परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

भाग पांच के क्रम में

अय्यूब का असली चेहरा: सच्चा, शुद्ध, और बिना किसी असत्य का

आओ हम निम्नलिखित अंश को पढ़ें: "तब शैतान यहोवा के सामने से निकला, और अय्यूब को पाँव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ों से पीड़ित किया। तब अय्यूब खुजलाने के लिये एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया" (अय्यूब 2:7-8)। यह अय्यूब के आचरण का चित्रण है जब उसके शरीर पर फोड़े निकल आए थे। इस समय, अय्यूब दर्द सहते हुए राख पर बैठ गया। किसी ने भी उससे व्यवहार नहीं की, और किसी ने भी उसके शरीर के दर्द को कम करने के लिए सहायता नहीं की; इसके बजाए, उसने अपने फोड़ों की सतह को खुजाने के लिए एक ठीकरे का इस्तेमाल किया। ऊपरी तौर पर, यह अय्यूब की पीड़ा का एक चरण था, और इसका उसकी मानवता एवं परमेश्वर के भय से कोई नाता नहीं है, क्योंकि अय्यूब ने इस समय अपनी मनःस्थिति एवं विचारों को प्रकट करने के लिए शब्दों का प्रयोग नहीं किया। फिर भी, अय्यूब के कार्य एवं उसका आचरण अभी भी उसकी मानवता की सच्ची अभिव्यक्ति है। पिछले अध्याय के लेख में हमने पढ़ा था कि अय्यूब पूर्व के सभी मनुष्य में सबसे बड़ा था। इसी बीच, दूसरे अध्याय का यह अंश हमें यह दिखाता है कि पूर्व के इस महान व्यक्ति को राख में बैठकर अपने आपको खुजाने के लिए एक ठीकरा लेना पड़ा। क्या इन दोनों चित्रण के बीच स्पष्ट अन्तर नहीं है? यह ऐसा अन्तर है जो हमें अय्यूब के असली व्यक्तित्व को दिखाता है उसकी प्रतिष्ठा एवं हैसियत के बावजूद, उसने कभी उनसे प्रेम नहीं किया या उन पर कोई ध्यान नहीं दिया; उसने परवाह नहीं की कि अन्य लोग उसकी प्रतिष्ठा को कैसे देखते हैं, न ही वह इस विषय में चिंतित था कि उसके कार्य एवं आचरण का उसकी प्रतिष्ठा पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा या नहीं; वह पद प्रतिष्ठा के धन-दौलत में लिप्त नहीं हुआ, न ही उसने उस महिमा का आनन्द उठाया जो हैसियत एवं प्रतिष्ठा से आया था। उसने सिर्फ अपने मूल्यों की और यहोवा परमेश्वर की नज़रों में अपने जीवन को जीने के महत्व की चिंता की थी। अय्यूब का असली व्यक्तित्व ही उसकी हस्ती थी: उसने प्रसिद्धि एवं सौभाग्य से प्रेम नहीं किया था, और वह प्रसिद्धि एवं सौभाग्य के लिए नहीं जीता था; वह सच्चा, शुद्ध और बिना किसी असत्य के था।

अय्यूब के प्रेम एवं नफरत का अलगाव

अय्यूब और उसकी पत्नी के बीच हुए संवाद में उसकी मानवता के एक और पहलु को प्रदर्शित किया गया है: "तब उसकी स्त्री उससे कहने लगी, 'क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्‍वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।' उसने उससे कहा, 'तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?'" (अय्यूब 2:9-10)। जिस पीड़ा को वह सह रहा था उसे देखते हुए, अय्यूब की पत्नी ने उसे इस पीड़ा से बच निकलने में सहायता करने के लिए सलाह देने की कोशिश की थी—फिर भी उन "भले इरादों" को अय्यूब की मंजूरी प्राप्त नहीं हुई; इसके बजाए, उन्होंने उसके क्रोध को भड़का दिया, क्योंकि उसने यहोवा परमेश्वर में उसके विश्वास एवं उसके प्रति उसकी आज्ञाकारिता का इंकार किया था, और साथ ही यहोवा परमेश्वर के अस्तित्व को भी नकारा था। यह अय्यूब के लिए असहनीय था कि वह दूसरों के विषय में कुछ भी न कहे, क्योंकि उसने स्वयं को ऐसा कुछ करने की अनुमति कभी नहीं दी थी जिससे परमेश्वर का विरोध हुआ हो या उसे तकलीफ पहुंची हो। वह कैसे चुपचाप रह सकता था जब उसने देखा कि अन्य लोगों ने ऐसे शब्दों को कहा जो परमेश्वर की निन्दा एवं उसका अपमान था? इस प्रकार, उसने अपनी पत्नी को "मूर्ख स्त्री" कहा। अपनी पत्नी के प्रति अय्यूब की मानसिकता क्रोध एवं घृणा, साथ ही साथ निन्दा एवं फटकार की थी। यह प्रेम एवं घृणा के बीच अन्तर करने के विषय में अय्यूब के मनुष्यत्व की स्वाभाविक अभिव्यक्ति थी, और यह सच्चे मनुष्यत्व का असली प्रदर्शन था। अय्यूब ने न्याय के एक एहसास को धारण किया था—ऐसा एहसास जिससे उसने दुष्टता की बयार एवं लहर से नफरत की, और बेतुकी झूठी शिक्षा, भद्दे विवादों, एवं ऊटपटांग अभिकथनों से घृणा की, उनकी भर्त्सना एवं उन्हें अस्वीकार किया, और ऐसे एहसास ने उसे अनुमति दी कि वह तब भी अपने सही सिद्धान्तों एवं उद्देश्य को सच्चाई से थामे रहे जब उसे भीड़ के द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था और उसे उन लोगों के द्वारा छोड़ किया गया था जो उसके करीबी थे।

अय्यूब की उदारता एवं ईमानदारी

जबकि, अय्यूब के व्यवहार में हम उसके मनुष्यत्व के विभिन्न पहलुओं की अभिव्यक्ति को देख सकते हैं, तो हम अय्यूब के मनुष्यत्व के किस पहलु को देखते हैं जब उसने अपने जन्म के दिन को कोसने के लिए अपना मुंह खोला था? यह वह विषय है जिस पर हम नीचे बातचीत करेंगे।

ऊपर, मैंने अय्यूब के द्वारा अपने जन्म के दिन को कोसने की शुरुआत के विषय में बात की है। तुम लोग इसमें क्या देखते हो? यदि अय्यूब कठोर हृदय, और बिना प्रेम के होता, यदि वह ठंडा और भावनारहित होता, एवं मानवता से रहित होता, तो क्या उसने परमेश्वर के हृदय की इच्छा की परवाह की होती? और क्या परमेश्वर के हृदय की परवाह करने के फलस्वरूव वह अपने जन्म के दिन को कोस सकता था? दूसरे शब्दों में, यदि अय्यूब कठोर हृदय का होता और मानवता से रहित होता, तो क्या वह परमेश्वर की पीड़ा से परेशान हो सकता था? क्या वह अपने जन्म के दिन को कोस सकता था क्योंकि परमेश्वर उसके द्वारा व्यथित हुआ था? इसका उत्तर है, बिल्कुल भी नहीं! क्योंकि वह दयालु हृदय का था, इसलिए अय्यूब ने परमेश्वर के हृदय की परवाह की थी; क्योंकि वह परमेश्वर के हृदय की परवाह करता था, इसलिए अय्यूब ने परमेश्वर की पीड़ा का एहसास किया; क्योंकि वह दयालु हृदय का था, इसलिए उसने परमेश्वर की पीड़ा का एहसास करने के परिणामस्वरूप अत्याधिक यातना सही; क्योंकि अय्यूब ने परमेश्वर की पीड़ा का एहसास किया; वह अपने जन्म के दिन से घृणा करने लगा, और इस प्रकार उसने अपने जन्म के दिन को कोसा। बाहरी लोगों के लिए, अय्यूब की परीक्षा के दौरान उसका सम्पूर्ण आचरण एक आदर्श है। केवल उसके द्वारा अपने जन्म के दिन को कोसना ही उसकी खराई एवं सीधाई के ऊपर एक प्रश्न चिन्ह अंकित करता है, या एक एक अलग ही आंकलन प्रदान करता है। वास्तव में, यह अय्यूब की मानवता के मूल-तत्व की सबसे सच्ची अभिव्यक्ति थी। उसकी मानवता का मूल-तत्व छिपा हुआ या बंद किया हुआ नहीं था, या किसी अन्य के द्वारा संशोधित किया हुआ नहीं था। जब उसने अपने जन्म के दिन को धिक्कारा, तो उसने अपने हृदय की गहराई में उदारता एवं ईमानदारी को प्रदर्शित किया; वह एक ऐसे सोते के समान था जिसका पानी इतना साफ एवं पारदर्शी था कि अपने तल को प्रदर्शित करता था।

अय्यूब के बारे में यह सब कुछ सीखने के बाद, बहुत से लोगों के पास निःसन्देह अय्यूब की मानवता के मूल-तत्व के विषय में निष्पक्ष रूप से एक सटीक एवं वस्तुनिष्ठ (तथ्यों पर आधारित) आंकलन होगा। उनके पास अय्यूब की खराई एवं सीधाई के विषय में एक गहरी, व्यावहारिक, एवं और अधिक उन्नत समझ एवं प्रशंसा भी होनी चाहिए जिसके विषय में परमेश्वर के द्वारा बोला गया था। मुझे आशा है, कि यह समझ एवं प्रशंसा लोगों को परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की रीति की शुरुआत करने में सहायता करेगी।

परमेश्वर के द्वारा अय्यूब को शैतान को सौंपना और परमेश्वर के कार्य के उद्देश्यों के मध्य सम्बन्ध

हालाँकि अधिकांश लोग यह पहचानते हैं कि अय्यूब एक खरा एवं सीधा पुरुष था, और यह कि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, यह पहचान उन्हें परमेश्वर के इरादे की एक बड़ी समझ प्रदान नहीं करता है। ठीक उसी समय अय्यूब के मनुष्यत्व एवं अनुसरण से ईर्ष्या करते हुए, वे परमेश्वर के बारे में निम्नलिखित प्रश्न करते हैं: अय्यूब इतना खरा एवं सीधा था, लोग उससे इतना प्यार करते थे, तो परमेश्वर ने क्यों उसे शैतान को सौंप दिया और उसे इतनी अधिक पीड़ा के आधीन किया? ऐसे प्रश्नों का लोगों के हृदयों में आना लाजिमी है—या उसके बजाए, यह सन्देह वही प्रश्न है जो अनेक लोगों के हृदयों में है। जबकि इसने इतने सारे लोगों को हैरान कर दिया है, तो हमें इस प्रश्न को मेज पर रखना और इसे सही तरह से समझाना होगा।

हर एक कार्य जो परमेश्वर करता है वह आवश्यक है, और वह असाधारण महत्व रखता है, क्योंकि वह सब कुछ जो परमेश्वर मनुष्य में करता है वह उसके प्रबंधन एवं मानवजाति के उद्धार से सम्बन्धित होता है। स्वाभाविक रूप से, वह कार्य जिसे परमेश्वर ने अय्यूब में किया था वह कुछ अलग नहीं है, भले ही अय्यूब परमेश्वर की दृष्टि में खरा एवं सीधा था। दूसरे शब्दों में, इसके बावजूद कि जो कुछ परमेश्वर करता है या वे माध्यम जिनके द्वारा वह इसे करता है, उस कीमत, या उसके उद्देश्य के बावजूद, उसके कार्यों का उद्देश्य बदलता नहीं है। उसका उद्देश्य है कि वह मनुष्य के भीतर परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर की अपेक्षाओं, और मनुष्य के लिए परमेश्वर की इच्छा का काम करे; दूसरे शब्दों में, उसका उद्देश्य है कि मनुष्य के भीतर वह सब कुछ किया जाए जिसके विषय में परमेश्वर विश्वास करता है कि ये उसके चरणों के अनुसार रचनात्मक हैं, उसका उद्देश्य है कि मनुष्य को सक्षम बनाया जाए ताकि वह परमेश्वर के हृदय को समझे और परमेश्वर की हस्ती को बूझे, और उसे अनुमति दिया जाए ताकि वह परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों को माने, और इस प्रकार मनुष्य को अनुमति दिया जाए कि वह परमेश्वर के भय और बुराई के परित्याग को हासिल करे—जो भी वह करता है उसमें यह सब परमेश्वर के उद्देश्य का एक पहलु है। दूसरा पहलु यह है कि, क्योंकि शैतान एक महीन परत है और परमेश्वर के कार्य में एक मोहरा है, इसलिए मनुष्य को अकसर शैतान को दे दिया जाता है; यह वह साधन है जिसे परमेश्वर उपयोग करता है ताकि शैतान की परीक्षाओं एवं हमलों के बीच लोगों को शैतान की दुष्टता, कुरूपता एवं घिनौनेपन को देखने की अनुमति दे, इस प्रकार लोग शैतान से घृणा करने लग जाते हैं और उसे पहचान जाते हैं जो नकारात्मकता है। यह प्रक्रिया उन्हें अनुमति देती है कि वे धीरे धीरे स्वयं को शैतान के नियन्त्रण से, और शैतान के आरोपों, हस्तक्षेप एवं आक्रमणों से स्वतन्त्र करें—जब तक, परमेश्वर के वचन के कारण, परमेश्वर के विषय में उनके ज्ञान एवं आज्ञाकारिता के कारण, और परमेश्वर में उनके विश्वास एवं भय के कारण, वे शैतान के हमलों के ऊपर विजय न पा लें, और शैतान के आरोपों के ऊपर विजय न पा लें; केवल तभी उन्हें पूरी तरह से शैतान के प्रभुत्व से छुड़ा लिया जाएगा। लोगों के छुटकारे का अर्थ है कि शैतान को हरा दिया गया है; इसका अर्थ है कि वे आगे से शैतान के मुंह का भोजन नहीं हैं—उन्हें निगलने के बजाय, शैतान ने उन्हें छोड़ दिया है। यह इसलिए है क्योंकि ऐसे लोग सच्चे हैं, क्योंकि उनके पास विश्वास, आज्ञाकारिता एवं परमेश्वर के प्रति भय है, और क्योंकि उन्होंने शैतान के साथ पूरी तरह से नाता तोड़ लिया है। वे शैतान को लज्जित करते हैं, वे शैतान को डरपोक बना देते हैं, और वे पूरी तरह से शैतान को हरा देते हैं। परमेश्वर का अनुसरण करने में उनकी आस्था ने, और परमेश्वर के भय एवं आज्ञाकारिता ने शैतान को हरा दिया है, और शैतान को पूरी तरह से उन्हें छोड़ देने के लिए मजबूर किया है। केवल ऐसे ही लोगों को सचमुच में परमेश्वर के द्वारा हासिल किया गया है, और मनुष्य को बचाने के लिए यही परमेश्वर का चरम उद्देश्य है। यदि वे उद्धार पाने की इच्छा करते हैं, और यह कामना करते हैं कि उन्हें पूरी तरह से परमेश्वर के द्वारा हासिल किया जाए, तो वे सभी जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उन्हें शैतान की परीक्षाओं और बड़े एवं छोड़े हमलों का सामना करना होगा। ऐसे लोग जो इन परीक्षाओं एवं आक्रमणों से उभरकर निकलेंगे और जो शैतान को पूरी तरह से हराने में समर्थ हैं वे ही ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा बचाया गया है। कहने का तात्पर्य है, वे लोग जिन्हें परमेश्वर के लिए बचाया गया है वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की परीक्षाओं से होकर गुज़रे हैं, शैतान के द्वारा अनगिनित बार जिनकी परीक्षा ली गई और जिन पर आक्रमण किया गया है। ऐसे लोग जिन्हें परमेश्वर के लिए परमेश्वर की समझ के लिए और परमेश्वर की इच्छा के लिए और अपेक्षाओं के लिए बचाया गया है, जो चुपचाप परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों को स्वीकार करते हैं, और वे शैतान के प्रलोभनों के बीच परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को नहीं छोड़ते हैं। ऐसे लोग जिन्हें परमेश्वर के लिए बचाया गया है वे ईमानदारी को धारण करते हैं, वे दयालु हैं, वे प्रेम एवं घृणा के बीच अन्तर करते हैं, उनके पास न्याय का एहसास है और वे न्यायसंगत हैं, और वे परमेश्वर की परवाह करने और वह सब संजोकर रखने के योग्य हैं जो परमेश्वर की और से है। ऐसे लोगों को शैतान के द्वारा बांधा नहीं गया है, उनकी जासूसी नहीं की गई है, उन पर दोष नहीं लगाया गया है, या उनका शोषण नहीं किया गया है, वे पूरी तरह से स्वतन्त्र हैं, उन्हें पूरी तरह से छुड़ाया एवं मुक्त किया गया है। अय्यूब स्वतन्त्रता का मात्र ऐसा ही एक मनुष्य था, और परमेश्वर ने किस लिए उसे शैतान को सौंप दिया था यह निश्चित रूप से उसका महत्व है।

शैतान के द्वारा अय्यूब का शोषण किया गया था, परन्तु उसने अनन्त काल की स्वतन्त्रता भी हासिल की थी, और यह अधिकार हासिल किया था कि उसे फिर कभी शैतान की भ्रष्टता, शोषण, एवं आरोपों के अधीन नहीं किया जाएगा, इसके बजाय वह परमेश्वर के मुख के प्रकाश में आज़ादी से एवं भारमुक्त होकर जीवन बिताएगा, और उसके लिए परमेश्वर की आशीषों के मध्य जीवन बिताएगा। कोई भी इस अधिकार को छीन, या नष्ट नहीं कर सकता है, या इसे प्राप्त नहीं कर सकता है। यह अय्यूब को परमेश्वर के प्रति उसके विश्वास, दृढ़ निश्चय, एवं आज्ञाकारिता के बदले में दिया गया था; अय्यूब ने पृथ्वी पर आनन्द एवं प्रसन्नता को अर्जित करने के लिए, और उस अधिकार एवं पात्रता को अर्जित करने के लिए अपने जीवन की कीमत चुकाई थी, जिसे स्वर्ग के द्वारा नियुक्त एवं पृथ्वी के द्वारा स्वीकार किया गया था, कि वह परमेश्वर के एक सच्चे जीवधारी के रूप में बिना किसी हस्तक्षेप के पृथ्वी पर सृष्टिकर्ता की आराधना करे। साथ ही यह अय्यूब द्वारा सहन की गई परीक्षाओं का सबसे बड़ा परिणाम भी था।

जब लोगों को अभी तक बचाया नहीं गया है, तो शैतान के द्वारा उनके जीवन में अकसर दखल दिया जाता है, और उन्हें नियन्त्रित भी किया जाता है। दूसरे शब्दों में, ऐसे लोग जिन्हें बचाया नहीं गया है वे शैतान के कैदी हैं, उनके पास कोई स्वतन्त्रता नहीं है, उन्हें शैतान के द्वारा छोड़ा नहीं गया है, वे परमेश्वर की आराधना करने के लिए योग्य या पात्र नहीं हैं, शैतान के द्वारा करीब से उनका पीछा किया जाता है और उन पर दुष्टतापूर्वक आक्रमण किया जाता है। ऐसे लोगों के पास कोई खुशी नहीं होती कि वे उसके विषय में बात करें, उनके पास एक सामान्य अस्तित्व के लिए कोई अधिकार नहीं होता है कि वे उसके विषय में बात करें, और इसके अतिरिक्त, उनके पास कोई गरिमा नहीं होती है कि वे उसके विषय में बात करें। यदि तू खड़ा है और परमेश्वर में अपने विश्वास एवं आज्ञाकारिता का उपयोग करते हुए शैतान के साथ युद्ध करे, और हथियार के रूप में परमेश्वर के भय का उपयोग करे कि उससे शैतान के साथ ज़िन्दगी और मौत की जंग लड़े, कुछ इस तरह कि तू शैतान को पूरी तरह से हरा दे और उसे दुम दबाने के लिए मजबूर करे और जब भी वह तुझे देखे तो डर जाए, जिससे वह तेरे विरुद्ध अपने आक्रमणों एवं आरोपों को पूरी तरह से त्याग दे—केवल तभी तू उद्धार पाएगा और स्वतन्त्र होगा। यदि तूने शैतान के साथ पूरी तरह से नाता तोड़ने के लिए दृढ़ संकल्प किया है, परन्तु यदि तू उन हथियारों से पूरी तरह से लैस नहीं होता है जो शैतान को हराने में तेरी सहायता करेंगे, तो तू अभी भी खतरे में होगा; जैसे जैसे समय गुज़रता जाता है, और जब तुझे शैतान के द्वारा इस रीति से प्रताड़ित किया जाता है जिससे तुझमें रत्ती भर भी ताकत नहीं बचती है, फिर भी तू अब भी गवाही देने में असमर्थ है, और तूने अभी भी अपने विरुद्ध शैतान के आरोप एवं आक्रमणों से स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्र नहीं कराया है, तो तेरे पास उद्धार की थोड़ी सी ही आशा होगी। अंत में, जब परमेश्वर के कार्य के समापन की घोषणा की जाती है, तो तू तब भी शैतान के शिकंजे में होगा, अपने आपको स्वतन्त्र करने में असमर्थ होगा, और इस प्रकार तेरे पास कभी भी कोई अवसर या आशा नहीं होगी। तो इसका आशय है कि ऐसे लोग पूरी तरह से शैतान की बंधुवाई में होंगे।

परमेश्वर की परीक्षाओं को स्वीकार करना, शैतान की परीक्षाओं पर विजय प्राप्त करना, और परमेश्वर को अनुमति देना कि वह तेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को हासिल करे

मनुष्य के लिए अपने स्थायी प्रावधान एवं आपूर्ति के कार्य के दौरान, परमेश्वर मनुष्य को अपनी सम्पूर्ण इच्छा एवं अपेक्षाओं को बताता है, और अपने कार्य, स्वभाव, एवं जो उसके पास है एवं जो वह है उन्हें मनुष्य को दिखता है। उद्देश्य यह है कि मनुष्य के डीलडौल को सुसज्जित किया जाए, और मनुष्य को अनुमति दिया जाए कि वह उसका अनुसरण करते हुए परमेश्वर से विभिन्न सच्चाईयों को हासिल करे—ऐसी सच्चाईयां जो हथियार हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा मनुष्य को दिया गया है जिससे वह शैतान से लड़े। इस प्रकार से सुसज्जित होकर, मनुष्य को परमेश्वर की परीक्षाओं का सामना करना होगा। परमेश्वर के पास मनुष्य को परखने के लिए कई माध्यम एवं बढ़िया मार्ग हैं, परन्तु उनमें से प्रत्येक को परमेश्वर के शत्रु अर्थात् शैतान के "सहयोग" की आवश्यकता है। कहने का तात्पर्य है, मनुष्य को हथियार देने के बाद जिससे वह शैतान से युद्ध करे, परमेश्वर मनुष्य को शैतान को सौंप देता है और शैतान को अनुमति देता है कि वह मनुष्य के डीलडौल को "परखे।" यदि मनुष्य शैतान की युद्ध संरचना को तोड़कर आज़ाद हो सकता है, यदि वह शैतान की घेराबंदी से बचकर निकल सकता है और तब भी जीवित रह सकता है, तो मनुष्य ने उस परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया होगा होगा। परन्तु यदि मनुष्य शैतान की युद्ध संरचना को छोड़कर जाने में असफल हो जाता है, और शैतान के आधीन हो जाता है, तो उसने उस परीक्षण को उत्तीर्ण नहीं किया होगा। परमेश्वर मनुष्य के किसी भी पहलु की जांच कर ले, उसकी जांच का मापदंड है कि मनुष्य अपनी गवाही में दृढ़ता से स्थिर रहता है या नहीं जब शैतान के द्वारा उस पर आक्रमण किया जाता है, और उसने परमेश्वर को छोड़ा है या नहीं और शैतान की घेराबंदी के समय शैतान के प्रति समर्पित एवं अधीन हुआ है या नहीं। ऐसा कहा जा सकता है कि मनुष्य को बचाया जा सकता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर होता है कि वह शैतान पर विजय प्राप्त करके उसे हरा सकता है या नहीं, और वह स्वतन्त्रता हासिल कर सकता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर होता है कि वह शैतान के बन्धनों पर विजय प्राप्त करने के लिए, एवं शैतान से आशा का त्याग करवाने एवं उसे अकेला छोड़ने के लिए मजबूर करने हेतु अपने स्वयं के हथियारों को उठा सकता है या नहीं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा उसे दिया गया था। यदि शैतान आशा को त्याग देता है और किसी को छोड़ देता है, तो इसका अर्थ है कि शैतान इस व्यक्ति को परमेश्वर से लेने के लिए फिर कभी कोशिश नहीं करेगा, वह इस व्यक्ति पर फिर कभी दोष नहीं लगाएगा और हस्तक्षेप नहीं करेगा, वह फिर कभी मनमर्जी तरीके से उसको प्रताड़ित नहीं करेगा या उस पर आक्रमण नहीं करेगा; केवल इस प्रकार के व्यक्ति को ही सचमुच में परमेश्वर के द्वारा हासिल किया जाएगा। यही वह सम्पूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा परमेश्वर लोगों को हासिल करता है।

अय्यूब की गवाही के द्वारा आनेवाली पीढ़ियों को चेतावनी एवं अद्भुत प्रकाशन प्रदान करना

ठीक उसी समय उस प्रक्रिया को समझते हुए जिसके द्वारा परमेश्वर किसी व्यक्ति को पूरी तरह से हासिल करता है, लोग परमेश्वर के द्वारा अय्यूब को शैतान को सौंपे जाने के लक्ष्यों एवं महत्व को भी समझेंगे। लोग अब आगे से अय्यूब की पीड़ा के द्वारा परेशान नहीं होते हैं, और उनके पास उसके महत्व की एक नई समझ है। वे अब आगे से इस विषय में चिंता नहीं करते हैं कि उन्हें अय्यूब के समान उसी परीक्षा के अधीन किया जाएगा या नहीं, और वे परमेश्वर की आनेवाली परीक्षणों का आगे से विरोध या उन्हें अस्वीकार नहीं करते हैं। अय्यूब का विश्वास, आज्ञाकारिता, और शैतान पर विजय पाने की उसकी गवाही लोगों के लिए बड़ी सहायता एवं प्रोत्साहन का एक बड़ा स्रोत है। वे अय्यूब में अपने स्वयं के उद्धार की आशा को देखते हैं, और यह देखते हैं कि विश्वास एवं परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता एवं भय के माध्यम से शैतान को हराना, और शैतान के ऊपर प्रबल होना पूरी तरह से सम्भव है। वे देखते हैं कि जब तक वे परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों को चुपचाप स्वीकार करते हैं, और सब कुछ खोने के बाद भी परमेश्वर को न छोड़ने का दृढ़ संकल्प एवं विश्वास धारण करते हैं, तो वे शैतान को लज्जित और पराजित कर सकते हैं, और यह कि उन्हें अपनी गवाही में दृढ़ता से स्थिर खड़े रहने के लिए केवल दृढ़ संकल्प एवं धैर्य को धारण करने की आवश्यकता है—भले ही इसके लिए अपने प्राणों को खोना पड़े—जिससे शैतान को डराया जाए और वह एकदम से पीछे हट जाए। अय्यूब की गवाही आनेवाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी है, और यह चेतावनी उन्हें यह बताती है कि यदि वे शैतान को नहीं हराते हैं, तो वे कभी अपने आपको शैतान के आरोपों एवं हस्तक्षेप से छुड़ाने में समर्थ नहीं होंगे, न ही वे कभी शैतान के शोषण एवं आक्रमणों से बचकर निकलने के योग्य होंगे। अय्यूब की गवाही ने आनेवाली पीढ़ियों को अद्भुत रीति से प्रकाशित किया है। यह अद्भुत प्रकाशन लोगों को यह सिखाता है कि यदि वे सीधे एवं खरे हैं केवल तभी वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के योग्य हैं; यह उन्हें सिखाता है कि यदि वे परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं केवल तभी वे परमेश्वर के लिए एक मज़बूत एवं असाधारण गवाही दे सकते हैं; यदि वे परमेश्वर के लिए मज़बूत एवं असाधारण गवाही देते हैं केवल तभी उन्हें शैतान के द्वारा कभी नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है, और वे परमेश्वर के मार्गदर्शन एवं सुरक्षा के आधीन में जीवन बिताएंगे—और केवल तभी उन्हें सचमुच में बचाया लिया गया होगा। अय्यूब के व्यक्तित्व और उसके जीवन की खोज का हर किसी के द्वारा अनुकरण किया जाना चाहिए जो उद्धार की निरन्तर खोज करता है। जिसे उसने अपने सम्पूर्ण जीवन में और अपनी परीक्षाओं के दौरान अपने आचरण में जीया था वह उन सब के लिए एक अनमोल ख़ज़ाना है जो परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करते हैं।

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