परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II
भाग छे
अय्यूब की गवाही परमेश्वर के लिए सुकून लेकर आती है
यदि अब मैं तुम लोगों को कहूँ कि अय्यूब बहुत ही प्यारा इंसान था, तो तुम लोग इन शब्दों के भीतर के अर्थ को नहीं समझ सकते हो, और मैं ने इन सभी चीज़ों को क्यों कहा है कि तुम लोग इसके पीछे की उस भावना का आभास नहीं कर सकते हो; परन्तु उस दिन तक इंतज़ार करो जब तुम लोग वैसी ही या अय्यूब के समान ही उन परीक्षाओं का अनुभव कर चुके होगे, जब तुम लोग विपरीत परिस्थिति से होकर गुज़र चुके होगे, जब तुम लोगों ने उन परीक्षाओं का अनुभव कर लिया होगा जिन्हें परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से तुम लोगों के लिए नियोजित किया गया था, जब तू सब कुछ दे देगा, और परीक्षाओं के मध्य शैतान के ऊपर प्रबल होने और परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए अपमान एवं क्लेश सहेगा—तब तू इन वचनों के अर्थ को समझेगा जिन्हें मैंने कहा था। उस समय, तू महसूस करेगा कि तू अय्यूब से बहुत अधिक कमतर हैं, तू महसूस करेगा कि अय्यूब कितना प्यारा है, और यह कि वह अनुकरण करने के योग्य है; जब वह समय आता है, तब तू यह महसूस करेगा कि वे उत्कृष्ट शब्द जिन्हें अय्यूब के द्वारा कहा गया था वे ऐसे व्यक्ति के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं जो भ्रष्ट है और जो इन समयों में रहता है, और तू महसूस करेगा कि आज के दिन के लोगों के लिए उसे हासिल करना कितना कठिन है जिसे अय्यूब के द्वारा हासिल लिया गया था। जब तू महसूस करता है कि यह कठिन है, तब तू समझेगा कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल एवं चिंतित है, तब तू समझेगा कि वह कीमत कितनी बड़ी है जिसे ऐसे लोगों को हासिल करने के लिए परमेश्वर के द्वारा चुकाई गई थी, और यह कि वह कार्य कितना बहुमूल्य है जिसे परमेश्वर के द्वारा मानवजाति के लिए किया और फैलाया गया था। अब जबकि तुम लोगों ने इन शब्दों को सुन लिया है, तो क्या तुम लोगों के पास अय्यूब के विषय में सटीक समझ एवं सही आंकलन है? तुम लोगों की दृष्टि में, क्या अय्यूब सचमुच में एक खरा एवं सीधा पुरुष था जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था? मैं विश्वास करता हूँ कि अधिकांश लोग निश्चित रूप से कहेंगे, हाँ। क्योंकि जो कुछ भी अय्यूब ने किया एवं प्रकाशित किया उनके तथ्य को किसी भी मनुष्य या शैतान के द्वारा नकारा नहीं जा सकता है। वे शैतान पर अय्यूब की विजय के अत्यंत सामर्थी प्रमाण हैं। यह प्रमाण अय्यूब में उत्पन्न हुआ था, और यह वह प्रथम गवाही थी जिसे परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किया गया था। इस प्रकार, जब अय्यूब शैतान की परीक्षाओं पर विजयी हुआ और परमेश्वर के लिए गवाही दी, तो परमेश्वर ने अय्यूब में आशा देखी, और उसके हृदय को अय्यूब से सुकून मिला था। उत्पत्ति के समय से लेकर अय्यूब तक, यह पहला अवसर था जिसमें परमेश्वर ने अनुभव किया कि सुकून क्या था, और मनुष्य के द्वारा सुकून पाने का क्या अर्थ था, और यह पहली बार था जब उसने सच्ची गवाही को देखा, और उसे हासिल किया जो उसके लिए दी गई थी।
मैं भरोसा करता हूँ कि, अय्यूब की गवाही और अय्यूब के विभिन्न पहलुओं के लेखों को सुनने के बाद, अधिकांश लोगों के पास उस मार्ग के लिए जो उनके सामने है योजनाएं होंगी। इस प्रकार मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि अधिकांश लोग जो चिंता एवं भय से भरे हुए हैं वे धीरे धीरे शरीर एवं दिमाग दोनों में राहत महसूस करेंगे, और थोड़ा थोड़ा करके आराम का एहसास करना शुरू करेंगे।
निम्नलिखित अंश भी अय्यूब के विषय में लेख हैं। आओ हम लगातार पढ़ते जाएं।
4. अय्यूब ने कानो कान परमेश्वर के विषय में सुना था
(अय्यूब 9:11) देखो, वह मेरे सामने से होकर तो चलता है परन्तु मुझको नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूझ ही नहीं पड़ता है।
(अय्यूब 23:8-9) देखो, मैं आगे जाता हूँ परन्तु वह नहीं मिलता; मैं पीछे हटता हूँ, परन्तु वह दिखाई नहीं पड़ता; जब वह बाईं ओर काम करता है, तब वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह दाहिनी ओर ऐसा छिप जाता है, कि मुझे वह दिखाई ही नहीं पड़ता।
(अय्यूब 42:2-6) मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरी युक्तियों में से कोई रुक नहीं सकती। तू ने पूछा, "तू कौन है जो ज्ञानरहित होकर युक्ति पर परदा डालता है?" परन्तु मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा, अर्थात् जो बातें मेरे लिये अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिनको मैं जानता भी नहीं था। तू ने कहा, "मैं निवेदन करता हूँ सुन, मैं कुछ कहूँगा, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, तू मुझे बता।" मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आँखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूल और राख में पश्चाताप करता हूँ।
हालाँकि परमेश्वर ने अय्यूब पर अपने आपको प्रकट नहीं किया था, फिर भी अय्यूब ने परमेश्वर की संप्रभुता पर विश्वास किया
इन वचनों का मुख्य बिन्दु क्या है? क्या तुम लोगों में से किसी ने यह महसूस किया कि यहाँ पर एक तथ्य है? पहला, अय्यूब को कैसे पता चला कि एक परमेश्वर है? और उसे कैसे पता चला कि स्वर्ग एवं पृथ्वी और सभी चीज़ों पर परमेश्वर शासन करता है? एक अंश है जो इन दोनों प्रश्नों का उत्तर देता है: "मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आँखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूल और राख में पश्चाताप करता हूँ" (अय्यूब 42:5-6)। इन वचनों से हम यह सीखते हैं कि, अपनी आंखों से परमेश्वर को देखने के बजाए, अय्यूब ने महापुरुषों से परमेश्वर के बारे में सीखा था। यह इन परिस्थितियों के अंतर्गत था कि उसने परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करना प्रारम्भ किया, जिसके बाद उसने अपने जीवन में, और सभी चीज़ों के मध्य में परमेश्वर के अस्तित्व की पुष्टि की थी। यहाँ पर एक निर्विवादित तथ्य है—और वह क्या है? परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करने के योग्य होने के बावजूद, अय्यूब ने कभी परमेश्वर को नहीं देखा था। क्या वह इसमें आज के समय के लोगों के समान ही नहीं था? अय्यूब ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा था, जिसका अर्थ है कि यद्यपि उसने परमेश्वर के बारे में सुना था, फिर भी वह नहीं जानता था कि परमेश्वर कहाँ था, या परमेश्वर किस के समान था, या परमेश्वर क्या कर रहा था, जो आत्मनिष्ठ कारक हैं; वस्तुनिष्ठ रूप से कहें, हालाँकि वह परमेश्वर का अनुसरण करता था, फिर भी परमेश्वर कभी उसके सामने प्रकट नहीं हुआ था और कभी उससे बातचीत नहीं की थी। क्या यह एक तथ्य नहीं है? हालाँकि परमेश्वर ने अय्यूब से बातचीत नहीं की, या उसे कोई आदेश नहीं दिया, फिर भी अय्यूब ने परमेश्वर के अस्तित्व को देखा था, और सभी चीज़ों के मध्य और उन महापुरुषों में उसकी संप्रभुता को देखा था जिसके अंतर्गत उसने परमेश्वर के बारे में कानो कान सुना था, जिसके बाद उसने परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का जीवन का प्रारम्भ किया। शुरूआती बातें एवं प्रक्रिया ऐसी ही थीं जिनके द्वारा अय्यूब ने परमेश्वर का अनुसरण किया था। परन्तु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किस प्रकार परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह अपनी ईमानदारी के प्रति किस प्रकार दृढ़ता से स्थिर रहा, क्योंकि परमेश्वर तब भी उस पर प्रकट नहीं हुआ। आओ हम इस अंश को पढ़ें। उसने कहा, "देखो, वह मेरे सामने से होकर तो चलता है परन्तु मुझको नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूझ ही नहीं पड़ता है" (अय्यूब 9:11)। जो कुछ ये वचन कह रहे हैं वह यह है कि शायद अय्यूब ने परमेश्वर को अपने आसपास महसूस किया था या शायद नहीं किया था—परन्तु वह कभी भी परमेश्वर को नहीं देख सका था। ऐसे भी समय थे जब उसने कल्पना की कि परमेश्वर उसके सामने से जा रहा था, या कार्य कर रहा था, या मनुष्य को मार्गदर्शन दे रहा था, परन्तु वह कभी नहीं जान पाया था। परमेश्वर तब मनुष्य के पास आ जाता है जब वह इसकी उम्मीद नहीं करता है; मनुष्य नहीं जानता है कि कब परमेश्वर उसके पास आ जाता है, और वह कहाँ से उसके पास आ जाता है, क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को देख नहीं सकता है, और इस प्रकार, मनुष्य के लिए परमेश्वर छिपा हुआ है।
परमेश्वर में अय्यूब का विश्वास नहीं हिला क्योंकि परमेश्वर उससे छिपा हुआ था
पवित्र शास्त्र के निम्नलिखित अंश में, तब अय्यूब कहता है, "देखो, मैं आगे जाता हूँ परन्तु वह नहीं मिलता; मैं पीछे हटता हूँ, परन्तु वह दिखाई नहीं पड़ता; जब वह बाईं ओर काम करता है, तब वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह दाहिनी ओर ऐसा छिप जाता है, कि मुझे वह दिखाई ही नहीं पड़ता" (अय्यूब 23:8-9)। इस लेख में, हम यह सीखते हैं कि अय्यूब के अनुभवों में, परमेश्वर पूरे समय उससे छिपा हुआ था; परमेश्वर उसके सामने खुलकर प्रकट नहीं हुआ था, न ही उसने खुलकर उससे कोई बातचीत की थी, फिर भी परमेश्वर के अस्तित्व के विषय में अय्यूब अपने हृदय में आश्वस्त था। उसने हमेशा से विश्वास किया था कि शायद परमेश्वर उसके सामने चल रहा था, या शायद उसके बगल में रहकर कार्य कर रहा था, और यह कि हालाँकि वह परमेश्वर को देख नहीं सकता था, फिर भी परमेश्वर उसके बगल में था और उसकी सभी चीज़ों पर शासन कर रहा था। अय्यूब ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा था, परन्तु वह अपने विश्वास के प्रति सच्चाई में बना रह सकता था, जो कोई और व्यक्ति नहीं कर सकता था। और वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते थे? क्योंकि परमेश्वर ने अय्यूब से बात नहीं की थी, या उस पर प्रकट नहीं हुआ था, और यदि उसने सचमुच में विश्वास नहीं किया होता, तो वह आगे नहीं बढ़ सकता था, न ही वह परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को दृढ़ता से थामे रह सकता था। क्या यह सही नहीं है? तू कैसा महसूस करता है जब तू पढ़ता है कि अय्यूब इन वचनों को बोल रहा है? क्या तू महसूस करता है कि अय्यूब की खराई एवं सीधाई, और उसकी धार्मिकता सही है, और परमेश्वर की ओर से कोई अतिश्योक्ति नहीं है? भले ही परमेश्वर ने अय्यूब से अन्य लोगों के समान ही व्यवहार किया था, और उसके सामने प्रकट नहीं हुआ या उससे बातचीत नहीं की थी, तब भी अय्यूब अपनी ईमानदारी को दृढ़ता से थामे हुए था, वह तब भी परमेश्वर की संप्रभुता पर विश्वास करता था, और इससे बढ़कर, वह परमेश्वर को ठेस पहुंचाने के विषय में अपने भय के फलस्वरूप लगातार होमबलि चढ़ाता था और परमेश्वर से प्रार्थना किया करता था। परमेश्वर को देखे बिना भी परमेश्वर का भय मानने की अय्यूब की योग्यता में, हम देखते हैं कि वह सकारात्मक चीज़ों से कितना प्रेम करता था, और उसका वास्तविक विश्वास कितना दृढ़ था। उसने परमेश्वर के अस्तित्व को नहीं नकारा क्योंकि परमेश्वर उससे छिपा हुआ था, न ही उसने अपने विश्वास को खोया और परमेश्वर को छोड़ा क्योंकि उसने उसे कभी देखा ही नहीं था। इसके बजाए, सभी चीज़ों पर शासन करने के लिए परमेश्वर के छिपे हुए कार्यों के बीच, उसने परमेश्वर के अस्तित्व को महसूस किया, और परमेश्वर की संप्रभुता एवं सामर्थ का एहसास किया था। उसने ईमानदार होना नहीं त्यागा क्योंकि परमेश्वर छिपा हुआ था, न ही उसने परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को छोड़ा क्योंकि परमेश्वर उसके सामने कभी प्रकट नहीं हुआ था। अय्यूब ने कभी नहीं कहा कि परमेश्वर अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए उसके सामने खुलकर प्रकट हो, क्योंकि उसने पहले ही सभी चीज़ों में परमेश्वर की संप्रभुता को देख लिया था, और वह विश्वास करता था कि उसने उन आशीषों एवं उस अनुग्रह को हासिल किया था जिन्हें अन्य लोगों ने हासिल नहीं किया था। हालाँकि परमेश्वर उससे छिपा रहा, फिर भी परमेश्वर में अय्यूब का विश्वास कभी नहीं डगमगाया था। इस प्रकार, उसने उन वस्तुओं की फसल काटी जिन्हें अन्य लोगों ने प्राप्त नहीं किया था: परमेश्वर की स्वीकृति और परमेश्वर की आशीषें।
अय्यूब परमेश्वर के नाम को धन्य कहता और आशीषों या विपत्तियों के बारे में नहीं सोचता
एक तथ्य है जिसकी ओर पवित्र शास्त्र की अय्यूब की कहानियों में कभी भी संकेत नहीं किया गया है, जिस पर आज हम ध्यान केंद्रित करेंगे। हालाँकि अय्यूब ने परमेश्वर को कभी भी नहीं देखा था या अपने कानों से परमेश्वर के वचनों को कभी नहीं सुना था, फिर भी अय्यूब के हृदय में परमेश्वर का एक स्थान था। और परमेश्वर के प्रति अय्यूब की मनोवृत्ति क्या थी? यह वैसा ही था जैसा पहले संकेत किया गया था, "यहोवा का नाम धन्य है।" उसके द्वारा परमेश्वर के नाम को धन्य कहना बिना किसी शर्त, बिना किसी योग्यता, और बिना किसी तर्क के था। हम देखते हैं कि अय्यूब ने अपना हृदय परमेश्वर को दिया था, यह अनुमति देते हुए कि परमेश्वर के द्वारा उसका नियंत्रण किया जाए; वह सब जो वह सोचता था, वह सब जिसका निर्णय वह लेता था, और वह सब जिनकी योजना उसने अपने हृदय में बनाई थी उसे परमेश्वर पर डाल दिया गया था और उसे परमेश्वर से दूर रखकर बन्द नहीं किया गया था। उसका हृदय परमेश्वर के विरुद्ध नहीं हुआ, और उसने परमेश्वर से कभी नहीं कहा कि वह उसके लिए कुछ करे या उसे कोई चीज़ दे, और उसने फिज़ूल की इच्छाओं को पनाह नहीं दी कि वह परमेश्वर परमेश्वर की आराधना से कोई भी चीज़ हासिल कर लेगा। उसने व्यापार के विषय में परमेश्वर कोई बातचीत नहीं की, और परमेश्वर से कोई मांग एवं विनती नहीं की। वह सभी चीज़ों पर शासन करने के लिए परमेश्वर की बड़ी सामर्थ एवं अधिकार के कारण परमेश्वर के नाम की प्रशंसा करता था, और वह इस बात पर आश्रित नहीं था कि उसे आशीषें हासिल होंगी या उसे आपदाओं के द्वारा मारा जाएगा। उसने विश्वास किया कि इसकी परवाह किए बगैर कि परमेश्वर लोगों को आशीष देता है या उनके ऊपर आपदा लाता है, परमेश्वर की सामर्थ्य एवं उसका अधिकार नहीं बदलेगा, और इस प्रकार, किसी व्यक्ति की परिस्थितियों की परवाह किए बगैर, परमेश्वर के नाम की प्रशंसा की जानी चाहिए। ऐसे मनुष्य को परमेश्वर की संप्रभुता के कारण परमेश्वर के द्वारा आशीषित किया जाता है, और जब विपत्ति उसके ऊपर आती है, तो वह भी परमेश्वर की संप्रभुता के कारण ही आती है। परमेश्वर की सामर्थ्य एवं अधिकार मनुष्य के ऊपर शासन करती है और मनुष्य की हर एक चीज़ को व्यवस्थित करती है; मनुष्य के तक़दीर की अनिश्चित्ताएं परमेश्वर की सामर्थ्य एवं अधिकार का प्रगटीकरण हैं, और किसी व्यक्ति के दृष्टिकोण की परवाह किए बगैर, परमेश्वर के नाम की प्रशंसा की जानी चाहिए। यह वही है जिसका अय्यूब ने अपने जीवन के वर्षों के दौरान अनुभव किया था और जाना था। अय्यूब के सभी विचार और कार्य परमेश्वर के कानों तक पहुंचे थे, और परमेश्वर के सामने आए थे, और परमेश्वर के द्वारा उन्हें उतने ही महत्वपूर्ण रूप से देखा गया था। परमेश्वर ने अय्यूब के इस ज्ञान को संजोकर रखा था, और ऐसा हृदय होने के लिए अय्यूब को सहेजकर रखा था। ऐसे हृदय ने हमेशा, एवं सभी स्थानों में परमेश्वर की आज्ञाओं का इंतज़ार किया था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि समय या स्थान क्या था जो कुछ भी उसके ऊपर आया था इसने उसका स्वागत किया था। अय्यूब ने परमेश्वर से कोई मांग नहीं की थी। जो भी उसने स्वयं से मांगा था वह यह था कि वह उन सभी इंतज़ामों का इंतज़ार करे, उन्हें स्वीकार करे, और उनको माने जो परमेश्वर से आई थीं; अय्यूब ने विश्वास किया कि यह उसका कर्तव्य था, और यह बिलकुल वही था जिसे परमेश्वर द्वारा मांगा गया था। अय्यूब ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा था, न ही उसे कोई वचन कहते हुए, कोई आज्ञा देते हुए, कोई शिक्षा देते हुए, या कोई निर्देश देते हुए सुना था। आज के शब्दों में, उसके लिए परमेश्वर के प्रति ऐसे ज्ञान एवं मनोवृत्ति को धारण करने के योग्य होना जबकि परमेश्वर ने उसे कोई अद्भुत प्रकाशन, मार्गदर्शन, और सत्य के लिहाज से कोई प्रावधान नहीं दिया था—बहुत ही बहुमूल्य था, और उसके लिए ऐसी चीज़ों को प्रदर्शित करना परमेश्वर के लिए काफी था, और परमेश्वर के द्वारा उसकी गवाही की प्रशंसा की गई थी, और परमेश्वर के द्वारा उसकी गवाही को हृदय में संजोकर रखा गया था। अय्यूब ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा या व्यक्तिगत रूप से उसे कोई शिक्षा देते हुए नहीं सुना था, परन्तु परमेश्वर के लिए उसका हृदय और वह स्वयं उन लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक अनमोल थे जो परमेश्वर के सामने केवल गहरे सिद्धान्तों की बात कर सकते थे, जो केवल घमण्ड कर सकते थे, और केवल बलिदानों को चढ़ाने की बात कर सकते थे, परन्तु जिनके पास परमेश्वर का असली ज्ञान कभी नहीं था, और उन्होंने सचमुच में परमेश्वर का भय कभी नहीं माना था। क्योंकि अय्यूब का हृदय शुद्ध और परमेश्वर से छिपा हुआ नहीं था, और उसकी मानवता ईमानदार एवं उदार थी, और वह न्याय से और उससे प्रेम करता था जो सकारात्मक था। केवल इस प्रकार का व्यक्ति ही, जिसने ऐसे हृदय एवं मनुष्यत्व को धारण किया था, उस मार्ग का अनुसरण करने के योग्य था, और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में समर्थ था। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर की संप्रभुता को देख सकता था, उसके अधिकार एवं सामर्थ्य को देख सकता था, और ऐसा व्यक्ति ही उसकी संप्रभुता एवं इंतज़ामों के प्रति आज्ञाकारिता को हासिल करने के योग्य था। केवल ऐसा व्यक्ति ही सचमुच में परमेश्वर के नाम को धन्य कह सकता था। यह इसलिए है क्योंकि उसने यह नहीं देखा था कि परमेश्वर उसे आशीष देगा या उसके ऊपर विपत्ति लाएगा, क्योंकि वह जानता था कि हर एक चीज़ को परमेश्वर के हाथ के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, और यह कि मनुष्य के लिए चिंता करना मूर्खता, अज्ञानता, या तर्कहीनता का एक चिन्ह है, और सभी चीज़ों के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य के प्रति सन्देह का एक चिन्ह है, और परमेश्वर का भय न मानने एक चिन्ह है। अय्यूब का ज्ञान बिलकुल वैसा ही था जैसा परमेश्वर चाहता था। अतः, क्या तुम लोगों की अपेक्षा अय्यूब के पास परमेश्वर के विषय में बड़ा सैद्धांतिक ज्ञान था? क्योंकि उस समय परमेश्वर का कार्य और उसके कथन बहुत ही कम थे, और परमेश्वर के ज्ञान को हासिल करना कोई आसान बात नहीं थी। अय्यूब के द्वारा हासिल की गई ऐसी उपलब्धि कोई साहसिक कार्य नहीं था। उसने परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं किया था, न ही कभी परमेश्वर को बोलते हुए सुना था, या न ही परमेश्वर के चेहरे को देखा था। यह कि वह इस योग्य था कि उसके पास परमेश्वर के प्रति ऐसी मनोवृत्ति हो जो पूरी तरह से उसकी मानवता एवं उसके व्यक्तिगत अनुसरण का परिणाम था, ऐसी मानवता एवं अनुसरण जिन्हें आज के लोगों के द्वारा धारण नहीं किया जाता है। इस प्रकार, उस युग में, परमेश्वर ने कहा, "क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा मनुष्य और कोई नहीं है।" उस युग में, परमेश्वर ने पहले से ही उसके विषय में ऐसा आंकलन कर लिया था, और वह ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचा था। आज यह कितना अधिक सत्य होगा?
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