स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII
परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है (II) भाग तीन
प्रतिदिन भोजन एवं जल जो परमेश्वर मानवजाति के लिए तैयार करता है
हमने अभी अभी सम्पूर्ण वातावरण के एक भाग के बारे में बात किया था, अर्थात्, मनुष्य के जीवित रहने के लिए जरूरी स्थितियाँ जिन्हें परमेश्वर ने मानवजाति के लिए तैयार किया था जब उसने संसार को बनाया था। हमने बस पाँच चीज़ों के बारे में बात किया था, और ये पाँच चीज़ें सम्पूर्ण वातावरण हैं। जिस विषय में हम आगे बात करने जा रहे हैं वह शरीर में प्रत्येक मनुष्य के जीवन से करीब से जुड़ा हुआ है। यह एक जरूरी स्थिति है जो शरीर में एक व्यक्ति के जीवन से अधिक मेल खाता है और यह उसके अनुरूप है। यह चीज़ भोजन है। परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया और उसे एक उपयुक्त सजीव वातावरण में रख दिया था। तत्पश्चात, मनुष्य को भोजन एवं जल की आवश्यकता पड़ी। मनुष्य को ऐसी आवश्यकता थी, अतः परमेश्वर ने मनुष्य के लिए ऐसी तैयारियों को अंजाम दिया था। इसलिए, तुम देख सकते हो कि परमेश्वर के कार्य का हर कदम और उसके द्वारा की गई हर चीज़ मात्र खोखले शब्द नहीं हैं, परन्तु उसे वास्तव में किया गया था। क्या भोजन कुछ ऐसा है जिसके बगैर लोग अपने दैनिक जीवन में नहीं रह सकते हैं? (हाँ।) क्या भोजन वायु से भी अधिक महत्वपूर्ण है? (वे एक समान ही महत्वपूर्ण हैं।) वे एक समान महत्वपूर्ण हैं। वे मानवजाति के जीवित रहने की स्थितियाँ और चीज़ें दोनों हैं और वे मानव जीवन की निरंतरता का संरक्षण करते हैं। क्या वायु अधिक महत्वपूर्ण है या जल अधिक महत्वपूर्ण है? क्या तापमान अधिक महत्वपूर्ण है या भोजन अधिक महत्वपूर्ण है? वे सभी महत्वपूर्ण हैं। लोग चुनाव नहीं कर सकते हैं क्योंकि वे उनमें से किसी के बगैर नहीं रह सकते हैं। यह एक वास्तविक समस्या है, यह कुछ ऐसा नहीं है जिसका तुम चुनाव कर सकते हो। तुम नहीं जानते हो, परन्तु परमेश्वर जानता है। जब तुम इन चीज़ों को देखते हो, तुम महसूस करोगे, "मैं भोजन के बगैर नहीं रह सकता हूँ!" किन्तु यदि तुम्हारा सृजन करने के तुरन्त बाद तुम्हें वहाँ रख दिया जाता, तो क्या तुम जान पाते कि तुम्हें भोजन की आवश्यकता है? तुम नहीं जान पाते, परन्तु परमेश्वर जानता है। यह केवल तब होता है जब तुम्हें भूख लगती है और तुम देखते हो कि तुम्हारे खाने के लिए पेड़ों में फल हैं और भूमि में अनाज है जिससे तुम महसूस करते हो, "आह, मुझे भोजन की जरूरत है।" यह केवल तब होता जब तुम प्यासे होते हो और तुम पानी पीना चाहते हो जिससे तुम्हें महसूस होता है, "मुझे पानी की आवश्यकता है। मुझे पानी कहाँ मिल सकता है?" तुम अपने सामने जल के एक सोते को देखते हो, इस प्रकार तुम उसमें से पीते हो। तुम कहते हो, "इस पेय पदार्थ का स्वाद बहुत अच्छा है। यह क्या है?" यह जल है, और इसे परमेश्वर के द्वारा मनुष्य के लिए बनाया गया है। भोजन के विषय में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम एक दिन में तीन वक्त का भोजन खाते हो या दो वक्त का, या उससे अधिक; संक्षेप में, भोजन कुछ ऐसा है जिसके बगैर मनुष्य अपने दैनिक जीवन में नहीं रह सकते हैं। यह एक चीज़ है जो मानव शारीर को सामान्य रूप से जीवित रखने और उसे बरकरार रखने के लिए जरूरी है। अतः भोजन मुख्यतः कहाँ से आता है? पहले, वह मिट्टी से आता है। मिट्टी को पहले परमेश्वर के द्वारा मानवजाति के लिए बनाया गया था। मिट्टी विभिन्न प्रकार के पौधों के जीवित रहने के लिए उपयुक्त है, सिर्फ पेड़ों एवं घास के लिए ही नहीं। परमेश्वर ने सभी किस्म के अनाज के बीजों को और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को, और साथ ही साथ लोगों के लिए पौधे लगाने के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं भूमि को मानवजाति के लिए तैयार किया था, इस प्रकार वह उन्हें भोजन देता है। यहाँ किस प्रकार के खाद्य पदार्थ हैं? तुम लोगों को इसके विषय में स्पष्ट होना चाहिए। पहला, विभिन्न प्रकार के अनाज हैं। अनाज में क्या शामिल हैं? गेहूँ, जुवार, बाजरा, चावल..., वे चीज़ें जो भूसे के साथ आते हैं। अनाज की फसलों को भी अनेक अलग अलग किस्मों में बाँटा गया है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक अनेक प्रकार के अनाज की फसलें हैं, जैसे जौ, गेहूं, जई और कुट्टू। अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग किस्मों को उगाना उपयुक्त होता है। विभिन्न किस्म के चावल भी हैं। दक्षिण में उसकी स्वयं की किस्में हैं, जो लम्बे होते हैं और दक्षिण के लोगों के लिए उपयुक्त हैं क्योंकि वे बहुत अधिक चिपचिपे नहीं होते हैं। जबकि दक्षिण का वातावरण अधिक गर्म होता है, उनको विभिन्न किस्म के चावल खाने पड़ते हैं जैसे इण्डिका चावल। यह बहुत चिपचिपा नहीं होता है नहीं तो वे उसे नहीं खा सकेंगे और वे अपनी भूख खो देंगे। उत्तर के लोगों के द्वारा खाया जानेवाला चावल अधिक चिपचिपा होता है। जबकि उत्तर हमेशा अत्यंत ठण्डा होता है, उनको चिपचिपा चावल खाना पड़ता है। उसके अतिरिक्त, विभिन्न किस्मों की फलियाँ हैं। उन्हें ज़मीन के ऊपर उगाया जाता है। ऐसी भी चीज़ें हैं जिन्हें ज़मीन के नीचे उगाया जाता है, जैसे आलू, शकरकंद, अरबी, और इत्यादि। आलू को उत्तर में उगाया जाता है। उत्तर में आलू की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। जब लोगों के पास खाने के लिए अनाज नहीं होता है, आलू उनके आहार का मुख्य भोजन हो सकता है इस प्रकार वे एक दिन में तीन वक्त का भोजन कर सकते हैं। आलू भोजन की आपूर्ति भी कर सकता है। गुणवत्ता के लिहाज से शकरकंद आलू के समान अच्छा तो नहीं होता है, लेकिन तब भी उसे लोगों के द्वारा एक दिन में तीन वक्त के भोजन को बनाए रखने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। जब अनाज उपलब्ध नहीं होता है, तब लोग अपना पेट का भरने के लिए शकरकंद का उपयोग कर सकते हैं। अरबी को भी उसी रीति से इस्तेमाल किया जा सकता है। ये विभिन्न प्रकार के अनाज हैं, लोगों का प्रतिदिन का भोजन एवं पेय पदार्थ। लोग नूडल्स, भाप में पकी हुई पाव रोटियाँ और चावल के नूडल्स बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के अनाज का उपयोग करते हैं। लोग आलू भी खाते हैं और मुख्य भोजन बनाने के लिए आलू और शकरकंद का उपयोग करते हैं। अरबी, जिसे दक्षिण के लोगों के द्वारा अक्सर खाया जाता है, भी एक मुख्य भोजन है। परमेश्वर ने इन विभिन्न किस्मों के अनाज को भरपूरी के साथ मानवजाति को दिया है। इतनी सारी किस्में क्यों हैं? इसमें परमेश्वर की इच्छा को पाया जा सकता हैः एक रूप में, यह उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की अलग अलग मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त है; दूसरे रूप में, इन अनाजों के विभिन्न अवयव एवं तत्व मानव शरीर के विभिन्न तत्व एवं पदार्थ के साथ मेल खाते हैं। लोग अपने शरीर की आवश्यकताओं के लिए केवल इन अनाजों को खाने के द्वारा विभिन्न पोषक तत्वो और अवयवों को बनाए रख सकते हैं। यद्यपि उत्तरी भोजन और दक्षिणी भोजन अलग अलग हैं, फिर भी, उनमें भिन्नताओं की अपेक्षा बहुत अधिक समानताएँ हैं। ये भोजन मानव शरीर की सामान्य जरूरतों को पूरी तरह से सन्तुष्ट कर सकते हैं और मानव शरीर के जीवित रहने की सामान्य दशाओं को बनाए रख सकते हैं। अतः, विभिन्न क्षेत्रों में पैदा हुई अनाज की किस्में बहुतायत से क्यों होती हैं इसका कारण है कि मानव शरीर को उसकी आवश्यकता है जो ऐसे भोजन के द्वारा प्रदान किया जाता है। उन्हें उसकी जरूरत है जो विभिन्न खाद्य पदार्थों के द्वारा प्रदान किया जाता है जिन्हें मानव शरीर को समान्य दशा में जीवित रखने के लिए और एक सामान्य मानवीय जीवन हासिल करने के लिए मिट्टी से उगाया जाता है। संक्षेप में, परमेश्वर ने मानवजाति के लिए बहुत सोच विचार किया था—वे विभिन्न खाद्य पदार्थ जिन्हें परमेश्वर ने लोगों को दिया था वे बेस्वाद नहीं हैं—वे बहुत व्यापक हैं। यदि लोग अनाज खाना चाहते हैं तो वे अनाज खा सकते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, "मुझे नूडल्स खाना पसंद नहीं है, मैं चावल खाना चाहता हूँ," और वे चावल खा सकते हैं। सभी किस्मों के चावल हैं—लम्बा चावल, छोटा चावल, और वे लोगों के स्वाद को सन्तुष्ट कर सकते हैं, सही है? इसलिए, यदि लोग इन अनाज को खाते हैं—जब तक वे अपने भोजन के साथ बहुत अधिक नखरा या भड़काव नहीं दिखाते हैं—उन्हें पोषक तत्वों में कमी नहीं होगी और उन्हें गारन्टी दी जाती है कि वे बुढ़ापे तक स्वस्थ रहेंगे। यह वह मूल योजना थी जो परमेश्वर के मस्तिष्क में था जब उसने मानवजाति को भोजन प्रदान किया था। मानव शरीर इन चीज़ों के बगैर नहीं रह सकता है—क्या यह वास्तविकता नहीं है? (हाँ।) मानव शरीर इन वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता है, किन्तु परमेश्वर ने पहले से ही तैयार कर लिया था और पूरी तरह सोच लिया था। परमेश्वर के पास ऐसी चीज़ें थीं जिन्हें उसने बहुत पहले से ही मानवजाति के लिए तैयार कर लिया था, और उन्हें बहुतायत से तैयार किया था। यह एक प्रमाणित सत्य है।
परमेश्वर ने मानवजाति को इन चीज़ों से कहीं बढ़कर दिया है—यहाँ सब्जियाँ भी हैं। जब तुम चावल खाते हो, यदि तुम सिर्फ चावल ही खाते हो, तो शायद तुम्हें पोषक तत्वों की कमी होगी। तब यदि तुम कुछ सब्जियों को हिला हिलाकर—भूनते हो या भोजन के साथ खाने के लिए सलाद को मिलाते हो, तो सब्जियों के विटामिन और विभिन्न सूक्ष्म तत्व या अन्य पोषक तत्व बिल्कुल समान्य तरीके से मानव शरीर की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर सकेंगे। जब लोग मुख्य भोजन को नहीं खा रहे हैं तो वे कुछ फल भी खा सकते हैं, सही है? कई बार, जब लोगों को और अधिक तरल पदार्थ या अन्य पोषक तत्वों या विभिन्न स्वाद की आवश्यकता होती है, तो उनकी आपूर्ति के लिए वहाँ सब्जियाँ और फल भी होते हैं। जबकि उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की मिट्टी और जलवायु अलग अलग होते हैं, उनके पास विभिन्न किस्मों की सब्जियाँ और फल भी होते हैं। जबकि दक्षिण में जलवायु बहुत गर्म होती है, अधिकांश फल और सब्जियाँ कुछ कुछ ठण्डी होती हैं जो लोगों के शरीर की ठण्डक और गर्मी को सन्तुलित कर सकते हैं जब वे उन्हें खाते हैं। दूसरी ओर, उत्तर में सब्जियों और फलों की कुछ ही किस्में होती हैं, किन्तु फिर भी वे उत्तर के लोगों के लिए आनन्द उठाने के लिए पर्याप्त हैं। क्या यह सही नहीं है? (हाँ।) फिर भी, हाल ही के वर्षों में सामाजिक विकास के कारण, उस तथाकथित सामाजिक बढ़ौतरी के कारण, साथ ही साथ यातायात और संचार की प्रगति ने उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम को जोड़ दिया है, उत्तर के लोग भी कुछ फलों, दक्षिण की स्थानीय पसंदीदा व्यंजनों या सब्जियों को खा सकते हैं, यहाँ तक कि पूरे साल भर। उस तरह से, यद्यपि लोग अपनी भूख और अपनी भौतिक इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं, फिर भी उनका शरीर न चाहते हुए भी नुकसान के विभिन्न स्तर के अधीन है। यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर के द्वारा मानवजाति के लिए तैयार की गई भोजन वस्तुओं के मध्य, ऐसी भोजन वस्तुएँ और फल एवं सब्जियाँ हैं जो दक्षिण के लोगों के लिए उपयुक्त हैं, साथ ही साथ ऐसी भोजन वस्तुएँ और फल एवं सब्जियाँ है जो उत्तर के लोगों के लिए उपयुक्त हैं। अर्थात्, यदि तुम दक्षिण में पैदा हुए होते, तो दक्षिण से चीज़ों को खाना तुम्हारे लिए बहुत ही उपयुक्त होता। परमेश्वर ने इन भोजन वस्तुओं और फलों एवं सब्जियों को तैयार किया था क्योंकि दक्षिण के पास एक विशेष जलवायु है। उत्तर के पास भोजन वस्तुएँ हैं जो उत्तर के लोगों के शरीर के लिए आवश्यक हैं। किन्तु क्योंकि लोगों के पास पेटूपन की प्रवृत्ति है, उन्हें अनजाने में ही सामाजिक विकास की लहर में बहा दिया गया है, और उनसे अनजाने में ही ऐसे नियमों का उल्लंघन करवाया गया है। यद्यपि लोग महसूस करते हैं कि उनका जीवन अब बेहतर है, फिर भी ऐसी सामाजिक उन्नति और अधिक लोगों के शरीरों के लिए गुप्त पीड़ा लेकर आती है। यह वह नहीं है जो परमेश्वर देखना चाहता है और यह वह नहीं था जिसका परमेश्वर ने पहले से इरादा किया था जब उसने मानवजाति के लिए सभी चीज़ों और इन भोजन वस्तुओं, फलों एवं सब्जियों को उत्पन्न किया था। यह पूर्णतः मानवजाति के द्वारा किया गया था जिसने प्रकृति के नियमों का उल्लंघन किया था और वैज्ञानिक प्रगति की थी, और उसका परमेश्वर के साथ कोई लेना देना नहीं था।
जो कुछ परमेश्वर ने मानवजाति को दिया था वह समृद्ध एवं भरपूर है, और हर एक स्थान में उनके स्वयं की विशेष भोजन वस्तुएँ हैं। उदाहरण के लिए, कुछ स्थान लाल खजूर से समृद्ध हैं (जिसे सामान्य रूप से बेर कहा जाता है), जबकि अन्य स्थान अखरोट, मूंगफली, और अन्य प्रकार के कड़े छिलकेवाले फलों से समृद्ध होते हैं। ये सभी भौतिक चीज़ें मानव शरीर के द्वारा अपेक्षित आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करती हैं। परन्तु परमेश्वर मानवजाति के लिए मौसम एवं समय के अनुसार चीज़ों की आपूर्ति करता है, और सही समय पर सही मात्रा में चीज़ों को प्रदान करता है। जबसे उसने मानवजाति को बनाया था तबसे मानवजाति शारीरिक आनन्द का लालच करता है और वह पेटू है, और इस बात से मानवजाति की प्रगति के सामान्य नियमों का उल्लंघन करना और नुकसान पहुँचाना आसान हो गया है। एक उदाहरण के रूप में, चेरी को देखिए, जिसके विषय में सबको जानना चाहिए, सही है? चेरी का मौसम कब होता है? (जून।) उन्हें जून के आस पास बटोरा जाता है। सामान्य परिस्थितियों के अन्तर्गत, वे कब समाप्त हो जाते है? (अगस्त।) उनके उपलब्ध होने के समय से ही लोग उन्हें खाना प्रारम्भ कर देते हैं, जून से लेकर अगस्त तक, दो महीनों की समयाविधि में। चेरी केवल दो महीनों के लिए ही ताज़े होते हैं, किन्तु वैज्ञानिक पद्धतियों के जरिए लोग उसे 12 महीनों तक बढ़ा सकते हैं, यहाँ तक कि चेरी के अगले मौसम तक भी। इसका मतलब है पूरे साल भर चेरी मिल सकता है। क्या यह घटना सामान्य है? (नहीं।) तो चेरी खाने का सबसे बढ़िया मौसम कब है? यह जून से लेकर अगस्त तक की समयाविधि है। इस सीमा के बाहर, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम उन्हें कितना भी ताज़ा रखो, उनका स्वाद वैसा नहीं होता है, और न ही वे वैसे होते हैं जिनकी आवश्यकता मानव शरीर को होती है। एक बार जब उनकी अवधि समाप्त हो जाती है, फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम कितना रसायन इस्तेमाल करते हो, तुम कभी भी उसे वैसा नहीं कर सकोगे जैसा वह प्राकृतिक रूप से उगने के समय था। उसके अतिरिक्त, रसायन मनुष्यों को जो नुकसान पहुँचाते हैं वह कुछ ऐसा है कि उसे हटाने या बदलने के लिए कोई कुछ भी नहीं कर सकता है। समझ गए? वर्तमान बाज़ार की अर्थव्यवस्था लोगों के लिए क्या लेकर आती है? लोगों के जीवन बेहतर तो दिखाई देते हैं, चारों दिशाओं का यातायात वास्तव में सुविधाजनक हो गया है, और लोग साल के चारों मौसमों में हर प्रकार के फल खा सकते हैं। उत्तर के लोग अक्सर दक्षिण से केले एवं अन्य भोजन वस्तुएँ, स्थानीय विशेष व्यंजन या फल खा सकते हैं। पर यह वह जीवन नहीं है जो परमेश्वर मानवजाति को देना चाहता है। इसे मानवजाति की वैज्ञानिक प्रगति के द्वारा लाया गया है। जो कुछ बाज़ार की यह अर्थव्यस्था मानव के शरीर के लिए लेकर आया है वह प्राकृतिक उन्नति के सामान्य नियमों का उल्लंघन है। जो कुछ वह लेकर आया है वह नुकसान और विध्वंस है, प्रसन्नता नहीं। समझ गए? (हाँ।) एक नज़र डालो। क्या साल के चारों मौसमों में बाज़ार में अंगूर बेचे जाते है? (हाँ।) अंगूर तोड़े जाने के बाद वास्तव में केवल थोड़े समय के लिए ही ताज़े रह सकते हैं। यदि तुम उन्हें अगले जून तक बचाकर रखते हो, तो क्या तब भी उन्हें अंगूर कहा जा सकता है? क्या तुम उन्हें कचरा कह सकते हो? उनमें अब न केवल अंगूर के मूल तत्व समाप्त हो चुके होते हैं, बल्कि अब उनमें ढेर से रसायन भी मौजूद होते हैं। एक साल के बाद, वे न केवल ताज़े नहीं होते हैं, बल्कि उनके पोषक तत्व भी बहुत पहले ही जा चुके होते हैं। जब लोग अंगूर खाते हैं, तो उनको एहसास होता हैः "कितना अच्छा है! कितना मनोहर है! क्या हम 30 साल पहले इस मौसम के दौरान अंगूर खा पाते थे? तुम नहीं खा सकते थे भले ही तुम खाना चाहते थे। अब जीवन कितना विशाल हो गया है!" क्या यह वास्तव में प्रसन्नता है? यदि तुम्हारी रूचि है, तो तुम जाकर अंगूर का अध्ययन कर सकते हो जिन्हें रसायनों के द्वारा सुरक्षित रखा जाता है और बस देख सकते हो कि उनकी बनावट क्या है और ये बनावट मनुष्यों के लिए क्या लाभ लेकर आ सकते हैं। पीछे मुड़कर अनुग्रह के युग के विषय में सोचिए। जब इस्राएली मिस्र को छोड़ने के बाद मार्ग पर थे, परमेश्वर ने उन्हें बटेर और मन्ना दिया। क्या परमेश्वर ने लोगों को उन्हें सुरक्षित रखने की अनुमति दी थी? (नहीं।) कुछ लोग संकीर्ण मानविसकता के थे और डरते थे कि अगले दिन और अधिक नहीं होगा, अतः उन्होंने कुछ अलग रख दिया। "इसे बचाकर रखिए शायद हमें इसकी बाद में जरूरत पड़े!" तब क्या हुआ? अगले दिन तक वह सड़ गया था। परमेश्वर ने उन्हें कुछ भी अलग से बचाकर रखने नहीं दिया था क्योंकि परमेश्वर ने कुछ तैयारियाँ की थीं, जो आश्वस्त करता था कि वे भूखे नहीं मरेंगे। किन्तु लोगों के पास ऐसा आत्म विश्वास नहीं था और वे हमेशा कुछ अलग रखना चाहते थे क्योंकि वे सोचते थेः "परमेश्वर के कार्य भरोसे के लायक नहीं हैं! तुम इसे देख नहीं सकते हो और तुम इसे छू नहीं सकते हो। यह अभी भी अच्छा है कि आनेवाले समय के लिए कुछ अलग रख लिया जाए। हमें पहले से ही बचाकर रखना है क्योंकि यदि तुम अपने लिए बचने का कोई मार्ग नहीं ढूँढ़ते हो तो कोई तुम्हारी परवाह नहीं करेगा।" जैसा कि तुम देख सकते हो, मानवजाति के पास ऐसा आत्म विश्वास नहीं है, न ही उनके पास परमेश्वर में सच्चा विश्वास है। वे हमेशा आनेवाले समय के लिए कुछ न कुछ बचाकर अलग रखते हैं और जो कुछ परमेश्वर ने मानवजाति के लिए तैयार किया है वे उसके पीछे की सारी चिंता और विचार को कभी नहीं देख सकते हैं। वे बस हमेशा से उसका एहसास करने में अससमर्थ हैं, वे हमेशा परमेश्वर पर भरोसा नहीं करते हैं, वे हमेशा सोचते हैं: "परमेश्वर के कार्य भरोसे से लायक नहीं हैं! कौन जानता है कि परमेश्वर इसे मानवजाति को देगा या वह इसे कब देगा! यदि मैं वास्तव में भूखा हूँ और परमेश्वर इसे मुझे नहीं देता है, तो क्या मैं भूखा नहीं मर जाऊँगा? क्या मुझमें पोषक तत्वों की कमी नहीं हो जाएगी?" देखिए मनुष्य का आत्म विश्वास कितना छोटा सा है!
अनाज, फल और सब्जियाँ, सभी प्रकार के कड़े छिलके वाले फल सभी शाकाहारी भोजन हैं। यद्यपि वे शाकाहारी भोजन हैं, फिर भी उनके पास मानव शरीर की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए पर्याप्त पोषक तत्व हैं। फिर भी, परमेश्वर ने नहीं कहाः "मनुष्य कोइन चीज़ों को देना पर्याप्त है। मानवजाति बस इन चीज़ों को ही खा सकता है।" परमेश्वर वहाँ नहीं रूका और उसके बजाए उसने ऐसी चीज़ों को तैयार किया जो मानवजाति को और भी अधिक स्वादिष्ट लगते थे। ये चीज़ें कौन सी हैं? ये विभिन्न किस्मों के माँस और मछलियाँ हैं जिन्हें तुम लोग अपने भोजन की मेज पर देखना चाहते हो और प्रतिदिन खाना चाहते हो। साथ ही अनेक किस्मों के माँस और मछलियाँ हैं। सारी मछलियाँ जल में रहती हैं, उनके माँस का स्वाद उनसे भिन्न है जिन्हें भूमि पर पाला जाता है और वे मानवजाति को अलग अलग पोषक तत्व प्रदान कर सकती हैं। मछलियों के गुण मानव शरीर की ठण्डक एवं गर्मी के साथ भी व्यवस्थित हो सकते हैं, अतः वे मानवजाति के लिए बहुत ही हितकारी हैं। परन्तु जो स्वादिष्ट लगता है उसे बहुतायत से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अभी भी वही कहावत हैः परमेश्वर मानवजाति को सही समय पर सही मात्रा देता है, ताकि लोग सामान्य और उचित रीति से इन चीज़ों का मौसम एवं समय के अनुरूप आनन्द उठा सकें। मुर्गी पालन में क्या शामिल है? मुर्गी, बटेर, कबूतर इत्यादि। बहुत से लोग बत्तक और कलहंस भी खाते हैं। यद्यपि परमेश्वर ने तैयारियाँ की हैं, अपने चुने हुए लोगों के लिए, फिर भी परमेश्वर के पास मांगें हैं और उसने अनुग्रह के युग में एक निश्चित दायरा निर्धारित किया है। अब यह दायरा व्यक्तिगत स्वाद और व्यक्तिगत समझ पर आधारित है। ये विभिन्न किस्मों के मांस मानवजाति को अलग अलग पोषक तत्व प्रदान करते हैं, जो प्रोटीन एवं आइरन की दुबारा पूर्ति करते हैं, लहू को समृद्ध करते हैं, मांस पेशियों एवं हड्डियों को बलवंत करते हैं और अधिक ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसके बावजूद कि उन्हें पकाने एवं खाने के लिए लोग कौन कौन से तरीकों का उपयोग करते हैं, संक्षेप में, एक ओर ये चीज़ें स्वाद एवं भूख को बढ़ाने के लिए लोगों की सहायता कर सकते हैं, और दूसरी ओर उनके पेट को सन्तुष्ट कर सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण चीज़ तो यह है कि वे मानव शरीर के लिए दैनिक पोषक तत्वों की उनकी जरूरत को प्रदान कर सकते हैं। ये वे विचार हैं जो परमेश्वर के पास थे जब उसने मानवजाति के लिए भोजन बनाया था। मांस के साथ ही साथ शाकाहारी भोजन भी है—क्या यह समृद्ध एव भरपूर नहीं है? (हाँ।) परन्तु लोगों को समझना चाहिए कि परमेश्वर के मूल इरादे क्या थे जब उसने मानवजाति के लिए सभी भोजन वस्तुओं को बनाया था। क्या यह मानवजाति को अनुमति देने के लिए था कि वह लालच से इन भौतिक भोजन वस्तुओं का आनन्द उठाए? क्या होता यदि लोग अपनी भौतिक इच्छा को सन्तुष्ट करने में लिप्त हो जाते? क्या वे बहुत अधिक मोटे ताजे नहीं हो जाते? क्या अति पोषण मानव शरीर के लिए सब प्रकार की बीमारियाँ लेकर नहीं आता? परमेश्वर के द्वारा बनाए कुदरत के नियमों को धोखा देना निश्चित तौर पर अच्छा नहीं है, इसीलिए परमेश्वर सही समय पर सही मात्रा को बाँटता है और उसने लोगों को विभिन्न समयाविधि एवं मौसम के अनुरूप अलग अलग भोजन का आनन्द उठाने की अनुमति दी है। यह सबसे अच्छा तरीका है। उदाहरण के लिए, बहुत ही गर्म ग्रीष्म ऋतु में रहने के बाद, लोग अपने शरीर में थोड़ी बहुत गर्मी, रोग सम्बन्धी सूखापन या नमी जमाकर लेते हैं। जब शरद ऋतु आती है, बहुत सारे फल पक जाते हैं, और जब लोग कुछ फलों को खाते हैं तो उनका सूखापन चला जाएगा। उसी समय, पशु एवं भेड़ें हृष्ट पुष्ठ हो जाएँगे, अतः लोगों को पोषण के लिए कुछ मांस खाना चाहिए। विभिन्न किस्मों के मांस खाने के बाद, लोगों के शरीर में शीत ऋतु की ठण्ड का सामना करने हेतु सहायता के लिए ऊर्जा और गर्मी होगी, और उसके परिणामस्वरूपः वे शीत ऋतु की ठण्ड से शांतिपूर्वक गुज़रने के योग्य होंगे। मानवजाति के लिए कौन से समय में कौन सी चीज़ को तैयार करना है, और कौन से समय में कौन सी चीज़ों को उगने, फलवंत होने और पकने की अनुमति देना है—इन सबको परमेश्वर के द्वारा नियन्त्रित किया गया है और इन सबका प्रबन्ध बहुत पहले ही परमेश्वर के द्वारा किया गया था, और वह भी बहुत नाप नाप कर। यह मात्र ऐसा है कि मानवजाति परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझता है। यह उस शीर्षक "परमेश्वर किस प्रकार मनुष्य के दैनिक जीवन के लिए आवश्यक भोजन तैयार करता है" के विषय में है। हर प्रकार के भोजन के अलावा, परमेश्वर मानवजाति को जल के स्रोतों की आपूर्ति भी करता है। लोगों को भोजन के बाद कुछ मात्रा में जल पीना पड़ता है। क्या मात्र फल खाना काफी है? लोग यदि केवल फल ही खाते हैं तो वे खड़े होने के योग्य नहीं होंगे, और इसके अतिरिक्त, कुछ मौसम में कोई फल नहीं होते हैं। अतः मानवजाति की पानी की समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है? परमेश्वर के द्वारा भूमि के ऊपर और भूमि के नीचे जल के अनेक स्रोतों को तैयार करने के बाद, जिसमें झीलें, नदियाँ और सोते भी शामिल हैं। जल के इन स्रोतों से ऐसी स्थितियों में पीया जा सकता है जहाँ कोई अपमिश्रण, या मानव प्रक्रिया सै फैली गन्दगी या क्षति नहीं है। मानवजाति की शारीरिक देहों के जीवन के लिए भोजन के स्रोतों के सम्बन्ध में, परमेश्वर ने बिल्कुल सही, बिल्कुल सटीक और बिल्कुल उपयुक्त तैयारियाँ की हैं, ताकि लोगों के जीवन समृद्ध और भरपूर हो जाएँ और उन्हें किसी बात की घटी न हो। यह कुछ ऐसा है जिसे लोग महसूस कर सकते हैं और देख सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, सभी चीज़ों में, चाहे वह पशु एवं पौधे हों, या सब प्रकार की घास हो, परमेश्वर ने कुछ पौधों को भी बनाया था जो मानव शरीर की क्षति या बीमारी का समाधान करने के लिए जरूरी हैं। उदाहरण के लिए, यदि तुम जल जाते हो तो तुम क्या करते हो? क्या तुम इसे पानी से धो सकते हो? क्या तुम बस कहीं से कपड़े का एक टुकड़ा पा सकते हो और इसे लपेट सकते हो? हो सकता है कि यह मवाद से भर गया हो या उस तरह से संक्रमित हो गया हो। उदाहरण के लिए, तुम क्या करते हो, यदि तुम आग की लपट या गर्म पानी के द्वारा अचानक झुलस जाते हो? क्या तुम उसे पानी के द्वारा बहा सकते हो? उदाहरण के लिए, यदि तुम्हें बुखार हो जाता है, सर्दी हो जाती है, किसी शारीरिक श्रम से चोट लग जाती है, ग़लत चीज़ें खाने के द्वारा पेट की बीमारी हो जाती है, या जीवन शैली या भावनात्मक मामलों के कारण कुछ बीमारियाँ पनपने लग जाती हैं, जैसे वाहक नलियों से सम्बन्धित बीमारियाँ, मनोवैज्ञानिक दशाएँ या अन्दरूनी अंगों की बीमारियाँ—उन सब का इलाज करने के लिए उनके अनुरूप कुछ पौधे होते हैं। ये वे पौधे हैं जो रूकावट को दूर करलहू के बहतरीन बहाव के लिए, दर्द में राहत के लिए, लहू के बहाव को रोकने के लिए, शरीर के किसी अंग को चेतना शून्य करने के लिए, सामान्य त्वचा पुनः प्राप्त करने में लोगों की सहायता के लिए, शरीर में लहू के रूकावट को दूर करने के लिए और शरीर के विष को निकालने के लिए रक्त के प्रवाह को बढ़ाते हैं। संक्षेप में, इन सभी को दैनिक जीवन में इस्तेमाल किया जा सकता है। वे लोगों के लिए उपयोगी हैं और उन्हें मानव शरीर हेतु आवश्यकता के समय के लिए परमेश्वर के द्वारा बनाया गया है। इनमें से कुछ को परमेश्वर के द्वारा अनुमति दी गई है कि उन्हें मनुष्य के द्वारा अनजाने में खोज लिया जाए, जबकि अन्य को किसी विशेष प्राकृतिक घटना से या परमेश्वर के द्वारा तैयार किए गए कुछ लोगों के द्वारा खोजा गया था। अपने खोज का अनुसरण करते हुए, मनुष्य उन्हें आनेवाली पीढ़ियों को सौंपता जाएगा, और बहुत से लोग उनके बारे में जान पाएँगे। इस तरह, परमेश्वर के द्वारा इन पौधों की सृष्टि का मूल्य और अर्थ है। संक्षेप में, ये सभी चीज़ें परमेश्वर की ओर से हैं और उन्हें उस समय तैयार किया गया और रोपा गया था जब उसने मानवजाति के लिए एक सजीव वातावरण बनाया था। ये सभी चीज़ें बहुत ही जरूरी हैं। क्या यह नहीं दिखाता है कि जब परमेश्वर ने आकाश एवं पृथ्वी और सभी चीज़ों को बनाया था, उसके विचार उस मानवजाति की अपेक्षा बेहतर थे। जब तुम वह सब कुछ देखते हो जिन्हें परमेश्वर ने बनाया है, तो क्या तुम परमेश्वर के कार्य के व्यावहारिक पक्ष को महसूस कर सकते हो? परमेश्वर ने गुप्त में कार्य किया था। जब मनुष्य इस पृथ्वी पर आया ही नहीं था, अर्थात् इस मानवजाति के सम्पर्क में आने से पहले ही, परमेश्वर ने इन सब को बना लिया था। जो कुछ भी उसने किया था वह मानवजाति के लिए था, उनके जीवित रहने के लिए और मानवजाति के अस्तित्व के विचार के लिए था, ताकि मानवजाति इस समृद्ध और भरपूर भौतिक संसार में रह सके जिसे परमेश्वर ने उनके लिए बनाया था, और जिससे वे प्रसन्नता से जी सकें, उन्हें भोजन एवं वस्त्रों की चिन्ता न करना पड़े, और उन्हें किसी बात की कोई घटी न हो। मानवजाति ऐसे वातावरण में निरन्तर सन्तान उत्पन्न करता है और जीवित रहता है।
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