स्वयं को जानने के बारे में वचन (अंश 44)
अगर लोग खुद को जानना चाहते हैं, तो उन्हें अपने भ्रष्ट स्वभाव को जानना होगा, और अपनी वास्तविक दशाओं को समझना होगा। अपनी दशा को जानने का सबसे महत्वपूर्ण पहलू अपनी सोच और विचारों को समझना है। हर कालावधि में, लोगों की सोच और विचारों को एक ही बड़ी चीज ने नियंत्रित किया है। अगर तुम अपनी सोच और विचारों को समझ सकते हो, तो तुम उन चीजों को भी समझ पाओगे जो उनके पीछे होती हैं। लोग अपनी सोच और विचारों को नियंत्रित नहीं कर सकते। लेकिन, तुम्हारे लिए यह जानना आवश्यक है कि ऐसी सोच और विचार कहां से आते हैं, उनके पीछे की मंशाएँ क्या हैं, ऐसी सोच और विचार कैसे उत्पन्न होते हैं, उन्हें क्या चीज नियंत्रित करती है, और उनकी प्रकृति क्या है। जब किसी व्यक्ति का स्वभाव बदल जाता है, तो उसके बाद वह व्यक्ति जैसी सोच, विचारों, दृष्टिकोणों और लक्ष्यों को पाने की कोशिश करता है, जो उस बदले हुए भाग से उत्पन्न हुए हैं, वे पहले की तुलना में बहुत भिन्न होंगे—वास्तव में, वे सत्य की ओर जाएंगे और सत्य के अनुरूप रहेंगे। लोगों के भीतर जो चीजें बदली नहीं हैं, यानी उनकी पुरानी सोच, विचार, और दृष्टिकोण के साथ ही वे चीजें जिन्हें लोग पसंद करते हैं और जिनका अनुसरण करते हैं, वे बहुत ही गंदी, कुत्सित और घिनौनी होती हैं। सत्य को जान लेने के बाद, लोग इन चीजों को पहचानने और इन्हें स्पष्ट रूप से देखने में समर्थ हो जाते हैं; इसलिए, वे इन चीजों को छोड़कर इनके खिलाफ विद्रोह कर पाते हैं। इस तरह के लोग निश्चित रूप से किसी न किसी तरह से बदल गए हैं। वे सत्य को स्वीकारने, सत्य पर अमल करने, और कुछ सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करने में समर्थ हो जाते हैं। जो लोग सत्य को नहीं समझते हैं, वे इन भ्रष्ट या नकारात्मक चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते, न ही उन्हें पहचान सकते हैं; इसलिए, वे इन चीजों की ओर से मुंह मोड़ना तो दूर, इनके खिलाफ विद्रोह करने में भी असमर्थ रहते हैं। इस अंतर का क्या कारण है? ऐसा क्यों है कि वे सब विश्वासी हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही लोग नकारात्मक और दूषित चीजों को पहचान सकते हैं, और उन्हें छोड़ सकते हैं, जबकि दूसरे इन चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, न ही खुद को उनसे मुक्त कर पाते हैं? यह स्पष्ट रूप से इस बात से जुड़ा है कि क्या वह व्यक्ति सत्य से प्रेम करता है और उसे पाना चाहता है। जब वो लोग जो सत्य को पाना चाहते हैं, कुछ अवधि तक परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं, और कुछ समय तक प्रवचनों को सुनते हैं, तब वे सत्य को समझ पाते हैं, और कुछ चीजों को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं; उन्होंने अपने जीवन में प्रगति कर ली है। इसके विपरीत, जो सत्य से प्रेम नहीं करते, वे भले ही उसी भांति सभाओं में जाएं, परमेश्वर के वचनों को पढ़ें, और प्रवचनों को सुनें, मगर वे सत्य को जान पाने में असमर्थ रहते हैं, और चाहे वे कितने ही वर्षों से विश्वासी रहे हों, जीवन प्रवेश नहीं कर पाते। ये लोग असफल रहे क्योंकि इन्होंने सत्य की खोज नहीं की। जो लोग सत्य की खोज नहीं करते वे सत्य को समझने में असमर्थ रहते हैं, चाहे उन्होंने कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास किया हो। जब उनका किसी हालात से सामना होता है तो वे उसे स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, लगभग वैसे ही जैसे कि वे कोई धार्मिक व्यक्ति हों। अपनी वर्षों की आस्था से उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया है। अब तुम लोग कितना सत्य समझते हो? तुम किन चीजों को स्पष्ट रूप से देख सकते हो? क्या तुम नकारात्मक चीजों और लोगों को पहचान सकते हो? तुम नहीं जानते कि परमेश्वर में विश्वास करना क्या होता है, न ही यह जानते हो कि तुम वास्तव में किसमें विश्वास करते हो। तुम अपने दैनिक जीवन के विचारों और इरादों को स्पष्ट रूप से नहीं पहचान सकते, तुम्हें पूरी तरह से यह भी पता नहीं है कि परमेश्वर के विश्वासी के रूप में तुम्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए, और तुम यह भी नहीं जानते कि अपने कामकाज करते हुए या कर्तव्य निभाते समय तुम्हें सत्य का अभ्यास कैसे करना चाहिए। ये वे लोग हैं जिन्हें जीवन-प्रवेश प्राप्त नहीं है। केवल सही अर्थों में सत्य को समझकर, और यह जानकर कि सत्य पर कैसे चलना है, तुम विभिन्न तरह के लोगों को पहचान सकते हो, विभिन्न परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से देख सकते हो, सत्य के अनुरूप काम कर सकते हो, परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने में समर्थ हो सकते हो और परमेश्वर के इरादों के अधिकाधिक करीब पहुंच सकते हो। केवल इस तरह से अनुसरण करके ही तुम परिणाम प्राप्त करोगे।
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