परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

भाग चार

अय्यूब की अटल सत्यनिष्ठा ने शैतान को लज्जित किया और उसे भयातुर करके खदेड़ दिया

और परमेश्वर ने क्या किया जब अय्यूब को इस पीड़ा के अधीन किया गया था? परमेश्वर ने परिणाम का अवलोकन किया, और उसे देखा, और उसका इंतजार किया। जब परमेश्वर ने अवलोकन किया एवं देखा, तो उसने कैसा महसूस किया था? हाँ वास्तव में उसने गहरा शोक महसूस किया। परन्तु उसकी पीड़ा के परिणामस्वरूप, क्या वह शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने की अनुमति देने के लिए खेदित था? उसका उत्तर है, नहीं, वह खेदित नहीं था। क्योंकि वह दृढ़ता से विश्वास करता था कि अय्यूब खरा एवं सीधा था, यह कि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था। परमेश्वर ने बस शैतान को अनुमति दी थी कि वह उसके सामने अय्यूब की धार्मिकता को परखे, और अपनी स्वयं की दुष्टता एवं घिनौनेपन को प्रकट करे। इसके अतिरिक्त, यह अय्यूब के लिए एक अवसर था कि वह अपनी धार्मिकता एवं परमेश्वर के प्रति अपने भय और बुराई से दूर रहने की गवाही को संसार के लोगों, शैतान, और यहाँ तक कि उन लोगों के सामने दे जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। क्या अंतिम परिणाम ने यह साबित किया कि अय्यूब के विषय में परमेश्वर का आंकलन सही एवं त्रुटिहीन था। क्या अय्यूब ने वास्तव में शैतान पर विजय प्राप्त किया था? हम यहाँ पर आदर्श वचनों को पढ़ते हैं जिन्हें अय्यूब के द्वारा बोला गया था, ऐसे वचन जो इस बात का प्रमाण हैं कि उसने शैतान पर विजय पा लिया था। उसने कहा, "मैं अपनी माँ के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊँगा।" यह परमेश्वर के प्रति अय्यूब की आज्ञाकारिता की मनोवृत्ति है। इसके आगे, फिर उसने कहा: "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।" अय्यूब के द्वारा कहे गए इन वचनों से प्रमाणित होता है कि परमेश्वर मनुष्य के हृदय की गहराई का अवलोकन करता है, यह कि वह मनुष्य के मस्तिष्क के भीतर देख सकता है, और वे साबित करते हैं कि अय्यूब के विषय में उसकी स्वीकृति त्रुटिहीन है, और यह कि यह मनुष्य धर्मी था जिसे परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किया गया था। "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।" ये वचन परमेश्वर के प्रति अय्यूब की गवाही हैं। ये वे साधारण वचन थे जिन्होंने शैतान को डरा दिया था, उसे लज्जित किया था और उसे भयातुर करके खदेड़ दिया था, और इसके अतिरिक्त, शैतान को जंज़ीरों में जकड़ लिया था और उसे असहाय करके छोड़ दिया था। अतः इन वचनों ने शैतान को भी यहोवा परमेश्वर के कार्यों की अद्भुतता एवं सामर्थ का एहसास कराया था, और उसे अनुमति दी थी कि वह ऐसे व्यक्ति के असाधारण आकर्षक व्यक्तित्व का आभास करे जिसके हृदय पर परमेश्वर के मार्ग के द्वारा शासन किया जाता था। इसके अलावा, उन्होंने शैतान पर उस सामर्थी जीवन-शक्ति को भी प्रकट किया था जिसे एक छोटे एवं महत्वहीन मनुष्य के द्वारा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की रीति का पालन करने में दिखाया गया था। इस प्रकार शैतान को इस पहले मुकाबले में पराजित किया गया था। अपनी "कठिनाई से अर्जित की गई अंतर्दृष्टि" के बावजूद भी, शैतान के पास अय्यूब को छोड़ देने का कोई इरादा नहीं था, न ही उसके द्वेषपूर्ण स्वभाव में कोई बदलाव आया था। शैतान ने अय्यूब पर लगातार आक्रमण करने की कोशिश की थी, और इस प्रकार एक बार फिर से वह परमेश्वर के सामने आया था।

इसके आगे, आओ हम दूसरी बार पवित्र शास्त्र को पढ़ें जब अय्यूब की परीक्षा ली गई थी।

3. शैतान एक बार फिर से अय्यूब की परीक्षा लेता है (अय्यूब के सम्पूर्ण शरीर में फोड़े निकल आते हैं)

क. परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचन

(अय्यूब 2:3) यहोवा ने शैतान से पूछा, "क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? यद्यपि तू ने मुझे बिना कारण उसका सत्यानाश करने को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है।"

(अय्यूब 2:6) यहोवा ने शैतान से कहा, "सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना।"

ख. शैतान के द्वारा कहे गए वचन

(अय्यूब 2:4-5) शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, "खाल के बदले खाल; परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। इसलिये केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियाँ और मांस छू, तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।"

ग. अय्यूब इस परीक्षा से कैसे निपटता है

(अय्यूब 2:9-10) तब उसकी स्त्री उससे कहने लगी, "क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्‍वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।" उसने उससे कहा, "तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" इन सब बातों में भी अय्यूब ने अपने मुँह से कोई पाप नहीं किया।

(अय्यूब 3:3) वह दिन जल जाए जिसमें मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिसमें कहा गया, "बेटे का गर्भ रहा।"

परमेश्वर के मार्ग के लिए अय्यूब का प्रेम अन्य सभी चीज़ों से बढ़कर है

पवित्र शास्त्र परमेश्वर एवं शैतान के बीच कहे गए वचनों को निम्नलिखित रूप में दर्ज करता है: "यहोवा ने शैतान से पूछा, 'क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? यद्यपि तू ने मुझे बिना कारण उसका सत्यानाश करने को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है'" (अय्यूब 2:3)। इस संवाद में, परमेश्वर उसी प्रश्न को शैतान के सामने फिर से दोहराता है। यह ऐसा प्रश्न है जो हमें यहोवा परमेश्वर के सकारात्मक आंकलन को दिखाता है कि पहले परीक्षण के दौरान अय्यूब के द्वारा क्या प्रदर्शित किया गया था और कैसा जीवन जीया गया था, और यह ऐसा प्रश्न है जो अय्यूब के विषय में परमेश्वर के आंकलन से अलग नहीं है इससे पहले कि वह शैतान की परीक्षा से होकर गुज़रता। कहने का तात्पर्य है, उसके ऊपर परीक्षा के आने से पहले, परमेश्वर की दृष्टि में अय्यूब सिद्ध था, और इस प्रकार परमेश्वर ने उसकी एवं उसके परिवार की सुरक्षा की थी, और उसे आशीषित किया था; वह परमेश्वर की दृष्टि में आशीषित होने के योग्य था। परीक्षा के पश्चात्, अपनी सम्पत्ति एवं अपने बच्चों को खो देने के कारण अय्यूब ने अपने होंठों से पाप नहीं किया, परन्तु निरन्तर यहोवा के नाम की प्रशंसा करता रहा। उसके वास्तविक आचरण से ही परमेश्वर ने उसकी प्रशंसा की, और उसे पूरा अंक दिया। क्योंकि अय्यूब की दृष्टि में, उसका वंश या उसकी सम्पत्ति परमेश्वर को त्यागने के लिए पर्याप्त नहीं थी। दूसरे शब्दों में, उसके हृदय में परमेश्वर के स्थान को उसकी संतानों या सम्पत्ति के किसी भी भाग के द्वारा नहीं लिया जा सकता था। अय्यूब की प्रथम परीक्षा के दौरान, उसने दिखाया कि परमेश्वर के लिए उसका प्रेम और परमेश्वर का भय मानने एवं बुराई से दूर रहने की रीति के लिए उसका प्यार अन्य सभी चीज़ों से बढ़कर था। यह मात्र ऐसा है कि इस परीक्षण ने अय्यूब को यहोवा परमेश्वर से प्रतिफल पाने का और उसके द्वारा उसकी सम्पत्ति एवं संतानों को उससे दूर करने का अनुभव प्रदान किया।

अय्यूब के लिए, यह एक सच्चा अनुभव था जिसने उसके प्राण (मन) को धोकर स्वच्छ किया था, यह जीवन का एक बपतिस्मा था जिसने उसके अस्तित्व को पूर्ण किया था, और, इससे अधिक क्या, यह एक शानदार दावत थी जिसने परमेश्वर के प्रति उसकी आज्ञाकारिता एवं उसके भय को परखा था। इस परीक्षा ने अय्यूब की स्थिति को एक धनवान पुरुष से ऐसे मनुष्य में रूपान्तरित कर दिया जिसके पास कुछ भी नहीं था, और साथ ही इसने उसे मानवजाति के विषय में शैतान के शोषण का अनुभव करने की अनुमति भी प्रदान की थी। उसकी दीन-हीन दशा ने उसे शैतान से घृणा करने नहीं दिया; उसके बजाए, उसने शैतान के बहुत ही बुरे कार्यों में शैतान की कुरूपता एवं नीचता को, साथ ही साथ परमेश्वर के प्रति शैतान की शत्रुता एवं विद्रोह को भी देखा था, और इसने उसे हमेशा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को दृढ़ता से थामे रहने के लिए अच्छी तरह प्रेरित किया। उसने शपथ खाई थी कि वह बाहरी कारकों जैसे सम्पत्ति, बच्चे या सगे-सम्बन्धियों के कारण कभी परमेश्वर को नहीं त्यागेगा और परमेश्वर के मार्ग से कभी पीछे नहीं हटेगा, न ही वह कभी शैतान, सम्पत्ति, या किसी व्यक्ति का दास बनेगा; यहोवा परमेश्वर को छोड़, कोई उसका प्रभु या उसका परमेश्वर नहीं हो सकता था। अय्यूब की आकांक्षाएं ऐसी ही थीं। परीक्षा की दूसरी ओर, अय्यूब ने भी कुछ अर्जित किया थाः उसने परमेश्वर के द्वारा दिए गए परीक्षण के मध्य अपार धन-सम्पत्ति अर्जित की थी।

पिछले कई दशकों से अपने जीवन काल के दौरान, अय्यूब ने यहोवा के कार्यों को देखा था और अपने लिए यहोवा परमेश्वर की आशीषों को हासिल किया था। वे ऐसी आशीषें थीं जिन्होंने उसे अत्यंत व्याकुलता एवं ऋणी होने का एहसास कराया था, क्योंकि वह विश्वास करता था कि उसने परमेश्वर के लिए कुछ भी नहीं किया, फिर भी उसे इतनी बड़ी आशीषें मीरास में प्राप्त हुईं और उसने भरपूर अनुग्रह का आनन्द उठाया था। इस कारण से, वह अपने हृदय में प्रायः प्रार्थना किया करता था, यह आशा करते हुए कि वह परमेश्वर को बदले में कुछ देने के योग्य होगा, यह आशा करते हुए कि उसके पास परमेश्वर के कार्यों एवं महानता की गवाही देने के लिए अवसर होगा, और यह आशा करते हुए कि परमेश्वर उसकी आज्ञाकारिता को परखेगा, और, इससे बढ़कर, उसके विश्वास को शुद्ध किया जा सकता था, जब तक उसकी आज्ञाकारिता एवं उसका विश्वास परमेश्वर की स्वीकृति को हासिल न कर ले। और जब वह परीक्षण अय्यूब के ऊपर आया, तो उसने विश्वास किया कि परमेश्वर ने उसकी प्रार्थनाओं को सुन लिया था। अय्यूब ने किसी अन्य चीज़ से बढ़कर इस अवसर को अपने हृदय में संजोया, और इस प्रकार उसने इससे आसानी से निपटने की हिमाकत नहीं की, क्योंकि उसके जीवनकाल की सबसे बड़ी इच्छा साकार हो सकती थी। इस अवसर के आगमन का अर्थ था कि उसकी आज्ञाकारिता एवं परमेश्वर के भय को परखा जा सकता था, और शुद्ध किया जा सकता था। इसके अतिरिक्त, इसका अर्थ था कि अय्यूब के पास परमेश्वर की स्वीकृति को हासिल करने का एक मौका था, इस प्रकार, इसने इसे परमेश्वर के और करीब पहुंचाया। परीक्षण के दौरान, ऐसे विश्वास एवं अनुसरण ने उसे और अधिक सिद्ध बनाने, और परमेश्वर की इच्छा की और अधिक समझ हासिल करने की अनुमति प्रदान की। अय्यूब परमेश्वर की आशीषों एवं अनुग्रह के लिए और अधिक आभारी हो गया, उसने अपने हृदय में परमेश्वर के कार्यों के लिए और अधिक प्रशंसा को उंडेला, और वह परमेश्वर के विषय में और अधिक भयातुर एवं श्रद्धालु हो गया, और उसने परमेश्वर की सुन्दरता, महानता एवं पवित्रता की और अधिक अभिलाषा की। इस समय, हालाँकि परमेश्वर की दृष्टि में अय्यूब अभी भी ऐसा पुरुष था जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, फिर भी उसके अनुभवों के लिहाज से, अय्यूब का विश्वास एवं ज्ञान बहुत जल्दी बढ़ गया: उसका विश्वास बढ़ चुका था, उसकी आज्ञाकारिता को पाँव रखने की जगह मिल गई थी, और परमेश्वर के विषय में उसका भय और अधिक गम्भीर हो चुका था। हालाँकि इस परीक्षण ने अय्यूब की आत्मा एवं जीवन को रूपान्तरित किया, फिर भी ऐसे रूपान्तरण ने अय्यूब को संतुष्ट नहीं किया, न ही इसने आगे की ओर उसकी प्रगति को धीमा किया। ठीक उसी समय यह गुणा भाग करते हुए कि उसने इस परीक्षण से क्या अर्जित किया था, और अपनी स्वयं की कमियों पर विचार करते हुए उसने खामोशी से प्रार्थना की, और अगले परिक्षण का इंतजार किया कि वह उसके ऊपर आए, क्योंकि उसने अपने विश्वास, आज्ञाकारिता, और परमेश्वर के भय को परमेश्वर के अगले परीक्षण के दौरान उन्नत किए जाने लालसा की थी।

परमेश्वर मनुष्य के भीतर के विचारों का और वह सब जो मनुष्य कहता एवं करता है उनका अवलोकन करता है। अय्यूब के विचार यहोवा परमेश्वर के कानों तक पहुंच गए और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थनाओं को सुना, और इस रीति से जैसी अपेक्षा की गई थी अय्यूब के लिए परमेश्वर के अगले परीक्षण का आगमन हो चुका था।

अत्याधिक पीड़ा के मध्य, अय्यूब ने सचमुच में मानवजाति के लिए परमेश्वर की देखरेख का एहसास किया

शैतान से यहोवा परमेश्वर के प्रश्न के बाद, शैतान रहस्यमयी रूप से खुश था। यह इसलिए था क्योंकि शैतान जानता था कि उसे एक बार फिर से उस पुरुष पर आक्रमण करने की अनुमति दी जाएगी जो परमेश्वर की दृष्टि में सिद्ध था—यह शैतान के लिए एक दुर्लभ अवसर था। शैतान अय्यूब के अंगीकार को पूरी तरह से खत्म करने के लिए, और उससे परमेश्वर के विश्वास का त्याग करवाने के लिए इस अवसर का उपयोग करना चाहता था, जिससे वह आगे से परमेश्वर का भय न माने या यहोवा के नाम को धन्य न कहे। यह शैतान को एक अवसर देगा: किसी भी स्थान या समय पर, वह अय्यूब को अपनी आज्ञा के अधीन एक खिलौना बनाने योग्य हो जाएगा। शैतान ने किसी नामो निशान के बिना अपनी बुरी युक्तियों को छिपा रखा था, परन्तु वह अपने दुष्ट स्वभाव को रोक कर नहीं रख सकता था। इस सच्चाई का संकेत यहोवा परमेश्वर के वचनों के प्रति उसके उत्तर में मिल सकता है, जैसा पवित्र शास्त्र में दर्ज है: शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, "खाल के बदले खाल; परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। इसलिये केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियाँ और मांस छू, तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा" (अय्यूब 2:4-5)। परमेश्वर एवं शैतान के मध्य इस वार्तालाप से शैतान की दुर्भावना का ठोस ज्ञान एवं एहसास हासिल न कर पाना असम्भव है। शैतान की इन भ्रामक बातों को सुनने के बाद, वे सभी जो सत्य से प्रेम करते हैं और बुराई से घृणा करते हैं उनमें निःसन्देह शैतान की नीचता एवं निर्लज्जता के विषय में अत्याधिक नफरत होगी, वे शैतान की भ्रांतियों के द्वारा त्रस्त एवं घृणा महसूस करेंगे, और ठीक उसी समय, वे अय्यूब के लिए गम्भीर प्रार्थनाएं एवं सच्ची कामना करेंगे, यह प्रार्थना करते हुए कि यह खरा व्यक्ति सिद्धता को प्राप्त कर सके, यह इच्छा करते हुए कि यह पुरुष जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता है वह सदा सर्वदा शैतान की परीक्षाओं पर विजय पाएगा, और ज्योति में जीवन बिताएगा, और परमेश्वर की आशीषों एवं मार्गदर्शन के मध्य जीवन बिताएगा; वे यह भी इच्छा करते हैं कि अय्यूब की धार्मिकता के कार्य सदा सर्वदा उन लोगों को प्रेरणा दे सकें और उनको प्रोत्साहित कर सकें जो परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करते हैं। हालाँकि शैतान के दुर्भावनापूर्ण इरादे को इस घोषणा में देखा जा सकता है, फिर भी परमेश्वर शैतान की "विनती" से प्रसन्नतापूर्वक सहमत हो गया था—परन्तु उसकी भी एक शर्त है: "सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना" (अय्यूब 2:6)। क्योंकि, इस समय, शैतान ने अय्यूब की हड्डियों एवं शरीर पर अपना हाथ बढ़ाने की मांग की थी, परमेश्वर ने कहा, "केवल उसका प्राण छोड़ देना।" इन शब्दों का अर्थ है कि उसने अय्यूब के शरीर को शैतान को दे दिया, परन्तु उसके जीवन को बचाए रखा। शैतान अय्यूब का जीवन नहीं ले सकता था, परन्तु इसके अलावा शैतान अय्यूब के विरुद्ध किसी भी तरीके या हथकण्डे को उपयोग में ला सकता था।

परमेश्वर की अनुमति को प्राप्त करने के बाद, शैतान तेज़ी से अय्यूब के पास पहुंचा और उसकी चमड़ी को पीड़ा पहुंचाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, उसके पूरे शरीर पर पीड़ा दायक फोड़े निकल आए, और अय्यूब ने अपनी चमड़ी में अत्याधिक पीड़ा महसूस की। अय्यूब ने यहोवा परमेश्वर की अद्भुतता एवं पवित्रता की प्रशंसा की, जिसने शैतान को उसकी ढीठाई में और भी अधिक स्तब्ध कर दिया। क्योंकि उसने मनुष्य को पीड़ा पहुंचाने का आनन्द लिया था, शैतान ने अपना हाथ बढ़ाया और अय्यूब के मांस को उधेड़ दिया, जिससे उसके घाव पकने लगे। अय्यूब ने तुरन्त ही अपने शरीर में पीड़ा एवं कष्ट का ऐसा एहसास किया जिसकी तुलना नहीं की जा सकती थी, और वह अपने हाथों से सिर से लेकर पांव को दबाने के सिवाय और कोई मदद नहीं कर सकता था, मानो यह शारीर की इस पीड़ा से उसकी आत्मा में हुए इस आघात से उसे राहत पहुंचाएगा। उसने महसूस किया कि परमेश्वर उसकी बगल में खड़े होकर सब कुछ देख रहा था, और उसने अपने आपको मज़बूत बनाने के लिए भरसक कोशिश की। उसने एक बार फिर से भूमि पर घुटने टेका, और कहा: तू मनुष्य के हृदय के भीतर झांकता है, तू उसकी दुर्दशा को देखता है; क्यों उसकी कमज़ोरी तुझे चिंतित करती है? परमेश्वर यहोवा के नाम की स्तुति हो। शैतान ने अय्यूब के असहनीय दर्द को देखा, परन्तु उसने अय्यूब को यहोवा परमेश्वर के नाम को त्यागते हुए नहीं देखा था। इस प्रकार उसने अय्यूब की हड्डियों में पीड़ा पहुंचाने के लिए तुरन्त ही अपना हाथ बढाया, और वह उसके अंग अंग को तोड़ने के लिए बेताब था। एक मिसाल के तौर पर, अय्यूब ने अभूतपूर्व पीड़ा का एहसास किया था; यह मानो ऐसा था कि उसके मांस को चीरकर हड्डियों से बाहर निकाल दिया गया था, और मानो उसकी हड्डियों को थोड़ा थोड़ा करके कुचला जा रहा था। इस भयंकर पीड़ा ने उसे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मर जाना इससे बेहतर होता। उसकी सहनशक्ति अपनी चरम सीमा तक पहुंच गई थी। वह चिल्लाना चाहता था, वह उस दर्द को कम करने के लिए अपने शरीर की चमड़ी को चीर देना चाहता था—फिर भी उसने अपनी चीख को दबा कर रखा, और अपने शारीर की चमड़ी को नहीं चीरा, क्योंकि वह शैतान को अपनी कमज़ोरी नहीं दिखाना चाहता था। और इस प्रकार उसने एक बार फिर से घुटने टेके, परन्तु इस बार उसने यहोवा परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस नहीं किया। वह जानता था कि वह अकसर उसके सामने, और उसके पीछे, और उसके दोनों तरफ रहता था। फिर भी उसकी पीड़ा के दौरान, परमेश्वर ने कभी अवलोकन नहीं किया; उसने अपना चेहरा ढँक लिया और छिप गया था, क्योंकि मनुष्य के विषय में उसकी सृष्टि का अर्थ मनुष्य को पीड़ा पहुंचाना नहीं था। इस समय, अय्यूब विलाप कर रहा था, और अपनी दैहिक पीड़ा को सहने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहा था, फिर भी वह परमेश्वर को धन्यवाद देने से अपने आपको और रोक नहीं सकता था: मनुष्य पहले प्रहार में ही गिर जाता है, वह कमज़ोर एवं निर्बल है, वह युवा एवं अज्ञानी है—तू उसके प्रति इतने चिंतित एवं कोमल होने की इच्छा क्यों करता है? तू मुझे मारता है, फिर भी ऐसा करने से तुझे भी तकलीफ होती है। मनुष्य में ऐसा क्या है जो वह तेरी देखभाल एवं चिंता के लायक है। अय्यूब की प्रार्थनाएं परमेश्वर के कानों तक पहुंची, और परमेश्वर खामोश था, केवल चुपचाप देख रहा था। पुस्तक में हर एक चाल को चलने के बाद कोई फायदा नहीं हुआ, शैतान चुपचाप चला गया, फिर भी अय्यूब के विषय में परमेश्वर की परीक्षाएं समाप्त नहीं हुईं। क्योंकि परमेश्वर की वह सामर्थ जो अय्यूब में प्रकट हुई थी उसे सार्वजनिक नहीं किया गया था, अय्यूब की कहानी शैतान के पीछे हटने के साथ समाप्त नहीं हुई थी। जैसे ही अन्य पात्रों ने प्रवेश किया, और भी अधिक शानदार दृश्यों का आना अभी बाकी था।

अय्यूब के द्वारा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का एक और प्रगटिकरण परमेश्वर के नाम को सभी चीजों में अत्यधिक महिमा देता है

अय्यूब ने शैतान के प्रकोपों का दुःख उठाया था, फिर भी उसने यहोवा परमेश्वर के नाम को नहीं छोड़ा। उसकी पत्नी वह इंसान थी जिसने पहले कदम बढ़ाया और शैतान का किरदार अदा किया जिसे अय्यूब पर हमले के द्वारा देखा जा सकता है। मूल पाठ इस प्रकार से इसका वर्णन करता है: तब उसकी स्त्री उससे कहने लगी, "क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्‍वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा" (अय्यूब 2:9)। ये वे शब्द हैं जिन्हें मनुष्य के भेष में शैतान के द्वारा कहा गया था। वे एक आक्रमण, एवं एक आरोप, साथ ही साथ प्रलोभन, परीक्षा, एवं कलंक भी थे। अय्यूब की देह पर आक्रमण करने में असफल होने पर, तब शैतान ने सीधे तौर पर उसकी खराई पर हमला किया था, वह इसका उपयोग करना चाहता था ताकि अय्यूब को मजबूर करे कि वह अपनी ईमानदारी को छोड़ दे, परमेश्वर को त्याग दे, और जीना छोड़ दे। इस प्रकार शैतान भी अय्यूब की परीक्षा लेने के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहता था: यदि अय्यूब यहोवा के नाम को छोड़ देता, तो उसे इस पीड़ा को सहने की आवश्यकता नहीं होती, वह अपने आपको शारीरिक पीड़ा से मुक्त करा सकता था। अपनी पत्नी की सलाह का सामना करने पर, अय्यूब ने यह कहने के द्वारा उसे झिड़का, "तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" (अय्यूब 2:10)। अय्यूब काफी समय से इन वचनों को जानता था, परन्तु इस समय उनके विषय में अय्यूब के ज्ञान की सच्चाई साबित हो गई थी।

जब उसकी पत्नी ने उसे परमेश्वर को श्राप देने और मर जाने की सलाह दी, तो उसका अभिप्राय था: तेरा परमेश्वर तुझ से ऐसा ही बर्ताव करता है, इसलिए उसे कोसता क्यों नहीं है? अभी भी जीवित रहकर तू क्या कर रहा है? तेरा परमेश्वर तेरे प्रति इतना पक्षपाती है, फिर भी तू कहता है कि यहोवा का नाम धन्य है। जब तू उसके नाम को धन्य कहता है तो वह कैसे तेरे ऊपर विपत्ति ला सकता है? जल्दी कर और उसके नाम को त्याग दे, और अब से उसका अनुसरण मत करना। इस तरह से तेरी परेशानियाँ समाप्त हो जाएंगी। इस घड़ी, वहाँ ऐसी गवाही उत्पन्न हुई जिसे परमेश्वर अय्यूब में देखना चाहता था। कोई साधारण मनुष्य ऐसी गवाही नहीं रख सकता था, न ही हम इसके विषय में बाइबल की किसी अन्य कहानियों में पढ़ते हैं—परन्तु अय्यूब के द्वारा इन शब्दों को कहने के बहुत पहले ही परमेश्वर ने इसे देख लिया था। परमेश्वर ने महज अय्यूब को अनुमति देने के लिए इस अवसर का उपयोग करने की इच्छा की थी ताकि वह सब को यह साबित करे कि परमेश्वर सही था। अपनी पत्नी की सलाह का सामना करने पर, अय्यूब ने न केवल अपनी ईमानदारी को नहीं छोड़ा या परमेश्वर को नहीं त्यागा, बल्कि उसने अपनी पत्नी से यह भी कहा: "क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?" क्या इन शब्दों में बहुत वज़न है? यहाँ, केवल एक ही तथ्य है जो इन शब्दों के वज़न को साबित करने में समर्थ है। इन शब्दों का वज़न यह है कि उन्हें परमेश्वर के द्वारा उसके हृदय में मंजूर किया गया है, ये वे शब्द हैं जिनकी इच्छा परमेश्वर के द्वारा की गई थी, ये वे शब्द हैं जिन्हें परमेश्वर सुनना चाहता था, और ये वे परिणाम हैं जिन्हें परमेश्वर ने देखने की लालसा की थी; साथ ही ये शब्द अय्यूब की गवाही का सार-तत्व भी हैं। इसमें, अय्यूब की खराई, सीधाई, परमेश्वर का भय, और बुराई से दूर रहने को प्रमाणित किया गया है। अय्यूब की बहुमूल्यता इसमें निहित है कि जब उसकी परीक्षा ली गई, और तब भी जब उसका पूरा शरीर दुखदायी घावों से भरा हुआ था, जब उसने अत्याधिक पीड़ा को सहा, और जब उसकी पत्नी एवं सगे-सम्बन्धियों ने उसे सलाह दी, फिर भी उसने इन शब्दों को कहा था। इसे दूसरी तरह से कहें, तो उसने अपने हृदय में विश्वास किया था कि, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि परीक्षाएं कैसी भी हों, क्लेश या पीड़ा कितनी भी दर्दनाक क्यों न हों, भले ही मृत्यु उसके ऊपर आ जाए, वह कभी भी परमेश्वर को नहीं त्यागेगा या परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को नहीं ठुकराएगा। तो तूने देखा कि परमेश्वर उसके हृदय में अति महत्वपूर्ण स्थान रखता था, और उसके हृदय में केवल परमेश्वर ही था। यह इसके कारण ही था कि हम पवित्र शास्त्र में उसके विषय में इस प्रकार पढ़ते हैं: इन सब बातों में भी अय्यूब ने अपने मुँह से कोई पाप नहीं किया। उसने न केवल अपने होंठों से पाप नहीं किया, बल्कि उसने अपने हृदय में परमेश्वर के बारे में कोई शिकायत नहीं की। उसने परमेश्वर के बारे में कष्टदायक शब्दों को नहीं कहा, न ही उसने परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया। न केवल उसके मुँह ने परमेश्वर के नाम को धन्य कहा, बल्कि उसने अपने हृदय में भी परमेश्वर के नाम को धन्य कहा; उसका मुँह एवं हृदय एक ही था। यही वह सच्चा अय्यूब था जिसे परमेश्वर के द्वारा देखा गया था, और यही वह प्रमुख कारण था कि क्यों परमेश्वर ने अय्यूब को हृदय में संजोकर रखा था।

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