स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX

परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है (III) भाग एक के क्रम में

यदि सृष्टि की सभी चीज़ें अपने नियमों को गँवा दें, तो उनका अस्तित्व न रहे; यदि सभी चीज़ों के नियम लुप्त हो जाएँ, तो सभी चीज़ों के बीच जीवित प्राणी क़ायम नहीं रह पाएँगे। मनुष्यजाति अपने उस वातावरण को भी गँवा देगी जिस पर वह जीवित रहने के लिए निर्भर है। यदि मनुष्य वह सब कुछ गँवा देता, तो वह आगे जीवित नहीं रह पाएगा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंश-वृद्धि नहीं कर पाएगा। मनुष्य आज तक ज़िन्दा बचा हुआ है तो उसका कारण है कि परमेश्वर ने मनुष्य का पोषण करने और, विभिन्न तरीकों से मानवजाति का पोषण करने के लिए उन्हें सृष्टि की सभी चीज़ें प्रदान की हैं। चूँकि परमेश्वर विभिन्न तरीकों से मानवजाति का पालन-पोषण करता है, इसीलिये वह आज तक, जीवित बची हुई है। जीवित रहने के ऐसे अनुकूल और स्वाभाविक नियमों से सुव्यवस्थित वातावरण के साथ में पृथ्वी पर सभी प्रकार के लोग, और सभी प्रकार की नस्लें अपने निर्दिष्ट दायरों के भीतर जीवित रह सकती हैं। कोई भी इन दायरों या इन सीमाओं से बाहर नहीं जा सकता है क्योंकि परमेश्वर ने सबकी सीमा-रेखाएँ खींच दी हैं। परमेश्वर ने सीमा-रेखाओं को इस तरह क्यों खींचा? यह सचमुच पूरी मानवजाति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है—सचमुच बेहद महत्वपूर्ण! परमेश्वर ने हर किस्म के जीव के लिए एक दायरा बनाया और हर प्रकार के मानव के लिए जीवित रहने के साधन तय किए हैं। साथ ही उसने इस पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के लोगों और विभिन्न नस्लों को भी विभाजित किया है और उनके दायरों को तय किया है। इसी पर हम आगे चर्चा करेंगे।

चौथा, परमेश्वर ने विभिन्न नस्लों के बीच सीमाएँ खींची। पृथ्वी पर गोरे लोग, काले लोग, भूरे लोग, और पीले लोग हैं। ये लोगों के विभिन्न प्रकार हैं। साथ ही परमेश्वर ने इन विभिन्न प्रकार के लोगों की ज़िन्दगियों के लिए दायरा भी तय किया है। लोग इससे अनजान रहते हुए, परमेश्वर के प्रबंधन के अधीन जीवित रहने के लिए अपने अनुकूल वातावरण के भीतर रहते हैं। कोई भी इसके बाहर कदम नहीं रख सकता। उदाहरण के लिए, गोरे लोगों की बात करते हैं। इनमें से अधिकांश लोग किस भौगोलिक इलाके में रहते हैं? वे अधिकांशतः यूरोप और अमेरिका में रहते हैं। काले लोग मुख्यतः जिस भौगोलिक सीमा में रहते हैं, वह अफ्रीका है। भूरे लोग मुख्य रूप से दक्षिणी-पूर्वी एशिया और दक्षिणी एशिया में, थाइलैण्ड, भारत, म्यांमार, वियतनाम और लाओस जैसे देशों में रहते हैं। पीले लोग मुख्य रूप से एशिया में, अर्थात् चीन, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में रहते हैं। परमेश्वर ने इन अलग-अलग प्रकार की सभी नस्लों को उचित रूप से विभाजित किया है ताकि ये अलग-अलग नस्लें संसार के विभिन्न भागों में वितरित हो जाएँ। संसार के इन अलग-अलग भागों में, परमेश्वर ने बहुत पहले से ही मनुष्यों की प्रत्येक नस्ल के जीवित रहने के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार किया है। जीवित रहने के लिए इस प्रकार के वातावरण के अंतर्गत, परमेश्वर ने उनके लिए मिट्टी के विविध रंग और तत्वों की रचना की। दूसरे शब्दों में, गोरे लोगों के शरीर के तत्व और काले लोगों के शरीर के तत्व समान नहीं हैं, और साथ ही वे अन्य नस्ल के लोगों के शरीर के तत्वों से भी भिन्न हैं। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की, तब उसने पहले से ही उस नस्ल के अस्तित्व के लिए एक वातावरण तैयार कर लिया था। ऐसा करने का उसका उद्देश्य यह था कि जब उस प्रकार के लोग अपने वंश की वृद्धि शुरू करें, जब उनकी संख्या बढ़ने लगे, तो उन्हें एक दायरे के भीतर सीमित किया जा सके। मनुष्य की रचना करने से पहले ही परमेश्वर ने इन सारी बातों पर विचार कर लिया था—वह गोरे लोगों को विकसित होने और जीवित रहने के लिये यूरोप और अमेरिका देगा। अतः जब परमेश्वर पृथ्वी की सृष्टि कर रहा था तब उसके पास पहले से ही एक योजना थी, भूमि के एक हिस्से में वह जो कुछ रख रहा था, वहाँ जिसका पालन-पोषण कर रहा था, इन सबके पीछे उसका एक लक्ष्य और उद्देश्य था। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने बहुत पहले से ही तैयारी कर ली थी कि उस भूमि पर कौन-से पर्वत, कितने मैदान, कितने जल-स्रोत, किस प्रकार के पशु-पक्षी, कौन-सी मछलियाँ, और कौन-से पेड़-पौधे होंगे। किसी एक प्रकार के मानव, एक नस्ल के जीवित रहने के लिए वातावरण तैयार करते समय, परमेश्वर ने अनेक मुद्दों पर हर दृष्टिकोण से विचार किया था : भौगोलिक वातावरण, मिट्टी के तत्व, पशु-पक्षी की विभिन्न प्रजातियां, विभिन्न प्रकार की मछलियों के आकार, मछलियों के तत्व, पानी की गुणवत्ता में असमानताएँ, साथ ही विभिन्न प्रकार के सभी पेड़-पौधे...। परमेश्वर ने इन सारी चीजों को बहुत पहले ही तैयार कर लिया था। उस प्रकार का वातावरण जीवित बचे रहने के लिए एक ऐसा वातावरण है जिसे परमेश्वर ने गोरे लोगों के लिए सृजित और तैयार किया और जो प्राकृतिक रूप से उनका है। क्या तुम लोगों ने देखा है कि जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की, तो उसने उसमें बहुत ज़्यादा सोच-विचार किया और एक योजना के तहत कार्य किया? (हाँ, हमने देखा है कि विभिन्न प्रकार के लोगों के प्रति परमेश्वर बहुत ही विचारशील था। विभिन्न प्रकार के मनुष्यों के जीवित रहने के लिए जो वातावरण उसने निर्मित किया उसमें किस प्रकार के पशु-पक्षी और किस प्रकार की मछलियां रहेंगी, वहाँ कितने सारे पर्वत और मैदान होंगे—इन सभी पर उसने बहुत सूक्ष्मता से सोच-समझ कर विचार किया था।) उदाहरण के लिए, गोरे लोग मुख्य रूप से कौन-सा आहार खाते हैं? जो आहार गोरे लोग खाते हैं वह उन आहारों से बिलकुल अलग है जो एशिया के लोग खाते हैं। जो खाद्य पदार्थ गोरे लोग खाते हैं वे मुख्यतः मांस, अण्डे, दूध और मुर्गीपालन के पदार्थ हैं। अनाज जैसे रोटी और चावल सामान्यतः मुख्य आहार नहीं हैं, उन्हें थाली पर किनारे रखा जाता है। सलाद में भी कुछ भुना हुआ माँस या चिकन डालते हैं। गेहूँ पर आधारित आहार में भी वे चीज़, अण्डे, और मांस डाल देते हैं। यानी, उनके मुख्य भोज्य पदार्थ गेहूँ पर आधारित आहार या चावल नहीं हैं; वे लोग माँस और चीज़ बहुत खाते हैं। वे प्रायः बर्फीला पानी पीते हैं क्योंकि वे लोग उच्च कैलोरी युक्त आहार खाते हैं। अतः गोरे लोग असाधारण रूप से तगड़े होते हैं। ये उनकी आजीविका के स्रोत हैं, जीने के लिए उनके वातावरण हैं जिन्हें परमेश्वर ने उनके लिए तैयार किया था, ताकि वे उस तरह की जीवनशैली में रह सकें। यह जीवनशैली अन्य नस्लों के लोगों की जीवनशैलियों से अलग है। इस जीवनशैली में कुछ सही या ग़लत नहीं है—यह जन्मजात, परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित और परमेश्वर के शासन और उसकी व्यवस्था के कारण है। इस प्रकार की नस्ल के पास इस तरह की जीवनशैली और आजीविका के ऐसे साधन, उनकी नस्ल के कारण हैं, और साथ ही जीवित रहने के लिए उस वातावरण के कारण हैं जिसे परमेश्वर द्वारा उनके लिए तैयार किया गया था। तुम कह सकते हो कि जीवित रहने के लिए जो वातावरण परमेश्वर ने गोरे लोगों के लिए तैयार किया और जो दैनिक आहार वे उस वातावरण से प्राप्त करते हैं, वह समृद्ध और प्रचुर है।

परमेश्वर ने दूसरी नस्लों के जीवित रहने के लिए भी आवश्यक वातावरण तैयार किया। काले लोग भी हैं—काले लोग किस जगह अवस्थित हैं? वे मुख्य रूप से मध्य और दक्षिणी अफ्रीका में अवस्थित हैं। उस प्रकार के वातावरण में जीने के लिए परमेश्वर ने उनके लिए क्या तैयार किया? उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन, सभी प्रकार के पशु-पक्षी, साथ ही मरुस्थल, और सभी प्रकार के पेड़-पौधे जो उनके आस-पास रहते हैं। उनके पास जल के स्रोत, अपनी आजीविका, और भोजन हैं। परमेश्वर उनके प्रति पक्षपातपूर्ण नहीं था। चाहे उन्होंने हमेशा से जो भी किया हो, उनका ज़िन्दा रहना कभी कोई मुद्दा नहीं रहा है। वे भी संसार के एक निश्चित स्थान और क्षेत्र में बसे हुए हैं।

अब हम पीले लोगों के बारे में कुछ बात करते हैं। पीले लोग मुख्य रूप से पूर्व में अवस्थित हैं। पूरब और पश्चिम के वातावरण और भौगोलिक स्थितियों के बीच क्या भिन्नताएँ हैं? पूरब में अधिकांश भूमि उपजाऊ है, और यह पदार्थों और खनिज भण्डारों से समृद्ध है। अर्थात्, भूमि के ऊपर और भूमि के नीचे की सब प्रकार की संपदाएँ बहुतायत में उपलब्ध हैं। और इस समूह के लोगों के लिए, अर्थात् इस नस्ल के लिए, परमेश्वर ने अनुकूल मिट्टी, जलवायु, और विभिन्न भौगोलिक वातावरण को भी तैयार किया जो उनके लिए उपयुक्त हैं। हालांकि यहाँ के भौगोलिक वातावरण और पश्चिम के वातावरण के बीच बहुत भिन्नताएँ हैं, फिर भी लोगों के लिए आवश्यक भोजन, उनकी जीविका, और जीवित रहने के लिए उनके साधन परमेश्वर द्वारा तैयार किए गए। पश्चिम में गोरे लोगों के पास जो वातावरण है, उसकी तुलना में यह बस एक अलग वातावरण है। लेकिन वह कौन-सी एक चीज़ है, जिसे मुझे तुम लोगों को बताने की आवश्यकता है? पूर्वी नस्ल के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, इसलिए परमेश्वर ने बहुत सारे ऐसे तत्वों को पृथ्वी के उस हिस्से में जोड़ दिया जो पश्चिम से भिन्न हैं। उस भाग में, उसने बहुत सारे अलग अलग भूदृश्यों और सब प्रकार की भरपूर सामग्रियों को जोड़ दिया। वहाँ प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं; साथ ही भूभाग भी विभिन्न एवं विविध प्रकार के हैं, जो पूर्वी नस्ल के लोगों की विशाल संख्या का पालन-पोषण करने के लिए पर्याप्त हैं। जो चीज़ पूर्व को पश्चिम से अलग करती है वह है—दक्षिण से उत्तर तक, और पूर्व से पश्चिम तक—जलवायु पश्चिम से बेहतर है। चारों ऋतु स्पष्ट रूप से भिन्न हैं, तापमान अनुकूल हैं, प्राकृतिक संपदाएँ प्रचुर मात्रा में हैं, और प्राकृतिक दृश्य और भूभाग के प्रकार पश्चिम से बहुत बेहतर हैं। परमेश्वर ने ऐसा क्यों किया? परमेश्वर ने गोरे और पीले लोगों के बीच एक बहुत ही तर्कसंगत सन्तुलन बनाया था। इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि गोरे लोगों के खान-पान के हर पहलू, उनके उपयोग में आने वाली हर चीज, और मनोरंजन के लिये उन्हें उपलब्ध कराए गए साधन—ये सारी चीजें पीले लोगों को उपलब्ध सुविधाओं से कहीं बेहतर हैं। फिर भी, परमेश्वर किसी भी नस्ल के प्रति पक्षपातपूर्ण नहीं है। परमेश्वर ने जीवित रहने के लिए पीले लोगों को कहीं अधिक ख़ूबसूरत और बेहतर वातावरण दिया। यही संतुलन है।

परमेश्वर ने पूर्व-नियत कर दिया है कि किस प्रकार के लोग दुनिया के किस भाग में रहने चाहिए; क्या मनुष्य इन सीमाओं के बाहर जा सकते हैं? (नहीं, वे नहीं जा सकते।) यह कितनी अद्भुत चीज़ है! यदि विभिन्न युगों या विशेष समय के दौरान युद्ध या अतिक्रमण हुए हों, तो भी ये युद्ध, और ये अतिक्रमण जीवित रहने के लिए उन वातावरणों को बिल्कुल नष्ट नहीं कर सकते जिन्हें परमेश्वर ने प्रत्येक नस्ल के लिए पूर्वनिर्धारित किया हुआ है। अर्थात्, परमेश्वर ने संसार के एक निश्चित भाग में किसी एक प्रकार के लोगों को बसाया है और वे उस दायरे के बाहर नहीं जा सकते। भले ही लोगों में अपने सीमा-क्षेत्रों को बदलने या फैलाने की किसी प्रकार की महत्वाकांक्षा हो, फिर भी परमेश्वर की अनुमति के बिना, इसे हासिल कर पाना बहुत मुश्किल होगा। उनके लिए इसमें सफलता प्राप्त करना बहुत ही कठिन होगा। उदाहरण के लिए, गोरे लोग अपने सीमा-क्षेत्र का विस्तार करना चाहते थे और उन्होंने अन्य देशों में उपनिवेश बनाए। जर्मनी ने कुछ देशों पर आक्रमण किया, और इंग्लैण्ड ने कभी भारत पर कब्ज़ा कर लिया था। परिणाम क्या हुआ? अंत में वे विफल हो गए। हम उनकी इस असफलता में क्या देखते हैं? जो कुछ परमेश्वर ने पूर्व-निर्धारित कर रखा है उसे नष्ट करने की अनुमति नहीं दी गई है। अतः, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह गति कितनी तेज थी जो शायद तुमने ब्रिटेन के विस्तार में देखी होगी, अंततः उन्हें तब भी भारत की भूमि को छोड़ कर, पीछे लौटना पड़ा। वे लोग जो उस भूमि में रहते हैं अभी भी भारतीय हैं, अंग्रेज़ नहीं, क्योंकि परमेश्वर ऐसा करने नहीं देगा। इतिहास या राजनीति पर शोध करने वालों में से कुछ लोगों ने इस विषय पर शोध-प्रबंध प्रस्तुत किए हैं। वे इंगलैंड की असफलता के कारण बताते हुए यह कहते हैं कि हो सकता है कि किसी जातीय समूह विशेष पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती हो, या इसका कोई अन्य मानवीय कारण हो सकता है...। ये वास्तविक कारण नहीं हैं। वास्तविक कारण है परमेश्वर—वह इसकी अनुमति नहीं देता! परमेश्वर किसी जातीय समूह को एक निश्चित भूभाग में रहने की अनुमति देता है और वह उन्हें वहाँ बसाता है और यदि परमेश्वर उन्हें स्थान बदलने की अनुमति न दे तो वे कभी भी स्थान नहीं बदल पाएँगे। यदि परमेश्वर उनके लिए एक दायरा निर्धारित करता है, तो वे उस दायरे के भीतर ही रहेंगे। मानवजाति इन दायरों को तोड़ कर मुक्त नहीं हो सकती या इन निर्धारित दायरों को तोड़ कर बाहर नहीं जा सकती है। यह निश्चित है। आक्रमणकारियों की ताकत कितनी भी ज़्यादा क्यों न हो या जिन पर आक्रमण किया जा रहा है वे कितने भी कमज़ोर क्यों न हों, आक्रमणकारियों की सफलता का निर्णय अंततः परमेश्वर पर ही निर्भर है। उसने पहले से ही इसे पूर्वनिर्धारित कर दिया है और कोई भी इसे बदल नहीं सकता।

परमेश्वर ने उपर्युक्त वर्णित तरीके से विभिन्न नस्लों का विभाजन किया है। परमेश्वर ने नस्लों के विभाजन के लिए कौन-सा कार्य किया है? पहले तो, उसने लोगों के लिए अलग-अलग भूभाग आवंटित करते हुए व्यापक भौगोलिक वातावरण तैयार किया, और फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग वहाँ रहे। यह तय हो चुका है—उनके जीवित रहने के लिए दायरा तय हो चुका है। और उनकी ज़िन्दगियां, उनका खाना-पीना, उनकी आजीविका—परमेश्वर ने यह सब बहुत पहले ही तय कर दिया था। और जब परमेश्वर सभी चीज़ों की रचना कर रहा था, उसने अलग-अलग प्रकार के लोगों के लिए अलग-अलग तैयारियां कीं : मिट्टी के अलग-अलग घटक, विभिन्न जलवायु, विभिन्न पेड़-पौधे, और विभिन्न भौगोलिक वातावरण हैं। अलग-अलग स्थानों में पशु-पक्षी भी अलग-अलग हैं, जल के अलग-अलग स्रोतों में उनकी अपनी विशेष प्रकार की मछलियां और जलोत्पाद हैं। कीड़े-मकोड़ों की किस्में भी परमेश्वर द्वारा निर्धारित की गई हैं। उदाहरण के लिए, जो चीज़ें अमेरिकी महाद्वीप में उगती हैं वे सब बहुत विशाल, बहुत ऊँची, और बहुत मज़बूत होती हैं। पहाड़ के जंगल में पेड़ों की जड़ें बहुत छिछली होती हैं, किन्तु वे बहुत ऊँचाई तक बढ़ते हैं। वे सौ मीटर या उससे भी अधिक ऊँचे हो सकते हैं, लेकिन एशिया के जंगलों में पेड़ बहुधा उतने ऊँचे नहीं होते। उदाहरण के लिए मुसब्बर पौधों को लें। जापान में वे बहुत कम चौड़े, एवं बहुत पतले होते हैं, किन्तु अमेरीका में यही पौधे बहुत बड़े होते हैं। यहाँ एक अंतर है। दोनों पौधे एक ही हैं, नाम भी समान है, परन्तु अमेरिकी महाद्वीप में यह विशेष रूप से बड़ा होता है। विभिन्न पहलुओं की इन भिन्नताओं को शायद लोग देख या महसूस न कर सकें, किन्तु जब परमेश्वर सभी चीज़ों की रचना कर रहा था, तब उसने उनकी रूपरेखा निरुपित की और विभिन्न नस्लों के लिए विभिन्न भौगोलिक वातावरण, विभिन्न भूभागों, और विभिन्न जीवित प्राणियों को तैयार किया। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर ने विभिन्न प्रकार के लोगों का सृजन किया है, और वह जानता है कि उनमें से प्रत्येक की जरूरतें और जीवनशैलियां क्या हैं।

इन चीज़ों में से कुछ के विषय में बात करने के बाद, अभी हमने जिस मुख्य विषय पर चर्चा की है, क्या उसे तुम लोग थोड़ा भी समझ पाए हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम इसे समझने लगे हो? मुझे विश्वास है मोटे तौर पर तुम अब समझ गए होगे कि मैंने उस बड़े विषय के अंतर्गत इन चीज़ों के बारे में क्यों बात की। है ना? शायद तुम लोग मुझे बता सको, कि तुम सबने इसे कितना समझा है। (सम्पूर्ण मानवजाति का पालन-पोषण उन नियमों द्वारा किया गया है जिन्हें परमेश्वर ने सभी चीज़ों के लिए निर्धारित किया है। जब परमेश्वर इन नियमों को निर्धारित कर रहा था, तब उसने विभिन्न नस्लों को विभिन्न वातावरण, विभिन्न जीवनशैलियाँ, विभिन्न आहार, विभिन्न जलवायु और तापमान प्रदान किये थे। ऐसा इसलिए था कि पूरी मानवजाति पृथ्वी पर बस सके और जीवित रहे। इससे मैं देख सकता हूँ कि मनुष्य की उत्तरजीविता के लिए परमेश्वर की योजना बहुत सटीक है और इससे उसकी बुद्धि, और पूर्णता को और मनुष्यों के लिए उसके प्यार को भी देख सकता हूँ।) (परमेश्वर द्वारा निर्धारित नियमों और दायरों को किसी भी व्यक्ति, घटना, और प्राणी के द्वारा बदला नहीं जा सकता है। यह सब उसके शासन के अधीन है।) सभी चीज़ों के विकास के लिए परमेश्वर द्वारा निर्धारित नियमों के दृष्टिकोण से देखने पर, क्या संपूर्ण मानवजाति, अपनी तमाम भिन्नताओं में, परमेश्वर द्वारा प्रदत्त जीविका और उसके भरण-पोषण के अंतर्गत नहीं जी रही है? यदि वे नियम नष्ट हो गए होते या परमेश्वर मानवजाति के लिए इस प्रकार के नियम निर्धारित नहीं करता, तो उसके भविष्य की संभावनाएँ क्या होतीं? मनुष्य यदि जीवित रहने के लिए अपने मूल वातावरण को खो देते, तो क्या उनके पास भोजन का कोई स्रोत होता? संभव है कि भोजन के स्रोत एक समस्या बन जाते। यदि लोगों ने अपने भोजन के स्रोत को खो दिया होता, अर्थात्, उन्हें खाने के लिए कुछ नहीं मिलता, तो वे कितने दिनों तक जीवित रह पाते? संभवतः वे एक माह भी नहीं जी पाते और उनका जीवित बचे रहना एक समस्या बन जाता। अतः हर एक चीज़ जिसे परमेश्वर लोगों के जीवित रहने के लिए, उनके लगातार अस्तित्व में बने रहने के लिए और बहुगुणित होने और उनके जीवन निर्वाह के लिए करता है वह अति महत्वपूर्ण है। हर एक चीज़ जिसे परमेश्वर अपने सभी सृजित चीज़ों के मध्य करता है उसका लोगों के जीवित रहने से क़रीबी और अभिन्‍न संबंध है। यदि मानवजाति का जीवित रहना एक समस्या बन जाता, तो क्या परमेश्वर का प्रबंधन जारी रह पाता? क्या परमेश्वर का प्रबंधन तब भी अस्तित्व में बना रहता? परमेश्वर के प्रबंधन का सह-अस्तित्व उस सम्पूर्ण मानवजाति के जीवन के साथ है जिसका वह पालन-पोषण करता है, और जो भी तैयारियाँ परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए करता है और जो कुछ वह मनुष्यों के लिए करता है, वह सब परमेश्वर के लिए जरूरी है, और मानवजाति के अस्तित्व में बने रहने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यदि परमेश्वर द्वारा सभी चीज़ों के लिए निर्धारित नियमों का उल्लंघन किया जाता, उन्हें तोड़ा या बाधित किया जाता तो कोई भी चीज़ अस्तित्व में नहीं रह पाती, जीवित रहने के लिए मानवजाति का वातावरण समाप्त हो जाता, और न ही उनका दैनिक जीवन आधार, और न ही वे स्वयं अस्तित्व में बने रहते। इस कारण से, मानवजाति के उद्धार हेतु परमेश्वर का प्रबंधन भी अस्तित्व में नहीं रहता।

हर चीज़ जिसकी हमने चर्चा की, हर एक चीज़, और हर एक वस्तु प्रत्येक व्यक्ति के जीवित रहने से घनिष्टता से जुड़ी हुई है। तुम लोग कह सकते हो, "तुम जो बात कह रहे हो वह बहुत ही बड़ी है, हम इसे नहीं देख पाते," और कदाचित् ऐसे लोग हैं जो कहेंगे "जो कुछ तुम कह रहे हो उसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है।" फिर भी, यह न भूलो कि तुम लोग सभी चीज़ों के मात्र एक हिस्से के रूप में जी रहे हो; तुम परमेश्वर के शासन के अंतर्गत सभी सृजित चीज़ों के बीच एक सदस्य हो। परमेश्वर द्वारा सृजित सभी चीज़ों को उसके शासन से अलग नहीं किया जा सकता, और न ही कोई व्यक्ति स्वयं को उसके शासन से अलग कर सकता है। उसके नियम को खोने और उसके संपोषण को खोने का अर्थ होगा कि लोगों का जीवन, लोगों का दैहिक जीवन लुप्त हो जाएगा। यह मानवजाति के जीवित रहने के लिए परमेश्वर द्वारा स्थापित विभिन्न वातावरण का महत्व है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस नस्ल के हो या किस भूभाग पर रहते हो, चाहे पश्चिम में हो या पूर्व में—तुम जीवित रहने के लिए उस वातावरण से अपने आपको अलग नहीं कर सकते जिसे परमेश्वर ने मानवजाति के लिए स्थापित किया है, और तुम जीवित रहने के लिए उस वातावरण के संपोषण और प्रयोजनों से अपने आपको अलग नहीं कर सकते जिसे उसने मनुष्यों के लिए स्थापित किया है। चाहे तुम्हारी आजीविका कुछ भी हो, तुम जीने के लिए जिन चीजों पर भी आश्रित हो, और अपने दैहिक जीवन को बनाए रखने के लिए तुम जिन चीजों पर भी निर्भर हो, परंतु तुम स्वयं को परमेश्वर के शासन और प्रबंधन से अलग नहीं कर सकते। कुछ लोग कहते हैं: "मैं तो किसान नहीं हूं, मैं जीने के लिए फसल नहीं उगाता हूँ। मैं अपने भोजन के लिए आसमानों पर आश्रित नहीं हूँ, अतः मैं जीवित रहने के लिए परमेश्वर के द्वारा स्थापित उस वातावरण में नहीं जी रहा हूँ। उस प्रकार के वातावरण ने मुझे कुछ नहीं दिया है।" क्या यह सही है? तुम कहते हो कि तुम अपने जीने के लिए फसल नहीं उगाते, लेकिन क्या तुम अनाज नहीं खाते हो? क्या तुम मांस और अण्डे नहीं खाते हो? क्या तुम सब्‍ज़ियां और फल नहीं खाते हो? हर चीज़ जो तुम खाते हो, वे सभी चीज़ें जिनकी तुम्हें ज़रूरत है, वे जीवित रहने के लिए उस वातावरण से अविभाज्य हैं जिसे परमेश्वर के द्वारा मानवजाति के लिए स्थापित किया गया था। मानवजाति की आवश्यकताओं से जुड़ी सारी चीजों के स्रोत को परमेश्वर द्वारा सृजित सभी चीज़ों से अलग नहीं किया जा सकता। ये सारी चीजें अपनी संपूर्णता में तुम्हारे जीवन के लिए जरूरी वातावरण का निर्माण करती हैं। वह जल जो तुम पीते हो, वे कपड़े जो तुम पहनते हो, और वे सभी चीज़ें जिन्हें तुम इस्तेमाल करते हो—इनमें से ऐसी कौन-सी चीज़ है जो परमेश्वर द्वारा सृजित चीज़ों से प्राप्त नहीं होती? कुछ लोग कहते हैं: "कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो इनसे प्राप्त नहीं होतीं। देखो, प्लास्टिक उन वस्तुओं में से एक है। यह एक रासायनिक चीज़ है, यह मानव-निर्मित चीज़ है।" क्या यह सही है? प्लास्टिक बिल्कुल मानव-निर्मित है, यह एक रासायनिक चीज़ है, किन्तु प्लास्टिक के मूल तत्व कहाँ से आए? मूल-तत्वों को परमेश्वर द्वारा सृजित सामग्री से प्राप्त किया गया। वे चीज़ें जिन्हें तुम देखते और जिनका तुम आनन्द उठाते हो, हर एक चीज़ जिसका तुम उपयोग करते हो, उन सब को परमेश्वर द्वारा सृजित चीज़ों से प्राप्त किया जाता है। दूसरे शब्दों में, कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति की नस्ल क्या है, उसकी जीविका क्या है, या वे किस प्रकार के वातावरण में रहते हैं, वे अपने आपको परमेश्वर द्वारा प्रदत्त चीज़ों से अलग नहीं कर सकते। अतः क्या जिन चीजों पर हमने आज चर्चा की है, वे हमारे विषय "परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है" से संबंधित हैं? क्या ये चीज़ें जिन पर हमने आज चर्चा की है इस बड़े विषय के अंतर्गत आती हैं? (हाँ।) आज मैंने जिन चीजों पर बात की है शायद उनमें से कुछ चीजें थोड़ी अमूर्त हैं और उनपर चर्चा करना थोड़ा कठिन है। फिर भी, मुझे लगता है कि शायद तुम लोग इसे अब बेहतर ढंग से समझते हो।

पिछली कुछ बार की संगति में, जिन विषयों पर हमने बातचीत की उनकी सीमा और उनका दायरा कहीं व्यापक है, अतः उन सभी को पूरी तरह समझने में तुम लोगों को कुछ प्रयास करने पड़ेंगे। क्योंकि ये विषय परमेश्वर के प्रति लोगों के विश्वास से जुड़ी ऐसी चीज़ें हैं जिनपर पहले कभी चर्चा नहीं की गई है। कुछ लोग इन्हें एक रहस्य के रूप सुनते हैं और कुछ लोग एक कहानी के रूप में सुनते हैं—कौन-सा दृष्टिकोण सही है? तुम लोग ये सब किस दृष्टिकोण से सुनते हो? (हमने देखा है कि कैसे परमेश्वर ने व्यवस्थित तरीके से अपनी सभी सृजित चीज़ों को व्यवस्थित किया है और यह कि सभी चीज़ों के नियम हैं, और इन वचनों के ज़रिए हम परमेश्वर के कर्मों और मानवजाति के उद्धार के लिए इतनी दक्षतापूर्वक की गई उसकी व्यवस्थाओं को और भी अधिक समझ सकते हैं।) संगति के इन समयों के दौरान, क्या तुम लोगों ने देखा कि सभी चीज़ों में परमेश्वर के प्रबंधन का दायरा कितना विस्तृत है? (इसमें पूरी मानवजाति, हर एक चीज़ शामिल है।) क्या परमेश्वर एक ही नस्ल का परमेश्वर है? क्या वह एक ही तरह के लोगों का परमेश्वर है? क्या वह मानवजाति के एक छोटे से भाग का परमेश्वर है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) चूँकि मामला ऐसा नहीं है, तो, यदि परमेश्वर के विषय में तुम्हारी जानकारी के अनुसार, वह सिर्फ मानवजाति के एक छोटे से भाग का परमेश्वर है, या यदि वह केवल तुम सबका परमेश्वर है, तो क्या यह दृष्टिकोण सही है? चूँकि परमेश्वर सभी चीज़ों का प्रबन्ध और उनपर शासन करता है, इसलिए लोगों को उसके कर्मों, उसकी बुद्धि, और उसकी सर्वशक्तिमत्‍ता को देखना चहिए जो सभी चीज़ों पर उसके शासन में प्रकट होते हैं। यह ऐसी बात है जिसे लोगों को जानना चाहिये। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर सभी चीज़ों का प्रबंध करता है, सभी चीज़ों और समस्त मानवजाति पर शासन करता है, किन्तु यदि तुम्हारे पास मानवजाति पर उसके शासन की कोई समझ या अन्तःदृष्टि नहीं है, तो क्या तुम वास्तव में यह स्वीकार कर सकते हो कि वह सब वस्तुओं पर शासन करता है? शायद तुम अपने मन में सोचो, "मैं विश्वास कर सकता हूँ, क्योंकि मैं देखता हूँ कि मेरे जीवन पर पूरी तरह परमेश्वर का शासन है।" लेकिन क्या परमेश्वर वाकई में इतना छोटा है? नहीं, वह ऐसा नहीं है! तुम सिर्फ अपने लिए परमेश्वर के उद्धार और स्वयं में उसके कार्य को देखते हो, और केवल इन चीज़ों में ही तुम उसके शासन को देखते हो। यह एक बहुत ही छोटा दायरा है, और परमेश्वर के विषय में तुम्हारे वास्तविक ज्ञान की संभावनाओं पर इसका प्रभाव हानिकारक है। यह सभी चीज़ों पर परमेश्वर के शासन के बारे में तुम्हारी वास्तविक जानकारी को भी सीमित करता है। यदि तुम परमेश्वर के बारे में अपने ज्ञान को, जो कुछ परमेश्वर तुम्हें प्रदान करता है और तुम्हारे लिए उसके उद्धार के दायरे तक सीमित करते हो तो, तुम कभी भी यह समझने में सक्षम नहीं होगे कि वह हर चीज़ पर शासन करता है, वह सभी चीज़ों पर शासन करता है, और सारी मानवजाति पर शासन करता है। जब तुम यह सब समझने में असफल हो जाते हो, तब क्या तुम सचमुच इस तथ्य को समझ सकते हो कि परमेश्वर तुम्हारे भाग्य पर शासन करता है? तुम नहीं समझ सकते। तुम अपने हृदय में उस पहलू को समझने में कभी सक्षम नहीं होगे—तुम समझ के इस उच्च स्तर को पाने में कभी सक्षम नहीं होगे। तुम समझ रहे हो न मैं क्या कह रहा हूँ? वास्तव में, मैं जानता हूँ कि जिन विषयों पर मैं बात कर रहा हूँ, तुम लोग उन्हें किस हद तक समझने में सक्षम हो। तो क्यों मैं लगातार इसके बारे में बात कर रहा हूँ? इसलिए क्योंकि ये विषय ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें परमेश्वर के प्रत्येक अनुयायी, और हर ऐसे व्यक्ति को समझना आवश्यक है, जो परमेश्वर द्वारा बचाया जाना चाहता है। भले ही इस घड़ी तुम उन्हें नहीं समझते हो, किन्तु किसी दिन, जब तुम्हारा जीवन और सत्य के विषय में तुम्हारा अनुभव एक निश्चित स्तर तक पहुंच जाएगा, जब तुम्हारे जीवन- स्वभाव में परिवर्तन एक निश्चित स्तर तक पहुँच जाएगा और तुम एक खास आध्यात्मिक कद प्राप्त कर लोगे, केवल तभी ये विषय जिन्हें मैं इस संगति में तुम्हें बता रहा हूँ,- सचमुच परमेश्वर को जानने की तुम्हारे अनुसरण की आपूर्ति करेंगे और उसे संतुष्ट करेंगे। अतः ये वचन एक नींव डालने के लिए, और तुम लोगों के भविष्य की समझ के लिए तुम सबको तैयार करने के लिए हैं कि परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है और परमेश्वर स्वयं के विषय में तुम्हारी समझ के लिए हैं।

लोगों के हृदय में परमेश्वर की समझ जितनी अधिक होती है, उतनी ही उनके हृदय में उसके लिए जगह होती है। उनके हृदय में परमेश्वर का ज्ञान जितना विशाल होता है उनके हृदय में परमेश्वर की हैसियत उतनी ही बड़ी होती है। यदि जिस परमेश्वर को तुम जानते हो वह खोखला और अस्पष्ट है, तो जिस परमेश्वर में तुम विश्वास करते हो वह भी खोखला और अस्पष्ट होगा। जिस परमेश्वर को तुम जानते हो वह तुम्हारी स्वयं की व्यक्तिगत ज़िंदगी के दायरे तक ही सीमित है, और उसका सच्चे परमेश्वर स्वयं से कुछ लेना-देना नहीं है। इस तरह, परमेश्वर के व्यावहारिक कार्यों को जानना, परमेश्वर की वास्तविकता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को जानना, परमेश्वर स्वयं की सच्ची पहचान को जानना, जो उसके पास है और जो वह है उसे जानना, सभी सृजित चीज़ों के बीच प्रदर्शित उसके कार्य-कलाप को जानना—ये चीजें हर उस व्यक्ति के लिए अति महत्वपूर्ण हैं जो परमेश्वर को जानने की कोशिश में लगा है। इनका सीधा संबंध इस बात से है कि लोग सत्य की वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं या नहीं। यदि तुम परमेश्वर के विषय में अपनी समझ को केवल शब्दों तक ही सीमित रखते हो, यदि तुम इसे अपने छोटे-छोटे अनुभवों, परमेश्वर के अनुग्रह के बारे में अपनी समझ तक, या परमेश्वर के लिए अपनी छोटी-छोटी गवाहियों तक ही सीमित रखते हो, तब मैं कहता हूँ कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो वह सच्चा परमेश्वर स्वयं बिलकुल नहीं है। इतना ही नहीं, यह भी कहा जा सकता है कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो वह एक काल्पनिक परमेश्वर है, न कि सच्चा परमेश्वर। क्योंकि सच्चा परमेश्वर हर चीज़ पर शासन करता है, जो हर चीज़ के मध्य चलता है, और हर चीज़ का प्रबंध करता है। सारी मानवजाति और सारी चीजों की नियति उसकी मुट्ठी में है। जिस परमेश्वर के बारे में मैं बात कर रहा हूँ उसके कार्य और कृत्‍य, मात्र लोगों के एक छोटे से भाग तक ही सीमित नहीं हैं। अर्थात्, वे केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं हैं जो वर्तमान में उसका अनुसरण करते हैं। उसके कर्म सभी चीज़ों में, सभी चीज़ों के अस्तित्व में, और सभी वस्तुओं के परिवर्तन के नियमों में नज़र आते हैं।

यदि तुम परमेश्वर द्वारा रची गयी सभी चीज़ों में परमेश्वर के किसी भी कर्म की पहचान नहीं कर सकते, तो तुम उसके किसी भी कर्म की गवाही नहीं दे सकते। यदि तुम परमेश्वर के लिए कोई गवाही नहीं दे सकते, यदि तुम निरन्तर उस छोटे तथाकथित परमेश्वर की बात करते रहे जिसे तुम जानते हो, वह परमेश्वर जो तुम्हारे स्वयं के विचारों तक ही सीमित है, और तुम्हारे मस्तिष्क के संकीर्ण दायरे में रहता है, यदि तुम उसी किस्म के परमेश्वर के बारे में बोलते रहे, तो परमेश्वर कभी तुम्हारी आस्था की प्रशंसा नहीं करेगा। जब तुम परमेश्वर के लिए गवाही देते हो, और यदि तुम ऐसा सिर्फ इस संदर्भ में करते हो कि तुम परमेश्वर के अनुग्रह का कितना आनन्द लेते हो, परमेश्वर के अनुशासन और उसकी ताड़ना को कैसे स्वीकार करते हो, और उसके लिए अपनी गवाही में उसके आशीषों का आनन्द कैसे लेते हो, तो यह बिलकुल ही अपर्याप्त है, और यह उसको कतई संतुष्ट नहीं कर सकता। यदि तुम परमेश्वर के लिए इस तरह गवाही देना चाहते हो जो उसकी इच्छा के अनुरूप हो, और सच्चे परमेश्वर स्वयं के लिए गवाही देना चाहते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के कार्यों से उसके स्वरूप को समझना होगा। हर चीज़ पर उसके नियंत्रण से तुम्हें उसका अधिकार देखना चाहिये, और उस सत्य को देखना चाहिये कि कैसे वह समस्त मानवजाति का पालन-पोषण करता है। यदि तुम केवल यह स्वीकार करते हो कि तुम्हारा दैनिक भोजन और पेय और जीवन की तुम्हारी ज़रूरत की चीज़ें परमेश्वर से आती हैं, लेकिन तुम उस सत्य को नहीं देख पाते कि परमेश्वर अपनी रचना की सभी चीज़ों के माध्यम से संपूर्ण मानवजाति का संपोषण करता है, कि सभी चीज़ों पर अपने शासन के माध्यम से, वह संपूर्ण मानवजाति की अगुवाई करता है, तो तुम परमेश्वर के लिए गवाही देने में कभी भी सक्षम नहीं होगे। यह सब कहने का मेरा क्या उद्देश्य है? उद्देश्य यह है कि तुम सब इसे हल्के में न लो, कि तुम ऐसा न समझो कि ये विषय जिनके बारे में मैंने बात की है, वे जीवन में तुम लोगों के व्यक्तिगत प्रवेश से असंबद्ध हैं, कि तुम लोग इन विषयों को मात्र एक प्रकार के ज्ञान या सिद्धांत के रूप में न लो। यदि मैं जो कह रहा हूँ उसे तुम उस तरह के रवैये से सुनते हो, तो तुम्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। तुम लोग परमेश्वर को जानने के इस महान अवसर को खो दोगे।

इन सब चीज़ों के बारे में बात करने के पीछे मेरा लक्ष्य क्या है? मेरा लक्ष्य है कि लोग परमेश्वर को जानें, और लोग परमेश्वर के व्यावहारिक कार्यों को समझें। जब एक बार तुम परमेश्वर को समझ जाते हो और उसके कार्यों को जान जाते हो, केवल तभी तुम्हारे पास उसे जानने का अवसर या संभावना होती है। उदाहरण के लिए, यदि तुम किसी व्यक्ति को समझना चाहते हो, तो तुम उसे कैसे समझोगे? क्या उसके बाहरी रूप को देखकर उसे समझोगे? क्या वह जो पहनता है और जैसे तैयार होता है, यह देखकर उसे समझोगे? या उसके चलने के ढंग से समझोगे? क्या यह उसके ज्ञान के दायरे को देखकर समझोगे? (नहीं।) तो तुम किसी व्यक्ति को कैसे समझते हो? तुम उस व्यक्ति का आकलन उसकी बातचीत उसके व्‍यवहार, उसके विचार, वह स्वयं के बारे में जो कुछ व्यक्त और प्रकट करता है, उसके आधार पर करते हो। इस तरह से तुम किसी व्यक्ति को जानते हो, समझते हो। उसी प्रकार, यदि तुम लोग परमेश्वर को जानना चाहते हो, यदि तुम उसके व्यावहारिक पक्ष, उसके सच्चे पक्ष को समझना चाहते हो, तो तुम्हें उसे, उसके कर्मों से और उसके हर एक व्यावहारिक कृत्य के माध्यम से जानना होगा। यह सबसे अच्छा तरीका है, और यही एकमात्र तरीका है।

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