कि मेरा आध्यात्मिक कद उनसे बहुत छोटा है।) मुख्य भूमि चीन में बड़े लाल अजगर के क्रूर अत्याचारों के परिवेश के बीच बहुत से भाई-बहन अभी भी परमेश्वर में विश्वास करने, सभाओं में भाग लेने और अपने कर्तव्यों का पालन करने के प्रति दृढ़ हैं। यह एक गवाही है, एक सशक्त गवाही। इतने प्रतिकूल परिवेश में भी दृढ़ रह पाना एक गवाही है, तो इस सुविधापूर्ण परिवेश में रहने वाले तुम लोगों को विचार करना चाहिए कि एक अलग तरह की गवाही कैसे पेश की जाए। सबसे पहले तो तुम्हें परमेश्वर के दिए इस जीवन और इस परिवेश की हर चीज को सँजोना चाहिए। साथ ही, तुम्हें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि इस तरह के परिवेश में कैसे तुम अपनी गवाही पर दृढ़ रह पाओगे, परमेश्वर को शर्मिंदा नहीं करोगे और विजेता बनोगे। किसी लोकतांत्रिक देश में परमेश्वर में विश्वास करते हुए भले किसी को सरकार की ओर से यातना, दमन और उत्पीड़न का शिकार न होना पड़े, लेकिन परिवार और रिश्तेदारों की ओर से उत्पीड़न होगा और तब भी उस व्यक्ति को परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने, सत्य को हासिल करने और अपनी गवाही में दृढ़ता से खड़े रहने की जरूरत होगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति किस परिवेश में परमेश्वर में विश्वास करता है, सत्य हासिल करना आसान बात नहीं है। सत्य को समझने और वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए तुम्हें कष्ट सहना होगा और कीमत चुकानी होगी। परमेश्वर के लिए गवाही देने की खातिर तुम्हें अनुभव के सभी पहलुओं में सत्य की समझ हासिल करनी होगी। इसका मतलब केवल सुसमाचार और परमेश्वर का नाम फैलाना नहीं है; इसका संबंध मुख्य रूप से जीवन की अनुभवजन्य गवाही से है। अगर लोग सत्य के अनुसार जियेंगे, ईमानदार बनने का प्रयास करेंगे और परमेश्वर के प्रति समर्पित होने का प्रयास करेंगे तो लोगों के किसी समूह में या किसी भी देश की सामाजिक व्यवस्था के तहत उन्हें कुछ भेदभाव, बहिष्कार या उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोकतांत्रिक देश भी परमेश्वर के प्रति समर्पित नहीं होते। सत्तारूढ़ राजनीतिक दल नास्तिक होते हैं, वे भी सत्य को अस्वीकार करते हैं और परमेश्वर को ठुकराते हैं। ऐसे देश में परमेश्वर में विश्वास करते हुए, भले ही किसी उत्पीड़न या क्लेश का सामना न करना पड़े, लेकिन यदि तुम सुसमाचार फैलाना चाहते हो और परमेश्वर के लिए गवाही देना चाहते हो तो कुछ सीमाएँ तो होंगी और साथ ही तुम्हें थोड़ा बहुत भेदभाव, बदनामी, आलोचना और निंदा का सामना करना होगा—यह सब तथ्य है। यदि तुम इन चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं समझ सकते, तो तुम वह नहीं हो जो सत्य समझता है। मसीह को स्वीकार करने और उसका अनुसरण करने पर हर देश में कुछ हद तक उत्पीड़न और क्लेश का सामना करना पड़ता है। तुम्हें हमेशा सावधानी से काम करने और परमेश्वर से प्रार्थना करने और उस पर निर्भर रहने की आवश्यकता होगी और तुम्हारे पास विवेक और बुद्धिमत्ता भी होनी चाहिए। तुम चाहे जिस भी देश और सामाजिक परिवेश में हो, उन सभी में परमेश्वर ने तुम्हारे लिए एक उपयुक्त परिवेश की रचना और व्यवस्था की है। यह सब इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है या नहीं। सुविधापूर्ण परिस्थितियों में लोगों के लिए प्रलोभन होते हैं, जबकि यातनापूर्ण उत्पीड़न में भी प्रलोभन और परीक्षण होते हैं। तब, क्या सुविधापूर्ण परिस्थितियों में परीक्षण होते हैं? परमेश्वर द्वारा लिए जाने वाले परीक्षण भी होते हैं। परमेश्वर ने तुम लोगों के लिए इस सुविधापूर्ण परिवेश की व्यवस्था की है और सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि तुम लोग इसका कैसे अनुभव करते हो—क्या तुम लोग पूरी तरह से शैतान के जाल और उसके प्रलोभनों में फंस जाओगे, या अपनी निष्ठा और कर्तव्य पर दृढ़ता से कायम रहते हुए इस पर हर तरह से जीत हासिल करने में सफल होगे और परमेश्वर के लिए गवाही दोगे। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि तुम किस तरह से इसका अनुभव करते हो और क्या विकल्प चुनते हो। मुख्य भूमि के चीनी भाई-बहनों का माहौल थोड़ा कठिन है और परमेश्वर ने उन पर एक बोझ डाला है जो थोड़ा भारी है और उनके लिए ऐसा माहौल बनाया है जो थोड़ा कठोर है, लेकिन उसने उन्हें और भी अधिक दिया है। परिवेश जितना कठिन होगा और परमेश्वर जितने बड़े परीक्षण लेगा, लोगों को उतना ही अधिक लाभ होगा। लेकिन सुविधापूर्ण परिवेश में भी लोगों को हर जगह प्रलोभनों और परीक्षणों का अनुभव होता है और परमेश्वर ने तुम्हें भी बहुत कुछ दिया है। यदि तुम हर बार प्रलोभन सामने आने पर उस पर विजय पा सकते हो, तो तुम्हें अपने उन भाई-बहनों से कम लाभ नहीं होगा जो यातना के कारण उत्पीड़न का अनुभव करते हैं। इसके लिए भी सत्य का अनुसरण करने और विजयी होने के लिए आध्यात्मिक कद की जरूरत होगी। उदाहरण के लिए, अपने परिवार के साथ रहना, अच्छा खाना-पीना, मनोरंजन और आनंद, तथा कुछ सामाजिक चलन जो तुम्हारे शरीर को आराम देते हैं और भ्रष्ट करते हैं, ऐसी सभी चीजें तुम्हारे लिए प्रलोभन हैं। जब तुम इन प्रलोभनों का सामना करते हो, तो वे न केवल तुम्हारा ध्यान आकर्षित करते हैं, बल्कि तुम्हें परेशान करते हैं और लुभाते भी हैं। जब तुम सांसारिक चीजों और चलनों का अनुसरण करते हो, तभी शैतान के प्रलोभन, या यों कहें कि परमेश्वर के परीक्षण सामने आएँगे। तुम्हें चुनना होगा कि तुम इन प्रलोभनों और परीक्षणों का जवाब देने का क्या तरीका अपनाते हो और इसी समय परमेश्वर लोगों का परीक्षण करता है और उन्हें दिखाता है कि वे कौन हैं। यही वह समय है जब परमेश्वर ने तुमसे जो कहा है और जिन सत्यों को तुमने समझा है उनका प्रभाव होना चाहिए। यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अनुसरण करता है और तुम्हारे हृदय में परमेश्वर के प्रति सच्चा विश्वास है, तो तुम इन प्रलोभनों से उबरने में सक्षम होगे और तुम्हारे लिए परमेश्वर के बनाए परीक्षणों में मजबूत रहोगे और परमेश्वर के लिए गवाही दोगे। यदि तुम सत्य से प्रेम करने के बजाय संसार से प्रेम करते हो, चलनों से प्रेम करते हो, आराम और अपने शरीर को संतुष्ट करने की लालसा रखते हो और खोखले जीवन से प्रेम करते हो, तो तुम इन सांसारिक चीजों के पीछे भागोगे। तुम इन चीजों के प्रति प्रशंसा का भाव रखोगे और उनकी ओर आकर्षित होओगे तथा उनके वश में रहोगे। धीरे-धीरे, तुम्हारे हृदय में परमेश्वर पर विश्वास करने की रुचि घट जाएगी, तुम सत्य से विमुख होने लगोगे और फिर प्रलोभनों के बीच शैतान तुम्हें खींच ले जाएगा। इस तरह के परीक्षण में तुम अपनी गवाही खो दोगे। ऐसे बहुत-से लोग हैं जिन्होंने बहुत सारे उपदेश सुने हैं और अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं लेकिन फिर भी अंदर से खालीपन महसूस करते हैं। अभी भी वे पॉप सितारों और प्रसिद्ध लोगों के पीछे भागना, सामाजिक चलनों के अनुरूप बने रहना, टीवी पर मनोरंजक कार्यक्रम देखना और यहाँ तक कि लगातार रात-रात भर मनोरंजन कार्यक्रमों को देखना इस हद तक पसंद करते हैं कि वे निशाचर बन जाते हैं। कुछ युवा तो वीडियो गेम भी खेलते रहते हैं। संक्षेप में कहें तो, वे कोई भी कीमत चुकाने में संकोच नहीं करते और आम चलन की तमाम चीजों के पीछे पूरी ताकत से भागते हैं। और वे ऐसा क्यों करते हैं? ऐसा इसलिए है कि उन्होंने सत्य प्राप्त नहीं किया है। जिन लोगों ने सत्य प्राप्त नहीं किया है, उनमें एक भावना यह होती है कि परमेश्वर में विश्वास करने और उस पर विश्वास न करने के बीच बहुत अंतर नहीं प्रतीत होता है। अपने दिलों में वे अब भी खालीपन महसूस करते हैं और समझते हैं कि उनके जीवन का कोई अर्थ नहीं है। आम चलन का अनुसरण करने पर उन्हें अधिक पूर्णता का, अपने जीवन में थोड़ी अधिक समृद्धि का और हर दिन थोड़ा अधिक खुशी का अनुभव होता है। यदि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और आम चलन के पीछे नहीं भागते तब भी उन्हें लगता है कि उनका जीवन निरर्थक और खाली है। इसका कारण यह है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते। तुम विश्वास के साथ यह भी कह सकते हो कि ये लोग सत्य को जरा भी नहीं समझते और उनके पास सत्य वास्तविकता नहीं है और इसलिए वे आम चलनों का अनुसरण किए बिना नहीं रह सकते। कुछ लोगों ने कभी भी सत्य का अनुसरण नहीं किया होता और वे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय भी अस्थिर रहते हैं। प्रलोभन सामने आने पर वे दृढ़ रहने में असमर्थ होते हैं और अंततः उन्हें पीछे हटना पड़ता है। कुछ लोग अपने कर्तव्यों का पालन करना शुरू करते समय तो काफी उत्साही और दृढ़ होते हैं, लेकिन जब उन्हें प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है तो वे कर्तव्य-निर्वाह के प्रति अनिच्छुक होकर लापरवाह हो जाते हैं और उनमें भक्ति-भाव नहीं रह जाता। इसमें कोई गवाही नहीं है। यदि वे प्रलोभन सामने आते ही अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ लें और जो चाहें उसका चयन कर लें, तो उनके पास कोई गवाही नहीं होगी। दूसरा प्रलोभन मिलने पर वे परमेश्वर को नकार सकते हैं और कलीसिया को छोड़ कर सांसारिक चलनों के पीछे जाना चाह सकते हैं। या कोई अन्य प्रलोभन आने पर वे परमेश्वर पर संदेह करना शुरू कर देते हैं और तय नहीं कर पाते कि उसका अस्तित्व है भी या नहीं, और यह तक मानने लगते हैं कि वे बंदरों से विकसित हुए है। ये लोग पूरी तरह से शैतान की जकड़न में आ जाते हैं। इन प्रलोभनों में फँसकर, वे न तो परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, न सत्य की खोज करते हैं। वे केवल अपने शरीर के भाग्य के बारे में सोचते हैं और परिणामस्वरूप वे अपनी गवाही में दृढ़ रहने में विफल रहते हैं। कदम-दर-कदम, शैतान उन्हें नरक और मौत की खाई में खींच ले जाता है। परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को शैतान को सौंप देता है और उसके पास उद्धार पाने का कोई मौका नहीं रह जाता। मुझे बताओ, क्या सत्य का अनुसरण करना महत्वपूर्ण नहीं है? (है।) सत्य बहुत महत्वपूर्ण है। सत्य क्या काम कर सकता है? कम से कम, प्रलोभनों का सामना करते समय यह तुम्हें शैतान की योजनाएँ समझने में मदद कर सकता है, यह जानने में मदद कर सकता है कि तुम्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं और तुम्हें किसे चुनना चाहिए। यह कम से कम तुम्हें इन बातों को जानने में मदद करेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सत्य तुम्हें प्रलोभनों के सामने दृढ़ता से खड़े रहने में सक्षम बनाएगा। तुम परमेश्वर द्वारा दिए गए कर्तव्य को निभाते हुए, उन कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहते हुए, शैतान को खारिज करने में सक्षम रहते हुए दृढ़, स्थिर और अडिग रह सकोगे। तुम अय्यूब की ही तरह परीक्षणों के बीच भी अपनी गवाही पर दृढ़ रह सकोगे। लोगों को कम से कम इतना तो हासिल करना ही चाहिए।
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