परमेश्वर के देहधारण को जानने के बारे में वचन (अंश 29)
कुछ लोग पूछते हैं कि, “परमेश्वर मानवजाति के अंतरतम हृदय को देखता है और परमेश्वर का देह और आत्मा एक हैं। लोग जो कुछ भी कहते और करते हैं, परमेश्वर वह सब कुछ जानता है, तो क्या परमेश्वर जानता है कि मैं अब उस पर विश्वास करता हूँ?” ये चीजें एक प्रश्न से संबंधित हैं, अर्थात्, देहधारी परमेश्वर और उसके आत्मा तथा देह के बीच संबंध को कैसे समझा जाए। कुछ लोग सोचते हैं कि परमेश्वर इस बारे में नहीं जानता होगा क्योंकि वह व्यावहारिक है, परंतु ऐसे लोग भी हैं जो सोचते हैं कि परमेश्वर इस बात को जानता है क्योंकि परमेश्वर का देह और आत्मा एक ही हैं। परमेश्वर को समझने का अर्थ मुख्य रूप से उसके सार और उसके आत्मा के गुणों को समझना है, और मनुष्य को यह तय करने का प्रयास नहीं करना चाहिए कि क्या परमेश्वर का देह या उसका आत्मा किसी निश्चित चीज को जानते हैं; परमेश्वर बुद्धिमान और अद्भुत है, मनुष्य के लिए अथाह है। देह और आत्मा तथा मानवता और दिव्यता ऐसे मामले हैं जिन्हें तुम लोगों ने साफ-साफ नहीं समझा है। जब परमेश्वर देहधारण करता है और आत्मा देह में स्थापित हो जाता है, तो उसका सार दिव्य होता है, जो किसी मनुष्य के सार से और मानव देह में रहने वाली आत्मा से बिल्कुल अलग होता है; यह दो एकदम अलग चीजें हैं। मनुष्य का सार और उसकी आत्मा उस व्यक्ति से जुड़ी होती है। परमेश्वर का आत्मा उसके देह में होता है, किंतु वह तब भी सर्वशक्तिमान होता है। जब तक वह देह के भीतर से अपना कार्य कर रहा होता है, उसका आत्मा भी हर जगह कार्य करता है। तुम यह सवाल नहीं कर सकते कि “परमेश्वर आखिर कितना सर्वशक्तिमान है? मुझे दिखाओ और मुझे इसे साफ-साफ देखने दो।” इसे साफ-साफ देखने का कोई तरीका नहीं है। तुम्हारे लिए इतना देखना पर्याप्त है कि जब देह उसका काम कर रहा होता है तब पवित्र आत्मा कलीसियाओं के बीच कैसे काम करता है। परमेश्वर के आत्मा में सर्वशक्तिमान होने का विशेष गुण है; वह संपूर्ण ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है और जिन्हें वह चुनता है उन्हें बचाता है, और जब देह उसका काम कर रहा होता है, उसी समय वह लोगों को प्रबुद्ध बनाने के लिए कलीसियाओं के बीच भी काम कर रहा होता है। तुम यह नहीं कह सकते कि जब आत्मा कलीसियाओं के बीच काम कर रहा होता है उस समय देह में आत्मा नहीं होता। यदि तुम ऐसा कहते हो, तो क्या तुम परमेश्वर के देहधारण से इनकार नहीं कर रहे होते? हालाँकि, कुछ चीजें ऐसी हैं जिनके बारे में देह को पता नहीं होता। यह न जानना मसीह का सामान्य और व्यावहारिक पहलू है। परमेश्वर के आत्मा को देह के भीतर ठोस रूप से महसूस किया जाना साबित करता है कि परमेश्वर स्वयं उस देह का सार है। उसका आत्मा हर उस चीज को पहले से जानता है जिसे उसका देह नहीं जानता, इसलिए कोई कह सकता है कि परमेश्वर उस चीज को पहले से ही जानता है। यदि तुम देह के व्यावहारिक पहलू के कारण आत्मा के पहलू को अस्वीकार करते हो, तो तुम इस देह के स्वयं परमेश्वर होने से इनकार करते हो, और ऐसा करके तुम फरीसियों जैसी ही गलती कर रहे होते हो। कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर का देह और आत्मा एक हैं, इसलिए परमेश्वर को पता हो सकता है जब हम सुसमाचार फैलाते हैं तो हमने यहाँ एक ही बार में उसके लिए कितने लोगों को जीता है। आत्मा जानता है और इसीलिए देह भी इसके बारे में जान जाता है, क्योंकि वे एक ही हैं!” तुम्हारा ऐसा कथन देह के सार को नकारता है। देह परमेश्वर का व्यावहारिक और सामान्य पहलू है: कुछ चीजें हैं जिनके बारे में देह को पता हो सकता है और कुछ चीजें हैं जिन्हें जानने की देह को जरूरत नहीं है। यही परमेश्वर का सामान्य और व्यावहारिक पहलू है। कुछ लोग कहते हैं, “आत्मा जो कुछ भी जानता है, उसे देह भी गारंटी से जानता होगा।” यह अलौकिक है, और ऐसा कहना देह के सार को नकारना है। देहधारी परमेश्वर सामान्य और व्यावहारिक है। कुछ मामलों में, वह वैसा नहीं है जैसा मनुष्य कल्पना करता है—वह इन मामलों को देखे या छुए बिना रहस्यपूर्ण तरीके से जानने में सक्षम है, वह स्थान या भूगोल से सीमित नहीं है। वह देह नहीं बल्कि आध्यात्मिक शरीर है। मृत्यु पश्चात पुनर्जीवित होने पर यीशु कहीं भी प्रकट हो सकता था, गायब हो सकता था और दीवारें पार कर कमरों में प्रवेश कर सकता था, लेकिन वह पुनर्जीवित यीशु था। पुनर्जीवित होने से पहले यीशु दीवारों से गुजर कर कमरों में प्रवेश नहीं कर सकता था। वह स्थल, भूगोल और समय से बाधित था। यह देह की सामान्यता है।
परमेश्वर के देहधारण को जानना कोई साधारण बात नहीं है—तुम्हें इसे परमेश्वर के वचनों के अनुसार विभिन्न पहलुओं से देखना चाहिए, समग्रता से विचार करना चाहिए और अपने ज्ञान को विनियमों या अपनी कल्पनाओं पर आधारित करने से हर हाल में बचना चाहिए। तुम कहते हो कि परमेश्वर का देह और आत्मा एक हैं, और देह वह सब जानता है जो आत्मा को पता है, लेकिन देह का एक सामान्य और व्यावहारिक पहलू भी है। इसके अलावा, एक और पहलू यह है कि जिस समय देह काम में लगा होता है, उस समय स्वयं परमेश्वर वह काम कर रहा होता है : आत्मा काम कर रहा होता है और देह भी काम कर रहा होता है, लेकिन यह मुख्य रूप से देह ही है जो काम करता है—देह अग्रगामी भूमिका निभाता है, जबकि आत्मा लोगों के प्रबोधन, उसके मार्गदर्शन, सहायता करने, सुरक्षा देने और निगरानी करने के कुछ निश्चित काम करता है। देह का काम एक प्रमुख भूमिका निभाता है—यदि वह किसी व्यक्ति के बारे में जानना चाहता है, तो ऐसा करना उसके लिए बहुत ही आसान है। जब कोई मनुष्य़ किसी के बारे में जानना चाहे और अगर उसने उस व्यक्ति का व्यवहार विभिन्न अवसरों पर न देखा हो, तो वह संबंधित व्यक्ति के बारे में अंतर्दृष्टि हासिल करने में असमर्थ होगा। मनुष्य अन्य लोगों के स्वभाव के सार को नहीं देख सकता लेकिन देहधारी परमेश्वर को हमेशा इसका एहसास रहता है और वह हमेशा यह निर्णय करने में सक्षम होता है कि कोई व्यक्ति कैसा है, उसका व्यवहार कैसा है और उसका सार कैसा है। यह असंभव है कि उसे ऐसी कोई जानकारी न हो। उदाहरण के लिए, वह जानता और समझता है कि कोई व्यक्ति कैसा व्यवहार करता है, वह क्या कर सकता है और वह क्या और किस सीमा तक बुरा काम कर सकता है। कुछ लोग कहते हैं, “यदि परमेश्वर सब कुछ समझता है, तो क्या वह जानता है कि मैं इस समय कहाँ हूँ?” यह जानना जरूरी नहीं है। परमेश्वर के लिए किसी व्यक्ति को समझने का अर्थ यह नहीं है कि वह जाने कि कोई व्यक्ति हर दिन कहाँ है। उसे यह जानने की कोई जरूरत नहीं है। यह समझना ही पर्याप्त है कि कोई व्यक्ति प्रकृतिवश क्या करेगा और इतना ही उसे अपना काम करने के लिए पर्याप्त है। अपना कार्य करने के मामले में परमेश्वर व्यावहारिक है। ऐसा नहीं है जैसा लोग कल्पना करते हैं कि जब परमेश्वर किसी व्यक्ति के बारे में जानना चाहता है, तो उसे पता होना चाहिए कि वह व्यक्ति कहाँ है, क्या सोच रहा है, क्या कह रहा है, बाद में क्या करेगा, कैसे कपड़े पहनता है या क्या करता है आदि-आदि। वास्तव में, परमेश्वर उद्धार का जो कार्य करता है, उसके लिए मौलिक रूप से उन चीजों को जानने की आवश्यकता नहीं होती है। परमेश्वर केवल किसी व्यक्ति के सार और उसके जीवन की प्रगति की प्रक्रिया को जानने पर ध्यान देता है। जब परमेश्वर देहधारी बनता है, तो देह की सभी अभिव्यक्तियाँ व्यावहारिक और सामान्य होती हैं, और यह व्यावहारिकता तथा सामान्यता मानव जाति को जीतने और उसके उद्धार के कार्य को पूरा करने के लिए ग्रहण की गई होती है। लेकिन, किसी को यह भूलना नहीं चाहिए कि देह की व्यावहारिकता और सामान्यता परमेश्वर के देह में निवास करने वाले उसके आत्मा की सबसे सामान्य अभिव्यक्ति है। तो क्या तुम सोचते हो कि आत्मा सभी मानवीय चीजें जानता है? आत्मा जानता है, तो भी परमेश्वर उन पर ध्यान नहीं देता। इसीलिए देह को भी तुम्हारे उन मामलों की परवाह नहीं होती। कुछ भी हो, परमेश्वर का आत्मा और देह एक हैं, और कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता है। कभी-कभी तुम्हारे मन में कुछ विचार और अनुमान होते हैं—क्या आत्मा को पता है कि तुम क्या सोच रहे हो? निःसंदेह उसका आत्मा जानता है। परमेश्वर का आत्मा लोगों के अंतरतम हृदय की पड़ताल करता है और जानता है कि लोग क्या सोचते हैं, लेकिन उसका काम केवल उनके विचारों और धारणाओं और भ्रष्टता के प्रकाशनों को उजागर करना नहीं है। बल्कि, उसे देह के भीतर से सत्य व्यक्त करना होता है ताकि लोगों के विचार और धारणाएं बदली जा सकें, लोगों की सोच और नजरिया बदले जा सकें और अंततः लोगों के भ्रष्ट स्वभाव बदले जा सकें। कुछ चीजों के बारे में तुम लोगों के विचार बहुत अपरिपक्व हैं। तुम सोचते हो कि देहधारी परमेश्वर को सब कुछ पता होना चाहिए। देहधारी परमेश्वर यदि कोई ऐसी बात नहीं जानता जिसके बारे में कुछ लोग सोचते हैं कि उसे पता होना चाहिए तो वे उस पर संदेह करते हैं। यह सब इसलिए है क्योंकि लोगों में परमेश्वर के देहधारण के सार की अपर्याप्त समझ है। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो देह के काम के दायरे से बाहर होती हैं, इसलिए परमेश्वर उनकी चिंता नहीं करता। परमेश्वर केवल वही कार्य करता है जो उसे करना चाहिए। यह परमेश्वर के कार्य करने का एक सिद्धांत है। क्या ये बातें अब तुम्हारी समझ में आईं? मुझे बताओ, क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी आत्मा किस प्रकार की है? क्या तुम अपनी आत्मा को महसूस कर सकते हो? क्या तुम अपनी आत्मा को छू सकते हो? क्या तुम यह जानने में सक्षम हो कि तुम्हारी आत्मा क्या कर रही है? तुम नहीं जानते, नहीं न? यदि तुम ऐसी किसी चीज का अनुभव करने या छूने में सक्षम हो, तो इसका अर्थ है कि तुम्हारे अंदर एक और आत्मा है जो जबरदस्ती कुछ कर रही है, तुमसे कोई काम करवा रही है और कुछ कहलवा रही है। वह तुम्हारे आत्म से बाहर की चीज है, जो तुम्हारे अंदर जन्मजात नहीं है। दुष्ट आत्माओं के कार्य वाले लोगों को इसकी गहरी समझ होती है। यद्यपि परमेश्वर के देह का एक व्यावहारिक और सामान्य पहलू होता है, परंतु एक मनुष्य के रूप में कोई भी उसे यूँ ही परिभाषित नहीं कर सकता या किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता। मनुष्य बनने के लिए परमेश्वर स्वयं को विनम्र बनाता और छुपाता है; उसके कृत्य अथाह हैं और मनुष्य उनकी थाह नहीं पा सकता।
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