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वचन देह में प्रकट होता है (संकलन)
- केवल वह जो परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है वही परमेवर में सच में विश्वास करता है
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 1
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 2
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 3
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 5
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 15
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 88
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 103
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - चौथा कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - पाँचवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - छठवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - आठवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - दसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - राज्य गान
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - ग्यारहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - बारहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - तेरहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - चौदहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - पन्द्रहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - अठारहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - उन्नीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - बीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - इक्कीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - बाईसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - ओ लोगो! आनंद मनाओ!
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - छब्बीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - सत्ताईसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - अट्ठाइसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - उन्तीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 37
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 39
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 47
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 1
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 3
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 5
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 6
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - पतरस के जीवन पर
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 9
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - परिशिष्ट : अध्याय 1
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 10
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 11
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - परिशिष्ट : अध्याय 2
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 12
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 16
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 17
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 18
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 19
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 20
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 22 और अध्याय 23
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 24 और अध्याय 25
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 26
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 28
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 44 और अध्याय 45
- विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए
- भ्रष्ट मनुष्य परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है
- सेवा के धार्मिक तरीके पर अवश्य प्रतिबंध लगना चाहिए
- परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए
- परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है
- प्रतिज्ञाएं उनके लिए जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं
- दुष्ट को दण्ड अवश्य दिया जाना चाहिए
- परमेश्वर की इच्छा की समरसता में सेवा कैसे करें
- वास्तविकता को कैसे जानें
- एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन के विषय में
- कलीसियाई जीवन और वास्तविक जीवन पर विचार-विमर्श
- परमेश्वर द्वारा मनुष्य को इस्तेमाल करने के विषय में
- सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए
- नये युग की आज्ञाएँ
- सहस्राब्दि राज्य आ चुका है
- परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?
- आज्ञाओं का पालन करना और सत्य का अभ्यास करना
- तुम्हें पता होना चाहिए कि व्यावहारिक परमेश्वर ही स्वयं परमेश्वर है
- केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है
- आज परमेश्वर के कार्य को जानना
- क्या परमेश्वर का कार्य इतना सरल है, जितना मनुष्य कल्पना करता है?
- तुम्हें सत्य के लिए जीना चाहिए क्योंकि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है
- सात गर्जनाएँ – भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य के सुसमाचार पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाएंगे
- देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए लोगों के बीच महत्वपूर्ण अंतर
- अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे
- परमेश्वर पर विश्वास करना वास्तविकता पर केंद्रित होना चाहिए, न कि धार्मिक रीति-रिवाजों पर
- जो आज परमेश्वर के कार्य को जानते हैं केवल वे ही परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं
- परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम स्वाभाविक है
- प्रार्थना की क्रिया के विषय में
- परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके चरण-चिन्हों का अनुसरण करो
- जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं
- परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के बारे में
- पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की इच्छा को ध्यान में रखो
- परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके हृदय के अनुसार हैं
- जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे
- राज्य का युग वचन का युग है
- परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है
- जो परमेश्वर से सचमुच प्यार करते हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं
- जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए (भाग एक)
- जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए (भाग दो)
- केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो
- केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है
- "सहस्राब्दि राज्य आ चुका है" के बारे में एक संक्षिप्त वार्ता
- केवल वही जो परमेश्वर को जानते हैं, उसकी गवाही दे सकते हैं
- पतरस ने यीशु को कैसे जाना
- केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है
- परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हमेशा के लिए उसके प्रकाश में रहेंगे
- मात्र उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं
- पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
- जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी
- तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए
- क्या आप जाग उठे हैं?
- एक अपरिवर्तित स्वभाव का होना परमेश्वर के साथ शत्रुता होना है
- वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (1)
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) (भाग एक)
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) (भाग दो)
- बाइबल के विषय में (1)
- बाइबल के विषय में (3)
- बाइबल के विषय में (4)
- देहधारण का रहस्य (1) (भाग एक)
- देहधारण का रहस्य (1) (भाग दो)
- देहधारण का रहस्य (2)
- देहधारण का रहस्य (3)
- देहधारण का रहस्य (4) (भाग एक)
- देहधारण का रहस्य (4) (भाग दो)
- देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं
- क्या त्रित्व का अस्तित्व है? भाग एक
- क्या त्रित्व का अस्तित्व है? भाग दो
- अभ्यास (3)
- अभ्यास (4)
- विजय के कार्यों का आंतरिक सत्य (1)
- विजय के कार्य का आंतरिक सत्य (4)
- अभ्यास (6)
- इस्राएलियों की तरह सेवा करो
- पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान भाग एक
- पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान भाग दो
- पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान भाग तीन
- तुम लोगों को कार्य को समझना चाहिए—भ्रम में अनुसरण मत करो!
- अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए (भाग एक)
- अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए (भाग दो)
- तुझे अपने भविष्य मिशन से कैसे निपटना चाहिए
- जो लोग सीखते नहीं और कुछ नहीं जानते : क्या वे जानवर नहीं हैं?
- आशीषों से तुम लोग क्या समझते हो?
- जब परमेश्वर की बात आती है, तो तुम्हारी समझ क्या होती है?
- एक वास्तविक मनुष्य होने का क्या अर्थ है
- तुम विश्वास के विषय में क्या जानते हो?
- जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा
- देहधारियों में से कोई भी कोप के दिन से नहीं बच सकता है
- उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है
- सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्यों को बचाने का कार्य भी है
- व्यवस्था के युग में कार्य
- छुटकारे के युग में कार्य के पीछे की सच्ची कहानी
- तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई भाग एक
- तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई भाग दो
- पद नामों एवं पहचान के सम्बन्ध में भाग एक
- पद नामों एवं पहचान के सम्बन्ध में भाग दो
- केवल पूर्ण बनाया गया ही एक सार्थक जीवन जी सकता है
- वह मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर के प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है जिसने उसे अपनी ही धारणाओं में परिभाषित किया है?
- जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं केवल वे ही परमेश्वर को सन्तुष्ट कर सकते हैं
- देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर
- परमेश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभु है
- तेरह धर्मपत्रों पर तुम्हारा दृढ़ मत क्या है?
- सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है भाग एक
- सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है भाग दो
- परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है भाग एक
- परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है भाग दो
- भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है भाग एक
- भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है भाग दो
- भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है भाग तीन
- परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार भाग एक
- परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार भाग दो
- परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार भाग एक
- परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार भाग दो
- परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार भाग तीन
- स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का वास्तविक सार है
- मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना भाग एक
- मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना भाग दो
- मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना भाग तीन
- परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे भाग एक
- परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे भाग दो
- जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा
- वे जो मसीह से असंगत हैं निश्चय ही परमेश्वर के विरोधी हैं
- बुलाए हुए बहुत हैं, परन्तु चुने हुए कुछ ही हैं
- तुम्हें मसीह की अनुकूलता में होने के तरीके की खोज करनी चाहिए
- क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?
- मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
- क्या तुम जानते हो? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक बहुत बड़ा काम किया है
- केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है
- अपनी मंज़िल के लिए तुम्हें अच्छे कर्मों की पर्याप्तता की तैयारी करनी चाहिए
- तुम किस के प्रति वफादार हो?
- गंतव्य के बारे में
- तीन चेतावनियाँ
- उल्लंघन मनुष्य को नरक में ले जाएगा
- परमेश्वर के स्वभाव को समझना अति महत्वपूर्ण है
- पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें
- एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)
- एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2)
- दस प्रशासनिक आज्ञाएँ जिनका परमेश्वर के चयनित लोगों द्वारा राज्य के युग में पालन अवश्य किया जाना चाहिए
- तुम लोगों को अपने कार्यों पर विचार करना चाहिए
- परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है
- सर्वशक्तिमान का आह भरना
- परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है
- परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है
- केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है
- परमेश्वर को जानना परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग है
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग एक
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग दो
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग दो के क्रम में
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग तीन
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग तीन के क्रम में
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग चार
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग चार के क्रम में
- परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें भाग पांच
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I भाग एक
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I भाग दो
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I भाग तीन
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I भाग चार
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग एक
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग दो
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग तीन
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग तीन के क्रम में
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग चार
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग चार के क्रम में
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग पांच
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग पांच के क्रम में
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग छे
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग छे के क्रम में
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग सात
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II भाग सात के क्रम में
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग एक
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग दो
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग तीन
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग चार
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग पांच
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग छे
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग सात
- परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III भाग आठ
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I भाग चार
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I भाग पांच
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I भाग पांच के क्रम में
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II भाग चार
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II भाग पांच
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III भाग चार
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III भाग पांच
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III भाग छे
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III भाग सात
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV भाग तीन के क्रम में
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V भाग तीन के क्रम में
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V भाग चार
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI भाग तीन के क्रम में
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI भाग चार
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII भाग दो के क्रम में
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII भाग चार
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX भाग दो के क्रम में
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X भाग एक
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X भाग दो
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X भाग दो के क्रम में
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X भाग तीन
- स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X भाग चार
- परमेश्वर के प्रकटन को उनके न्याय और ताड़ना में देखना
संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - परिशिष्ट : अध्याय 2
जब लोग व्यावहारिक परमेश्वर को देखते हैं, जब वो व्यक्तिगत रूप से अपना जीवन उसके साथ जीते हैं, उसके साथ-साथ चलते हैं और स्वयं परमेश्वर के साथ रहते हैं, तो वो इतने सालों से अपने हृदय में मौजूद उत्सुकता को दरकिनार कर देते हैं। परमेश्वर के जिस ज्ञान के बारे में पहले कहा गया था, वह केवल पहला कदम है; हालांकि लोगों को परमेश्वर का ज्ञान है, फिर भी उनके हृदय में लगातार कई संदेह बने रहते हैं: परमेश्वर कहां से आया? परमेश्वर क्या खाता है? क्या परमेश्वर साधारण लोगों से बहुत अलग है? क्या परमेश्वर के लिए सब लोगों से व्यवहार मामूली-सी बात है, महज़ बच्चों का खेल है? क्या परमेश्वर के मुँह से जो कुछ निकलता है, वह स्वर्ग के रहस्य हैं? क्या उसकी कही हर बात सृष्टि के प्राणियों के मुकाबले ज़्यादा ऊँची है? क्या परमेश्वर की आँखों से प्रकाश निकलता है? वगैरह-वगैरह... लोगों की धारणाएं बस यहीं तक पहुँच पाती हैं। सबसे पहले, तुम सब इन्हीं चीज़ों को समझो और उनमें प्रवेश करो। लोगों की धारणाओं के अनुसार, देहधारी परमेश्वर अभी भी एक अज्ञात परमेश्वर है। यदि व्यावहारिक ज्ञान न हो, तो लोग मुझे कभी नहीं समझ पाएंगे, और मेरे कर्मों को कभी अपने अनुभव में नहीं ला पाएंगे। चूँकि मैंने देहधारण किया है, इसीलिए लोग मेरी इच्छा को "समझ नहीं पाते हैं"। यदि मैं देहधारी न हुआ होता, और अभी भी स्वर्ग में होता, आध्यात्मिक क्षेत्र में होता, तो लोग मुझे "जानते"; मेरे सामने झुककर मेरी आराधना करते और अपने अनुभवों के ज़रिए वो मेरे बारे में अपने "ज्ञान" की चर्चा करते—लेकिन ऐसे "ज्ञान" का क्या उपयोग है? एक संदर्भ के रूप में इसका क्या मूल्य है? क्या लोगों की धारणाओं से आया ज्ञान असली हो सकता है? मुझे लोगों के मस्तिष्क का ज्ञान नहीं चाहिए—मुझे व्यावहारिक ज्ञान चाहिए।
मेरी इच्छा हर समय तुम सब में प्रकट है, मेरी रोशनी और प्रबुद्धता भी हर समय प्रकट है। और जब मैं सीधे तौर पर दिव्यता में कार्य करता हूँ तो यह मस्तिष्क से छनकर नहीं आती, इसमें "मसाले" मिलाने की कोई ज़रूरत नहीं होती—यह सीधे दिव्यता का कार्य है। लोग किस लायक हैं? क्या सृष्टि के समय से लेकर आज तक, सब कुछ मैंने निजी तौर पर कार्यान्वित नहीं किया है? अतीत में मैंने सात गुनी तीव्र आत्मा की बात की थी, पर उसके सार को कोई समझ ही नहीं पाया—यहां तक कि जब उन्हें इसका अहसास था, तब भी वो इसे पूरी तरह समझने में अक्षम थे। जब मैं दिव्यता से शासित मानवता में कार्य करता हूँ, चूँकि यह कार्य उन परिस्थितियों में क्रियान्वित किया जाता है, जिन्हें लोग अलौकिक न समझकर सामान्य समझते हैं, तो इसे पवित्रात्मा के कार्य के रूप में जाना जाता है। जब मैं सीधे दिव्यता में कार्य करता हूं, चूँकि मैं लोगों की धारणाओं से मुक्त हूँ, और चूँकि उनकी धारणाओं में "अलौकिक" की जो सीमाएं हैं उनके अधीन नहीं हूँ, तो इस कार्य का प्रभाव तुरंत होता है; यह मामले की तह तक जाता है और सीधे बिंदु तक पहुँचता है। परिणामत:, कार्य का यह चरण अधिक शुद्ध होता है; इसकी गति दोगुनी होती है, लोगों की समझ बढ़ती है और मेरे वचनों में वृद्धि हो जाती है, तो उन्हें समझने के लिए लोगों को शीघ्रता करनी पड़ती है। चूँकि प्रभाव अलग है, चूँकि मेरे काम के साधन, प्रकृति और विषय-वस्तु एक जैसे नहीं हैं—और इसके अलावा, चूँकि मैंने औपचारिक रूप से देह में कार्य करना शुरू कर दिया है, पिछले दृष्टिकोण से, कार्य का यह चरण "सात गुना तीव्र आत्मा का कार्य" कहा जाता है। यह कोई अमूर्त चीज़ नहीं है। मैं जिन साधनों से तुम लोगों में काम करता हूँ, उनमें विकास होने के बाद, और राज्य के आने के बाद, सात गुना तीव्र आत्मा कार्य करना शुरू करती है, और यह कार्य निरंतर गहरा और तीव्र होता जाता है। जब सारे लोग परमेश्वर का अवलोकन करते हैं और देखते हैं कि परमेश्वर का आत्मा तो लोगों के मध्य है, तो मेरे देहधारण की पूर्ण महत्ता स्पष्ट हो जाती है। इसके सारांश की आवश्यकता नहीं रह जाती–लोग स्वभाविक रूप से समझ जाते हैं।
इन विभिन्न पहलुओं को देखते हुए—मेरे कार्य की पद्धतियां, मेरे कार्य के चरण, मेरे आज के वचनों के स्वर, वगैरह—मेरे मुख से केवल सच्चे अर्थ में "सात आत्माओं के कथन" ही निकलते हैं। हालाँकि मैं पहले कलीसिया निर्माण के चरण के समय भी बोला था। यह किसी उपन्यास के आमुख और विषय-सूची की तरह था—यह बिना सार का था; केवल आज के कथनों को ही उनके सच्चे सार के अर्थ में सात आत्माओं के कथन कहा जा सकता है। "सात आत्माओं के कथन" के मायने सिंहासन की ओर से आने वाले कथन हैं, यानी वो सीधे दिव्यता में कहे जाते हैं। जिस पल मेरे कथन स्वर्ग के रहस्यों को उजागर करने लगे, तो यह वह पल था, जब मैं सीधे दिव्यता में बोला। दूसरे शब्दों में, बिना किसी मानवीय विवशता के, मैंने आध्यात्मिक क्षेत्र के सभी रहस्य और परिस्थितियां सीधे उजागर कर दीं। मैं क्यों कहता हूँ कि पहले मैं मानवता की सीमाओं के अधीन था? इसकी व्याख्या की आवश्यकता है। लोगों की दृष्टि में, कोई भी स्वर्ग के रहस्यों को उजागर करने में समर्थ नहीं है; यदि स्वयं परमेश्वर न हो, तो अन्य कोई इस धरती पर इन रहस्यों को नहीं जान सकता। इसलिए, मैं लोगों की धारणाओं को संबोधित करता हूँ और कहता हूँ कि मैंने पहले इन रहस्यों को इसलिए उजागर नहीं किया क्योंकि मैं मानवता की सीमाओं के अधीन था। हालांकि विशेष तौर पर, मामला यह नहीं है: मेरा कार्य बदलने के साथ ही मेरे वचनों की विषय-वस्तु भी बदल जाती है, और इस प्रकार, जब मैंने दिव्यता में अपनी सेवकाई का कार्य शुरू किया, तो मैंने रहस्य उजागर किए: पहले मुझे उन हालात में काम करना पड़ा जो लोगों को सामान्य नज़र आते थे, और मैंने जो वचन बोले, वो लोगों की धारणाओं में बैठ जाने की क्षमता रखते थे। जब मैंने रहस्य उजागर करने शुरू किए, तो इनमें से एक को भी लोगों की धारणा ग्रहण नहीं कर पा रही थी—वो इंसानी सोच से अलग थे। इसीलिए मैंने औपचारिक रूप से दिव्यता में बोलना शुरू किया, और ये सच्चे अर्थ में सात आत्माओं के कथन थे। हालांकि पिछले वचन सिंहासन के कथन थे, वो लोगों की ग्राह्यता के आधार पर कहे गए थे, और इसलिए सीधे ही दिव्यता में नहीं बोले गए थे—परिणामस्वरूप, वो सच्चे अर्थ में सात आत्माओं के कथन नहीं थे।