परमेश्वर का कार्य और स्वभाव जानने के बारे में वचन (अंश 19)
अधिकांश लोग परमेश्वर का कार्य नहीं समझते, इसलिए उनमें आस्था का अत्यंत अभाव होता है। परमेश्वर का कार्य जानना आसान नहीं है; सबसे पहले यह जानना होगा कि परमेश्वर के समूचे कार्य के पीछे एक योजना है और यह सब परमेश्वर द्वारा नियत समय पर किया जाता है। मनुष्य इसकी थाह कभी नहीं पा सकता कि परमेश्वर क्या कार्य करता है और कब करता है; परमेश्वर निश्चित समय पर निश्चित कार्य करता है, और वह देरी नहीं करता; कोई उसका कार्य नष्ट नहीं कर सकता। अपनी योजना के अनुसार और अपने इरादों के अनुसार कार्य करना वह सिद्धांत है जिसके अनुसार वह अपना कार्य करता है, और कोई व्यक्ति इसे बदल नहीं सकता। इसी में तुम्हें परमेश्वर का स्वभाव देखना चाहिए। परमेश्वर का कार्य किसी का इंतजार नहीं करता, और जब कोई कार्य करने का समय हो, तो उसे करना ही चाहिए। तुम सभी लोगों ने पिछले कुछ वर्षों में परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है। कोई उस तरीके को कैसे नष्ट कर सकता है, जिससे वह लोगों के लिए प्रावधान करता है, उसे जिन वचनों को कहने की आवश्यकता होती है कौन उसे उन्हें कहने से रोक सकता है और जब उसे कार्य करने की आवश्यकता होती है तो कौन उसे उन्हें करने से रोक सकता है? पहली बार सुसमाचार फैलाना शुरू करते समय ज्यादातर लोगों ने कलीसिया के लोगों और धार्मिक लोगों को परमेश्वर के वचनों की किताबें बाँटी। इसका परिणाम क्या हुआ? इनमें से बहुत कम लोगों ने परमेश्वर के वचनों की जाँच-पड़ताल की; उनमें से अधिकांश लोग निंदा करने वाले, आलोचना करने वाले और शत्रुता से भरे हुए थे। कुछ लोगों ने किताबें जला दीं, कुछ लोगों ने उन्हें जब्त कर लिया, कुछ लोगों ने उन लोगों को पीटा जो सुसमाचार फैला रहे थे और उन्हें अपना अपराध स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, और कुछ लोगों ने उन्हें गिरफ्तार करने और उन पर अत्याचार करने के लिए पुलिस भी बुला ली। उस समय, सभी संप्रदायों ने उन्मत्त हो कर विरोध किया, लेकिन अंततः, राज्य का सुसमाचार फिर भी चीन की मुख्य भूमि पर सब जगह प्रसारित कर दिया गया। परमेश्वर की इच्छा के क्रियान्वयन में कौन बाधा डाल सकता है? परमेश्वर के राज्य सुसमाचार के फैलाव को कौन रोक सकता है? परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज सुनती हैं, और जो लोग परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने चाहिए वे देर-सबेर प्राप्त कर लिए जाएँगे। यह ऐसी चीज है जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता है। यह नीतिवचन के उस वाक्य के समान है जिसमें कहा गया है, “राजा का मन नालियों के जल के समान यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उसको मोड़ देता है” (नीतिवचन 21:1)। यह उन तुच्छ लोगों के मामले में और भी अधिक उपयुक्त है, है ना? परमेश्वर कब कौन सा कार्य करेगा इस बारे में उसकी अपनी योजनाएँ और व्यवस्थाएँ हैं। कुछ लोग हमेशा यह राय बनाते हैं कि परमेश्वर के लिए यह या वह करना असंभव है, लेकिन ऐसे विचार लोगों की कोरी कल्पनाएँ हैं। लोग चाहे कितना भी नुकसान करें और शैतान चाहे कितनी भी परेशानी खड़ी करे, इससे कुछ नहीं होगा, और वे परमेश्वर का कार्य नहीं रोक पाएँगे। पवित्र आत्मा का कार्य ही सब कुछ तय करता है, और पवित्र आत्मा के कार्य के बिना लोग कुछ भी पूरा नहीं कर सकते हैं। इस संबंध में लोगों के पास किस प्रकार का विवेक होना चाहिए? जब किसी व्यक्ति को पता चले कि पवित्र आत्मा कार्य नहीं कर रहा है, तो उसे अपनी धारणाओं को जाने देना चाहिए और सावधान रहना चाहिए कि वह आँख बंद करके कुछ भी न करे। परमेश्वर के इरादों को खोजना और परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करना ही बुद्धिमानी है। कुछ लोग हमेशा अपनी मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा करते हैं और परमेश्वर से पहले कार्य करते हैं, और इसका परिणाम यह होता है कि पवित्र आत्मा कार्य नहीं करता है और उनके प्रयास व्यर्थ होते हैं। हालाँकि, लोगों को वही करना चाहिए जो उन्हें करना चाहिए, और उन्हें अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। तुम कुछ गलत करने के डर से खाली बैठकर प्रतीक्षा नहीं करते रह सकते हो, और तुम निश्चित रूप से यह नहीं कह सकते हो, “परमेश्वर ने अभी तक यह नहीं किया है, और परमेश्वर ने अभी तक यह नहीं कहा है कि वह मुझसे क्या करवाना चाहता है, इसलिए मैं फिलहाल कुछ नहीं करूँगा।” क्या यह तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में विफलता नहीं है? तुम्हें इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि यह कोई छोटी बात नहीं है, और सोच की एकमात्र त्रुटि भी तुम्हारी संभावनाओं को नुकसान पहुँचा सकती है या तुम्हें बर्बाद कर सकती है।
अपनी प्रबंधन योजना के तहत, परमेश्वर जो भी कार्य करता है वह निर्धारित समय पर, सही समय पर, बहुत सटीक तरीके से करता है, और उन लोगों की कल्पना के अनुसार बिल्कुल नहीं करता है जो कहते हैं, “इस काम से कुछ नहीं होगा, उस काम से कुछ नहीं होगा, यह तुम्हें कहीं नहीं ले जायेगा!” परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और परमेश्वर के लिए कुछ भी कठिन नहीं है। व्यवस्था के युग से लेकर अनुग्रह के युग और फिर राज्य के युग तक, परमेश्वर के कार्य का हर चरण उन लोगों की धारणाओं के विपरीत किया गया है, जो सोचते हैं कि यह सब असंभव है। फिर भी, अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है, और शैतान पूरी तरह से बदनाम और विफल हो जाता है, और लोग शर्म से अपना मुँह ढक लेते हैं। लोग क्या कर सकते हैं? वे सत्य का अभ्यास भी नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी वे अहंकारी और दंभी हो सकते हैं और सोचते हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं, और उनके दिल अत्यधिक इच्छाओं से भरे होते हैं, और वे बिल्कुल भी सच्ची गवाही नहीं देते हैं। ऐसे लोग भी हैं जो सोचते हैं, “परमेश्वर का दिन जल्द ही आ रहा है, हमें अब और कष्ट नहीं सहना पड़ेगा, हमारा जीवन अच्छा होगा, और अंत निकट है।” मैं तुम लोगों को बता दूँ, ऐसे लोग बस मस्ती के लिए साथ आ रहे हैं और मजे कर रहे हैं, और अंत में उन्हें केवल दंड मिलेगा और कुछ भी नहीं! परमेश्वर का दिन देखने और महाविपत्ति से बचने की खातिर परमेश्वर में विश्वास रखने से क्या किसी को सत्य और जीवन प्राप्त करने में मदद मिल सकती है? जो कोई महाविपत्ति से बचने और परमेश्वर का दिन देखने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखता है वह नष्ट हो जाएगा। हालाँकि, जो लोग सत्य का अनुसरण करने में और स्वभाव में परिवर्तन के माध्यम से बचाए जाने में विश्वास रखते हैं वे जीवित रहेंगे। ये ही परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हैं। उन भ्रमित विश्वासियों को अंत में कुछ भी हासिल नहीं होगा, उनका कार्य व्यर्थ होगा, और उन्हें और भी अधिक दंडित किया जाएगा। सभी लोगों में अंतर्दृष्टि की भारी कमी है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, लेकिन अपने उचित कर्तव्य नहीं करते हैं और हमेशा दुष्ट चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, वे दुराचारी होते हैं, वे छद्म-विश्वासी हैं और केवल खुद को नुकसान पहुँचा सकते हैं। क्या विश्वासी और गैर-विश्वासी दोनों ही परमेश्वर के हाथों में नहीं हैं? परमेश्वर के हाथ से कौन बच सकता है? कोई नहीं बच सकता! जो लोग बच जाते हैं उन्हें अंततः परमेश्वर के पास लौटना होगा और दंडित होना होगा। यह तो जाहिर है, लोग इसे स्पष्ट रूप से क्यों नहीं देख पाते?
भले ही कुछ लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखते हों, फिर भी उन्हें परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता का जरा भी ज्ञान नहीं होता है। वे निम्नलिखित प्रश्न को लेकर लगातार भ्रमित रहते हैं : “जब परमेश्वर सर्वशक्तिमान और अधिकार-संपन्न है, और वह सभी चीजों पर संप्रभुता रखने में सक्षम है, फिर भी उसने शैतान को क्यों बनाया, उसे 6,000 वर्षों तक मानवजाति को भ्रष्ट करने और दुनिया को ऐसी अव्यवस्था की स्थिति में झोंकने की अनुमति क्यों दी? परमेश्वर शैतान को नष्ट क्यों नहीं करता? यदि शैतान को हटा दिया जाए तो क्या लोगों का जीवन अच्छा नहीं होगा?” अधिकांश लोग इसी तरह सोचते हैं। क्या तुम लोग अब इस मुद्दे को समझा सकते हो? इसमें दृष्टि से संबंधित सत्य शामिल हैं। इस प्रश्न पर कई लोगों ने विचार किया है, लेकिन अब जब तुम्हारे पास एक तरह की नींव है, तो तुम लोग इस वजह से परमेश्वर पर संदेह नहीं करोगे। हालाँकि, इस बारे में उलझन दूर की जानी चाहिए। ऐसे कुछ लोग हैं जो पूछते हैं, “परमेश्वर ने प्रधान स्वर्गदूत को अपने साथ विश्वासघात करने की अनुमति क्यों दी? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर नहीं जानता था कि प्रधान स्वर्गदूत उसके साथ विश्वासघात करने में सक्षम था? क्या परमेश्वर इसे नियंत्रित करने में विफल रहा, क्या उसने इसकी अनुमति दी, या परमेश्वर का कोई उद्देश्य था?” लोगों के लिए यह प्रश्न करना सामान्य है, और उन्हें पता होना चाहिए कि इस प्रश्न में परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना शामिल है। परमेश्वर ने वहाँ के लिए एक प्रधान स्वर्गदूत की व्यवस्था की और परमेश्वर के साथ इस प्रधान स्वर्गदूत का विश्वासघात परमेश्वर द्वारा स्वीकृत और व्यवस्थित दोनों था—यह निश्चित रूप से परमेश्वर की प्रबंधन योजना की सीमा में आता है। प्रधान स्वर्गदूत द्वारा परमेश्वर के साथ विश्वासघात के बाद परमेश्वर ने उसे मानवजाति को भ्रष्ट करने की अनुमति दी, जिसे उसने स्वयं बनाया था। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर शैतान को नियंत्रित करने में विफल रहा, जिसकी वजह से मानवजाति को साँप ने बहका दिया और शैतान ने भ्रष्ट कर दिया, बल्कि यह परमेश्वर था जिसने शैतान को ऐसा करने की अनुमति दी। ऐसा होने देने के लिए अपनी अनुमति प्रदान करने के बाद ही परमेश्वर ने अपनी प्रबंधन योजना और मानवजाति को बचाने का अपना कार्य आरंभ किया। क्या मनुष्य इस रहस्य की थाह पा सकता है? शैतान द्वारा मानवजाति को भ्रष्ट कर दिए जाने पर, परमेश्वर ने मानवजाति के प्रबंधन का अपना कार्य आरंभ किया। पहले, उसने इज़राइल में व्यवस्था के युग का काम किया। दो हजार साल बीत जाने के बाद, उसने अनुग्रह के युग में क्रूस पर चढ़ने का कार्य किया, और सारी मानवजाति को छुटकारा मिल गया। अंत के दिनों के दौरान, उसने देहधारण किया ताकि अंत के दिनों में लोगों के एक समूह को जीत कर उसे बचा सके। अंत के दिनों में जन्म लेने वाले लोग किस प्रकार के थे? ये वो लोग हैं जो हजारों सालों से शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हैं, जो इतनी गहराई तक भ्रष्ट किए गए हैं कि उनमें मानव सदृशता नहीं है। परमेश्वर के वचनों द्वारा न्याय, ताड़ना और उजागर करने के अनुभव के बाद, परमेश्वर द्वारा उनको जीत लिये जाने के बाद, उन्होंने परमेश्वर के वचनों में से सत्य को प्राप्त कर लिया है; ये वो लोग हैं जो परमेश्वर द्वारा ईमानदारी से भरोसा दिलाए गए हैं, जिन्हें परमेश्वर की समझ आ गई है, जो परमेश्वर की आज्ञा का पालन पूरी तरह से कर सकते हैं और उसके इरादों को संतुष्ट कर सकते हैं। अंत में, परमेश्वर की प्रबंधन योजना के माध्यम से प्राप्त किये गए लोगों के समूह में इसी तरह के लोग होंगे। क्या तुम लोग सोचते हो कि जो लोग शैतान द्वारा भ्रष्ट नहीं किए गए हैं, वे परमेश्वर के इरादे संतुष्ट करेंगे, या क्या ये वे लोग होंगे जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हैं और अंततः बचा लिए गए हैं? वे लोग जो संपूर्ण प्रबंधन योजना के द्वारा प्राप्त किए जाएँगे, वे ऐसा समूह हैं जो परमेश्वर के इरादों को समझ सकते हैं, जो परमेश्वर से सत्य प्राप्त करते हैं, जिनके पास उस तरह का जीवन और मनुष्य के समान गुण होता है जिसकी परमेश्वर अपेक्षा करता है। जब पहली बार परमेश्वर द्वारा मनुष्यों का सृजन हुआ था, तो उनके पास केवल मानव सदृशता और मानव जीवन था। हालाँकि, उनके पास वह सत्य नहीं था जो परमेश्वर मनुष्यों से चाहता है और वे वह सदृशता नहीं जी सके जिसकी परमेश्वर ने मनुष्यों से हमेशा अपेक्षा की है। लोगों का समूह जो अंततः प्राप्त किया जाएगा उसमें वे लोग हैं जो अंत तक टिके रहेंगे, और यही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करता है, जिनसे वह प्रसन्न होता है, और जो उसे संतुष्ट करते हैं। प्रबंधन कार्य के कई हजार वर्षों के दौरान, इन लोगों ने, जिन्हें उसने अंततः बचाया है, सबसे अधिक लाभ प्राप्त किया है; इन लोगों ने जो सत्य प्राप्त किया है वह वास्तव में परमेश्वर द्वारा शैतान के साथ युद्ध के माध्यम से उन्हें दिया गया सिंचन और पोषण है। इस समूह के लोग उनके मुकाबले बेहतर हैं जिनका सृजन परमेश्वर ने बिल्कुल आरंभ में किया था; भले ही वे भ्रष्ट थे, यह तो अपरिहार्य था, और यह ऐसा मामला है जो परमेश्वर की प्रबंधन योजना के अंतर्गत आता है। यह उसकी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता को पूरी तरह से प्रकट करता है, और साथ ही, यह भी प्रकट करता है कि परमेश्वर ने जो भी व्यवस्थित, नियोजित और हासिल किया है वह परम महानतम है। यदि बाद में तुमसे दोबारा पूछा जाए : “यदि परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं, तो फिर भी प्रधान स्वर्गदूत उसके साथ विश्वासघात कैसे कर सकता है? फिर परमेश्वर ने उसे त्याग कर धरती पर फेंक दिया जहाँ उसने उसे मानवजाति को भ्रष्ट करने दिया। इसकी क्या महत्ता है?” तुम यह कह सकते हो : “यह मामला परमेश्वर के पूर्वनिर्धारण के अधीन आता है और यह सबसे महत्वपूर्ण है। मनुष्य पूरी तरह से इसकी थाह नहीं पा सकता है, लेकिन जिस स्तर तक मनुष्य समझ और पहुँच सकता है, वहाँ से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर ने जो किया वह बहुत अर्थपूर्ण है। इसका अर्थ निश्चित रूप से यह नहीं है कि परमेश्वर की यह अस्थायी चूक है, या वह नियंत्रण खो देता है और उसके पास चीजों के प्रबंध का कोई उपाय नहीं होता है, और फिर वह उसके खिलाफ शैतान की चालबाजियों से यह कहते हुए ऐसा करवाता है ‘प्रधान स्वर्गदूत ने वैसे भी विश्वासघात किया, इसलिए मैं भी ऐसा कर सकता हूँ, और फिर वह पूरी मानवजाति को भ्रष्ट कर चुका होगा, तब मैं मानवजाति को बचाऊँगा।’ बात बिल्कुल भी ऐसी नहीं है।” लोगों को कम-से-कम इतना तो पता होना ही चाहिए कि यह मामला परमेश्वर की प्रबंधन योजना के दायरे में आता है। कौन सी योजना? पहले चरण में, एक प्रधान स्वर्गदूत था; दूसरे चरण में, प्रधान स्वर्गदूत ने विश्वासघात किया; तीसरे चरण में, प्रधान स्वर्गदूत के विश्वासघात के बाद, वह मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए उनके बीच आया, और फिर परमेश्वर ने मानवजाति के प्रबंधन का काम आरंभ किया। जब लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं तो उन्हें परमेश्वर की प्रबंधन योजना की दूरदर्शिता को अवश्य समझना चाहिए। कुछ लोग सत्य के इस पहलू को कभी नहीं समझते हैं, हमेशा महसूस करते हैं कि न सुलझ सकने लायक बहुत से विरोधाभास हैं। समझ के बिना वे अनिश्चित महसूस करते हैं, और यदि वे आश्वस्त नहीं हैं, तो उनके पास आगे बढ़ने के लिए कोई ऊर्जा नहीं होती है। सत्य के बिना कोई भी प्रगति करना कठिन है, इसलिए किसी समस्या का सामना होने पर सत्य न खोजने वालों के लिए, यह वास्तव में कठिन होता है। क्या इस संगति से तुम्हें समझने में मदद मिली? प्रधान स्वर्गदूत के विश्वासघात के बाद ही परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने की प्रबंधन योजना बनाई थी। प्रधान स्वर्गदूत ने अपना विश्वासघात कब शुरू किया? निश्चित रूप से कुछ चीजें थीं जो उसके विश्वासघात का खुलासा करती थीं, प्रधान स्वर्गदूत के विश्वासघात की एक प्रक्रिया थी, यह निश्चित रूप से उतना सरल नहीं हो सकता जितना कि आलेख इसे बताता है। यह यहूदा के यीशु के साथ विश्वासघात जैसा है—उसकी एक प्रक्रिया थी। उसने यीशु का अनुसरण करने के तुरंत बाद ही उसे धोखा नहीं दिया। यहूदा को सत्य से प्रेम नहीं था, उसे पैसे का लालच था और वह हमेशा चोरी करता रहता था। परमेश्वर ने उसे शैतान को सौंप दिया, शैतान ने उसे विचार दिये और फिर उसने यीशु को धोखा देना शुरू कर दिया। यहूदा धीरे-धीरे भ्रष्ट होता गया और कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में, जब समय आया, तो उसने यीशु को धोखा दिया। लोगों की भ्रष्टता का एक नियमित ढाँचा है, और यह उतना सरल नहीं है जितना लोग इसकी कल्पना करते हैं। फिलहाल, लोग परमेश्वर की प्रबंधन योजना की चीजों को केवल इसी हद तक समझ सकते हैं, लेकिन जब उनका आध्यात्मिक कद बढ़ेगा तो वे इसका महत्व और अधिक गहराई से समझ पाएँगे।
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