परमेश्वर का कार्य और स्वभाव जानने के बारे में वचन (अंश 26)

विभिन्न प्रकार के लोग होते हैं और उनमें भेद इस बात से किया जाता है कि उनके पास किस प्रकार की आत्मा है। कुछ लोगों में मानवीय आत्माएँ होती हैं, और वे वही होते हैं जिन्हें परमेश्वर ने पूर्वनियत किया और चुना है। कुछ लोगों में मानवीय आत्मा नहीं होती; वे दुष्टात्माएँ हैं, जो धोखा देकर घुस आई हैं। जो पूर्वनियत नहीं किए गए थे और जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना नहीं गया था, अगर वे किसी तरह परमेश्वर के घर में आ भी गए, तब भी उन्हें बचाया नहीं जा सकता, और अंततः उन्हें बेनकाब कर निकाल दिया जाएगा। लोग परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर पाते हैं या नहीं, और उसे स्वीकार करने के बाद वे किस तरह के मार्ग पर चलते हैं और वे बदल सकते हैं या नहीं, यह सब उनके भीतर की आत्मा और प्रकृति पर निर्भर करता है। कुछ लोग भटकने से खुद को रोक नहीं पाते; उनकी आत्मा उन्हें ऐसे लोगों के रूप में नियत करती है, और वे बदल नहीं सकते। कुछ लोगों में पवित्र आत्मा काम नहीं करता, क्योंकि वे सही मार्ग पर नहीं चलते; हालाँकि अगर वे खुद को बदल सकें, तो अभी भी पवित्र आत्मा कार्य कर सकता है। अगर वे ऐसा नहीं करते, तो उनके लिए सब खत्म हो जाएगा। हर तरह की स्थिति रहती है, लेकिन परमेश्वर हर व्यक्ति के साथ अपने व्यवहार में धार्मिक होता है। लोग परमेश्वर के धार्मिक स्‍वभाव को कैसे जानते और समझते हैं? धार्मिक व्‍यक्ति उसके आशीष प्राप्‍त करते हैं और दुष्ट उसके द्वारा शापित होते हैं। यही परमेश्वर की धार्मिकता है। परमेश्वर अच्छाई को पुरस्‍कृत और बुराई को दण्डित करता है, और वह प्रत्‍येक मनुष्‍य के कर्मों के अनुसार उसका फल देता है। यह सही है, लेकिन वर्तमान में कुछ घटनाएँ ऐसी हैं जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं हैं, जैसे कि कुछ लोग परमेश्वर पर विश्वास और उसकी आराधना करते हैं, वे उसके द्वारा मारे या शापित किए जाते हैं, या जिन्हें परमेश्वर ने न तो कभी आशीष दी और न ही उन पर कोई ध्यान दिया; वे चाहे उसकी जितनी भी आराधना करें, वह उन्हें अनदेखा करता है। कुछ ऐसे कुकर्मी लोग भी हैं जिन्हें परमेश्वर न तो आशीष देता है, न ही दंड देता है, तब भी वे समृद्ध हैं और उनकी कई संततियाँ हैं, और उनके लिए सब अच्छा ही होता है; वे हर चीज में सफल होते हैं। क्‍या यही परमेश्वर की धार्मिकता है? कुछ लोग कहते हैं, “हम परमेश्वर की आराधना करते हैं, फिर भी हमें उससे आशीष प्राप्त नहीं हुए, जबकि परमेश्वर की आराधना न करने वाले, यहाँ तक कि उसका विरोध करने वाले कुकर्मी लोग भी हमसे बेहतर और अधिक समृद्ध जीवन जी रहे हैं। परमेश्वर धार्मिक नहीं है!” यह तुम लोगों को क्‍या दर्शाता है? मैंने अभी तुम्‍हें दो उदाहरण दिए। इनमें से कौन-सा परमेश्वर की धार्मिकता की बात करता है? कुछ लोग कहते हैं, “वे दोनों परमेश्वर की धार्मिकता को सामने लाते हैं!” वे यह क्‍यों कहते हैं? परमेश्वर के कार्यों के सिद्धांत हैं—बस लोग उन्हें स्पष्ट रूप से देख नहीं पाते, और उन्हें स्पष्ट रूप से न देख पाने के कारण वे यह नहीं कह सकते कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है। मनुष्य केवल वही देख सकता है जो सतह पर होता है; वे चीजों को उनके सही रूप में नहीं देख पाते। इसलिए, परमेश्वर जो करता है वह धार्मिक होता है, चाहे वह मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं के कितना भी कम अनुरूप क्यों न हो। ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो लगातार शिकायत करते रहते हैं कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे स्थिति की असलियत नहीं समझते। चीजों को हमेशा अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आलोक में देखने पर उनके लिए गलतियाँ करना आसान होता है। लोगों का ज्ञान उनके विचारों और दृष्टिकोणों में, लेनदेन करने के उनके विचारों के भीतर, या अच्छे और बुरे, सही और गलत या तर्क के संबंध में उनके परिप्रेक्ष्यों के भीतर मौजूद होता है। जब कोई चीजों को ऐसे परिप्रेक्ष्यों से देखता है, तो उसके लिए परमेश्वर को गलत समझना और धारणाओं को जन्म देना आसान होता है, और वह व्यक्ति परमेश्वर का विरोध और उसके बारे में शिकायत करेगा। एक गरीब व्यक्ति था जो केवल परमेश्वर की आराधना करना जानता था, लेकिन परमेश्वर ने उसकी अनदेखी कर दी और उसे आशीष नहीं दिया। शायद तुम लोग सोच रहे होगे, “भले ही परमेश्वर ने उसे इस जीवन में आशीष नहीं दी, लेकिन निश्चित रूप से उसे अनंतकाल में आशीष देगा और दस हजार गुना अधिक पुरस्कृत करेगा। क्या यह परमेश्वर को धार्मिक नहीं बनाता? एक अमीर व्यक्ति इस जीवन में सौ गुना आशीष का आनंद लेता है, और अनंतकाल में अपने विनाश को प्राप्त होता है। क्या यह भी परमेश्वर की धार्मिकता नहीं है?” किसी व्यक्ति को परमेश्वर की धार्मिकता को कैसे समझना चाहिए? परमेश्वर के कार्य को समझने का उदाहरण लेकर इसे समझो : अनुग्रह के युग में अपना काम पूरा करने के बाद अगर परमेश्वर ने अपना कार्य समाप्त कर दिया होता और अंत के दिनों का न्याय का कार्य न किया होता, और मानवजाति को पूरी तरह से न बचाया होता, जिसके कारण मानवता का पूरी तरह से विनाश हो जाता, तो क्या उसे प्रेम और धार्मिकता धारण करने वाला माना जा सकता था? अगर परमेश्वर की आराधना करने वाले लोगों को आग और गंधक की झील में डाल दिया जाता है, जबकि जो लोग परमेश्वर की आराधना नहीं करते और यहाँ तक कि परमेश्वर के अस्तित्व से भी परिचित नहीं हैं उन्हें परमेश्वर जीवित रहने देता है, तो इससे क्या अर्थ निकाला जाना चाहिए? धर्म-सिद्धांत के संदर्भ में बोलते समय लोग आम तौर पर हमेशा कहते हैं कि परमेश्वर धार्मिक है, लेकिन अगर ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े, तो हो सकता है कि वे उचित प्रकार से भेद न पहचान पाएँ और यहाँ तक कि परमेश्वर के बारे में शिकायत करें और उसे अधार्मिक बताकर उसकी आलोचना करें।

परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता को अच्छी तरह से समझा जाना चाहिए और परमेश्वर के वचनों और सत्य के आधार पर बताया और समझा जाना चाहिए। इसके भी अधिक, परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता को वास्तव में समझने के लिए व्यक्ति को वास्तविक अनुभव से गुजरना चाहिए और परमेश्वर का प्रबोधन प्राप्त करना चाहिए। उसके प्रेम और धार्मिकता के मूल्यांकन का आधार व्यक्ति की धारणाएँ और कल्पनाएँ नहीं होनी चाहिए। मानव धारणाओं के अनुसार, अच्छाई को पुरस्कार दिया जाता है और बुराई को दंड दिया जाता है, अच्छे लोगों को अच्छा प्रतिफल मिलता है और दुष्ट व्यक्तियों को बुराई का प्रतिफल मिलता है, और जो बुराई नहीं करते उन सभी को अच्छाई का प्रतिफल मिलता है और आशीष प्राप्त होता है। ऐसा लगेगा कि ऐसे सभी मामलों में जहाँ लोग दुष्ट नहीं हैं, उन्हें अच्छाई का प्रतिफल दिया जाना चाहिए; केवल यही परमेश्वर की धार्मिकता है। क्या यह लोगों की धारणा नहीं है? लेकिन अगर वे अच्छा प्रतिफल प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं तो क्या? फिर क्या तुम कहोगे कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है? उदाहरण के लिए, नूह के समय में, परमेश्वर ने नूह से कहा : “सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे सामने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिये मैं उनको पृथ्वी समेत नष्‍ट कर डालूँगा” (उत्पत्ति 6:13)। तब उसने नूह को नाव बनाने का आदेश दिया। जब नूह ने परमेश्वर का आदेश स्वीकार कर नाव बना ली, तब चालीस दिनों और रातों तक धरती पर भारी मूसलाधार वर्षा हुई, पूरी दुनिया बाढ़ में डूब गई और, नूह और उसके परिवार के सात सदस्यों को छोड़कर, परमेश्वर ने उस युग के सभी मनुष्यों को नष्ट कर दिया। तुम लोग इससे क्या समझते हो? क्या तुम लोग कहोगे कि परमेश्वर स्नेही नहीं है? जहाँ तक मनुष्य का संबंध है, मानवजाति चाहे कितनी ही भ्रष्ट हो, अगर परमेश्वर मानवजाति को नष्ट करता है, तो इसका मतलब है कि वह स्नेही नहीं है—क्या ऐसा मानना सही है? क्या यह मानना बेतुका नहीं है? परमेश्वर ने जिन लोगों का विनाश किया उनसे वह प्रेम नहीं करता था, लेकिन क्या तुम ईमानदारी से कह सकते हो कि वह उन लोगों से प्यार नहीं करता था जो बच गए और जिन्होंने उसका उद्धार प्राप्त किया? पतरस परमेश्वर से अनंत प्रेम करता था और परमेश्वर भी पतरस से प्रेम करता था—क्या तुम सच में कह सकते हो कि परमेश्वर स्नेही नहीं है? परमेश्वर उनसे प्रेम करता है जो उससे वास्तव में प्यार करते हैं और वह उन लोगों से घृणा करता है और उन्हें शाप देता है जो उसका विरोध करते हैं और पश्चात्ताप करने से इनकार करते हैं। परमेश्वर में प्रेम और घृणा दोनों है, यही सत्य है। लोगों को अपनी धारणाओं या कल्पनाओं के अनुसार परमेश्वर के बारे में अपनी राय नहीं बनानी चाहिए या उसे सीमांकित नहीं करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य की धारणाएँ और कल्पनाएँ उसका चीजों को देखने का तरीका है, और इसमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं होती है। परमेश्वर को मनुष्य के प्रति उसके रवैये, उसके स्वभाव और सार के आधार पर जाना जाना चाहिए। परमेश्वर जो भी करता है और जिन चीजों का समाधान करता है उन्हें बाहर से देखकर व्यक्ति को परमेश्वर के सार को परिभाषित करने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। मानवजाति को शैतान ने बहुत ज्यादा भ्रष्ट कर दिया है; वे भ्रष्ट मानवजाति के प्रकृति-सार को नहीं जानते, इस बारे में तो बिल्कुल भी नहीं जानते कि भ्रष्ट मानवजाति परमेश्वर के समक्ष क्या है, न ही यह जानते हैं कि उसके धार्मिक स्वभाव के अनुसार उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। अय्यूब को ही देखो, वह एक धार्मिक व्यक्ति था और परमेश्वर ने उसे आशीष दी। यह परमेश्वर की धार्मिकता थी। शैतान ने यहोवा के साथ एक शर्त लगाई : “क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बाँधा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा” (अय्यूब 1:9-11)। यहोवा परमेश्वर ने कहा, “जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना” (अय्यूब 1:12)। तब शैतान अय्यूब के पास गया, उस पर हमला किया और उसे प्रलोभन दिया, और अय्यूब ने परीक्षणों का सामना किया। उसके पास मौजूद सब कुछ छिन गया—उसने अपने बच्चे और अपनी संपत्ति खो दी, और उसका पूरा शरीर छालों से भर गया। अब, क्या अय्यूब की परीक्षाओं में परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव था? तुम लोग स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते, है ना? अगर तुम एक धार्मिक व्यक्ति भी हो, तो भी परमेश्वर को तुम्हें परीक्षण का भागी बनाने और अपनी गवाही देने की अनुमति देने का अधिकार है। परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक है; वह सबके साथ समान व्यवहार करता है। ऐसा नहीं है कि धार्मिक लोगों को फिर परीक्षणों से गुजरने की जरूरत नहीं है भले ही वे इन्हें बर्दाश्त कर सकते हैं या फिर उनकी रक्षा की ही जानी चाहिए; यह बात नहीं है। परमेश्वर को धार्मिक लोगों को परीक्षणों में डालने का अधिकार है। यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का प्रकाशन है। अंत में, अय्यूब के परीक्षणों से गुजरने और यहोवा की गवाही देने के बाद, यहोवा ने उसे पहले से भी अधिक आशीष दी, पहले से बेहतर आशीष दी और उसने दोगुनी आशीष दी। इतना ही नहीं, यहोवा ने उसे दर्शन दिए, और बवंडर में से उससे बातें कीं, और अय्यूब ने मानो उसे आमने-सामने देखा। यह परमेश्वर द्वारा उसे दी गई आशीष थी। यह परमेश्वर की धार्मिकता थी। जब अय्यूब परीक्षण से गुजर चुका और यहोवा ने देखा कि कैसे अय्यूब ने शैतान की मौजूदगी में उसकी गवाही दी और शैतान को लज्जित किया, तब अगर यहोवा उसे अनदेखा कर मुड़कर चला जाता, और बाद में अय्यूब को आशीष नहीं मिलती—तो क्या इसमें परमेश्वर की धार्मिकता होती? परीक्षणों के बाद अय्यूब को आशीष मिली या नहीं, या यहोवा ने उसे दर्शन दिए या नहीं, इन सब में परमेश्वर की सदिच्छा शामिल है। अय्यूब को दर्शन देना परमेश्वर की धार्मिकता थी, और उसे दर्शन न देना भी परमेश्वर की धार्मिकता होती। तुम—सृजित प्राणी—किस आधार पर परमेश्वर से माँग करते हो? लोग परमेश्वर से माँगें करने के योग्य नहीं हैं। परमेश्वर से माँगें करने से ज्यादा अनुचित कुछ नहीं है। वह वही करेगा जो उसे करना ही चाहिए, और उसका स्‍वभाव धार्मिक है। धार्मिकता किसी भी तरह से निष्पक्षता या तर्कसंगतता नहीं है; यह समतावाद नहीं है, या तुम्‍हारे द्वारा पूरे किए गए काम के अनुसार तुम्‍हें तुम्‍हारे हक का हिस्‍सा आवंटित करने, या तुमने जो भी काम किया हो उसके बदले भुगतान करने, या तुम्‍हारे किए प्रयास के अनुसार तुम्‍हारा देय चुकाने का मामला नहीं है। यह धार्मिकता नहीं है, यह केवल निष्पक्ष और विवेकपूर्ण होना है। बहुत कम लोग परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को जान पाते हैं। मान लो कि अय्यूब द्वारा उसकी गवाही देने के बाद परमेश्वर अय्यूब को खत्‍म कर देता : क्या यह धार्मिक होता? वास्तव में, यह धार्मिक होता। इसे धार्मिकता क्‍यों कहा जाता है? लोग धार्मिकता को कैसे देखते हैं? अगर कोई चीज लोगों की धारणाओं के अनुरूप होती है, तब उनके लिए यह कहना बहुत आसान हो जाता है कि परमेश्वर धार्मिक है; परंतु, अगर वे उस चीज को अपनी धारणाओं के अनुरूप नहीं पाते—अगर यह कुछ ऐसा है जिसे वे बूझ नहीं पाते—तो उनके लिए यह कहना मुश्किल होगा कि परमेश्वर धार्मिक है। अगर परमेश्वर ने पहले तभी अय्यूब को नष्‍ट कर दिया होता, तो लोगों ने यह न कहा होता कि वह धार्मिक है। वास्तव में, लोग भ्रष्‍ट कर दिए गए हों या नहीं, वे बुरी तरह से भ्रष्‍ट कर दिए गए हों या नहीं, उन्हें नष्ट करते समय क्या परमेश्वर को इसका औचित्य सिद्ध करना पड़ता है? क्‍या उसे लोगों को बतलाना चाहिए कि वह ऐसा किस आधार पर करता है? क्या परमेश्वर को लोगों को बताना चाहिए कि उसने कौन से नियम बनाए हैं? इसकी आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर की नजरों में, जो व्यक्ति भ्रष्‍ट है, और जो परमेश्वर का विरोध कर सकता है, वह व्यक्ति बेकार है; परमेश्वर चाहे जैसे भी उससे निपटे, वह उचित ही होगा, और यह सब परमेश्वर की व्यवस्था है। अगर तुम लोग परमेश्वर की निगाहों में अप्रिय होते, और अगर वह कहता कि तुम्‍हारी गवाही के बाद तुम उसके किसी काम के नहीं हो और इसलिए उसने तुम लोगों को नष्‍ट कर दिया होता, तब भी क्‍या यह उसकी धार्मिकता होती? हाँ, होती। तुम इसे तथ्यों से इस समय भले न पहचान सको, लेकिन तुम्‍हें धर्म-सिद्धांत में इसे समझना ही चाहिए। तुम लोग क्‍या कहोगे—परमेश्वर द्वारा शैतान का विनाश क्‍या उसकी धार्मिकता की अभिव्‍यक्ति है? (हाँ।) अगर उसने शैतान को बने रहने दिया होता, तब तुम क्‍या कहते? तुम हाँ कहने का दुस्‍साहस तो नहीं करते? परमेश्वर का सार धार्मिकता है। हालाँकि वह जो करता है उसे बूझना आसान नहीं है, तब भी वह जो कुछ भी करता है वह सब धार्मिक है; बात सिर्फ इतनी है कि लोग समझते नहीं हैं। जब परमेश्वर ने पतरस को शैतान के सुपुर्द कर दिया था, तब पतरस की प्रतिक्रिया क्‍या थी? “तुम जो भी करते हो उसकी थाह तो मनुष्‍य नहीं पा सकता, लेकिन तुम जो भी करते हो उस सब में तुम्‍हारी सदिच्छा समाई है; उस सब में धार्मिकता है। यह कैसे सम्‍भव है कि मैं तुम्‍हारी बुद्धि और कर्मों की सराहना न करूँ?” अब तुम्हें यह देखना चाहिए कि मनुष्य के उद्धार के समय परमेश्वर द्वारा शैतान को नष्ट न किए जाने का कारण यह है कि मनुष्य स्पष्ट रूप से देख सकें कि शैतान ने उन्हें कैसे और किस हद तक भ्रष्ट किया है, और परमेश्वर कैसे उन्हें शुद्ध करके बचाता है। अंततः, जब लोग सत्य समझ लेंगे और शैतान का घिनौना चेहरा स्पष्ट रूप से देख लेंगे, और शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का महापाप देख लेंगे, तो परमेश्वर उन्हें अपनी धार्मिकता दिखाते हुए शैतान को नष्ट कर देगा। जब परमेश्वर शैतान को नष्ट करेगा, वह समय परमेश्वर के स्वभाव और बुद्धि से भरा होगा। वह सब जो परमेश्वर करता है धार्मिक है। भले ही लोग परमेश्वर की धार्मिकता को समझ न पाएँ, तब भी उन्हें मनमाने ढंग से आलोचना नहीं करनी चाहिए। अगर मनुष्यों को उसका कोई कृत्‍य अतर्कसंगत प्रतीत होता है, या उसके बारे में उनकी कोई धारणाएँ हैं, और उसकी वजह से वे कहते हैं कि वह धार्मिक नहीं है, तो वे सर्वाधिक विवेकहीन साबित हो रहे हैं। तुम देखो कि पतरस ने पाया कि कुछ चीजें अबूझ थीं, लेकिन उसे पक्का विश्‍वास था कि परमेश्वर की बुद्धिमता विद्यमान थी और उन चीजों में उसकी इच्छा थी। मनुष्‍य हर चीज की थाह नहीं पा सकते; इतनी सारी चीजें हैं जिन्‍हें वे समझ नहीं सकते। इस तरह, परमेश्वर के स्‍वभाव को जानना आसान बात नहीं है। धार्मिक संसार में परमेश्वर पर विश्वास करने वाले बहुत सारे लोग होने के बावजूद, कुछ ही लोग उसके स्वभाव को समझ पाते हैं। जब कुछ लोगों ने धार्मिक लोगों के बीच सुसमाचार फैलाने का प्रयास किया और उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़वाए, न सिर्फ उन्होंने खोज और जाँच करने का प्रयास नहीं किया, उन्होंने तो परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को ही जला दिया और दंडित हुए। अन्य लोगों ने अफवाहों पर विश्वास किया, परमेश्वर की निंदा की और दंडित हुए। इस तरह की चीजों के घटित होने के बहुत सारे, वास्तव में, अनगिनत उदाहरण हैं। कुछ नए विश्वासी अभिमानी और घमंडी होते हैं, इसलिए वे जब इस बारे में सुनते हैं तो इसे स्वीकार नहीं करते हैं—वे धारणाएँ विकसित कर लेते हैं। परमेश्वर देखता है कि तुम मूर्ख और अज्ञानी हो और वह तुम्हारी अनदेखी कर देता है, लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब वह तुम्हें समझा देगा। अगर तुमने बहुत सालों तक परमेश्वर का अनुसरण किया है और अभी भी इस तरह से, अपनी धारणाओं से चिपके रहते हुए व्यवहार करते हो, न सिर्फ समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य की खोज नहीं करते, बल्कि अपनी धारणाओं को हर तरफ फैला रहे हो और परमेश्वर के घर का मजाक उड़ा रहे हो और व्यंग्य कर रहे हो, तो तुमको प्रतिशोध का सामना करना पड़ेगा। कुछ मामलों में, परमेश्वर तुमको क्षमा कर सकता है, क्योंकि तुम केवल मूर्ख और अज्ञानी थे, लेकिन अगर तुम बेहतर जानते हो और फिर भी जान-बूझकर इस तरह से व्यवहार करते हो, चाहे तुमको जितनी भी सलाह दी जाए इसके बावजूद सुनने में असफल रहते हो, तो तुम्हें परमेश्वर द्वारा दंडित किया ही जाएगा। तुम केवल यह जानते हो कि परमेश्वर का एक सहनशील पक्ष है, लेकिन यह मत भूलो कि दूसरा पक्ष यह है कि उसका अपमान नहीं किया जा सकता, जो कि उसका धार्मिक स्वभाव है।

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