परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 153

पूर्वकालीन युगों की तुलना में, राज्य के युग के दौरान परमेश्वर का कार्य और अधिक व्यावहारिक है, मनुष्य के मूल-तत्व एवं उसके स्वभाव के प्रति और अधिक निर्देशित है, और उनके लिए स्वयं परमेश्वर की गवाही देने हेतु और अधिक योग्य है जो उसका अनुसरण करते हैं। दूसरे शब्दों में, जब परमेश्वर राज्य के युग के दौरान कार्य करता है, तो वह अतीत के किसी भी समय की अपेक्षा मनुष्य पर स्वयं को और अधिक प्रगट करता है, जिसका अर्थ है कि वे दर्शन जिन्हें मनुष्य के द्वारा पहचाना जाना चाहिए वे किसी भी पूर्वकालीन युग की अपेक्षा कहीं अधिक ऊँचे हैं। क्योंकि मनुष्य के मध्य परमेश्वर का कार्य अभूतपूर्व क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है, ऐसे दर्शन जिन्हें राज्य के युग के दौरान मनुष्य के द्वारा जाना गया है वे सम्पूर्ण प्रबंधकीय कार्य के मध्य सबसे ऊँचे हैं। परमेश्वर का कार्य अभूतपूर्व क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है, और इस प्रकार ऐसे दर्शन जिन्हें मनुष्य के द्वारा जाना गया है वे सभी दर्शनों में सबसे ऊँचे हो गए हैं, और इसके परिणामस्वरूप मनुष्य का रीति व्यवहार किसी भी पूर्वकालीन युग की अपेक्षा सबसे अधिक ऊँचा हो गया है, क्योंकि मनुष्य का रीति व्यवहार दर्शनों के साथ कदम मिलाते हुए बदलता जाता है, और दर्शनों की पूर्णता मनुष्य से की गई अपेक्षाओं की पूर्णता को भी चिन्हित करती है। जैसे ही परमेश्वर की सम्पूर्ण प्रबंधकीय योजना थोड़ी देर के लिए ठहर जाती है, वैसे ही मनुष्य का रीति व्यवहार भी रुक जाता है, और परमेश्वर के कार्य के बिना, मनुष्य के पास पिछले समयों के सिद्धान्त का पालन करने के सिवाए कोई विकल्प नहीं होगा, या मनुष्य के पास वापस मुड़ने का कोई मार्ग नहीं होगा। नए दर्शनों के बिना, मनुष्य के द्वारा कोई नया अभ्यास नहीं किया जाएगा; सम्पूर्ण दर्शनों के बिना, मनुष्य के द्वारा कोई पूर्ण अभ्यास नहीं किया जाएगा; उच्चतर दर्शनों के बिना, मनुष्य के द्वारा कोई उच्चतर अभ्यास नहीं किया जाएगा। परमेश्वर के पदचिन्हों के साथ साथ मनुष्य का रीति व्यवहार बदलता जाता है, और, उसी प्रकार, परमेश्वर के कार्य के संगमनुष्य का ज्ञान वअनुभव भी बदलता जाता है। इसकी परवाह किए बगैर कि मनुष्य कितना समर्थ है, वह अब भी परमेश्वर से अविभाज्य है, और यदि परमेश्वर एक क्षण के लिए भी कार्य करना बंद कर दे, तो मनुष्य तुरन्त ही उसके क्रोध से मर जाएगा। मनुष्य के पास घमण्ड करने के लिए कुछ भी नहीं है, क्योंकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आज मनुष्य का ज्ञान कितना ऊँचा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उसके अनुभव कितने गहरे हैं, क्योंकि वह परमेश्वर के कार्य से अविभाज्य है—क्योंकि मनुष्य का रीति व्यवहार, और जिसे उसे परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में खोजना चाहिए, वे उन दर्शनों से अविभाज्य हैं। परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक उदाहरण में ऐसे दर्शन हैं जिन्हें मनुष्य के द्वारा पहचाना जाना चाहिए, ऐसे दर्शन जिनका अनुसरण मनुष्य के प्रति परमेश्वर की उचित अपेक्षाओं के द्वारा किया जाता है। बुनियाद के रूप में इन दर्शनों के बिना, मनुष्य साधारण तौर पर रीति व्यवहार में असमर्थ होगा, और न ही मनुष्य बिना लड़खड़ाए परमेश्वर का अनुसरण करने के योग्य होगा। यदि मनुष्य परमेश्वर को नहीं जानता या परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझता, तो वह सब कुछ जो मनुष्य करता है वह व्यर्थ है, और परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाने के योग्य नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य के वरदान कितने अधिक हैं, क्योंकि वह अभी भी परमेश्वर के कार्य तथा परमेश्वर के मार्गदर्शन से अविभाज्य है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य के कार्य कितने अच्छे या अनेक हैं, क्योंकि वे तब भी परमेश्वर के कार्य का स्थान नहीं ले सकते हैं। और इस प्रकार, किसी भी परिस्थिति के अंतर्गत मनुष्य का रीति व्यवहार दर्शनों से विभाज्य नहीं है। जो नए दर्शनों को स्वीकार नहीं करते हैं उनके पास कोई नया रीति व्यवहार नहीं होता है। उनके रीति व्यवहार का सत्य के साथ कोई रिश्ता नहीं है क्योंकि वे सिद्धान्त में बने रहते हैं और मृत व्यवस्था का पालन करते हैं; उनके पास बिलकुल भी नए दर्शन नहीं हैं, और परिणामस्वरूप, वे नए युग में अभ्यास में लाने के लिए कुछ नहीं करते हैं। उन्होंने दर्शनों को खो दिया है, और ऐसा करने से उन्होंने पवित्र आत्मा के कार्य को भी गंवा दिया है, और सत्य को खो दिया है। ऐसे लोग जो सत्य से विहीन हैं वे झूठ की संतान हैं, वे शैतान के मूर्त रूप हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई किस प्रकार का व्यक्ति है, वे परमेश्वर के कार्य के दर्शनों से रहित नहीं हो सकते हैं, और पवित्र आत्मा की उपस्थिति से वंचित नहीं हो सकते हैं; जैसे ही कोई व्यक्ति दर्शनों को खो देता है, वे तुरन्त ही अधोलोक में उतर जाते हैं और अंधकार के बीच निवास करते हैं। दर्शनों से विहीन लोग ऐसे लोग हैं जो मूर्खता से परमेश्वर के पीछे पीछे चलते हैं, वे ऐसे लोग हैं जो पवित्र आत्मा के कार्य से रहित हैं, और नरक में निवास कर रहे हैं। ऐसे लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, और परमेश्वर के नाम को एक नामपट्टी के रूप में लटकाए रहते हैं। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते हैं, जो देहधारी परमेश्वर को नहीं जानते हैं, जो परमेश्वर के प्रबंधन की सम्पूर्णता में कार्य के तीन चरणों को नहीं जानते हैं—वे दर्शनों को नहीं जानते हैं, और इस प्रकार वे सत्य से रहित हैं। और ऐसे लोग जो सत्य को धारण नहीं करते हैं क्या वे सभी बुरे काम करनेवाले नहीं हैं? ऐसे लोग जो सत्य को अभ्यास में लाने के इच्छुक हैं, जो परमेश्वर के ज्ञान को खोजने के इच्छुक हैं, व सच में परमेश्वर के साथ सहयोग करते हैं वे ही ऐसे लोग हैं जिनके लिए ये दर्शन नींव के रूप में कार्य करते हैं। उन्हें परमेश्वर के द्वारा स्वीकृत किया जाता है क्योंकि वे परमेश्वर के साथ सहयोग करते हैं, और यही वह सहयोग है जिसे मनुष्य द्वारा अभ्यास में लाया जाना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

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