अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 80)
सभी यह मानते हैं कि मानव की नियति पर परमेश्वर की संप्रभुता है और व्यक्ति का पूरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है, लेकिन काश तुम वास्तव में अनुभव कर पाते कि किसी व्यक्ति के जीवन के हर पल और दौर में होने वाली हर बड़ी घटना उसकी अपनी योजनाओं और व्यवस्थाओं के अनुसार नहीं, बल्कि परमेश्वर के नियमों से नियंत्रित और व्यवस्थित होती है; काश तुम देख पाते कि लोग अपनी खुद की नियति या अपने सामने आने वाली किसी भी पीड़ा पर काबू नहीं पा सकते हैं; जब तुम ऐसी चीजों का अनुभव करने में सक्षम होते हो तो यही सच्ची आस्था का होना है। यह बात तब और भी व्यावहारिक हो जाती है जब तुम कहते हो, “मानव की नियति पर परमेश्वर की संप्रभुता है, और सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है।” परमेश्वर की संप्रभुता, उसकी व्यवस्थाओं और आयोजनों को अनुभव करना एक सूक्ष्म चीज है। यह कुछ ऐसा है जिसका तुम अनुभव करते हो और यदि तुम इस अनुभव से नहीं गुजरे हो, तो तुम इसे समझा भी नहीं पाओगे, लेकिन तुम जितना ज्यादा इसका अनुभव करोगे और जितना ज्यादा इससे गुजरोगे, उतना ही बेहतर तुम इसे समझा पाओगे। एक कहावत है कि “50 की उम्र तक तुम अपनी नियति को समझ जाते हो।” यह कहने का क्या मतलब है कि तुम अपनी नियति को समझ जाते हो? बीस से तीस साल की उम्र के लोगों ने अभी-अभी दुनिया का सामना किया होता है। वे जवान और लापरवाह होते हैं, उन्हें कुछ मालूम नहीं होता है और यह बात समझ नहीं आती है कि मानव जीवन पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में है। वे लगातार अपने भाग्य से लड़ना चाहते हैं और सोचते रहते हैं कि उनमें प्रतिभा और विशेषज्ञता है, और इसलिए अपने बूते पर नाम कमाने और धन और ओहदा हासिल करने की कोशिश करते रहते हैं। वे नाकाम होने पर भी अपनी कोशिशें जारी रखते हैं, हमेशा एक और मौका पाने की कोशिश में जुटे रहते हैं। 50 से अधिक की उम्र होने पर वे पीछे मुड़कर देखते हैं और सोचते हैं, “करीब तीस साल से यहाँ-वहाँ भाग-दौड़ करना और इतने हाथ-पाँव मारना वाकई बेहद मुश्किल रहा है! शादी करने, करियर बनाने और बच्चे पैदा करने में से कोई भी कार्य मेरी योजनाओं और हिसाब-किताब के मुताबिक नहीं हुआ—यह सब कुछ नियति है!” यही अपनी नियति को समझना है; इससे लड़ने की कोई जरूरत नहीं है। 50 की उम्र होने पर अपनी नियति को समझने का मतलब वास्तव में यही है कि 50 साल की उम्र तक लोग बहुत सी असफलताओं का सामना करने के बाद आखिरकार अपने भाग्य के साथ शांति से जीवन जीना सीख जाते हैं। अपनी नियति को समझने के बाद लोग उससे लड़ना बंद कर देते हैं। मानव जीवन का क्या अर्थ है, मानवता पर परमेश्वर की संप्रभुता का क्या अर्थ है, लोगों को अपना जीवन किस उद्देश्य के लिए जीना चाहिए, और उन्हें कैसे जीना चाहिए, क्या लोग इन बातों को पूरी तरह से समझते हैं? अविश्वासी लोग ये बातें नहीं समझ सकते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, और ज़्यादा से ज़्यादा वे बस अपनी नियति को स्वीकार कर सकते हैं और समझ सकते हैं कि इसका विरोध करना बेकार है। फिर वे अपने बच्चों और पोते-पोतियों को नियति से लड़ते हुए देखते हैं और कहते हैं, “प्रकृति को अपना काम करने दो, हर पीढ़ी के पास उसकी अपनी आशीषें होती हैं। इसे होने दो, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो, जब वे 50 साल के हो जाएँगे, तो नियति से लड़ना छोड़ देंगे। पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही चलता है। वे सभी नियति से लड़ते रहते हैं, जब तक उनकी उम्र ढल नहीं जाती है और अब वे इससे लड़ नहीं पाते हैं। आखिर में वे अपनी नियति को स्वीकार लेंगे और अपना सबक सीख लेंगे। फिर वे ढीठ और घमंडी नहीं रहेंगे और उनके जीवन में और ठहराव आ जाएगा।” अविश्वासी लोग ज्यादा से ज्यादा इसी चीज को समझ सकते हैं, लेकिन क्या वे सत्य समझ सकते हैं? वे निश्चित रूप से ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं और उसके वचन नहीं पढ़ते हैं। तो वे सत्य कैसे समझ सकते हैं? क्या 50 वर्ष की आयु में अपनी नियति जानने का अर्थ यह है कि तुम सत्य समझते हो? लोगों का मानना है कि “मनुष्य का भाग्य स्वर्ग द्वारा तय होता है।” क्या इसका अर्थ यह है कि वे स्वर्ग की इच्छा के आगे खुद को समर्पित कर देते हैं? (ऐसा नहीं है।) केवल इस पर विश्वास करने से काम नहीं चलेगा। इन चीजों को जानने का अर्थ बस यह है कि भाग्य के विरुद्ध संघर्ष ना किया जाए, लेकिन यह अभी भी सत्य समझना नहीं है। सत्य समझने के लिए लोगों को परमेश्वर के सामने आना होगा और उसका उद्धार प्राप्त करना होगा। यह सारा रहस्य समझने के लिए उन्हें उसके वचनों का न्याय प्राप्त करना होगा और सत्य और जीवन का पोषण प्राप्त करना होगा। अन्यथा, लोग भले ही 70, 80 या सौ वर्ष तक जीवित रहें, वे तब भी यह नहीं जान पाएँगे कि मानव जीवन का क्या अर्थ है, लोग क्यों जीते हैं, और क्यों मरते हैं। लोग पृथ्वी पर एक छोटी-सी सैर करते हैं और कई दशकों तक जीवित रहते हैं, और मानव जीवन के समाप्त होने से पहले यह तक नहीं जान पाते हैं कि इसका अर्थ क्या है। वे मृत्यु के समय असंतुष्ट रहते हैं और इस-उस बात पर ध्यान देते हैं और अंत में पछतावे के साथ इस दुनिया को छोड़ देते हैं और उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। यदि वे अगले जन्म में फिर से जन्म लें और इसी तरह से जीते रहें, तो क्या यह दुखद नहीं होगा? (हाँ होगा।) लोगों की प्रत्येक पीढ़ी दुखद रूप से एक के बाद एक आती है और चली जाती है, जीवित लोग दिवंगत को विदा कर देते हैं और फिर अगली पीढ़ी उन्हें विदा कर देती है। वे इसी तरह एक चक्र में चलते रहते हैं, अचेतनता में जीते हैं और कुछ भी नहीं समझते हैं। लेकिन तुम लोग, जिन्होंने अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया है, तुम लोगों के लिए यह अलग है। तुम लोगों को अंत के दिनों में मानवता को बचाने के लिए परमेश्वर के देहधारण के इस अनमोल और दुर्लभ अवसर का लाभ मिला है। तुम्हें परमेश्वर के वचनों का न्याय और ताड़ना मिल सकती है और तुम उसकी व्यक्तिगत चरवाही और अगुवाई प्राप्त कर सकते हो। तुम कई रहस्य और कई सत्य समझते हो, और सृजित प्राणियों के रूप में अपना कर्तव्य पूरा कर सकते हो। तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों को शुद्ध किया और बदला जा सकता है। तुम लोगों ने बहुत कुछ प्राप्त किया है, यह पिछली पीढ़ियों के संतों की प्राप्ति से भी ज्यादा है। क्या यह सबसे धन्य चीज नहीं है? तुम लोग सबसे धन्य हो।
परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और कई वर्षों तक उसके न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के बाद तुम धीरे-धीरे परमेश्वर द्वारा मानवता के प्रबंधन के उद्देश्य और उसके द्वारा मानवता के प्रबंधन और उद्धार के रहस्य को समझ गए हो। तुम परमेश्वर के इरादे समझ चुके हो और उसकी संप्रभुता को जान गए हो। तुम दिल से परमेश्वर के प्रति समर्पण करने को तैयार हो और उसके प्रति समर्पण करने में सक्षम हो। जीवन सुरक्षित और संतुष्टिदायक लगता है। परमेश्वर ने तुम्हें जीवन दिया है, तुम परमेश्वर के लिए जीते हो और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के लिए जीते हो। यही जीने का सार्थक तरीका है। यदि लोग सत्य को स्वीकार किए बिना या समझे बिना जीते हैं और केवल देह के लिए जीते हैं, तो इन सबका कोई मोल नहीं होता। अब तुम सभी सत्य की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे हो, और अधिक से अधिक जमीर और विवेक के साथ जी रहे हो। एक इंसान को जो होना चाहिए, तुम लोग धीरे-धीरे बिल्कुल वही बनते जा रहे हो, और तुम सत्य को अधिक से अधिक समझने लगे हो। तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण करने के बारे में अधिक से अधिक जानते हो, और तुम एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हुए परमेश्वर की गवाही दे सकते हो। इस तरह जीना तुम्हारे दिल को शांति और आनंद से भर देगा, और यही सबसे सार्थक जीवन है। यह एक आशीर्वाद है जो पूरी मानवता में केवल तुम लोगों ने प्राप्त किया है। इस विशाल विश्व और संपूर्ण मानव जाति में, परमेश्वर ने केवल तुम कुछ लोगों को चुना है और तुम्हें इस अंतिम युग में और बड़े लाल अजगर के देश में जन्म दिया है। तुम उसका आदेश प्राप्त कर सकते हो और अपना कर्तव्य निभा सकते हो, और तुम उसके लिए खुद को खपा सकते हो। तुम सभी परमेश्वर के कृपापात्र हो और तुम्हें ही उसने चुना है। क्या यह सबसे धन्य बात नहीं है? (हाँ है।) यह बहुत ही धन्य बात है। ऐसे कई लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन अपना कर्तव्य निभाने के लिए सब कुछ किनारे नहीं रख सकते, और यह खेदजनक है। ऐसे कई लोग हैं जो सत्य को नहीं समझते हैं, और जब वे अपना कर्तव्य निभा रहे होते हैं तब भी बस इतना ही कहा जा सकता है कि वे परमेश्वर के लिए मजदूरी कर रहे हैं। वे अपने हृदय में परमेश्वर के साथ सौदा करते हुए अपनी खूबी की पेशकश करते हैं और इसके बदले आशीष प्राप्त करने की आशा करते हैं। जब एक दिन उन्हें सत्य समझ आ जाएगा, तो वे शांत हो जाएँगे और स्वेच्छा से अपना कर्तव्य पूरा कर पाएँगे। तुम्हारा वर्तमान जीवन और तुम्हारा हर दिन परमेश्वर की गवाही देने और परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए जीना ही जीने का वह तरीका है जिसे वह स्वीकार करता है। सरल भाषा में कहें तो परमेश्वर तुम सभी को इस तरह जीने की अनुमति देता है, और यह परमेश्वर ही है जिसने तुम्हें यह अवसर दिया है। परमेश्वर ने तुम्हें यह अवसर दिया है और उसने तुम्हें जीने, अपना कर्तव्य निभाने और उसके लिए खुद को खपाने में सक्षम बनाया है, और यह सबसे सार्थक बात है। तुम सभी को गर्व और सम्मानित महसूस करना चाहिए और इस अवसर का आनंद लेना चाहिए। तुम लोग बहुत युवा हो और तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य निभाना, परमेश्वर का अनुसरण करना, और आपदा के बीच और ऐसे प्रतिकूल परिवेश और परिस्थितियों में उसकी गवाही देना—यह बहुत ही दुर्लभ मौका है! अंत के दिनों में परमेश्वर का देहधारण करना और मानवता को पूरी तरह से बचाने के लिए इतना सत्य व्यक्त करना ताकि मानवता सत्य प्राप्त कर सके और शुद्ध हो सके, यह सबसे दुर्लभ अवसर है। ज्यादा समय नहीं है, और ये पलक झपकते ही खत्म हो जाएगा। तुम्हें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए और वह सारा सत्य हासिल करना चाहिए जो तुम्हें प्राप्त करना चाहिए। यह सबसे बड़ा आशीष है, और यह अतीत के सभी संतों को मिले आशीष से भी बड़ा आशीष है।
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