परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 159
परमेश्वर मनुष्य के साथ जो करता है उससे परमेश्वर की पवित्रता को समझना (चुना हुआ अंश) जब कभी शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करता है या बेलगाम क्षति...
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तुम लोगों को परमेश्वर के कार्य के दर्शनों को जानना और उसके कार्य के सामान्य निर्देशों को समझना होगा। यह सकारात्मक प्रवेश है। एक बार जब तुम दर्शनों के सत्य में सही ढंग से महारत हासिल कर लोगे, तो तुम्हारा प्रवेश सुरक्षित हो जाएगा; चाहे परमेश्वर का कार्य कैसे भी क्यों न बदले, तुम अपने हृदय में अडिग बने रहोगे, दर्शनों के बारे में स्पष्ट रहोगे, और तुम्हारे पास तुम्हारे प्रवेश और तुम्हारी खोज के लिए एक लक्ष्य होगा। इस तरह से, तुम्हारे भीतर का समस्त अनुभव और ज्ञान अधिक गहरा और विस्तृत हो जाएगा। एक बार जब तुम इन सारे महत्वपूर्ण चरणों को उनकी संपूर्णता में समझ लोगे, तो तुम्हें जीवन में कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा, और तुम भटकोगे नहीं। यदि तुम कार्यों के इन चरणों को नहीं जानोगे, तो तुम्हें इनमें से प्रत्येक चरण पर नुकसान उठाना पड़ेगा, और तुम्हें चीजें ठीक करने में कुछ ज्यादा दिन लगेंगे, और तुम कुछ सप्ताह में भी सही मार्ग पकड़ने में सक्षम नहीं हो पाओगे। क्या इससे देरी नहीं होगी? सकारात्मक प्रवेश और अभ्यास के मार्ग में बहुत-कुछ ऐसा है, जिसमें तुम लोगों को महारत हासिल करनी होगी। जहाँ तक परमेश्वर के कार्य के दर्शनों का संबंध है, तुम्हें इन बिंदुओं को अवश्य समझना चाहिए : उसके विजय के कार्य के मायने, पूर्ण बनाए जाने का भावी मार्ग, परीक्षणों और क्लेश के अनुभवों के माध्यम से क्या हासिल किया जाना चाहिए, न्याय और ताड़ना के मायने, पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांत, तथा पूर्णता और विजय के सिद्धांत। ये सब दर्शनों के सत्य से संबंध रखते हैं। शेष हैं व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के कार्य के तीन चरण, और साथ ही भावी गवाही। ये भी दर्शनों के सत्य हैं, और ये सर्वाधिक मूलभूत होने के साथ-साथ सर्वाधिक महत्वपूर्ण भी हैं। वर्तमान में तुम लोगों के पास अभ्यास में प्रवेश करने के लिए बहुत-कुछ है, और वह अब बहुस्तरीय और अधिक विस्तृत है। यदि तुम्हें इन सत्यों का कोई ज्ञान नहीं है, तो यह साबित होता है कि तुम्हें अभी प्रवेश करना शेष है। अधिकांश समय लोगों का सत्य का ज्ञान बहुत उथला होता है; वे कुछ बुनियादी सत्यों को अभ्यास में लाने में अक्षम होते हैं और नहीं जानते कि तुच्छ मामलों को भी कैसे सँभाला जाए। लोगों के सत्य का अभ्यास करने में अक्षम होने का कारण यह है कि उनका स्वभाव विद्रोही है, और आज के कार्य का उनका ज्ञान बहुत ही सतही और एकतरफ़ा है। इसलिए, लोगों को पूर्ण बनाए जाने का काम आसान नहीं है। तुम बहुत ज्यादा विद्रोही हो, और तुम अपने पुराने अहं को बहुत ज़्यादा बनाए रखते हो; तुम सत्य के पक्ष में खड़े रहने में अक्षम हो, और तुम सबसे स्पष्ट सत्यों तक का अभ्यास करने में असमर्थ हो। ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता और ये वे लोग हैं, जिन्हें जीता नहीं गया है। यदि तुम्हारा प्रवेश न तो विस्तृत है और न ही सोद्देश्य, तो तुम्हारा विकास धीमी गति से होगा। यदि तुम्हारे प्रवेश में जरा-सी भी वास्तविकता नहीं हुई, तो तुम्हारी खोज व्यर्थ हो जाएगी। यदि तुम सत्य के सार से अनभिज्ञ हो, तो तुम अपरिवर्तित रहोगे। मनुष्य के जीवन में विकास और उसके स्वभाव में परिवर्तन वास्तविकता में प्रवेश करने, और इससे भी अधिक, विस्तृत अनुभवों में प्रवेश करने से प्राप्त होते हैं। यदि तुम्हारे प्रवेश के दौरान तुम्हारे पास कई विस्तृत अनुभव हैं, और तुम्हारे पास अधिक वास्तविक ज्ञान और प्रवेश है, तो तुम्हारा स्वभाव शीघ्रता से बदल जाएगा। भले ही वर्तमान में तुम अभ्यास के बारे में पूरी तरह से स्पष्ट न हो, तो भी तुम्हें कम से कम परमेश्वर के कार्य के दर्शनों के बारे में स्पष्ट अवश्य होना चाहिए। यदि नहीं, तो तुम प्रवेश करने में अक्षम होगे; प्रवेश केवल तुम्हें सत्य का ज्ञान होने पर ही संभव है। केवल पवित्र आत्मा द्वारा तुम्हें तुम्हारे अनुभव में प्रबुद्ध करने पर ही तुम सत्य की अधिक गहरी समझ प्राप्त करोगे और अधिक गहराई से प्रवेश करोगे। तुम लोगों को परमेश्वर के कार्य को जानना चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर
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