परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 187
परमेश्वर किस प्रकार आत्मिक संसार पर शासन करता है और उसे चलाता है
भौतिक संसार के लिये यदि लोग कुछ बातों या असाधारण घटनाओं को नहीं समझते हैं तो वे एक पुस्तक खोल सकते हैं और आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा वे विभिन्न माध्यमों का उपयोग उनके मूल को और उनके पीछे की कहानी को जानने के लिए कर सकते हैं। परन्तु बात जब उस दूसरे संसार की होती है जिसके विषय में हम आज बात कर रहे हैं—अर्थात् आत्मिक संसार जिसका अस्तित्व भौतिक संसार के बाहर है—लोगों के पास बिल्कुल भी कोई साधन या माध्यम नहीं हैं कि भीतर की बातों और उसकी सच्चाई को जानें। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्योंकि, मनुष्यों की दुनिया में, भौतिक संसार की हर एक बात मनुष्य के भौतिक अस्तित्व से पृथक नहीं हो सकती है और क्योंकि लोगों को ऐसा लगता है कि भौतिक संसार की प्रत्येक चीज भौतिक जीवन शैली और भौतिक जीवन से पृथक किये जाने योग्य नहीं है, अधिकांश लोग केवल उनकी जानकारी रखते हैं, या उन्हें देखते हैं, जो भौतिक वस्तुएं हैं, जो चीज़ें उन्हें दिखाई पड़ती हैं। फिर भी जब आत्मिक संसार की बात होती है—कहने का तात्पर्य है, जो भी चीज़ दूसरी दुनिया की है—कहना उचित होगा कि अधिकांश लोग विश्वास नहीं करते। ऐसा इसलिये है क्योंकि वह उन्हें दिखाई नहीं देती, और वे विश्वास करते हैं कि उसे समझने की आवश्यकता नहीं है, ना ही उसके विषय में कुछ जानने की, ना कुछ कहने की कि आत्मिक संसार भौतिक संसार से किस प्रकार पूरी तरह से भिन्न है। परमेश्वर के लिये, यह खुला है, लेकिन मानवजाति के लिए यह छुपा हुआ है और खुला नहीं है, और इसलिये लोगों को एक माध्यम खोजने में कठिनाई होती है जिसके द्वारा वे इस संसार के विभिन्न पहलुओं को समझ सकें। आत्मिक संसार के संबंध में जो बाते मैं कहने जा रहा हूं उनका संबंध केवल परमेश्वर के प्रशासन और प्रभुत्व से है। बेशक, वे मनुष्य के परिणाम और गंतव्य से भी जुड़ी हुई हैं—परन्तु मैं रहस्यों का प्रकाशन नहीं कर रहा हूँ, न ही मैं तुम्हें वे रहस्य बता रहा हूँ, जिन्हें तुम खोजना चाहते हो, क्योंकि इसका संबंध परमेश्वर के प्रभुत्व से है, परमेश्वर के प्रशासन, और परमेश्वर के प्रबंध से है, और ऐसी परिस्थिति में, मैं केवल उस भाग के विषय में बोलूंगा जिसको जानना तुम्हारे लिये आवश्यक है।
पहले, मैं तुम से एक प्रश्न पूछता हूं: तुम्हारे मन में आत्मिक संसार क्या है? मोटे तौर पर बोला जाए तो यह भौतिक संसार से बाहर एक दुनिया है, एक ऐसी दुनिया जो अदृश्य और लोगों के लिये अस्पर्शनीय है। परन्तु तुम्हारी कल्पना में, आत्मिक संसार को किस प्रकार का होना चाहिये? शायद न देख पाने के कारण, तुम इसकी कल्पना करने योग्य नहीं हो परन्तु जब इसके बारे में दन्त कथाएं सुनते हो, तो तुम फिर भी सोचने लगते हो, तुम स्वयं को रोक नहीं पाते हो। और मैं ऐसा क्यों कहता हूं? कुछ ऐसी बात हैं जो बहुत से लोगों के साथ होती हैं जब वे युवा होते हैं: जब कोई उन्हें कोई डरावनी कहानी सुनाता है—भूतों और आत्माओं के बारे में—वे अत्यन्त भयभीत हो जाते हैं। और वे क्यों भयभीत हैं? क्योंकि वे इन बातों के विषय में कल्पना कर रहे हैं, यद्यपि वे उन्हें नहीं देख सकते, उन्हें ऐसा लगता है कि वे उनके कमरे के चारों ओर हैं, कमरे में कहीं छिपे हुए, या कहीं अन्धकार में और वे इतने डरे हुये होते हैं कि उनकी सोने की हिम्मत नहीं होती। विशेषकर रात के समय, वे अपने कमरे में या अकेले आंगन में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। यह तुम्हारी कल्पना का आत्मिक संसार है, और यह एक ऐसा संसार है जिसके बारे में लोग सोचते हैं कि यह भयावह है। प्रत्येक के पास थोड़ी बहुत कल्पना होती है, और हर कोई थोड़ा बहुत अनुभव कर सकता है।
आओ, हम आत्मिक संसार से प्रारम्भ करें। एक आत्मिक संसार क्या है? मैं तुम्हें एक छोटा और सरल स्पष्टीकरण देता हूं। आत्मिक संसार एक महत्वपूर्ण स्थान है, एक ऐसा स्थान है जो भौतिक संसार से भिन्न है। और मैं क्यों कहता हूँ कि यह महत्वपूर्ण है? हम इसके विषय में विस्तार से बात करने जा रहे हैं। आत्मिक संसार का अस्तित्व मनुष्य के भौतिक संसार से अभिन्न रूप से जुड़ा है। सब वस्तुओं के ऊपर परमेश्वर के प्रभुत्व में वह मनुष्य जीवन और मृत्यु चक्र में एक बड़ी भूमिका निभाता है; यह इसकी भूमिका है, और उन कारणों में से एक है कि क्यों इसका अस्तित्व महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह एक ऐसा स्थान है जो पांच इंद्रियों के लिये अगोचर है, कोई भी इस बात का निर्णय नहीं कर सकता कि इसका अस्तित्व है अथवा नहीं। आत्मिक संसार की सतत प्रक्रियाएं मनुष्य के अस्तित्व के साथ गहराई से जुड़ी हुई हैं, और उसका परिणाम ये है कि मनुष्य जिस प्रकार से रहता है, वह भी आत्मिक जगत से बेहद प्रभावित होता है। क्या यह परमेश्वर के प्रभुत्व से संबंधित है? हां, यह संबंधित है। जब मैं ऐसा कहता हूँ, तो तुम समझते हो कि मैं क्यों इस विषय पर विचार-विमर्श कर रहा हूँ: क्योंकि यह परमेश्वर के प्रभुत्व से और उसके प्रशासन से संबंध रखता है। एक संसार में जैसा कि यह है-जो लोगों के लिए अदृश्य है—इसकी प्रत्येक स्वर्गीय आज्ञा, आदेश और प्रशासनिक रीति भौतिक संसार के किसी भी देश के कानून और रीति से कहीं उच्च है और संसार में रहने वाला कोई भी प्राणी उनका उल्लंघन करने या झूठा दावा करने का साहस नहीं करेगा। क्या यह परमेश्वर की प्रभुता और प्रशासन से संबंधित है? इस संसार में, स्पष्ट प्रशासनिक आदेश, स्पष्ट स्वर्गीय आज्ञाएं और स्पष्ट नियम हैं। विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न क्षेत्रों में, दूत पूर्णरुप से अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं, और कायदे कानून का पालन करते है, क्योंकि एक स्वर्गीय आज्ञा के उल्लंघन का परिणाम क्या होता है, इसे वे जानते हैं। वे भली-भांति जानते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर दुष्टों को दण्ड और भले लोगों को इनाम देता है, और वह किस प्रकार चीज़ पर शासन करता है, वह किस प्रकार हर चीज़ पर अधिकार रखता है। और, इसके अतिरिक्त, वे स्पष्ट रुप से देखते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर अपने स्वर्गीय आदेशों और नियमों को कार्यान्वित करता है। क्या ये उस भौतिक संसार, जिसमें मनुष्य रहते हैं, से भिन्न हैं? वे व्यापक रुप से भिन्न हैं। वह एक ऐसा संसार है जो भौतिक संसार से सर्वथा भिन्न है। चूंकि वहां स्वर्गीय आदेश और नियम हैं, उसका संबंध परमेश्वर के प्रभुत्व, प्रशासन, और इसके अतिरिक्त परमेश्वर के स्वभाव तथा स्वरूप से है। इतना कुछ सुनने के पश्चात् भी क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह मेरे लिये बहुत जरुरी है कि मैं इस विषय पर बोलूं? क्या तुम इसमें निहित भेदों को सीखना नहीं चाहते? आत्मिक संसार की अवधारणा ऐसी ही है इसका अस्तित्व भौतिक संसार के साथ-साथ है, साथ ही परमेश्वर के प्रभुत्व और प्रशासन के अधीन है फिर भी, भौतिक संसार की अपेक्षा इस संसार के लिये परमेश्वर का प्रशासन और प्रभुत्व बहुत सख्त है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X
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