परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 92

परमेश्वर के आशीष

उत्पत्ति 17:4-6 देख, मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। इसलिये अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा, परन्तु तेरा नाम अब्राहम होगा; क्योंकि मैं ने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। मैं तुझे अत्यन्त फलवन्त करूँगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूँगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।

उत्पत्ति 18:18-19 अब्राहम से तो निश्‍चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी। क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह अपने पुत्रों और परिवार को, जो उसके पीछे रह जाएँगे, आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें; ताकि जो कुछ यहोवा ने अब्राहम के विषय में कहा है उसे पूरा करे।

उत्पत्ति 22:16-18 यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूँगा; और निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूँगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।

अय्यूब 42:12 यहोवा ने अय्यूब के बाद के दिनों में उसके पहले के दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, छ: हज़ार ऊँट, हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गदहियाँ हो गईं।

सृष्टिकर्ता के कथनों का अद्वितीय तरीका और विशेषताएँ सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान और उसके अधिकार की प्रतीक हैं

बहुत-से लोग परमेश्वर के आशीष खोजना और पाना चाहते हैं, लेकिन हर कोई ये आशीष प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि परमेश्वर के अपने सिद्धांत हैं, और वह मनुष्य को अपने तरीके से आशीष देता है। परमेश्वर मनुष्य से जो वादे करता है, और वह जितना अनुग्रह मनुष्य को देता है, वह मनुष्य के विचारों और कार्यों के आधार पर आवंटित किया जाता है। तो, परमेश्वर के आशीषों से क्या दिखता है? लोग उनके भीतर क्या देख सकते हैं? इस समय, हम इस बात की चर्चा अलग रखते हैं कि परमेश्वर किस प्रकार के लोगों को आशीष देता है, और मनुष्य को आशीष देने के परमेश्वर के क्या सिद्धांत हैं। इसके बजाय आओ, हम परमेश्वर के अधिकार को जानने के उद्देश्य से, परमेश्वर के अधिकार को जानने के दृष्टिकोण से, परमेश्वर द्वारा मनुष्य को आशीष दिए जाने को देखते हैं।

पवित्रशास्त्र के उपर्युक्त चारों अंश परमेश्वर के मनुष्य को आशीष देने के अभिलेख हैं। वे अब्राहम और अय्यूब जैसे परमेश्वर के आशीष प्राप्त करने वालों का विस्तृत विवरण प्रदान करते हैं, साथ ही उन कारणों के बारे में भी बताते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें आशीष क्यों दिए, और इस बारे में भी कि इन आशीषों में क्या शामिल था। परमेश्वर के कथनों का लहजा और तरीका, और वह परिप्रेक्ष्य और स्थिति जिससे वह बोला, लोगों को यह समझने देता है कि आशीष देने वाले और आशीष पाने वाले की पहचान, हैसियत और सार स्पष्ट रूप से अलग हैं। इन कथनों का लहजा और ढंग, और जिस स्थिति से वे बोले गए थे, वे अद्वितीय रूप से परमेश्वर के हैं, जिसकी पहचान सृष्टिकर्ता की है। उसके पास अधिकार और शक्ति है, साथ ही सृष्टिकर्ता का सम्मान और प्रताप भी है, जो किसी व्यक्ति द्वारा संदेह किया जाना बरदाश्त नहीं करता।

आओ पहले हम उत्पत्ति 17:4-6 देखें : "देख, मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। इसलिये अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा, परन्तु तेरा नाम अब्राहम होगा; क्योंकि मैं ने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। मैं तुझे अत्यन्त फलवन्त करूँगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूँगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।" ये वचन वह वाचा थे, जिसे परमेश्वर ने अब्राहम के साथ बाँधा था, साथ ही यह अब्राहम को परमेश्वर का आशीष भी था : परमेश्वर अब्राहम को जातियों के समूह का मूलपिता बनाएगा, उसे अत्यंत फलवंत करेगा, और उसे जाति-जाति का मूल बनाएगा, और उसके वंश में राजा उत्पन्न होंगे। क्या तुम इन वचनों में परमेश्वर का अधिकार देखते हो? और तुम ऐसे अधिकार को कैसे देखते हो? तुम परमेश्वर के अधिकार के सार का कौन-सा पहलू देखते हो? इन वचनों को ध्यान से पढ़ने से, यह पता लगाना कठिन नहीं है कि परमेश्वर का अधिकार और पहचान परमेश्वर के वचनों में स्पष्ट रूप से प्रकट हुई है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर कहता है "मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू ... हो जाएगा। ... मैं ने तुझे ठहरा दिया ... मैं तुझे बनाऊँगा...," तो "तू हो जाएगा" और "मैं बनाऊँगा" जैसे वाक्यांश, जिनके शब्दों में परमेश्वर की पहचान और अधिकार निहित है, एक दृष्टि से सृष्टिकर्ता की विश्वसनीयता का संकेत हैं; तो दूसरी दृष्टि से, वे परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए विशेष वचन हैं, जिनमें सृष्टिकर्ता की पहचान है—साथ ही वे परंपरागत शब्दावली का हिस्सा हैं। अगर कोई कहता है कि वह आशा करता है कि दूसरा व्यक्ति अत्यंत फलवंत हो, उसे जाति-जाति का मूल बनाया जाए, और उसके वंश में राजा उत्पन्न हों, तो यह निस्संदेह एक तरह की इच्छा है, कोई वादा या आशीष नहीं। इसलिए, लोग यह कहने की हिम्मत नहीं करते कि "मैं तुम्हें फलाँ-फलाँ बनाऊँगा, तुम फलाँ-फलाँ होगे..." क्योंकि वे जानते हैं कि उनके पास ऐसा सामर्थ्य नहीं है; यह उन पर निर्भर नहीं है, और अगर वे ऐसी बातें कहते भी हैं, तो उनके शब्द उनकी इच्छा और महत्वाकांक्षा से प्रेरित कोरी बकवास होंगे। अगर किसी को लगता है कि वह अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सकता, तो क्या वह इतने भव्य स्वर में बोलने की हिम्मत करता है? हर कोई अपने वंशजों के लिए शुभ कामना करता है, और आशा करता है कि वे उत्कृष्टता प्राप्त करें और बड़ी सफलता का आनंद लें। "उनमें से किसी का सम्राट बनना कितना बड़ा सौभाग्य होगा! अगर कोई राज्यपाल होता, तो वह भी अच्छा होता—बस वे कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हों!" ये सभी लोगों की इच्छाएँ हैं, लेकिन लोग केवल अपने वंशजों के लिए आशीषों की कामना ही कर सकते हैं, लेकिन अपने किसी भी वादे को पूरा या साकार नहीं कर सकते। अपने दिल में हर कोई स्पष्ट रूप से जानता है कि उसके पास ऐसी चीजें हासिल करने का सामर्थ्य नहीं है, क्योंकि उसके बारे में हर चीज उसके नियंत्रण से बाहर है, इसलिए वे दूसरों के भाग्य को नियंत्रित कैसे कर सकते हैं? परमेश्वर इस तरह के वचन इसलिए कह सकता है, क्योंकि परमेश्वर के पास ऐसा अधिकार है, और वह मनुष्य से किए गए सभी वादे पूरे और साकार करने और मनुष्य को दिए गए सभी आशीष साकार करने में सक्षम है। मनुष्य को परमेश्वर ने सृजित किया था, और परमेश्वर के लिए किसी मनुष्य को अत्यंत फलवंत बनाना बच्चों का खेल होगा; किसी के वंशजों को समृद्ध बनाने के लिए सिर्फ उसके एक वचन की आवश्यकता होगी। उसे खुद कभी ऐसी चीज के लिए पसीना नहीं बहाना पड़ेगा, या अपने दिमाग को तकलीफ नहीं देनी पड़ेगी, या इसके लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा; यही है परमेश्वर का सामर्थ्य, यही है परमेश्वर का अधिकार।

उत्पत्ति 18:18 में "अब्राहम से तो निश्‍चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी" पढ़ने के बाद क्या तुम लोग परमेश्वर का अधिकार महसूस कर सकते हो? क्या तुम सृष्टिकर्ता की असाधारणता अनुभव कर सकते हो? क्या तुम सृष्टिकर्ता की सर्वोच्चता अनुभव कर सकते हो? परमेश्वर के वचन पक्के हैं। परमेश्वर ऐसे वचन सफलता में विश्वास होने के कारण या उसे दर्शाने के लिए नहीं कहता; बल्कि वे परमेश्वर के कथनों के अधिकार के प्रमाण हैं, और एक आज्ञा हैं जो परमेश्वर के कथन पूरे करती है। यहाँ दो अभिव्यक्तियाँ हैं, जिन पर तुम लोगों को ध्यान देना चाहिए। जब परमेश्वर कहता है, "अब्राहम से तो निश्‍चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी," तो क्या इन वचनों में अस्पष्टता का कोई तत्त्व है? क्या चिंता का कोई तत्त्व है? क्या डर का कोई तत्त्व है? परमेश्वर के कथनों में "निश्चय उपजेगी" और "आशीष पाएँगी" शब्दों के कारण ये तत्त्व, जो मनुष्य में विशेष रूप से होते हैं और अक्सर उसमें प्रदर्शित होते हैं, इनका सृष्टिकर्ता से कभी कोई संबंध नहीं रहा है। दूसरों के लिए शुभ कामना करते हुए कोई भी ऐसे शब्दों का उपयोग करने की हिम्मत नहीं करेगा, कोई भी दूसरे को ऐसी निश्चितता के साथ आशीष देने की हिम्मत नहीं करेगा कि उससे एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, या यह वादा नहीं करेगा कि पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी। परमेश्वर के वचन जितने ज्यादा निश्चित होते हैं, उतना ही ज्यादा वे कुछ साबित करते हैं—और वह कुछ क्या है? वे साबित करते हैं कि परमेश्वर के पास ऐसा अधिकार है कि उसका अधिकार ये चीजें पूरी कर सकता है, और कि उनका पूरा होना अपरिहार्य है। परमेश्वर ने अब्राहम को जो आशीष दिए थे, उन सबके बारे में वह अपने हृदय में, बिना किसी झिझक के निश्चित था। इसके अलावा, यह उसके वचनों के अनुसार समग्र रूप से पूरा किया जाएगा, और कोई भी ताकत इसके पूरा होने को बदलने, बाधित करने, बिगाड़ने या अवरुद्ध करने में सक्षम नहीं होगी। चाहे और कुछ भी हो जाए, कुछ भी परमेश्वर के वचनों के पूरा और साकार होने को निरस्त या प्रभावित नहीं कर सकता। यह सृष्टिकर्ता के मुख से निकले वचनों का ही सामर्थ्य और सृष्टिकर्ता का अधिकार है, जो मनुष्य का इनकार सहन नहीं करता! इन वचनों को पढ़ने के बाद, क्या तुम्हें अभी भी संदेह है? ये वचन परमेश्वर के मुख से निकले थे, और परमेश्वर के वचनों में सामर्थ्य, प्रताप और अधिकार है। ऐसी शक्ति और अधिकार, और तथ्य के पूरा होने की अनिवार्यता, किसी सृजित या गैर-सृजित प्राणी द्वारा अप्राप्य है, और कोई सृजित या गैर-सृजित प्राणी इससे आगे नहीं निकल सकता। केवल सृष्टिकर्ता ही मानव-जाति के साथ ऐसे लहजे और स्वर में बात कर सकता है, और तथ्यों ने यह साबित कर दिया है कि उसके वादे खोखले वचन या बेकार की डींग नहीं होते, बल्कि अद्वितीय अधिकार की अभिव्यक्ति होते हैं, जिससे श्रेष्ठ कोई भी व्यक्ति, घटना या चीज नहीं हो सकती।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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