परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

भाग तीन के क्रम में

परमेश्वर शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने की अनुमति देता है जिससे अय्यूब के विश्वास को सिद्ध बनाया जाएगा

यहोवा परमेश्वर एवं शैतान के बीच हुए संवाद के विषय में अय्यूब 1:8 वह पहला लेख है जिसे हम बाइबल में देखते हैं। और परमेश्वर ने क्या कहा था? मूल पाठ हमें निम्नलिखित लेख प्रदान करता हैः "यहोवा ने शैतान से पूछा, 'क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।'" शैतान के सामने अय्यूब के विषय में यह परमेश्वर का आंकलन था; परमेश्वर ने कहा कि वह एक खरा एवं सीधा मनुष्य था, ऐसा मनुष्य जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था। परमेश्वर एवं शैतान के मध्य इन वचनों से पहले, परमेश्वर ने दृढ़ निश्चय किया था कि वह अय्यूब की परीक्षा लेने के लिए शैतान का इस्तेमाल करेगा—यह कि वह अय्यूब को शैतान के हाथों में सौंप देगा। एक लिहाज से, यह इस बात को साबित करेगा कि अय्यूब के विषय में परमेश्वर का अवलोकन एवं आंकलन सटीक और त्रुटिहीन था, और वह अय्यूब की गवाही के जरिए शैतान को लज्जित करेगा; दूसरे लिहाज से, यह परमेश्वर में अय्यूब के विश्वास को और परमेश्वर के प्रति उसके भय को सिद्ध करेगा। इस प्रकार, जब शैतान परमेश्वर के सामने आया, तो परमेश्वर ने अस्पष्ट रुप से बात नहीं की। उसने सीधे मुद्दे की बात की और शैतान से कहाः "क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।" परमेश्वर के प्रश्न में निम्लिखित अर्थ थाः परमेश्वर जानता था कि शैतान ने सभी स्थानों में भ्रमण किया था, और उसने बार बार अय्यूब की जासूसी की थी, जो परमेश्वर का सेवक था। उसने अकसर उसकी परीक्षा की थी और उस पर आक्रमण किया था, इस बात की कोशिश करते हुए कि वह अय्यूब को बर्बाद करने के लिए कोई मार्ग खोज सके जिससे यह साबित हो कि परमेश्वर में अय्यूब का विश्वास और परमेश्वर के प्रति उसका भय दृढ़ता से स्थिर नहीं रह सकता था। शैतान भी तत्परता से अय्यूब को तबाह करने के लिए अवसरों को खोजता रहता था, कि शायद अय्यूब परमेश्वर को त्याग सकता था और शैतान को अनुमति दे सकता था जिससे वह उसे परमेश्वर के हाथों से हथिया ले। फिर भी परमेश्वर ने अय्यूब के हृदय में झांका और देखा कि वह खरा एवं सीधा था, और यह कि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था। परमेश्वर ने शैतान को यह बताने के लिए एक प्रश्न का उपयोग किया कि अय्यूब एक खरा एवं सीधा मनुष्य है जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, यह कि अय्यूब कभी परमेश्वर को नहीं त्यागेगा और शैतान के पीछे नहीं चलेगा। अय्यूब के विषय में परमेश्वर की सराहना को सुनने के बाद, शैतान के भीतर लज्जा से उत्पन्न एक प्रचण्ड क्रोध ने प्रवेश किया, तथा वह और भी अधिक क्रोधित हो गया, और वह अय्यूब को छीनने के लिए और भी अधिक अधीर हो गया, क्योंकि शैतान ने कभी भी यह विश्वास नहीं किया था कि कोई खरा और सिद्ध भी हो सकता है, या यह कि वे परमेश्वर का भय मान सकते हैं और बुराई से दूर रह सकते हैं। ठीक उसी समय, शैतान ने भी मनुष्य की खराई एवं सीधाई से घृणा की थी, और वह ऐसे लोगों से नफरत करता था जो परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर रह सकते थे। और इस प्रकार अय्यूब 1:9-11 में लिखा हुआ है कि "शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बाँधा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।" परमेश्वर शैतान के द्वेषपूर्ण स्वभाव से भली भांति वाकिफ था, और पूरी तरह से जानता था कि शैतान ने अय्यूब पर तबाही लाने के लिए बहुत पहले से ही योजना बनाई थी, और शैतान को एक बार फिर से बताने के माध्यम से कि अय्यूब खरा एवं सीधा था और वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, परमेश्वर इस सिलसिले में शैतान को सीधे रास्ते पर लाना चाहता था, और शैतान से उसके असली चेहरे को प्रकट करवाना चाहता था और उससे अय्यूब पर हमला करवाना और उसकी परीक्षा करवाना चाहता था। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर ने जानबूझ कर इस बात पर जोर डाला कि अय्यूब खरा एवं सीधा था, और यह कि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, और इसकी सहायता से उसने शैतान से अय्यूब पर हमला करवाया था अय्यूब के प्रति शैतान की घृणा एवं कोप के कारण कि अय्यूब कैसे एक खरा और सीधा मनुष्य था, ऐसा मनुष्य जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था। परिणामस्वरूप, परमेश्वर ने उस तथ्य के जरिए शैतान को लज्जित किया कि अय्यूब खरा एवं सीधा मनुष्य था, ऐसा मनुष्य जो परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, और शैतान को पूरी तरह से लज्जित एवं पराजित करके छोड़ दिया जाएगा। उसके बाद, शैतान अय्यूब की खराई, सीधाई, परमेश्वर के भय, या बुराई से दूर रहने के विषय में आगे से फिर कभी सन्देह या दोषारोपण नहीं करेगा। इस रीति से, परमेश्वर का परीक्षण और शैतान की परीक्षा लगभग अपरिहार्य थे। एकमात्र व्यक्ति जो परमेश्वर के परीक्षण और शैतान की परीक्षा का डटकर मुकाबला करने के योग्य था वह केवल अय्यूब था। इस संवाद के आगे, शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने की अनुमति प्रदान की गई थी। इस प्रकार शैतान के हमलों का पहला चक्र आरम्भ हुआ। इन हमलों का निशाना था अय्यूब की सम्पत्ति, क्योंकि शैतान ने अय्यूब के विरुद्ध निम्नलिखित आरोप लगाया था: "क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है? ... तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है।" इसके परिणामस्वरूप, परमेश्वर ने शैतान को अनुमति दी कि अय्यूब के पास जो भी था उसे ले ले—यह वही उद्देश्य था जिसके लिए परमेश्वर ने शैतान से बातचीत की थी। तो भी, परमेश्वर ने शैतान के सामने एक मांग रखी: "जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना" (अय्यूब 1:12)। शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने की अनुमति देने के पश्चात् यही वह शर्त थी जिसे परमेश्वर ने रखा था और अय्यूब को शैतान के हाथ में कर दिया था, और यही वह सीमा थी जिसे परमेश्वर ने शैतान के लिए निर्धारित की थी: उसने शैतान को अय्यूब को हानि न पहुंचाने का आदेश दिया। क्योंकि परमेश्वर पहचान गया था कि अय्यूब खरा एवं सीधा पुरुष था, और उसे विश्वास था कि उसके सामने अय्यूब की खराई एवं सीधाई सन्देह से परे थी, और परीक्षा में पड़ने पर वह दृढ़ता से सामना कर सकता था; इस प्रकार, परमेश्वर ने अय्यूब की परीक्षा लेने के लिए शैतान को अनुमति दी, परन्तु शैतान पर एक प्रतिबंध लगा दिया: शैतान के पास अय्यूब की सारी सम्पत्ति लेने की अनुमति थी, किन्तु वह उसे अपनी ऊंगली से छू नहीं सकता था। इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने उस समय अय्यूब को पूरी तरह से शैतान के हाथों में नहीं दिया था। शैतान अय्यूब की परीक्षा ले सकता था किसी भी माध्यम के द्वारा जिसे वह चाहता था, परन्तु वह स्वयं अय्यूब को हानि नहीं पहुंचा सकता था, उसके सिर के एक बाल को भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता था, क्योंकि मनुष्य की हर चीज़ को परमेश्वर के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, चाहे मनुष्य जीवित रहे या मर जाए इसका निर्णय परमेश्वर के द्वारा किया जाता है, और शैतान के पास ऐसा लाइसेंस नहीं है। जब परमेश्वर ने शैतान से इन वचनों को कहा उसके पश्चात्, शैतान शुरुआत करने के लिए और इंतजार नहीं कर सकता था। उसने अय्यूब की परीक्षा लेने के लिए हर प्रकार के साधन का उपयोग किया था, और बहुत पहले ही अय्यूब ने अपनी बहुत सारी भेड़-बकरियों एवं बैलों को और सारी सम्पत्ति को खो दिया था जिन्हें परमेश्वर के द्वारा उसे दिया गया था...। इस प्रकार परमेश्वर की परीक्षाएं उस पर आ गईं।

हालाँकि बाइबल हमें अय्यूब की परीक्षा की शुरुआत के विषय में बताती है, फिर भी क्या अय्यूब स्वयं, वह पुरुष जिसे इन परीक्षाओं के अधीन किया गया था, जानता था कि क्या हो रहा था? अय्यूब मात्र एक नश्वर मनुष्य था; वास्तव में वह उस कहानी के बारे में कुछ भी नहीं जानता था जो उसके पीछे प्रकट हो रही थी। फिर भी, परमेश्वर के प्रति उसके भय, और उसकी खराई एवं सीधाई ने उसे यह महसूस कराया कि परमेश्वर की परीक्षाएं उस पर आ गई थीं। वह नहीं जानता था कि आत्मिक आयाम में क्या घटित हुआ था, न ही वह यह जानता था कि इन परीक्षाओं के पीछे परमेश्वर के इरादे क्या थे। परन्तु वह नहीं जानता था कि इसके बावजूद कि उसके साथ क्या घटित होगा, उसे अपनी खराई एवं सीधाई के प्रति सच्चाई को थामे रहना चाहिए, और उसे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग में बने रहना चाहिए। इन मुद्दों के प्रति अय्यूब की मनोवृत्ति एवं प्रतिक्रिया को परमेश्वर के द्वारा साफ साफ देखा गया था। और उसने क्या देखा था? उसने अय्यूब के हृदय को देखा जो परमेश्वर का भय मानता था, क्योंकि प्रारम्भ से लेकर ठीक उस समय तक जब अय्यूब को परखा नहीं गया था, अय्यूब का हृदय परमेश्वर के सामने खुला हुआ था, इसे परमेश्वर के सामने रखा गया था, और अय्यूब ने अपनी खराई एवं सीधाई का त्याग नहीं किया था, न ही उसने परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की रीति को दूर किया था या उससे पीछे हटा था—और इससे बढ़कर और कोई भी चीज़ परमेश्वर के लिए संतोषजनक नहीं थी। इसके आगे, हम देखेंगे कि अय्यूब किन परीक्षाओं से होकर गुज़रा और वह इन परीक्षाओं से कैसे निपटा। आओ हम पवित्र शास्त्र को पढ़ें।

ग. अय्यूब की प्रतिक्रिया

(अय्यूब 1:20-21) तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुँड़ाकर भूमि पर गिरा और दण्डवत् करके कहा, "मैं अपनी माँ के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊँगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।"

यह कि अय्यूब इसे अपने ऊपर ले लेता है कि वह सब कुछ वापस करे जो उसके पास है जो परमेश्वर के प्रति उसके भय से उत्पन्न हुआ है

जब परमेश्वर ने शैतान से कहा "जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना," उसके पश्चात् शैतान चला गया, उसके तुरन्त बाद ही अय्यूब अचानक और भयंकर हमलों के अधीन हो गया: पहले, उसके बैल एवं गधे लूट लिए गए और उसके सेवकों को मार दिया गया; इसके बाद, उसकी भेड़-बकरियों एवं सेवकों को जलाकर नष्ट कर दिया गया; उसके पश्चात्, उसके ऊंटों को ले लिया गया और उसके सेवकों को मार दिया गया; अंत में, उसके पुत्र एवं पुत्रियों की जान ले ली गई। हमलों की यह श्रृंखला वह यातना थी जिसे अय्यूब ने अपनी पहली परीक्षा के दौरान सहा था। जैसा परमेश्वर के द्वारा आदेशित था, इन हमलों के दौरान शैतान ने केवल अय्यूब की सम्पत्ति और उसके बच्चों को निशाना बनाया था, और स्वयं अय्यूब को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाई थी। तोभी, अय्यूब एकदम से एक धनवान पुरुष से जिसके पास अपार धन-सम्पत्ति थी ऐसा व्यक्ति बन गया जिसके पास कुछ भी नहीं था। कोई भी व्यक्ति इस विस्मयकारी आश्चर्यजनक आघात का सामना नहीं कर सकता था या इसके प्रति उचित रीति से प्रतिक्रिया नहीं कर सकता था, फिर भी अय्यूब ने अपने असाधारण पहलु का प्रदर्शन किया। पवित्र शास्त्र निम्नलिखित लेख प्रदान करता है: "तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुँड़ाकर, भूमि पर गिरा और दण्डवत् की।" यह सुनने के पश्चात् कि उसने अपने बच्चों और अपनी सारी सम्पत्ति को खो दिया था यह अय्यूब की पहली प्रतिक्रिया थी। सबसे बढ़कर, वह आश्चर्यचकित, या दर्द का मारा हुआ नहीं दिखा, और उसने क्रोध या नफरत को बिलकुल भी प्रकट नहीं किया था। तो तूने देखा कि वह अपने हृदय में पहले से पहचान गया था कि ये आपदाएं महज एक संयोग नहीं थीं, या मनुष्य के हाथों के काम नहीं थे, और वे प्रतिशोध या सज़ा का आगमन तो बिलकुल भी नहीं थे। इसके बजाय, यहोवा की परीक्षाएं उसके ऊपर आ गई थीं; वह यहोवा ही था जो उसकी सम्पत्ति एवं बच्चों को लेना चाहता था। उस दशा में भी अय्यूब बहुत ही शान्त और खुले-दिमाग का था। उसकी खरी एवं सच्ची धार्मिकता ने उसे आपदाओं के विषय में तर्कसंगत रूप से एवं स्वाभाविक रूप से बिलकुल सही फैसला करने और निर्णय लेने के योग्य बनाया था, और उसी के परिणाम में, उसने असाधारण शांति के साथ व्यवहार किया था: "तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुँड़ाकर, भूमि पर गिरा और दण्डवत् की।" "बागा फाड़" का अर्थ है कि वह निर्वस्त्र था, और उसके पास कुछ नहीं था; "सिर मुँड़ाकर" का अर्थ है कि वह एक नवजात शिशु के समान परमेश्वर के सामने लौट गया था; "भूमि पर गिरा और दण्डवत् की" का अर्थ है कि वह इस संसार में नग्न आया था, और आज उसके पास कुछ भी नहीं है, वह परमेश्वर के पास एक नवजात शिशु के समान वापस लौट गया था। वह सब कुछ जो अय्यूब के ऊपर आया था उसके प्रति उसकी मनोवृत्ति को परमेश्वर के किसी जीवधारी के द्वारा हासिल नहीं किया जा सकता था। यहोवा पर उसका भरोसा विश्वास के आयाम के परे चला गया था; यह परमेश्वर के प्रति उसका भय था, और परमेश्वर के प्रति उसकी आज्ञाकारिता थी, और उसे इतना कुछ देने के लिए वह न केवल परमेश्वर को धन्यवाद देने के योग्य था, बल्कि उससे ले लेने के लिए भी वह परमेश्वर को धन्यवाद देने के योग्य था। इससे अधिक और क्या, वह इसे अपने ऊपर लेने के योग्य था कि वह सब कुछ वापस करे जो उसका था, जिसमें उसका जीवन भी शामिल था।

परमेश्वर के प्रति अय्यूब का भय एवं आज्ञाकारिता मानवजाति के लिए एक उदाहरण है, और उसकी खराई एवं सीधाई मानवता की पराकाष्ठा थी जिसे किसी मनुष्य को अवश्य धारण करना चाहिए। हालाँकि उसने परमेश्वर को नहीं देखा, फिर भी उसने यह एहसास किया कि परमेश्वर सचमुच में अस्तित्व में है, और इसी एहसास के कारण वह परमेश्वर का भय मानता था—और परमेश्वर के इसी भय के कारण, वह परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने के योग्य था। उसने परमेश्वर को स्वतन्त्रता से शासन करने का अधिकार दिया कि जो कुछ उसके पास है उसे ले ले, फिर भी उसने कोई शिकायत नहीं की, और परमेश्वर के सामने गिर गया और परमेश्वर से कहा कि, इस समय में, भले ही परमेश्वर उसके प्राण ले ले, फिर भी वह ऐसा करने के लिए प्रसन्नता से उसे अनुमति देगा, वह भी बिना किसी शिकायत के। उसका सम्पूर्ण आचरण उसकी खरी एवं सच्ची मानवता के कारण था। कहने का तात्पर्य है, उसकी बेगुनाही, ईमानदारी, एवं उदारता के परिणामस्वरूप, अय्यूब परमेश्वर के अस्तित्व के विषय में अपने एहसास एवं अनुभव में अडिग था, और इस बुनियाद पर उसने स्वयं के विषय में दावा किया था तथा अपनी सोच, व्यवहार, आचरण एवं कार्यों के सिद्धान्तों को परमेश्वर के सामने उसके लिए परमेश्वर के मार्गदर्शन और परमेश्वर के कार्यों के अनुसार मानकीकृत (उन्नत) किया था जिन्हें उसने सभी चीजों में मध्य देखा था। समय के बीतने के साथ, उसके अनुभवों ने उसमें परमेश्वर का सच्चा एवं वास्तविक भय उत्पन्न किया और उसे बुराई से दूर रखा। यह ईमानदारी का वही स्रोत था जिसके प्रति अय्यूब दृढ़ता से स्थिर रहा। अय्यूब ने ईमानदार, निर्दोष, एवं उदार मानवता को धारण किया था, और उसके पास परमेश्वर का भय मानने का, परमेश्वर की आज्ञा मानने का, और बुराई से दूर रहने का, साथ ही साथ उस ज्ञान का वास्तविक अनुभव था कि "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया।" केवल इन्हीं हालातों के कारण ही वह शैतान के ऐसे भयंकर हमलों के बीच दृढ़ता से खड़े रहने और गवाही देने के योग्य पाया था, और केवल उन्हीं के कारण ही वह तब परमेश्वर को निराश नहीं करने और परमेश्वर को एक संतोषजनक उत्तर देने के योग्य हो पाया था जब परमेश्वर की परीक्षाएं उसके ऊपर आ गई थीं। हालाँकि प्रथम परीक्षा के दौरान अय्यूब का आचरण बिलकुल स्पष्ट था, फिर भी आने वाली पीढ़ियां ऐसी स्पष्टवादिता को हासिल करने के विषय में आश्वस्त नहीं थीं, यहां तक कि जीवन भर के प्रयासों के बाद भी न ही वे अय्यूब के आचरण को आवश्यक रूप से धारण करेंगे जिसका वर्णन ऊपर किया गया है। आज, अय्यूब की स्पष्टवादी आचरण से सामना होने पर, और इसकी तुलना "मृत्यु तक सम्पूर्ण आज्ञाकारिता एवं वफ़ादारी" की उस पुकार एवं दृढ़ निश्चय से करने पर जिसे उन लोगों के द्वारा परमेश्वर को दिखाया जाता है जो परमेश्वर पर विश्वास करने और परमेश्वर का अनुसरण करने का दावा करते हैं, तो क्या तुम लोग अत्यंत लज्जित महसूस करते हो या नहीं करते हो?

जब तू उन सब के विषय में पवित्र शास्त्र में पढ़ता है जिसे अय्यूब और उसके परिवार के द्वारा सहा गया था, तो तेरी प्रतिक्रिया क्या होती है? क्या तू अपने ही विचारों में खो जाता है? क्या तू बहुत अधिक आश्चर्यचकित हो जाता है? क्या वे परीक्षाएं जो अय्यूब पर आ पड़ीं उन्हें "खौफनाक" कहा जा सकता है? अन्य शब्दों में, जैसा पवित्र शास्त्र में वर्णन किया गया है अय्यूब की परीक्षाओं के विषय में पढ़ना काफी भय उत्पन्न करता है, वे वास्तव में कैसी रही होंगी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। तो तूने देखा, कि जो कुछ अय्यूब पर घटा यह कोई "व्यावहारिक अभ्यास" नहीं था, परन्तु एक असली "युद्ध" था, जिसमें वास्तविक "बंदूकें" और "गोलियां" शामिल थीं। परन्तु किसके द्वारा उसे परीक्षाओं के अधीन किया गया था? वास्तव में उन्हें शैतान के द्वारा क्रियान्वित किया गया था, उन्हें व्यक्तिगत तौर पर शैतान के द्वारा क्रियान्वित किया गया था—परन्तु उन्हें परमेश्वर के द्वारा अधिकृत किया गया था। क्या परमेश्वर ने शैतान को बताया था कि उसे किन माध्यमों से अय्यूब को परखना है? उसने नहीं बताया था। परमेश्वर ने उसे सिर्फ एक शर्त दी थी, उसके बाद परीक्षाएं अय्यूब पर आ पड़ीं। जब ये परीक्षाएं अय्यूब पर आ पड़ीं, तो इसने लोगों को शैतान की बुराई एवं कुरूपता का, और मनुष्य के प्रति उसकी दुर्भावना एवं घृणा और परमेश्वर के प्रति शत्रुता का एहसास कराया। इसमें हम देखते हैं कि शब्दों में इसका वर्णन नहीं किया जा सकता कि यह परीक्षा कितनी भयावह थी। ऐसा कहा जा सकता है कि उस द्वेषपूर्ण स्वभाव को जिसके तहत शैतान ने मनुष्य का शोषण किया था और उसके कुरूप चेहरे को इस समय पूरी तरह से प्रकट किया गया था। शैतान ने इस अवसर का इस्तेमाल किया था, उस अवसर का जो परमेश्वर की अनुमति के द्वारा प्रदान किया गया था, ताकि अय्यूब को उत्तेजनापूर्ण एवं बेरहम शोषण अधीन किया जाए, उस तरीके एवं क्रूरता के उस स्तर के अधीन किया जाए जिसके तहत दोनों ही आज के लोगों के लिए अकल्पनीय और पूरी तरह से असहनीय हैं। यह कहने के बजाय कि शैतान के द्वारा अय्यूब की परीक्षा ली गई थी, और यह कि वह अपनी गवाही के दौरान दृढ़ता से स्थिर खड़ा रहा, यह कहना बेहतर है कि उन परीक्षाओं में जिन्हें परमेश्वर के द्वारा उसके लिए तय किया गया था अय्यूब ने अपनी खराई एवं सीधाई की सुरक्षा करने के लिए, और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की अपनी रीति का बचाव करने के लिए शैतान के साथ एक मुकाबले की शुरुआत की थी। इस मुकाबले में, अय्यूब ने बहुत सारी भेड़-बकरियों एवं पशुओं को खो दिया था, उसने अपनी सारी सम्पत्ति को खो दिया था, और उसने अपने बेटे-बेटियां को खो दिया था—परन्तु उसने अपनी खराई, सीधाई, या परमेश्वर के भय को नहीं खोया था। दूसरे शब्दों में, शैतान के साथ इस मुकाबले में उसने अपनी खराई, सीधाई, एवं परमेश्वर के भय को खोने की अपेक्षा यह चुनाव किया कि उसे उसकी सम्पत्ति और बच्चों से वंचित कर दिया जाए। उसने उस जड़ को पकड़े रहने का चुनाव किया कि मनुष्य होने का अर्थ क्या होता है। पवित्र शास्त्र उस समूची प्रक्रिया का एक संक्षिप्त लेख प्रदान करता है जिसके परिणामस्वरूप अय्यूब ने अपनी सम्पत्ति को खो दिया था, और साथ ही अय्यूब के आचरण एवं मनोवृत्ति को दस्तावेज़ में दर्ज करता है। ये संक्षिप्त, एवं छोटे छोटे लेख यह बोध कराते हैं कि अय्यूब इन परीक्षाओं का सामना करते समय करीब-करीब निश्चिन्त था, परन्तु जो कुछ वास्तव में घटित हुआ था यदि उसे फिर से किया जाता, जिसमें शैतान के द्वेषपूर्ण स्वभाव को भी जोड़ दिया जाता—तो हालात इतने सरल एवं आसान नहीं होते जैसा इन वाक्यों में वर्णन किया गया है। वास्तविकता उससे कहीं अधिक निर्दयी थी। तबाही एवं घृणा का वह स्तर ऐसा ही है जिसके तहत शैतान मानवजाति एवं उन सभी लोगों से निपटता है जिन्हें परमेश्वर के द्वारा स्वीकृत किया गया है। यदि परमेश्वर ने शैतान से अय्यूब को हानि न पहुंचाने के लिए नहीं कहा होता, तो शैतान ने बिना किसी मलाल के उसका वध कर दिया होता। शैतान नहीं चाहता है कि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की आराधना करे, न ही वह उनके लिए जो परमेश्वर की आंखों में धर्मी हैं और उनके लिए जो खरे एवं सीधे हैं यह इच्छा करता है कि वे निरन्तर परमेश्वर का भय मानने तथा बुराई से दूर रहने के योग्य हों। क्योंकि लोगों के लिए परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का अर्थ है कि वे शैतान से दूर रहें और उसे त्याग दें, और इस प्रकार शैतान ने परमेश्वर की अनुमति का फायदा उठाया ताकि वह बिना किसी दया के अय्यूब के ऊपर अपने सारे क्रोध एवं नफरत ढेर लगा दे। तो तूने देखा कि वह पीड़ा कितनी बड़ी थी जिसे अय्यूब के द्वारा मस्तिष्क से लेकर देह तक, बाहर से लेकर भीतर तक सहा गया था। आज, हम नहीं देख पाते हैं कि उस समय यह कैसा था, और हम केवल बाइबल के लेखों से ही अय्यूब की भावनाओं की एक छोटी सी झलक प्राप्त कर सकते हैं जब उस समय उसे पीड़ा के अधीन किया गया था।

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