परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 58

परमेश्वर के परीक्षणों के बारे में कोई गलतफहमी नहीं रखो

अय्यूब की परीक्षाओं के अंत के बाद उसकी गवाही को प्राप्त करने के पश्चात्, परमेश्वर ने यह दृढ़ निश्चय किया था कि वह अय्यूब के समान एक समूह—या एक से अधिक समूह—को हासिल करेगा, फिर भी उसने यह दृढ़ निश्चय किया था कि वह फिर कभी शैतान को अनुमति नहीं देगा कि वह उन माध्यमों का उपयोग करके किसी और का शोषण करे जिनके द्वारा शैतान ने परमेश्वर के साथ शर्त लगाकर अय्यूब की परीक्षा ली थी, उस पर आक्रमण किया था और उसका शोषण किया था; परमेश्वर ने शैतान को अनुमति नहीं दी थी कि वह फिर कभी मनुष्य के साथ ऐसी चीज़ें करे, जो कमज़ोर, मूर्ख एवं अज्ञानी है—इतना काफी था कि शैतान ने अय्यूब की परीक्षा ली थी! चाहे शैतान कितनी भी इच्छा करे किन्तु लोगों का शोषण करने के लिए उसे अनुमति नहीं देना परमेश्वर की करुणा है। क्योंकि परमेश्वर के लिए, यह काफी था कि अय्यूब ने शैतान की परीक्षाओं एवं शोषण को सहा था। परमेश्वर ने शैतान को फिर कभी ऐसा करने की अनुमति नहीं दी थी, क्योंकि ऐसे लोग जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उनके जीवन एवं उनकी हर एक चीज़ पर परमेश्वर के द्वारा शासन और उनका आयोजन किया जाता है, और शैतान इस बात का हक़दार नहीं है कि वह अपनी इच्छा से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करे—तुम लोगों को इस बिन्दु के विषय में स्पष्ट होना चाहिए! परमेश्वर मनुष्य की कमज़ोरी की चिंता करता है, और उसकी मूर्खता एवं अज्ञानता को समझता है। यद्यपि, इसलिए कि मनुष्य को पूरी तरह से बचाया जा सके, परमेश्वर को उसे शैतान के हाथों में सौंपना पड़ा, परमेश्वर यह देखना नहीं चाहता है कि शैतान के द्वारा कभी भी मनुष्य के साथ खिलौने की तरह खेला जाए और शैतान के द्वारा उसका शोषण किया जाए, और वह हमेशा मनुष्य को दुःख दर्द सहते हुए नहीं देखना चाहता है। मनुष्य को परमेश्वर के द्वारा सृजा गया था, और यह पूरी तरह से न्यायोचित है कि परमेश्वर मनुष्य की हर चीज़ पर शासन करे एवं उसका इंतजाम करे; यह परमेश्वर की ज़िम्मेदारी है, और वह अधिकार है जिसके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है! परमेश्वर ने शैतान को अनुमति नहीं दी है कि वह अपनी इच्छा से मनुष्य का शोषण एवं उससे दुर्व्यवहार करे, और उसने शैतान को अनुमति नहीं दी है कि वह मनुष्य को पथभ्रष्ट करने के लिए विभिन्न साधनों को काम में लाए, और इसके अतिरिक्त, उसने शैतान को अनुमति नहीं दी है कि वह मनुष्य के विषय में परमेश्वर की संप्रभुता में हस्तक्षेप करे, न ही परमेश्वर ने उसे अनुमति दी है कि वह उन नियमों को कुचले एवं नष्ट करे जिनके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है, ताकि वह मानवजाति के उद्धार एवं प्रबंध हेतु परमेश्वर के महान कार्य के बारे में कुछ भी न कहे! ऐसे लोग जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, और ऐसे लोग जो परमेश्वर के लिए गवाही देने के योग्य हैं, वे परमेश्वर की छः हज़ार वर्षों की प्रबंधकीय योजना के केन्द्र एवं उसका साकार रूप हैं, साथ ही साथ वे छः हज़ार वर्षों में उसके प्रयासों की कीमत भी हैं। परमेश्वर इन लोगों को अकस्मात् ही शैतान को कैसे दे सकता है?

लोग अकसर परमेश्वर की परीक्षाओं के विषय में चिंता करते हैं और भयभीत होते हैं, फिर भी पूरे समय वे शैतान के फंदे में जीवन बिताते रहते हैं, और उस ख़तरनाक इलाके में जीवन जीते रहते हैं जिसमें शैतान के द्वारा उन पर आक्रमण एवं उनका शोषण किया जाता है—फिर भी वे किसी भय को नहीं जानते हैं, और बिना किसी चिंता के खामोश रहते हैं। क्या हो रहा है? परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास केवल उन चीज़ों तक ही सीमित रहता है जिन्हें वह देख सकता है। उसके पास मनुष्य के लिए परमेश्वर के प्रेम एवं चिंता, या मनुष्य के प्रति उसकी कोमलता एवं विचार की जरा सी भी समझ नहीं है। परन्तु उसमें परमेश्वर की परीक्षाओं, न्याय एवं ताड़ना, प्रताप एवं क्रोध के विषय में थोड़ी सी घबराहट है, मनुष्य के पास परमेश्वर के भले इरादों की जरा सी भी समझ नहीं है। परीक्षाओं का जिक्र होने पर, लोगों को लगता है मानो परमेश्वर के पास गूढ़ इरादे हैं, और कुछ लोग यह भी विश्वास करते हैं कि परमेश्वर बुरी रूपरेखाओं (डिज़ाइनों) को लम्बे समय तक छिपाकर रखता है, वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि परमेश्वर वास्तव में उनके साथ क्या करेगा; इस प्रकार, जब वे परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों के प्रति आज्ञाकारिता के विषय में चीखते चिल्लाते हैं, तो ठीक उसी समय वे मनुष्य के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता एवं उसके इंतज़ामों का सामना एवं विरोध करने के लिए वह सब कुछ करते हैं जो वे कर सकते हैं, क्योंकि वे विश्वास करते हैं कि यदि वे सावधान नहीं हुए तो उन्हें परमेश्वर के द्वारा गुमराह कर दिया जाएगा, यह कि यदि उन्होंने अपनी नियति को कस कर नहीं पकड़ा तो जो कुछ भी उनके पास है उन्हें परमेश्वर के द्वारा लिया जा सकता है, और उनके जीवन को भी समाप्त किया जा सकता है। मनुष्य शैतान के शिविर में है, परन्तु वह शैतान के द्वारा शोषण किए जाने के विषय में कभी भी चिंता नहीं करता है, और शैतान के द्वारा उसका शोषण किया जाता है परन्तु वह शैतान के द्वारा बन्दी बनाए जाने की कभी चिंता नहीं करता। वह लगातार बोलता रहता है कि वह परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करता है, फिर भी उसने परमेश्वर पर कभी भरोसा नहीं किया है या यह विश्वास नहीं किया है कि परमेश्वर सचमुच में मनुष्य को शैतान के पंजों से बचा सकता है। यदि अय्यूब के समान कोई मनुष्य परमेश्वर के आयोजनों एवं इंतज़ामों के अधीन हो सकता है, और अपने सम्पूर्ण वज़ूद को परमेश्वर के हाथों में सौंप सकता है, तो क्या मनुष्य का अंत अय्यूब के समान ही नहीं होगा—परमेश्वर की आशीषों की प्राप्ति? यदि मनुष्य परमेश्वर के शासन को स्वीकार करने और उसके अधीन होने के योग्य है, तो वहाँ खोने के लिए क्या है? और इस प्रकार, मैं तुम लोगों को सलाह देता हूँ कि तुम लोग अपने कार्यों के प्रति सचेत हो जाओ, और हर उस चीज़ के प्रति सावधान हो जाओ जो तुम लोगों पर आनेवाला है। तुम लोग आवेगी या उतावले न हों, और परमेश्वर एवं लोगों, मामलों, और प्रयोजनों से, जिन्हें उसने तुम लोगों के लिए इंतज़ाम किया है, एक उत्तेजनापूर्ण तीव्र इच्छा के रूप में व्यवहार न करो जो तुम लोगों पर काबिज़ हो जाता है, या उनसे अपने नैसर्गिक स्वार्थ के अनुसार व्यवहार न करो, या अपनी कल्पनाओं एवं अवधारणाओं के अनुसार व्यवहार न करो; तुम लोगों को अपने कार्यों में सचेत होना होगा, तथा और भी अधिक प्रार्थना एवं खोज करना होगा, ताकि परमेश्वर के क्रोध उत्तेजित करने से बचा जाए। इसे स्मरण रखो!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

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