परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 163
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क्या तुम देखते हो कि परमेश्वर के पास अविश्वासियों के जीवन-मृत्यु चक्र के लिये बिल्कुल सटीक और कठिन जांच और व्यवस्था है? पहले तो, परमेश्वर ने विभिन्न स्वर्गीय आज्ञाएं, आदेश और रीतियां इस आत्मिक राज्य में स्थापित की हैं, इन स्वर्गीय आज्ञाओं, आदेशों और रीतियों की घोषणा के पश्चात, जैसा कि परमेश्वर ने निर्धारित किया है, आत्मिक संसार में विभिन्न आधिकारिक पदों के द्वारा, उनका कड़ाई से पालन किया जाता है और कोई भी उनका उल्लंघन करने का साहस नहीं करता। और इसलिये मनुष्य के संसार में मानवजाति के जीवन और मृत्यु के चक्र में, चाहे कोई पशु जन्म ले या इंसान, नियम दोनों के लिये हैं। क्योंकि यह नियम परमेश्वर की ओर से आते हैं, उन्हें तोड़ने का कोई साहस नहीं करता, न ही कोई उन्हें तोडने योग्य है। यह केवल परमेश्वर के ऐसे प्रभुत्व के कारण ही है और इस कारण है क्योंकि ऐसे नियम हैं, कि भौतिक संसार जिसे लोग देखते हैं, नियमित और क्रमबद्ध है; यह परमेश्वर की ऐसी सार्वभौमिकता के कारण ही है कि मनुष्य इस योग्य है कि वह शान्ति से उस दूसरे संसार के साथ जो मनुष्य के लिये पूर्णरुप से अदृश्य है, अपना सह-अस्तित्व बनाये रखता है और उसके साथ ताल-मेल बनाकर रहता है—जो पूर्णरुप से परमेश्वर की प्रभुता से अनुलंघनीय है। एक आत्मा के देह छोडने के बाद भी, आत्मा में जीवन रहता है और यदि वह परमेश्वर के प्रशासन से रहित होता तो क्या होगा? आत्मा हर स्थान पर भटकती, हर स्थान में बाधा डालती, और मनुष्य के संसार में जीवधारियों को भी हानि पहुंचाएगी। यह हानि न केवल मनुष्य जाति की ही नहीं होती, बल्कि वनस्पति और पशुओं की ओर भी होती—लेकिन पहली हानि लोगों की होती। यदि ऐसा होता-यदि ऐसी आत्मा व्यवस्थारहित होती, और वाकई लोगों को हानि पहुंचाती, वाकई दुष्ट कार्य करती—तो ऐसे आत्मा को आत्मिक जगत में ठीक से संभाला जाता। यदि मामला गंभीर होता तो आत्मा का अस्तित्व समाप्त हो जाता, वह नष्ट हो जाती; यदि संभव हो तो, उसे कहीं रखा जायेगा और उसका पुनर्जन्म होगा। कहने का आशय है कि आत्मिक संसार में विभिन्न आत्माओं का प्रशासन व्यवस्थित होता है और चरणबद्ध तथा नियमों के अनुसार होता है। यह ऐसे प्रशासन के कारण है कि मनुष्य के भौतिक संसार में अराजकता नहीं फैली है, भौतिक संसार के मनुष्य में एक सामान्य मानसिकता है, साधारण तर्कशक्ति है और एक अनुशासित दैहिक जीवन है। मानवजाति के ऐसे सामान्य जीवन के बाद ही बाकी जो देह में जीवनयापन कर रहे हैं, फलते-फूलते रह सकेंगे और पीढ़ी दर पीढ़ी संतान उत्पन्न कर सकेंगे।
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से उद्धृत
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