परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 30
परमेश्वर मनुष्य के साथ अपनी वाचा के लिए इंद्रधनुष को चिन्ह के रूप में ठहराता है (चुने हुए अंश)
(उत्पत्ति 9:11-13) "और मैं तुम्हारे साथ अपनी यह वाचा बाँधता हूँ कि सब प्राणी फिर जल-प्रलय से नष्ट न होंगे: और पृथ्वी का नाश करने के लिये फिर जल-प्रलय न होगा।" फिर परमेश्वर ने कहा, "जो वाचा मैं तुम्हारे साथ, और जितने जीवित प्राणी तुम्हारे संग हैं उन सब के साथ भी युग-युग की पीढ़ियों के लिये बाँधता हूँ, उसका यह चिह्न है: मैं ने बादल में अपना धनुष रखा है, वह मेरे और पृथ्वी के बीच में वाचा का चिह्न होगा।"
नूह की कहानी के अंत में, हम देखते हैं कि उस समय परमेश्वर ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक असामान्य तरीके का उपयोग किया था। यह तरीका बहुत ही ख़ास है, और वह मनुष्य के साथ एक वाचा बांधने के लिए है। यह ऐसा तरीका है जो संसार का विनाश करने के लिए परमेश्वर द्वारा जल-प्रलय के उपयोग के अंत की घोषणा करता है। बाहर से, ऐसा प्रतीत होता है कि एक वाचा बांधना बहुत ही साधारण सी बात है। यह नियमों का उल्लंघन करनेवाले कार्यों से दोनों दलों को बांधने के लिए शब्दों के उपयोग से बढ़कर और कुछ नहीं हैं, ताकि दोनों पक्षों के हितों की रक्षा के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायता मिले। आकार में, यह बहुत ही साधारण सा कार्य है, किन्तु इस कार्य के पीछे की उन प्रेरणाओं से और परमेश्वर द्वारा इस कार्य को करने के अर्थ से, यह परमेश्वर के स्वभाव एवं मनोदशा का एक सच्चा प्रकाशन है। यदि तुम बस इन वचनों को एक तरफ रखते और उन्हें अनदेखा करते, यदि मैं तुम लोगों को चीज़ों की सच्चाई कभी न बताता, तो मानवजाति परमेश्वर की सोच को वास्तव में कभी नहीं जानेगी। कदाचित् तुम्हारी कल्पना में परमेश्वर मुस्कुरा रहा है जब वह यह वाचा बाँध रहा है, या कदाचित् उसके हाव-भाव गंभीर है, परन्तु इसकी परवाह किए बगैर कि लोगों की कल्पनाओं में परमेश्वर के पास कौन सी सबसे सामान्य किस्म की अभिव्यक्ति है, कोई भी परमेश्वर के हृदय या उसकी पीड़ा को देख नहीं सकता है, उसके अकेलेपन की तो बात ही छोड़ दीजिए। कोई भी परमेश्वर से अपने ऊपर भरोसा नहीं करवा सकता है या परमेश्वर के विश्वास के लायक नहीं हो सकता है, या ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता है जिस पर वह अपने विचारों को व्यक्त कर सके या उसे अपनी पीड़ा का रहस्य बता सके। इसी लिए परमेश्वर के पास ऐसा कार्य करने के सिवाए कोई और विकल्प नहीं था। सतह पर, परमेश्वर ने पूर्व मानवता को विदाई देने के लिए एक आसान कार्य किया, भूतकाल को व्यवस्थित किया और स्वयं जलप्रलय के द्वारा संसार के विनाश के एक सिद्ध निष्कर्ष की ओर आया। फिर भी, परमेश्वर ने इस क्षण से उस पीड़ा को अपने हृदय की गहराई में दफन कर दिया था। एक समय जब परमेश्वर के पास कोई नहीं था कि वह उस पर भरोसा करके गोपनीय बातों को बताए, तो उसने मानवजाति के साथ एक वाचा बांधी, यह बताते हुए कि वह दोबारा संसार को जलप्रलय के द्वारा नाश नहीं करेगा। जब इंद्रधनुष प्रकट होता है तो यह लोगों को स्मरण दिलाने के लिए है कि किसी समय एक ऐसी घटना घटी थी, यह उन्हें चेतावनी देने के लिए है कि बुरे काम न करें। यहाँ तक कि ऐसी दुखदायी दशा में भी, परमेश्वर मानवजाति के विषय में नहीं भूला और तब भी उसने उनके लिए अत्यधिक चिन्ता दिखाई। क्या यह परमेश्वर का प्रेम एवं निःस्वार्थता नहीं है? किन्तु लोग क्या सोचते हैं जब वे कष्ट सह रहे हैं? क्या यह वह समय नहीं है जब उन्हें परमेश्वर की सबसे अधिक ज़रूरत है? ऐसे समयों पर, लोग हमेशा परमेश्वर को घसीटते हैं ताकि परमेश्वर उन्हें सांत्वना दे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कब, परमेश्वर लोगों को कभी शर्मिन्दा होने नहीं देगा, और वह हमेशा लोगों को अनुमति देगा कि वे अपनी दुर्दशाओं से बाहर निकलें और प्रकाश में जीवन बिताएँ। हालाँकि परमेश्वर इस प्रकार से ही मानवजाति की आपूर्ति करता है, फिर भी मनुष्य के हृदय में परमेश्वर एक आश्वासन की गोली, और सांत्वना के स्फूर्तिदायक द्रव्य के अलावा और कुछ नहीं होता है। जब परमेश्वर दुख उठा रहा है, जब उसका हृदय ज़ख्मी है, तब उसका साथ देने या उसे सांत्वना देने के लिए किसी सृजे गए प्राणी या किसी व्यक्ति का होना निःसन्देह परमेश्वर के लिए बस एक फिज़ूल की इच्छा है। मनुष्य कभी परमेश्वर की भावनाओं पर ध्यान नहीं देता है, अतः परमेश्वर कभी नहीं माँगता या अपेक्षा नहीं करता है कि कोई हो जो उसे सांत्वना दे। अपनी मनोदशा को व्यक्त करने के लिए वह महज अपने स्वयं के तरीकों का उपयोग करता है। लोग नहीं सोचते हैं कि कुछ दुख-दर्द से होकर गुज़रना परमेश्वर के लिए बहुत बड़ी बात है, लेकिन जब तुम सचमुच में परमेश्वर को समझने की कोशिश करते हो, जब वह सब कुछ जो परमेश्वर करता है उसमें तुम सचमुच उसके सच्चे इरादों की सराहना कर सकते हो, केवल तभी तुम परमेश्वर की महानता एवं उसकी निःस्वार्थता को महसूस कर सकते हो। यद्यपि परमेश्वर ने इंद्रधनुष का उपयोग करते हुए मानवजाति के साथ एक वाचा बाँधी फिर भी उसने किसी को कभी नहीं बताया कि क्यों उसने ऐसा किया था, क्यों उसने इस वाचा को ठहराया था, मतलब उसने कभी किसी को अपने वास्तविक विचारों को नहीं बताया था। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसा कोई नहीं है जो उस प्रेम की गहराई को बूझ सकता है जो मानवजाति के लिए परमेश्वर के पास है जिसे उसने अपने हाथों से बनाया था, और साथ ही ऐसा कोई भी नहीं है जो यह तारीफ कर सके कि उसके हृदय ने वास्तव में कितनी पीड़ा सहन की थी जब उसने मानवता का विनाश किया था। इसलिए, भले ही वह लोगों को बताता है कि वह कैसा महसूस करता है, फिर भी वे इस भरोसे की ज़िम्मेदारी लेकर उसका आरम्भ नहीं कर सकते है। पीड़ा में होने के बावजूद, वह अभी भी अपने कार्य के अगले चरण के साथ आगे बढ़ता जाता है। परमेश्वर हमेशा मानवजाति को अपना सर्वोतम पहलु एवं बेहतरीन चीजें देता है जबकि स्वयं ही सारे दुखों को खामोशी से सहता रहता है। परमेश्वर कभी भी इन दुखों को खुले तौर पर प्रकट नहीं करता है। इसके बदले में, वह उन्हें सहता है और खामोशी से इन्तज़ार करता है। परमेश्वर की सहनशीलता रुखी, सुन्न, या असहाय नहीं है, न ही यह कमज़ोरी का एक चिन्ह है। यह ऐसा है कि परमेश्वर का प्रेम एवं सार हमेशा से ही निःस्वार्थ रहा है। यह उसके सार एवं स्वभाव का एक प्राकृतिक प्रकाशन है, और एक सच्चे सृष्टिकर्ता के रूप में परमेश्वर की पहचान का एक असली जीता-जागता नमूना है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I
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