तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई (भाग दो)

सबसे पहले, परमेश्वर ने आदम और हव्वा का सृजन किया, और उसने साँप का भी सृजन किया। सभी चीज़ों में साँप सर्वाधिक विषैला था; उसकी देह में विष था, और शैतान उस विष का उपयोग करता था। यह साँप ही था जिसने पाप करने के लिए हव्वा को प्रलोभित किया। हव्वा के बाद आदम ने पाप किया, और तब वे दोनों अच्छे और बुरे के बीच भेद करने में समर्थ हो गए थे। यदि यहोवा जानता था कि साँप हव्वा को प्रलोभित करेगा और हव्वा आदम को प्रलोभित करेगी, तो उसने उन सबको एक ही वाटिका के भीतर क्यों रखा? यदि वह इन चीज़ों का पूर्वानुमान करने में समर्थ था, तो उसने क्यों साँप की रचना की और उसे अदन की वाटिका के भीतर रखा? अदन की वाटिका में अच्छे और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल क्यों था? क्या वह चाहता था कि वे उस फल को खाएँ? जब यहोवा आया, तब न आदम को और न हव्वा को उसका सामना करने का साहस हुआ, और केवल इसी समय यहोवा को पता चला कि उन्होंने अच्छे और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खा लिया है और वे साँप के छल-कपट का शिकार बन गए हैं। अंत में, उसने साँप को शाप दिया, और उसने आदम और हव्वा को शाप दिया। जब उन दोनों ने उस वृक्ष के फल को खाया तब यहोवा को पता नहीं था। मानवजाति दुष्ट बनने और यौन रूप से स्वच्छंदता होने की सीमा तक भ्रष्ट हो गयी, यहाँ तक कि इस स्थिति तक कि उन्होंने जिन चीज़ों को अपने हृदयों में आश्रय दिया हुआ था वे भी बुरी और अधार्मिक थीं; वे सब गंदगियाँ थीं। इसलिए, यहोवा मानवजाति का सृजन करके पछताया। उसके बाद उसने संसार को जलप्रलय के द्वारा नाश करने का अपना कार्य सम्पन्न किया, जिसमें नूह और उसके पुत्र बच गए। कुछ चीज़ें वास्तव में इतनी अधिक उन्नत और अलौकिक नहीं हैं जितनी लोग कल्पना कर सकते हैं। कुछ लोग पूछते हैं: "चूँकि परमेश्वर जानता था कि प्रधान स्वर्गदूत उसके साथ विश्वासघात करेगा, तो परमेश्वर ने उसका सृजन क्यों किया?" तथ्य ये हैं: जब अभी तक इस पृथ्वी का अस्तित्व नहीं था, तब प्रधान स्वर्गदूत स्वर्ग के स्वर्गदूतों में सबसे महान् था। स्वर्ग के सभी स्वर्गदूतों पर उसका अधिकार क्षेत्र था; और यही अधिकार उसे परमेश्वर ने दिया था। परमेश्वर के अपवाद के साथ, वह स्वर्ग के स्वर्गदूतों में सर्वोच्च था। बाद में जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया तब प्रधान स्वर्गदूत ने पृथ्वी पर परमेश्वर के विरुद्ध और भी बड़ा विश्वासघात किया। मैं कहता हूँ कि उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात इसलिए किया क्योंकि वह मानवजाति का प्रबंधन करना और परमेश्वर के अधिकार से बढ़कर होना चाहता था। यह प्रधान स्वर्गदूत ही था जिसने हव्वा को पाप करने के लिए प्रलोभित किया; उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह पृथ्वी पर अपना राज्य स्थापित करना और मानवजाति द्वारा परमेश्वर के साथ विश्वासघात करवाना और परमेश्वर के बजाय अपना आज्ञापालन करवाना चाहता था। उसने देखा कि बहुत सी चीज़ें हैं जो उसका आज्ञापालन करती थीं; स्वर्गदूत उसकी आज्ञा मानते थे, ऐसे ही पृथ्वी पर लोग भी उसकी आज्ञा मानते थे। पृथ्वी पर पक्षी और पशु, वृक्ष और जंगल, पर्वत और नदियाँ और सभी वस्तुएँ मनुष्य—अर्थात्, आदम और हव्वा—की देखभाल के अधीन थी जबकि आदम और हव्वा उसका आज्ञापालन करते थे। इसलिए प्रधान स्वर्गदूत परमेश्वर के अधिकार से अधिक बढ़कर होना और परमेश्वर के साथ विश्वासघात करना चाहता था। बाद में उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए बहुत से स्वर्गदूतों की अगुआई की, जो तब विभिन्न अशुद्ध आत्माएँ बन गए। क्या आज के दिन तक मानवजाति का विकास प्रधान स्वर्गदूत की भ्रष्टता के कारण नहीं है? मानवजाति जैसी आज है केवल इसलिए है क्योंकि प्रधान स्वर्गदूत ने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया और मानवजाति को भ्रष्ट कर दिया। यह कदम-दर-कदम कार्य कहीं भी लगभग उतना अमूर्त और आसान नहीं है जैसा लोग कल्पना करते हैं। शैतान ने एक कारणवश विश्वासघात किया, फिर भी लोग इतनी आसान सी बात को समझने में असमर्थ हैं। परमेश्वर ने क्यों स्वर्ग और पृथ्वी और सब वस्तुओं का सृजन किया, और शैतान का भी सृजन किया? चूँकि परमेश्वर शैतान से बहुत अधिक घृणा करता है, और शैतान परमेश्वर का शत्रु है, तो परमेश्वर ने उसका सृजन क्यों किया? शैतान का सृजन करके, क्या वह एक शत्रु का सृजन नहीं कर रहा था? परमेश्वर ने वास्तव में एक शत्रु का सृजन नहीं किया था; बल्कि उसने एक स्वर्गदूत का सृजन किया था, और बाद में इस स्वर्गदूत ने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया। इसकी हैसियत इतनी बड़ी थी कि उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने की इच्छा की। कोई कह सकता है कि यह मात्र एक संयोग था, परंतु यह एक अपरिहार्य प्रवृत्ति भी थी। यह उस बात के समान है कि कैसे कोई व्यक्ति एक निश्चित आयु पर अपरिहार्य रूप से मरेगा; चीज़ें पहले ही एक निश्चित स्तर तक विकसित हो चुकी है। कुछ ऐसे बेहूदे लोग हैं, जो कहते हैं: "चूँकि शैतान तुम्हारा शत्रु है, तो तुमने उसका सृजन क्यों किया? क्या तुम नहीं जानते थे कि प्रधान स्वर्गदूत तुम्हारे साथ विश्वासघात करेगा? क्या तुम अनंतकाल से अनंतकाल में नहीं झाँक सकते हो? क्या तुम उसका स्वभाव नहीं जानते हो? चूँकि तुम्हें स्पष्ट रूप से पता था कि वह तुम्हारे साथ विश्वासघात करेगा, तो तुमने उसे प्रधान स्वर्गदूत क्यों बनाया? भले ही कोई उसके विश्वासघात की बात की अनदेखी भी करे, तब भी उसने कितने ही स्वर्गदूतों की अगुआई की और मनुष्यजाति को भ्रष्ट करने के लिए नश्वर संसार में उतरा; आज के दिन तक, तुम अपनी छः—हजार—वर्षीय प्रबंधन योजना को पूरा करने में असमर्थ रहे हो। क्या यह सही है?" क्या तुम अपने आपको आवश्यकता से अधिक तकलीफों में नहीं डाल रहे हो? तब भी अन्य लोग कहते हैं: "यदि शैतान ने वर्तमान समय तक मानवजाति को भ्रष्ट नहीं किया होता, तो परमेश्वर ने मानवजाति को इस प्रकार से नहीं बचाया होता। इस मामले में परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता अदृश्य रहे होते; उसकी बुद्धि कहाँ अभिव्यक्त होती? इसलिए परमेश्वर ने शैतान के लिये मानवजाति का सृजन किया; भविष्य में परमेश्वर अपना सर्वशक्तिमत्ता प्रकट करेगा—अन्यथा मनुष्य परमेश्वर की बुद्धि को कैसे खोजेगा? यदि मनुष्य ने परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं किया और उसके प्रति विद्रोहशील क्रिया नहीं की, तो उसकी क्रियाओं को स्वयं को अभिव्यक्त करना अनावश्यक होगा। यदि सम्पूर्ण सृष्टि उसकी आराधना और उसका आज्ञापालन करे, तो उसके पास करने के लिए कोई कार्य नहीं होगा।" और यह चीज़ों की वास्तविकता से भी आगे है, क्योंकि परमेश्वर में कुछ भी गंदगी नहीं है, और इसलिए वह गंदगी का सृजन नहीं कर सकता है। वह केवल अपने शत्रु को परास्त करने, मानव जाति को बचाने, जिसका इसने सृजन किया है, दुष्टात्माओं और शैतान को पराजित करने, जो उससे घृणा करते हैं, विश्वासघात करते हैं, और उसका प्रतिरोध करते हैं, जो उसके अधिकार क्षेत्र के अधीन थे और बिल्कुल आरम्भ में उसी से संबंधित थे, के लिए अब अपने कार्यों को प्रकट करता है; वह इन दुष्टात्माओं को पराजित करना चाहता है और ऐसा करने में वह सभी चीज़ों पर अपनी सर्वशक्तिमत्ता को प्रकट करता है। मानवजाति और पृथ्वी पर सभी वस्तुएँ अब शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन हैं और दुष्ट के अधिकार क्षेत्र के अधीन हैं। परमेश्वर अपने कार्यों को सभी चीज़ों के ऊपर प्रकट करना चाहता है ताकि लोग उसे जान सकें, और परिणामस्वरूप शैतान को पराजित और परमेश्वर के शत्रुओं को सर्वथा परास्त कर सकें। उसके इस कार्य की समग्रता उसके कार्यों के प्रकट होने के माध्यम से सम्पन्न होती है। उसके सभी प्राणी शैतान के अधिकार क्षेत्र में है, और इसलिए वह उन पर अपनी सर्वशक्तिमत्ता प्रकट करना चाहता है, और परिणामस्वरूप शैतान को पराजित करना चाहता है। यदि कोई शैतान नहीं होता, तो उसे अपने कार्यों को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती। यदि शैतान के उत्पीड़न के कारण नहीं होता, तो उसने मानवजाति का सृजन किया होता और अदन की वाटिका में उनके रहने के लिए अगुवाई की होती। उसने शैतान के विश्वासघात से पहले स्वर्गदूतों या प्रधान स्वर्गदूत के लिए अपने सभी क्रिया-कलापों को प्रकट क्यों नहीं किया? यदि स्वर्गदूतों और प्रधान स्वर्गदूत ने उसको जान लिया होता, और आरम्भ में ही उसका आज्ञापालन भी किया होता, तो उसने कार्य के उन निरर्थक क्रिया-कलापों को नहीं किया होता। शैतान और दुष्टात्माओं के अस्तित्व की वजह से, लोग परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और विद्रोह करने वाले स्वभाव से लबालब भरे हुए हैं, और इसलिए परमेश्वर अपने क्रिया-कलापों को प्रकट करना चाहता है। क्योंकि वह शैतान से युद्ध करना चाहता है, इसलिए शैतान को पराजित करने के लिए उसे अवश्य अपने स्वयं के अधिकार का उपयोग करना चाहिए और अपने सभी क्रिया-कलापों का उपयोग करना चाहिए; इस तरह से, उसके उद्धार का कार्य जिसे वह मनुष्यों के बीच सम्पन्न करता है लोगों को उसकी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को देखने देगा। आज परमेश्वर जो कार्य करता है, वह अर्थपूर्ण है, और किसी भी तरह से वैसा नहीं है, जैसा कि कुछ लोग कहते हैं: "क्या तुम जो कार्य करते हो वह विरोधाभासी नहीं हैं? क्या कार्य का यह सिलसिला अपने आप को थकाने का एक व्यायाम मात्र नहीं है? तुमने शैतान का सृजन किया, फिर उसे तुम्हारे साथ विश्वासघात करने और तुम्हारा प्रतिरोध करने दिया। तुमने मानवजाति का सृजन किया, और फिर उसे शैतान को सौंप दिया, और तुमने आदम और हव्वा को प्रलोभित किए जाने की अनुमति दी। चूँकि तुमने यह सब कुछ जानबूझ कर किया है, तो तुम मानवजाति से नफ़रत क्यों करते हो? तुम शैतान से नफ़रत क्यों करते हो? क्या ये चीजें तुम्हारे स्वयं के द्वारा नहीं बनायी गई हैं? इसमें तुम्हारे लिए घृणा करने वाली क्या बात है?" बहुत से बेहूदा लोग ऐसा कहेंगे। वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, परन्तु वे अपने हृदयों में परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हैं—कितनी विरोधाभासी बात है! तुम सत्य को नहीं समझते हो, तुम्हारे बहुत से अलौकिक विचार हैं, और तुम यहाँ तक भी दावा करते हो कि यह परमेश्वर की गलती है—तुम कितने बेहूदा हो! यह तुम ही हो जो सत्य के साथ हेराफेरी करते हो; यह परमेश्वर की गलती नहीं है! कुछ लोग तो यहाँ तक कि बार-बार शिकायत भी करते हैं: "यह तुम ही थे जिसने शैतान का सृजन किया, और तुमने ही मानवजाति को शैतान को दिया। मानवजाति शैतानी स्वभाव को धारण करती है; उन्हें क्षमा करने के बजाय, तुम उनसे एक हद तक नफ़रत करते हो। आरंभ में तुमने मनुष्य जाति को एक हद तक प्रेम किया। तुमने शैतान को मनुष्यों के संसार में गिराया, और अब तुम मानवजाति से नफरत करते हो। यह तुम ही हो जो मानवजाति से नफ़रत और प्रेम करते हो—इसका क्या स्ष्टीकरण है? क्या यह एक विरोधाभास नहीं हैं?" इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि तुम लोग इसे कैसे देखते हो, स्वर्ग में यही हुआ था; प्रधान स्वर्गदूत ने इसी तरीके से परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया, और मानवजाति को इसी प्रकार भ्रष्ट किया गया, और आज के दिन तक इसी तरीके से की जा रही है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि तुम किन शब्दों में व्यक्त करते हो, पूरी कहानी यही है। हालाँकि, तुम लोगों को यह अवश्य समझना चाहिए कि परमेश्वर वर्तमान में जो कार्य करता है, वह तुम लोगों को बचाने के लिए, और शैतान को पराजित करने के लिए करता है।

चूँकि स्वर्गदूत विशेष रूप से निर्बल था और उसमें कोई योग्यता नहीं थी, इसलिए यदि अधिकार दिया जाता तो वह घमण्डी बन जाता, विशेष रूप से प्रधान स्वर्गदूत, जिसका पद किसी भी अन्य स्वर्गदूत से उच्चतर था। प्रधान स्वर्गदूत सभी स्वर्गदूतों का राजा था। इसने लाखों स्वर्गदूतों की अगुआई की, और यहोवा के अधीन इसका अधिकार किसी भी अन्य स्वर्गदूत से बढ़कर था। वह बहुत सी चीज़े करना चाहता था, और संसार में प्रशासन करने के लिए मनुष्यों के संसार में स्वर्गदूतों की अगुआई करना चाहता था। परमेश्वर ने कहा कि वह ब्रह्माण्ड का प्रशासन करता है; और प्रधान स्वर्गदूत ने कहा कि प्रशासन करने के लिए ब्रह्माण्ड उसका अपना है, और तब से उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया। स्वर्ग में, परमेश्वर ने एक अन्य संसार का सृजन किया था। प्रधान स्वर्गदूत उस संसार पर प्रशासन करना चाहता था और मनुष्य के संसार में भी उतरना चाहता था। क्या परमेश्वर उसे ऐसा करने की अनुमति दे सकता था? इसलिए, उसने उसे नीचे और हवा में गिरा दिया। जब से उसने मनुष्यों को भ्रष्ट किया, तब से मानवजाति के उद्धार के लिये परमेश्वर ने उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया है; उसने इन छः-सहस्राब्दियों का उपयोग उसे हराने के लिए किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विषय में तुम लोगों की धारणा परमेश्वर द्वारा अब किए जा रहे कामों से असंगत है; यह अभ्यास में कार्य नहीं करती है और अत्यधिक बेहूदी है! वास्तव में, परमेश्वर ने प्रधान स्वर्गदूत के द्वारा विश्वासघात करने के बाद ही उसे अपना शत्रु घोषित किया। यह इस विश्वासघात के कारण ही था कि मनुष्य के संसार में आने के बाद उसने मानवजाति को कुचल दिया, और यह इसी कारण से था कि मानवजाति इस चरण तक पहुँच गई। इसके बाद, परमेश्वर ने शैतान के साथ शपथ ली: "मैं तुझे पराजित करूँगा और अपनी सृष्टि, मानवजाति को बचाऊँगा।" पहले-पहल तो शैतान आश्वस्त नहीं हुआ और कहा, "तू वास्तव में मेरा क्या बिगाड़ सकता है? क्या तू मुझे सच में हवा में गिरा सकता है? क्या तू सच में मुझे पराजित कर सकता है?" जब परमेश्वर ने उसे हवा मे गिरा दिया, उसके बाद उसने उस पर और ध्यान नहीं दिया और फिर, शैतान द्वारा निरंतर परेशानियों के बावजूद, उसने मानवजाति को बचाना और अपना कार्य करना शुरू कर दिया। शैतान जो कुछ भी कर सकता था वह उसे परमेश्वर द्वारा दी कई सामर्थ्य के कारण था; वह इन चीज़ों को अपने साथ हवा में ले गया और आज के दिन तक इन चीज़ों को धारण करता है। परमेश्वर ने उसे हवा में गिराया किंतु उसका अधिकार वापस नहीं लिया, और इसलिए वह मानव जाति को भ्रष्ट करता रहा। परमेश्वर ने, दूसरी ओर, मानवजाति को बचाना आरंभ कर दिया, जिसे उनके सृजन के बाद ही शैतान ने भ्रष्ट कर दिया था। परमेश्वर ने स्वर्ग में रहने के दौरान अपने कार्यों को प्रकट नहीं किया; हालाँकि, पृथ्वी का सृजन करने से पहले, उसने लोगों को अवसर दिया कि वे संसार में उन क्रिया-कलापों को देखें जिनका उसने स्वर्ग में सृजन किया था और इस प्रकार लोगों की ऊपर स्वर्ग में अगुवाई की। उसने उन्हें बुद्धि और प्रतिभा दी, और उन लोगों की उस संसार में रहने में अगुवाई की। स्वाभाविक है कि तुम लोगों में से किसी ने भी इसे पहले नहीं सुना है। बाद में, जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन कर लिया उसके बाद, प्रधान स्वर्गदूत ने मानवजाति को भ्रष्ट करना आरंभ कर दिया; पृथ्वी पर समस्त मानवजाति अराजकता में थी। यह केवल इसी समय हुआ कि परमेश्वर ने शैतान के विरुद्ध अपना युद्ध आरंभ कर दिया, और यह केवल इसी समय था कि लोगों ने उसके कार्यों को देखा। आरंभ में उसके क्रिया-कलाप मानवजाति से गुप्त थे। जब शैतान हवा में गिराया गया उसके बाद, इसने अपने आप को अपने मामलों की तक संबंधित रखा, और परमेश्वर ने, अंत के दिनों तक पूरी तरह से, उसके विरुद्ध लगातार युद्ध छेड़ते हुए, अपने आप को अपने स्वयं के कार्यों तक संबंधित रखा। अब वह समय है जिसमें शैतान को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। आरंभ में परमेश्वर ने उसे अधिकार दिया, बाद में उसे हवा में गिरा दिया, परंतु वह अवज्ञाकारी बना रहा। बाद में, पृथ्वी पर, उसने मानवजाति को भ्रष्ट किया, परंतु परमेश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों का प्रबंधन कर रहा था। परमेश्वर लोगों के प्रबंधन का उपयोग शैतान को पराजित करने के लिए करता है। लोगों को भ्रष्ट करके शैतान लोगों के भाग्य का अंत कर देता है और परमेश्वर के कार्य में परेशानी उत्पन्न करता है। दूसरी ओर, परमेश्वर का कार्य मनुष्यों का उद्धार करना है। परमेश्वर के कार्य का कौन सा कदम मानवजाति को बचाने के अभिप्राय से नहीं है? कौन सा कदम लोगों को स्वच्छ बनाने, उनसे धार्मिकता करवाने और इस तरह से जीवन बिताने के अभिप्राय से नहीं है जो ऐसी छवि का निर्माण करता है जिससे प्रेम किया जा सके? शैतान, हालाँकि, ऐसा नहीं करता है। वह मानवजाति को भ्रष्ट करता है; मानवजाति को भ्रष्ट करने के अपने कार्य को सारे ब्रह्माण्ड में निरंतर करता रहता है। निस्संदेह, परमेश्वर अपना स्वयं का कार्य भी करता है। वह शैतान की ओर जरा भी ध्यान नहीं देता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि शैतान के पास कितना अधिकार है, तब भी इसका अधिकार परमेश्वर द्वारा ही दिया गया है; परमेश्वर ने वास्तव में उसे मात्र अपना पूरा अधिकार नहीं दिया, और इसलिए वह चाहे जो कुछ करे, वह परमेश्वर से आगे नहीं बढ़ सकता है और सदैव परमेश्वर की पकड़ में है। परमेश्वर ने स्वर्ग में रहने के समय अपने क्रिया-कलापों को प्रकट नहीं किया। उसने शैतान को स्वर्गदूतों के ऊपर नियंत्रण प्रयोग करने की अनुमति देने के लिए उसे अपने अधिकार में से मात्र कुछ हिस्सा ही दिया। इसलिए वह चाहे जो कुछ करे, वह परमेश्वर के अधिकार से बढ़-कर नहीं हो सकता है, क्योंकि परमेश्वर ने उसे जो अधिकार दिया है वह सीमित है। जब परमेश्वर कार्य करता है, तो शैतान परेशान करता है। अंत के दिनो में, वह अपने उत्पीड़न को समाप्त कर देगा; उसी तरह, परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाएगा, और परमेश्वर जिस प्रकार के व्यक्ति को पूर्ण बनाना चाहता है वह पूर्ण बना दिया जाएगा। परमेश्वर लोगों को सकारात्मक रूप से निर्देशित करता है; उसका जीवन जीवित जल है, अमापनीय और असीम है। शैतान ने मनुष्य को एक हद तक भ्रष्ट किया है; अंत में, जीवन का जीवित जल मनुष्य को पूर्ण बनाएगा, और शैतान के लिए हस्तक्षेप करना और उसका कार्य करना असंभव हो जायेगा। इस प्रकार, परमेश्वर इन लोगें को पूर्णतः प्राप्त कर लेगा। शैतान तब भी इसे अब मानने से मना करता है; वह लगातार स्वयं को परमेश्वर के विरोध में खड़ा करता है, परंतु परमेवश्वर उस पर कोई ध्यान नहीं देता है। उसने कहा है, मैं शैतान की सभी अँधेरी शक्तियों के ऊपर और उसके सभी अँधेरे प्रभावों के ऊपर विजेता बनूँगा। यही वह कार्य है जो अब देह में अवश्य किया जाना चाहिए, और यही देहधारण का अभिप्राय है। यह अंत के दिनों में शैतान को पराजित करने के चरण को पूर्ण करने, शैतान से जुड़ी सभी चीज़ों को मिटाने के लिए है। परमेश्वर की शैतान पर विजय एक निश्चित प्रवृत्ति है! वास्तव में शैतान बहुत पहले असफल हो चुका है। जब बड़े लाल ड्रेगन के पूरे देश में सुसमाचार फैलने लगा, अर्थात्, जब देहधारी परमेश्वर ने कार्य करना आरंभ किया, और यह कार्य गति पकड़ने लगा, तो शैतान बुरी तरह परास्त हो गया था, क्योंकि देहधारण शैतान को पराजित करने के अभिप्राय से था। शैतान ने देखा कि परमेश्वर एक बार फिर से देह बन गया और उसने अपना कार्य करना भी आरंभ कर दिया, और उसने देखा कि कोई भी शक्ति कार्य को रोक नहीं सकी। इसलिए, जब उसने इस कार्य को देखा, तो वह अवाक रह गया तथा कोई और कार्य करने का साहस नहीं किया। पहले-पहल तो शैतान ने सोचा कि उसके पास भी प्रचुर बुद्धि है, और उसने परमेश्वर के कार्य में हस्तक्षेप किया और परेशानियाँ डाली; हालाँकि, उसने यह आशा नहीं की थी कि परमेश्वर एक बार फिर देह बन गया है, और कि अपने कार्य में, परमेश्वर ने मानवजाति के लिए प्रकटन और न्याय के रूप में काम में लाने के लिए, और परिणामस्वरूप मानवजाति को जीतने और शैतान को पराजित करने के लिए उसकी विद्रोहशीलता का उपयोग किया है। परमेश्वर उसकी अपेक्षा अधिक बुद्धिमान है, और उसका कार्य शैतान के कार्य से बहुत बढ़कर है। इसलिए, मैंने पहले निम्नलिखित कहा है: मैं जिस कार्य को करता हूँ वह शैतान की चालबाजियों के प्रत्युत्तर में किया जाता है। अंत में, मैं अपनी सर्वशक्तिमत्ता और शैतान की सामर्थ्यहीनता को प्रकट करूँगा। जब परमेश्वर अपना कार्य करता है, तो शैतान पीछे से छुप कर उसका पीछा करता है, जब तक कि अंत में वह अंततः नष्ट नहीं हो जाता है—उसे पता भी नहीं चलेगा कि उस पर चोट किसने की! एक बार जब उसे पहले ही कुचला और चूर—चूर कर दिया गया होगा, केवल तभी उसे सत्य का ज्ञान होगा; उस समय तक उसे पहले से ही आग की झील में जला दिया गया होगा। तब क्या वह पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हो जाएगा? क्योंकि उसके पास आनंद लेने के लिए और कोई योजनाएँ नहीं हैं!

यह कदम-दर-कदम वास्तविक कार्य ही है जो प्रायः मानवजाति के लिए दुःख के साथ परमेश्वर के हृदय को परेशान करता है, जिसकी वजह से शैतान के साथ उसका युद्ध चलते हुए 6,000 वर्ष बीत चुके हैं। इसलिए परमेश्वर ने कहा: "मैं फिर कभी मानवजाति का सृजन नहीं करूँगा और न ही मैं स्वर्गदूतों को अधिकार प्रदान करूँगा।" उसके बाद से, जब स्वर्गदूत पृथ्वी पर कुछ कार्य के लिए आए, तो उन्होंने कुछ कार्य करने के लिए मात्र परमेश्वर का अनुसरण किया। उसने स्वर्गदूतों को कभी भी अधिकार नहीं दिया। उन स्वर्गदूतों ने अपना कार्य कैसे किया जिन्हें इस्राएलियों ने देखा? वे स्वयं को सपनों में प्रकट करते थे और यहोवा के वचनों को पहुँचाते थे। जब सलीब पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद यीशु पुनर्जीवित हुए, तो ये स्वर्गदूत ही थे जिन्होंने शिलाखण्ड को एक ओर धकेला था; परमेश्वर के आत्मा ने व्यक्तिगत रूप में यह कार्य नहीं किया था। स्वर्गदूतों ने केवल इस प्रकार का कार्य ही किया; उन्होंने सहायक की भूमिका निभायी और उनके पास कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि परमेश्वर दोबारा उन्हें कभी भी अधिकार नहीं देगा। कुछ समय तक कार्य करने के बाद, जिन लोगों को परमेश्वर ने पृथ्वी पर उपयोग किया था, उन्होंने परमेश्वर का स्थान ले लिया और कहा, "मैं ब्रह्माण्ड से-बढ़ कर होना चाहता हूँ! मैं तीसरे स्वर्ग में खड़ा होना चाहता हूँ!" हम संप्रभुता की सामर्थ्य का शासन चाहते हैं! कुछ दिनों तक कार्य करने के बाद वे घमंडी बन जाया करते; वे पृथ्वी पर संप्रभुता की सामर्थ्य चाहते थे, वे एक अन्य राष्ट्र स्थापित करना चाहते थे, वे सब चीज़ों को अपने पाँवों के नीचे चाहते थे, और तीसरे स्वर्ग में खड़े होना चाहते थे। क्या तुम नहीं जानते हो कि तुम परमेश्वर के द्वारा उपयोग किए गए एक मनुष्य मात्र हो? तुम तीसरे स्वर्ग तक कैसे आरोहण कर सकते हो? परमेश्वर पृथ्वी पर शांति से और बिना शोर किए, कार्य करने के लिए आता है, और अपना कार्य पूरा करने के बाद चुपचाप चला जाता है। वह कभी भी मनुष्यों के समान हो-हल्ला नहीं करता है, बल्कि अपने कार्य को वास्तविक रूप में करता है। न ही वह कभी किसी चर्च में जाकर चिल्लाता है, "मैं तुम सब लोगों को मिटा दूँगा! मैं तुम्हें शाप दूँगा, और तुम लोगों को ताड़ना दूँगा!" वह बस अपना कार्य करता है, और जब वह समाप्त कर लेता है तो चला जाता है। वे धार्मिक पादरी जो बीमारों को चंगा करते हैं और दुष्टात्माओं को निकालते हैं, मंच से दूसरों को भाषण देते हैं, लंबे और आडंबरपूर्ण भाषण देते हैं, और अवास्तविक मामलों की चर्चा करते हैं, भीतर तक अहंकारी हैं! वे प्रधान स्वर्गदूत के वंशज हैं!

आज के दिन तक अपना 6,000 वर्षों का कार्य करते हुए, परमेश्वर ने अपने बहुत से क्रिया-कलापों को पहले ही प्रकट कर दिया है, मुख्य रूप से शैतान को पराजित करने और समस्त मानवजाति का उद्धार करने का कार्य। वह स्वर्ग की हर चीज़, पृथ्वी के ऊपर की हर चीज़ और समुद्र के अंदर की हर चीज़ और साथ ही पृथ्वी पर परमेश्वर के सृजन की हर अंतिम वस्तु को परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता को देखने और परमेश्वर के सभी क्रिया-कलापों को देखने की अनुमति देने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। वह मानवजाति पर अपने सभी क्रिया-कलापों को प्रकट करने हेतु शैतान को पराजित करने के अवसर पर कब्ज़ा करता है, और लोगों को उसकी स्तुति करने और शैतान को पराजित करने वाली उसकी बुद्धि को प्रोत्साहित करने में समर्थ बनने की अनुमति देता है। पृथ्वी पर, स्वर्ग में, और समुद्र के भीतर की प्रत्येक वस्तु उसकी महिमा लाती है, और उसकी सर्वशक्तिमत्ता की स्तुति करती है, उसके सभी क्रिया-कलापों की स्तुति करती है, और उसके पवित्र नाम की जय—जयकार करती है। यह शैतान की पराजय का उसका प्रमाण है; यह शैतान पर उसकी विजय का प्रमाण है; और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण, यह उसके द्वारा मानवजाति के उद्धार का प्रमाण है। परमेश्वर की समस्त सृष्टि उसके लिए महिमा लाती है, अपने शत्रु को पराजित करने और विजयी होकर लौटने के लिए उसकी स्तुति करती है और एक महान विजयी राजा के रूप में उसकी स्तुति करती है। उसका उद्देश्य केवल शैतान को पराजित करना ही नहीं है, और इसलिए उसका कार्य 6,000 वर्ष तक जारी रहा। वह मानवजाति को बचाने के लिए शैतान की पराजय का उपयोग करता है; वह अपने सभी क्रिया-कलापों को प्रकट करने के लिए और अपनी सारी महिमा को प्रकट करने के लिए शैतान की पराजय का उपयोग करता है। वह महिमा प्राप्त करेगा, और स्वर्गदूतों का समस्त जमघट भी उसकी सम्पूर्ण महिमा को देखेगा। स्वर्ग में संदेशवाहक, पृथ्वी पर मनुष्य, और पृथ्वी पर समस्त सृष्टि सृजनकर्ता की महिमा को देखेगी। यही वह कार्य है जो वह करता है। स्वर्ग में और पृथ्वी पर उसकी सृष्टि, सभी उसकी महिमा को देखेंगे। और वह शैतान को सर्वथा पराजित करने के बाद विजयोल्लास के साथ वापस लौटेगा, और मानवजाति को अपनी प्रशंसा करने देगा। इस प्रकार वह इन दोनों पहलुओं को सफलतापूर्वक प्राप्त करेगा। अंत में समस्त मानवजाति उसके द्वारा जीत ली जाएगी, और वह ऐसे किसी को भी मिटा देगा जो उसका विरोध करेगा या विद्रोह करेगा, अर्थात्, उन सभी को मिटा देगा जो शैतान से संबंधित हैं। आज तुम परमेश्वर के इन सभी क्रिया-कलापों को देखते हो, मगर तब भी तुम प्रतिरोध करते हो और विद्रोही हो, और समर्पण नहीं करते हो; तुम अपने भीतर बहुत सी चीज़ों को आश्रय देते हो, और वही करते हो जो तुम चाहते हो; तुम अपनी वासनाओं और अपनी पसंद का अनुसरण करते हो—यह विद्रोहशीलता है; और यह प्रतिरोध है। परमेश्वर पर विश्वास जो देह के लिए, किसी की वासनाओं के लिए, और किसी की पसंद के लिए, संसार के लिए, और शैतान के लिए किया जाता है, वह गंदा है; वह प्रतिरोधी व विद्रोहशील है। आज सभी विभिन्न प्रकारों के विश्वास हैं: कुछ आपदा से बचने के लिए आश्रय खोजते हैं, अन्य आशीषें प्राप्त करने की खोज करते हैं, जबकि कुछ रहस्यों को समझना चाहते हैं और कुछ अन्य कुछ धन पाने का प्रयास करते हैं; ये सभी प्रतिरोध के रूप हैं; ये सब ईशनिंदा हैं! यह कहना कि कोई व्यक्ति प्रतिरोध या विद्रोह करता है—क्या यह इन चीज़ों के संदर्भ में नहीं है? बहुत से लोग अब बड़बड़ाते हैं, शिकायतें करते हैं या आलोचनाएँ करते हैं। ये सभी चीज़ें दुष्टों के द्वारा की जाती हैं; वे मानव प्रतिरोध और विद्रोहशीलता हैं; ऐसे व्यक्ति शैतान के अधिकार और नियंत्रण में हैं। जिन लोगों को परमेश्वर प्राप्त कर लेता है, ये वे लोग हैं जो पूर्ण रूप से उसके प्रति समर्पण करते हैं, जो शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिए गये हैं किंतु अब उसके कार्य के द्वारा बचा और जीत लिए गए हैं, जिन्होंने क्लेशों को सहा है और अंत में परमेश्वर के द्वारा पूर्णतः प्राप्त कर लिए गए हैं, तथा शैतान के अधिकार क्षेत्र में अब और नहीं रहते हैं, और अधार्मिकता से पूरी तरह मुक्त हो गए हैं, जो पवित्रता में जीवन जीना चाहते हैं—ये ही सबसे अधिक पवित्र लोग हैं; ये ही पवित्र लोग हैं। यदि तुम्हारे वर्तमान क्रिया-कलाप परमेश्वर की अपेक्षाओं के एक भाग से मेल नहीं खाते हैं, तो तुम्हें अलग कर दिया जाएगा। यह निर्विवाद है। सब कुछ आज के अनुसार किया जाता है; यद्यपि उसने तुम्हें पूर्वनियत कर दिया है और चुन लिया है, किन्तु फिर भी आज तुम्हारे क्रिया-कलाप ही तुम्हारा परिणाम निर्धारित करेंगे। यदि आज तुम अब गिरने से नहीं रुक सकते हो तो तुम्हें अलग कर दिया जाएगा। यदि तुम आज गिरने से नहीं रुक सकते हो, तो तुम बाद में गिरने से रुकने की आशा भी[क] कैसे कर सकते हो? अब जबकि ऐसा बड़ा चमत्कार तुम्हारे सामने प्रकट हो चुका है, तुम तब भी विश्वास नहीं करते हो। मुझे बताओ, बाद में तुम उस पर कैसे विश्वास करोगे, जब वह अपना कार्य समाप्त कर देगा और आगे ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा? उस समय तुम्हारे लिए अनुसरण करना और भी अधिक असंभव होगा। बाद में यह निर्धारित करने के लिए कि तुम पापी हो या धार्मिक हो, या यह निर्धारित करने के लिए कि तुम एक पूर्ण बनाए गए व्यक्ति हो या निकाले गए व्यक्ति हो, परमेश्वर तुम्हारी प्रवृत्ति पर और देहधारी परमेश्वर के प्रति तुम्हारे ज्ञान और तुम्हारे अनुभव पर भरोसा करेगा। तुम्हें अभी स्पष्ट रूप से देखना चाहिए। पवित्र आत्मा इसी तरह से कार्य करता है: वह आज के तुम्हारे व्यवहार के अनुसार तुम्हारा परिणाम निर्धारित करता है। कौन आज के वचन बोलता है? कौन आज का कार्य करता है? कौन तय करता है कि आज तुम्हें निकाल दिया जाएगा? कौन तुम्हें पूर्ण बनाना तय करता है? क्या यह वह नहीं है जो मैं स्वयं करता? मैं ही वह एक हूँ जो इन वचनों को बोलता हूँ; मैं ही वह एक हूँ जो इस काम को सम्पन्न करता हूँ। लोगों को शाप देना, ताड़ना देना, और उनका न्याय करना ये सभी मेरे स्वयं के कार्य का एक हिस्सा हैं। अंत में, तुम्हें अलग करना भी मेरा स्वयं का कार्य होगा! सब मेरा स्वयं का ही कार्य है! तुम्हें पूर्ण बनाना मेरा स्वयं का कार्य है, और तुम्हें अपनी आशीषों का आनंद लेने देना भी मेरा स्वयं का कार्य है। यह सब मेरा स्वयं का कार्य है। तुम्हारा परिणाम यहोवा के द्वारा पूर्वनियत नहीं किया गया था; यह आज के परमेश्वर के द्वारा निर्धारित किया जाता है। यह अब निर्धारित किया जाता है; यह संसार का सृजन किए जाने से पूर्व निर्धारित नहीं किया गया था। कुछ बेहूदा लोग कहते हैं, संभवतः "तुम्हारी आँखों में कुछ खराबी है, और तुम मुझे उस तरह से नहीं देखते हो, जिस तरह से तुम्हें देखना चाहिए। अंत में तुम देखोगे कि पवित्रात्मा सभी चीज़ों को कैसे अभिव्यक्त करता है!" यीशु ने मूलरूप में यहूदा को अपने शिष्य के रूप में चुना। लोग सोचते हैं "वह कैसे किसी ऐसे को शिष्य चुन सकता था, जो उसके साथ विश्वासघात करेगा?" पहले-पहल तो यहूदा का यीशु के साथ विश्वासघात का कोई इरादा नहीं था। यह मात्र बाद में हुआ। उस समय, यीशु ने यहूदा को काफी अनुकूल के रूप में देखा था; उसने मनुष्य से अपना अनुसरण करवाया, और उसे उनके आर्थिक मामलों के लिए उत्तरदायी बनाया। यदि वह जानता कि यहूदा गबन करेगा, तो वह उसे धन का प्रभारी नहीं रखता। कोई कह सकता है कि मूलरूप में यीशु नहीं जानता था कि यह व्यक्ति कुटिल और धोखेबाज़ है, और इसने अपने भाइयों और बहनों के साथ धोखाधड़ी की है। बाद में यहूदा के कुछ समय तक अनुसरण करने के बाद, यीशु ने उसे अपने भाइयों और बहनों को धोखा देते हुए, और परमेश्वर के साथ धोखा करते हुए देखा। लोगों ने यह भी जान लिया कि वह पैसों के थैले में से सदैव धन खर्च किया करता था, और तब उन्होंने यीशु को बताया। यीशु को ये सब बातें इस समय पता चली। क्योंकि यीशु को सलीब पर चढ़ने के अपने कार्य को सम्पन्न करना था, और उसे किसी ऐसे की आवश्यकता थी जो उसके साथ विश्वासघात करे, और यहूदा इस कार्य के लिए करीब—करीब उपयुक्त था, इसलिए यीशु ने कहा, "तुम में से कोई एक होगा जो मेरे साथ विश्वासघात करेगा। मनुष्य का पुत्र इस विश्वासघात को सलीब पर चढ़ाए जाने के लिए उपयोग करेगा और तीन दिन में पुनर्जीवित हो जाएगा।" उस समय, यीशु ने यहूदा को वास्तव में नहीं चुना कि वह उसके साथ विश्वासघात करे; इसके विपरीत वह चाहता था कि यहूदा एक स्वामिभक्त शिष्य बने। परंतु उसे आश्चर्य हुआ कि यहूदा इतना अधम लालची बन गया जिसने प्रभु के साथ विश्वासघात कर दिया, और प्रभु ने अपने कार्य को करने हेतु यहूदा का चयन करने के लिए इस स्थिति का उपयोग किया। यदि यीशु के सभी बारह चेले निष्ठावान होते, और उनमें यहूदा जैसा कोई नहीं होता, तो यीशु के साथ विश्वासघात करने वाला व्यक्ति अंततः चेलों में से बाहर का कोई होता। हालाँकि, उस समय ऐसा हुआ कि उनमें से एक ऐसा था—यहूदा—जिसे रिश्वत लेने में आनंद आता था। इसलिए यीशु ने अपने कार्य को पूरा करने के लिए इस व्यक्ति का उपयोग किया। यह कितना सरल था! यीशु ने अपने कार्य के आरंभ में यह पूर्व-निर्धारित नहीं किया था; उसने यह निर्णय तब लिया जब एक बार चीज़ें एक निश्चित कदम तक विकसित हो गईं थीं। यह यीशु का निर्णय था, यानि, स्वयं परमेश्वर के आत्मा का निर्णय था। उस समय यह यीशु था जिसने यहूदा को चुना; जब बाद में यहूदा ने यीशु के साथ विश्वासघात किया, तो यह अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए पवित्र आत्मा का कार्य था; उस समय यह पवित्र आत्मा का कार्य था। जब यीशु ने यहूदा को चुना, तब उसे पता नहीं था कि वह उसके साथ विश्वासघात करेगा। वह केवल इतना जानता था कि वह यहूदा इस्करियोती है। तुम लोगों के परिणाम भी आज तुम लोगों के समर्पण के स्तर के अनुसार और तुम लोगों के जीवन की उन्नति के स्तर के अनुसार निर्धारित होते हैं, मानवीय धारणाओं के बीच इस विचार के अनुसार नहीं कि यह तो विश्व के सृजन के समय से ही पूर्वनियत था। तुम्हें इन सब बातों को स्पष्ट रूप से अवश्य समझ लेना चाहिए। यह सम्पूर्ण कार्य तुम्हारी कल्पनाओं के अनुसार नहीं किया जाता है।

फुटनोट:

क. मूल पाठ "की आशा भी" को छोड़ाता है।

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