परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

भाग सात के क्रम में

अय्यूब ने अपना बाकी का आधा जीवन परमेश्वर की आशीषों के मध्य बिताया

हालाँकि उस समय उसकी आशीषें केवल भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, ऊंटों, भौतिक सम्पत्तियों, इत्यादि तक ही सीमित थीं, फिर भी वे आशीषें जिन्हें परमेश्वर अपने हृदय में अय्यूब को प्रदान करना चाहता था वे इनसे कहीं बढ़कर थीं। उस समय क्या इस बात को दर्ज किया गया था कि परमेश्वर किस प्रकार की अनन्त प्रतिज्ञाएं अय्यूब को देना चाहता था? अय्यूब के विषय में परमेश्वर कि आशीषों में, परमेश्वर ने उसकी आशीषों का जिक्र नहीं किया या उसे स्पर्श नहीं किया, और इसके बावजूद कि अय्यूब परमेश्वर के हृदय में क्या महत्व एवं स्थान रखता था, कुल मिलाकर परमेश्वर अपनी आशीषों के विषय में विवेकशील था। परमेश्वर ने अय्यूब के अंत की घोषणा नहीं की। इसका क्या अर्थ है? उस समय, जब परमेश्वर की योजना मनुष्य के अंत की घोषणा के बिन्दु तक नहीं पहुंची थी, और उस योजना ने उसके कार्य के अंतिम चरण में प्रवेश नहीं किया था, तब तक परमेश्वर ने अंत का कोई जिक्र नहीं किया था, उसने महज मनुष्य को भौतिक आशीषें ही प्रदान की थीं। इसका अर्थ है कि अय्यूब का बाकी का आधा जीवन परमेश्वर की आशीषों के मध्य गुज़रा था, यही वह बात थी जिसने उसे दूसरों से अलग किया था—परन्तु उनके समान ही उसकी उम्र बढ़ने लगी, और किसी भी सामान्य व्यक्ति के समान ही वह दिन भी आया जब उसने संसार को अलविदा कहा। इस प्रकार ऐसा लिखा हुआ है "अन्त में अय्यूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया" (अय्यूब 42:17)। यहाँ इसका क्या अर्थ है "वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया?" जब परमेश्वर ने अंत की घोषणा की थी उसके पहले के युग में, परमेश्वर ने अय्यूब के लिए एक अपेक्षित जीवन को निर्धारित किया था, और जब वह उस आयु तक पहुंच गया था तब उसने अय्यूब को प्राकृतिक रूप से इस संसार से जाने की अनुमति दी। अय्यूब की दूसरी आशीष से लेकर उसकी मृत्यु तक, परमेश्वर ने उसके जीवन में और किसी कठिनाई को नहीं जोड़ा था। परमेश्वर के लिए अय्यूब की मृत्यु सामान्य थी, और आवश्यक भी, यह कुछ ऐसा था जो बहुत ही साधारण था, और न तो यह कोई न्याय था और न ही कोई दण्डाज्ञा। जब वह जीवित था, तब अय्यूब ने परमेश्वर की आराधना की एवं उसका भय माना; इस लिहाज से कि अपनी मृत्यु की ओर बढ़ते हुए उसका अंत किस प्रकार हुआ, परमेश्वर ने इसके विषय में कुछ नहीं कहा, और न ही कोई टिप्पणी की थी। परमेश्वर जो करता है और कहता है उसमें वह न्यायसंगत है, और उसके वचनों एवं कार्यों की विषयवस्तु एवं सिद्धान्त उसके कार्य के चरण और उस समय अवधि के अनुसार हैं जिसमें वह कार्य कर रहा है। परमेश्वर के हृदय में किसी ऐसे व्यक्ति का अंत किस प्रकार होगा जो अय्यूब के समान है? क्या परमेश्वर अपने हृदय में किसी निर्णय पर पहुंच चुका था? हाँ वास्तव में वह पहुंच चुका था! यह बस ऐसा ही था कि मनुष्य के द्वारा इसे जाना नहीं गया था; परमेश्वर मनुष्य को नहीं बताना चाहता था, न ही उसके पास मनुष्य को बताने का कोई इरादा था। और इस प्रकार, सतही तौर पर कहें, तो अय्यूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया, और अय्यूब का जीवन ऐसा ही था।

अपने जीवनकाल के दौरान अय्यूब के द्वारा उस मूल्य का जीवन बिताया गया

क्या अय्यूब ने एक मूल्यवान जीवन बिताया था? वह मूल्य कहाँ था? ऐसा क्यों कहा गया है कि उसने एक मूल्यवान जीवन बिताया था? मनुष्य के लिए इसका मूल्य क्या था? मनुष्य के दृष्टिकोण से, उसने मानवजाति का प्रतिनिधित्व किया था जिसे परमेश्वर शैतान एवं संसार के लोगों के सामने एक गूंजती हुई गवाही देने के लिए बचाना चाहता है। उसने उस कर्तव्य को निभाया जिसे परमेश्वर के एक जीवधारी के द्वारा निभाया जाना चाहिए था, और एक मिसाल कायम की, और उसने उन सभी लोगों के लिए एक आदर्श के रूप में कार्य किया जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, और लोगों को अनुमति दी कि वे देखें कि परमेश्वर पर भरोसा रखने के द्वारा शैतान के ऊपर विजय प्राप्त करना पूरी तरह से सम्भव है। और परमेश्वर के लिए उसका मूल्य क्या था? परमेश्वर के लिए, अय्यूब के जीवन का मूल्य परमेश्वर का भय मानने, परमेश्वर की आराधना करने, परमेश्वर के कार्यों की गवाही देने, और परमेश्वर के कार्यों की प्रशंसा करने, और परमेश्वर को सुकून एवं किसी चीज़ का आनन्द देने की उसकी योग्यता में निहित था; परमेश्वर के लिए, अय्यूब के जीवन का मूल्य इसमें भी निहित था कि, उसकी मृत्यु से पहले, अय्यूब ने किस प्रकार परीक्षाओं का अनुभव किया और शैतान पर विजयी हुआ, और शैतान एवं संसार के लोगों के सामने परमेश्वर के लिए गूंजती हुए गवाही दी, मानवजाति के मध्य परमेश्वर की महिमा की, परमेश्वर के हृदय को राहत दी, और परमेश्वर के उत्सुक हृदय को ऐसे परिणाम को निहारने, एवं ऐसी आशा को देखने की अनुमति दी। उसकी गवाही ने किसी व्यक्ति को परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ता से स्थिर खड़े होने के लिए, और इस योग्य होने के लिए योग्यता की एक मिसाल कायम की ताकि परमेश्वर के बदले में, और मनुष्य के प्रबंधन के लिए परमेश्वर के कार्य में शैतान को लज्जित किया जाए। क्या यह अय्यूब के जीवन का मूल्य नहीं है? अय्यूब ने परमेश्वर के हृदय को राहत पहुंचाया था, उसने परमेश्वर को महिमावान्वित होने की खुशी का पहले से ही स्वाद चखाया था, और उसने परमेश्वर की प्रबन्धकीय योजना के लिए एक बेहतरीन शुरुआत प्रदान की थी। इस बिन्दु के आगे से अय्यूब का नाम परमेश्वर की महिमा के लिए एक प्रतीक बन गया, और शैतान के ऊपर मानवजाति की विजय का एक चिन्ह बन गया। अपने जीवनकाल के दौरान अय्यूब ने जैसा जीवन जीया और शैतान के ऊपर उसकी असाधारण विजय को परमेश्वर के द्वारा हमेशा हृदय में संजोकर रखा जाएगा, और आनेवाली पीढ़ियों के द्वारा उसकी खराई, सीधाई, एवं परमेश्वर के भय का सम्मान एवं अनुसरण किया जाएगा। उसे एक बेदाग, चमकदार मोती, एवं इत्यादि के समान परमेश्वर के द्वारा हमेशा हृदय में संजोकर रखा जाएगा, और वह मनुष्य के द्वारा सहेजकर रखे जाने के भी योग्य है!

इसके आगे, आओ हम व्यवस्था के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य को देखें।

घ. व्यवस्था के युग के नियम-कायदे

1. दस आज्ञाएँ

2. वेदी बनाने के सिद्धान्त

3. सेवकों के व्यवहार करने की रीति विधियां

4. चोरी एवं मुआवजे़ की रीति विधियां

5. सब्त के वर्ष और तीन पर्वों को मानना

6. सब्त के दिन की रीति विधियां

7. भेंट चढ़ाने की रीति विधियां

क. होमबलि

ख. अन्न बलि

ग. मेल बलि

घ. पाप बलि

ङ. अपराध बलि

च. याजकों के द्वारा भेंट चढ़ाने की रीति विधियां (हारुन एवं उसके पुत्रों को आदेश दिया गया है कि वे इन्हें चढ़ाएं)

1) याजकों के द्वारा होमबलि

2) याजकों के द्वारा अन्नबलि

3) याजकों के द्वारा पापबलि

4) याजकों के द्वारा अपराध बलि

5) याजकों के द्वारा मेलबलि

8. याजकों के द्वारा भेंटों को खाने की रीति विधियां

9. शुद्ध एवं अशुद्ध पशु (जो खाने योग्य और खाने योग्य नहीं हैं)

10. बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं के शुद्धिकारण की रीति विधियां

11. कुष्ठ रोग को जांचने के मानक

12. जो कुष्ठ रोग से चंगे हो चुके हैं उनके लिए रीति विधियां

13. संक्रमित घरों की सफाई करने की रीति विधियां

14. असामान्य प्रवाह से पीड़ित लोगों के लिए रीति विधियां

15. प्रायश्चित के दिन को साल में एक बार अवश्य मनाया जाना चाहिए

16. पालतू पशुओं एवं भेड़-बकरियों की बलि चढ़ाने के नियम

17. अन्यजातियों के घिनौने रीति व्यवहारों के अनुसरण की मनाही (करीबी सम्बन्धी से अनाचार नहीं करना, और इत्यादि)

18. रीति विधियां जिनका लोगों के द्वारा अवश्य पालन किया जाना चाहिए ("तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ।")

19. मोलेक को अपने बच्चों की बलि चढ़ानेवालों का वध करना

20. व्यभिचार के अपराध की सजा के नियम

21. नियम जिनका याजकों के द्वारा अवश्य पालन किया जाना चाहिए (उनके प्रतिदिन के व्यवहार के नियम, पवित्र चीज़ों का सेवन करने के नियम, बलिदान चढ़ाने के नियम, एवं इत्यादि)।

22. पर्व जिन्हें मनाया जाना चाहिए (सब्त का दिन, फसह, पिन्तेकुस्त, प्रायश्चित का दिन, एवं इत्यादि)

23. अन्य रीति विधियां (दीपक जलाना, जुबली का दिन, भूमि का छुटकारा, मन्नत मानने, दशमांश की भेंटें, एवं इत्यादि)

व्यवस्था के युग के नियम-कायदे समूची मानवजाति के निर्देशन के विषय में वास्तविक प्रमाण हैं

अतः, तुम लोगों ने व्यवस्था के युग की इन रीति विधियों एवं सिद्धान्तों को पढ़ा है, हाँ? क्या ये रीति विधियां एक व्यापक दायरे को घेरती हैं? पहला, वे दस आज्ञाओं को घेरती हैं, जिसके बाद रीति विधियां हैं कि वेदी कैसे बनाएं, एवं इत्यादि। इनके बाद सब्त का पालन करने एवं तीन पर्वां को मनाने की रीति विधियां आती हैं, जिसके बाद बलिदान चढ़ाने की रीति विधियां हैं। क्या तुम लोगों ने देखा था कि वहाँ कितने प्रकार के बलिदान हैं? यहाँ पर होमबलि, अन्नबलि, मेलबलि, पापबलि, एवं इत्यादि हैं, जो याजकों के लिए बलिदान की रीति विधियों के बाद आते हैं, जिसमें याजकों के द्वारा होमबलि एवं अन्नबलि, और अन्य प्रकार के बलिदान शामिल होते हैं। आठवीं रीति विधि याजकों के द्वारा बलिदानों को खाने के लिए है, और उसके बाद ऐसी रीति विधियां हैं कि लोगों के जीवन के दौरान किन चीज़ों का पालन किया जाना चाहिए। लोगों के जीवन के कई पहलुओं के लिए आवश्यक शर्तें हैं, जैसे वे रीति विधियां कि वे क्या खा सकते हैं या क्या नहीं खा सकते हैं, बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं के शुद्धिकारण के लिए, और उनके लिए रीति विधियां जो कोढ़ से शुद्ध हो चुके हैं। इन रीति विधियों में, परमेश्वर ने अब तक बीमारी के बारे में ही बात की है, और इनमें भेड़-बकरियों और पालतू पशुओं, एवं इत्यादि को काटने के लिए भी रीति विधियां हैं। परमेश्वर के द्वारा भेड़-बकरियों और पालतू पशुओं की सृष्टि की गई थी, और जैसा परमेश्वर तुझसे कहता है तुझे वैसे ही उन्हें काटना चाहिए; बिना किसी सन्देह के परमेश्वर के वचनों में तर्क है, जैसा परमेश्वर के द्वारा आदेश दिया गया है निःसन्देह ऐसा करना सही है, और निश्चय ही यह लोगों के लिए लाभदायक है! ऐसे कई पर्व और नियम भी हैं कि उनका पालन किया जाए, जैसे सब्त का दिन, फसह, और अन्य—परमेश्वर ने इन सब के बारे में बताया था। आओ हम आखिर के कुछ पर्वों एवं नियमों पर नज़र डालें: अन्य रीति विधियां—दीपक जलाना, जुबली का वर्ष, भूमि का छुटकारा, मन्नत मानना, दशमांश चढ़ाना, और इत्यादि। क्या ये एक व्यापक दायरे को घेरते हैं? सबसे पहली बात जिसके विषय में बातचीत की गई वह है लोगों के बलिदान का मामला, उसके बाद चोरी एवं मुआवजे, और सब्त के दिन के पालन की रीति विधियां हैं; जीवन के विवरणों का हर एक ब्यौरा शामिल है। कहने का तात्पर्य है, जब परमेश्वर ने अपनी प्रबन्धकीय योजना के आधिकारिक कार्य की शुरुआत की थी, तब उसने अनेक रीति विधियों को ठहराया था जिनका पालन मनुष्य के द्वारा किया जाना था। ये रीति विधियां मनुष्य को अनुमति देने के लिए थे ताकि पृथ्वी पर मनुष्य के साधारण जीवन की अगुवाई करें, मनुष्य का साधारण जीवन जो परमेश्वर एवं उसके मार्गदर्शन से अलग नहीं हो सकता है। परमेश्वर ने सबसे पहले मनुष्य को बताया था कि वेदियों को किस प्रकार बनाना है, और वेदियों को किस प्रकार स्थापित करना है। उसके बाद, उसने मनुष्य को बताया कि कैसे बलिदान चढ़ाना था, और उसने यह ठहराया था कि मनुष्य को किस प्रकार से जीवन जीना था—उसे जीवन में किस पर ध्यान देना था, उसे किसमें बने रहना था, उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। परमेश्वर ने मनुष्य के लिए जो कुछ ठहराया था वह सभी के द्वारा स्वीकार किए जाने के योग्य था, और इन रिवाजों, रीति विधियों, और सिद्धान्तों के साथ उसने लोगों के व्यवहार को उन्नत किया, उनकी ज़िन्दगियों का मार्गदर्शन किया, परमेश्वर के नियमों और उनके शुरूआती कदमों की अगुवाई की, परमेश्वर की वेदी के सामने आने के लिए उनका मार्गदर्शन किया, और सभी चीज़ों के मध्य ऐसा जीवन पाने के लिए मार्गदर्शन किया जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया था जो व्यवस्थित क्रम, नियमितता, और संयम को धारण किए हुए था। परमेश्वर ने मनुष्य की सीमाओं को तय करने के लिए सबसे पहले इन साधारण रीति विधियों एवं सिद्धान्तों का उपयोग किया था, ताकि पृथ्वी पर मनुष्य के पास परमेश्वर की आराधना करने का एक साधारण जीवन हो, और उसके पास मनुष्य का साधारण जीवन हो; उसकी छः हज़ार वर्षों की प्रबंधकीय योजना की शुरुआत की विशिष्ट विषयवस्तु ऐसी ही है। ये रीति विधियां एवं नियम बहुत ही व्यापक विषयवस्तु को घेरते हैं, वे व्यवस्था के युग के दौरान मानवजाति के लिए परमेश्वर के मार्गदर्शन के विशेष ब्योरे हैं, उन लोगों के द्वारा इन्हें स्वीकार और इनका आदर किया जाना था जो व्यवस्था के युग के पहले आए, ये रीति विधियां व्यवस्था के युग के दौरान परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य का अभिलेख हैं, और वे समूची मानवजाति के लिए परमेश्वर की अगुवाई एवं मार्गदर्शन का वास्तविक प्रमाण हैं।

मानवजाति परमेश्वर की शिक्षाओं एवं प्रावधानों से हमेशा के लिए अलग नहीं हो सकता है

इन रीति विधियों में हम देखते हैं कि उसके कार्य के प्रति, उसके प्रबंधन के प्रति, और मानवजाति के प्रति परमेश्वर की मनोवृत्ति गम्भीर, ईमानदार, कठोर और ज़िम्मेदार है। वह जरा सी भी विसंगति के बिना वह कार्य करता है जिसे उसे अपने चरणों के अनुसार मानवजाति के बीच करना होगा, और वह जरा सी भी ग़लती एवं त्रुटी के बिना उन वचनों को कहता है जिन्हें उसे मानवजाति को कहना होगा, और वह मानवजाति को यह देखने की अनुमति देता है कि वह परमेश्वर की अगुवाई से अलग नहीं हो सकता है, और उसे यह दिखाता है कि वह सब कुछ वास्तव में कितना महत्वपूर्ण है जिन्हें परमेश्वर मानवजाति के लिए करता और कहता है। इसकी परवाह किए बगैर कि अगले युग में मनुष्य किस के समान होगा, संक्षेप में, बिलकुल शुरुआत में—व्यवस्था के युग के दौरान—परमेश्वर ने इन साधारण कार्यों को किया था। परमेश्वर के लिए, उस युग में परमेश्वर, संसार एवं मानवजाति के विषय में लोगों की धारणाएं संकुचित एवं धुंधली थीं, और भले ही उनके पास कुछ सचेत विचार एवं इरादे थे, फिर भी उनमें से सब के सब अस्पष्ट एवं ग़लत थे, और इस प्रकार मानवजाति परमेश्वर की शिक्षा एवं प्रावधानों से अलग नहीं हो सकती थी। अति प्राचीन मानवजाति कुछ भी नहीं जानती थी, और इस प्रकार परमेश्वर को मनुष्य को अस्तित्व में बने रहने के लिए अत्यंत सतही एवं मूल सिद्धान्तों को और जीवन जीने के लिए जरूरी रीति विधियों को सिखाना आरम्भ करना पड़ा, और उसने इन चीज़ों को थोड़ा थोड़ा करके मनुष्य के हृदय में डालना शुरू कर दिया, और उसने इन रीति विधियों के जरिए, और इन नियमों के जरिए जो वचनों में से थे, मनुष्य को परमेश्वर की एक क्रमिक समझ, परमेश्वर की अगुवाई की एक क्रमिक समझ एवं बूझ, और मनुष्य एवं परमेश्वर के बीच सम्बन्ध की एक मूल धारणा प्रदान की थी। जब इस प्रभाव को प्राप्त कर लिया गया, केवल इसके पश्चात् ही परमेश्वर थोड़ा थोड़ा करके उस कार्य करने के योग्य हुआ जिसे वह बाद में करता, और इस प्रकार व्यवस्था के युग के दौरान ये रीति विधियां और परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य मानवजाति को बचाने के लिए उसके कार्य का सुदृढ़ आधार हैं, और परमेश्वर की प्रबन्धकीय योजना में पहला चरण हैं। यद्यपि, व्यवस्था के युग के कार्य से पहले, परमेश्वर ने आदम, हव्वा और उनके वंश से बातचीत की थी, और वे आज्ञाएं एवं शिक्षाएं इतनी व्यवस्थित या विशिष्ट नहीं थीं कि उन्हें एक एक करके मनुष्य को दिया जाता, और उन्हें लिखा नहीं गया था, न ही वे रीति विधियां बनी थीं। यह इसलिए है क्योंकि, उस समय परमेश्वर की योजना उतनी दूर तक नहीं गई थी; जब परमेश्वर इस चरण में मनुष्य की अगुवाई कर चुका था केवल तभी वह व्यवस्था के युग की इन रीति विधियों को बोलना प्रारम्भ कर सकता था, और मनुष्य से इसे सम्पन्न करवाना शुरू कर सकता था। यह एक जरुरी प्रक्रिया थी, और इसका परिणाम अपरिहार्य था। इन साधारण रीति रिवाज़ों एवं रीति विधियां ने मनुष्य को परमेश्वर के प्रबंधकीय कार्य के चरणों और परमेश्वर की बुद्धि को दिखाया जो उसकी प्रबंधकीय योजना में प्रकट हुई थी। परमेश्वर जानता है कि शुरुआत करने के लिए किस विषयवस्तु एवं किन साधनों का उपयोग करना है, निरन्तर जारी रखने के लिए किन साधनों का उपयोग करना है, समाप्त करने के लिए किन साधनों का उपयोग करना है ताकि वह ऐसे लोगों के समूह को हासिल कर सके जो उसकी गवाही देते सकें, ताकि वह ऐसे लोगों के समूह को हासिल कर सके जो उसी के समान एक मन के हैं। वह जानता है कि मनुष्य के भीतर क्या है, और जानता है कि उसमें क्या कमी है, वह जानता है कि उसे क्या उपलब्ध कराना है, और उसे मनुष्य की अगुवाई कैसे करना है, और साथ ही वह यह भी जानता है कि मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मनुष्य एक कठपुतली के समान हैः भले ही उसके पास परमेश्वर की इच्छा की कोई समझ नहीं थी, फिर भी वह आज तक परमेश्वर के प्रबंधकीय कार्य की अगुवाई में कदम दर कदम चलने के सिवाए और कोई सहायता नहीं कर सकता है। जो कुछ परमेश्वर करनेवाला था उसके विषय में उसके हृदय में कोई अस्पष्टता नहीं थी; उसके हृदय में बहुत ही स्पष्ट एवं उज्जवल योजना थी, और उसने उस कार्य को सम्पन्न किया था जिसे उसने स्वयं अपने चरणों एवं अपनी योजना के अनुसार करने की इच्छा की थी, और जो सतह से गहराई की ओर बढ़ता जाता था। यद्यपि उसने उस कार्य की ओर संकेत नहीं किया था जिसे वह बाद में करनेवाला था, फिर भी उसका आगामी कार्य उसकी योजना के अनुसार तब भी कड़ाई से निरन्तर सम्पन्न होता और बढ़ता गया, और यह जो परमेश्वर के पास है एवं जो वह है उसका प्रगटिकरण है, और साथ ही यह परमेश्वर के अधिकार का भी प्रगटिकरण है। इसके बावजूद कि वह अपनी प्रबंधकीय योजना के किस चरण का कार्य कर रहा है, उसका स्वभाव एवं उसकी हस्ती (मूल-तत्व) स्वयं उसका ही प्रतिनिधित्व करती है—और इसमें कोई त्रुटि नहीं है। युग, कार्य की अवस्था, किस प्रकार के लोगों से परमेश्वर प्रेम करता है, किस प्रकार के लोगों से वह घृणा करता है इन सब के बावजूद भी, उसका स्वभाव और जो उसके पास है एवं जो वह है वह कभी नहीं बदलेगा। यद्यपि ये रीति विधियां एवं सिद्धान्त जिन्हें परमेश्वर ने व्यवस्था के युग के दौरान स्थापित किया था वे आज के दिन के लोगों के लिए बहुत ही साधारण और सतही दिखाई देते हों, और हालाँकि उन्हें समझना एवं हासिल करना आसान है, उनमें अब भी परमेश्वर की बुद्धि है, और परमेश्वर के स्वभाव और जो उसके पास है एवं जो वह है उन्हें अब भी उनमें पाया जाता है। क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से इन साधारण नियमों के भीतर मानवजाति के प्रति परमेश्वर की ज़िम्मेदारी एवं देखरेख, और उसके विचारों की उत्कृष्ट हस्ती को व्यक्त किया गया है, जो मनुष्य को सचमुच में उस तथ्य को महसूस करने की अनुमति देती है कि परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है, और सभी चीज़ों को उसके हाथ के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मानवजाति कितने अधिक ज्ञान पर महारत हासिल करता है, या कितने अधिक सिद्धान्तों एवं रहस्यों को वह समझता है, परमेश्वर के लिए इनमें से कोई भी मानवजाति के लिए उसके प्रावधानों का, और मानवजाति के प्रति उसकी अगुवाई का स्थान लेने में समर्थ नहीं है; मानवजाति परमेश्वर के मार्गदर्शन और परमेश्वर के व्यक्तिगत कार्य से हमेशा अविभाज्य रहेगा। मनुष्य और परमेश्वर के बीच अविभाज्य सम्बन्ध ऐसा ही है। इसके बावजूद कि परमेश्वर तुझे कोई आज्ञा, या रीति विधि, या अपनी इच्छा को समझने के लिए तुझे कोई सच्चाई प्रदान करता है या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह क्या करता है, क्योंकि परमेश्वर का उद्देश्य है कि वह एक खूबसूरत कल की ओर मनुष्य का मार्गदर्शन करे। परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचन और वह कार्य जिसे वह करता है दोनों ही उसकी हस्ती के एक पहलु का प्रकाशन हैं, और वे उसके स्वभाव एवं उसकी बुद्धि के एक पहलु का प्रकाशन हैं, और वे उसकी प्रबंधकीय योजना का एक परम आवश्यक चरण हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए! परमेश्वर जो कुछ करता है उसमें उसकी इच्छा है; परमेश्वर ग़लत रीति से की गई टीका-टिप्पणियों से भयभीत नहीं होता है, न ही वह अपने विषय में किसी मनुष्य की धारणाओं या विचारों से डरता है। वह सिर्फ अपनी प्रबंधकीय योजना के अनुसार अपना कार्य करता है, और अपने प्रबंधन को निरन्तर जारी रखता है, जिसे किसी भी मनुष्य, विषय या पदार्थ के द्वारा रोका नहीं जा सकता है।

ठीक है, आज के लिए बस इतना है। अगले बार फिर मिलेंगे!

9 नवंबर, 2013

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