भ्रष्ट स्वभाव हल करने के उपायों के बारे में वचन (अंश 50)
मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव जैसे कि अहंकार, आत्म-तुष्टता और हठधर्मिता, एक प्रकार की जिद्दी बीमारियाँ हैं। वे मानव शरीर में उठने वाली घातक रसौली की तरह हैं और बिना कुछ कष्ट उठाए इनका समाधान नहीं किया जा सकता है। कुछ दिनों में समाप्त हो जाने वाली अस्थायी बीमारियों से भिन्न, यह जिद्दी बीमारी कोई मामूली बीमारी नहीं है और इसे ठीक करने के लिए एक सशक्त दृष्टिकोण का उपयोग किया जाना चाहिए। हालाँकि, एक तथ्य यह भी है जो तुम लोगों को अवश्य जानना चाहिए—ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान नहीं किया जा सकता है। जैसे-जैसे तुम सत्य का अनुसरण करोगे, जीवन में आगे बढ़ोगे और जैसे-जैसे सत्य के बारे में तुम्हारी समझ और अनुभव गहरा होगा, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव धीरे-धीरे कम होते चले जाएँगे। भ्रष्ट स्वभाव किस हद तक कम होने पर शुद्ध माने जाने चाहिए? जब तुम उनके द्वारा प्रतिबंधित नहीं रह जाते हो और तुम उन्हें समझने और त्यागने में सक्षम हो जाते हो। हालाँकि ये भ्रष्ट स्वभाव कभी-कभी उभर सकते हैं, फिर भी तुम अपना कर्तव्य निभाने और हमेशा की तरह सत्य का आचरण करने में सक्षम हो और कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार बने रहते हो और तुम उनके द्वारा बाधित नहीं होते हो। उस समय, ये भ्रष्ट स्वभाव तुम्हारे लिए कोई समस्या नहीं रह जाते हैं और तुम पहले ही उन पर काबू पा चुके हो और उनसे ऊपर उठ चुके हो। जीवन में बड़े होने का यही अर्थ है, जहाँ सामान्य परिस्थितियों में, तुम अब अपने भ्रष्ट स्वभावों से बाधित या बँधे नहीं हो। कुछ लोग, चाहे वे कितने भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करें, उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप, कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी, उनके स्वभाव अपरिवर्तित रहते हैं। वे सोचते हैं, “जब भी मैं कुछ करता हूँ, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करता हूँ; अगर मैं कुछ भी करने से बचूँगा तो उन्हें प्रकट नहीं करूँगा। क्या इससे समस्या का समाधान नहीं होता?” क्या यह गले में फँस जाने के डर से खाने से ही परहेज करना नहीं है? इसका परिणाम क्या होगा? यह केवल भुखमरी की ओर ले जा सकता है। यदि कोई भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करता है और उनका समाधान नहीं करता है, तो यह सत्य को स्वीकार न करने और खड़े-खड़े मर जाने के समान है। यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और सत्य का अनुसरण नहीं करते हो तो परिणाम क्या होंगे? तुम खुद ही अपनी कब्र खोद रहे होगे। भ्रष्ट स्वभाव परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास के दुश्मन हैं; वे तुम्हारे सत्य आचरण, परमेश्वर के कार्य के तुम्हारे अनुभव और उसके प्रति तुम्हारे समर्पण में बाधा डालते हैं। परिणामस्वरूप, अंत में तुम परमेश्वर का उद्धार प्राप्त नहीं कर पाओगे। क्या यह अपनी ही कब्र खोदना नहीं है? शैतानी स्वभाव सत्य को स्वीकार करने और उसका आचरण करने से तुम्हें रोकते हैं। तुम उनसे बच नहीं सकते; तुम्हें उनका सामना करना होगा। यदि तुम उन पर विजय नहीं पाते हो, तो वे तुम्हें काबू में कर लेंगे। यदि तुम उन पर विजय पा सकते हो, तो अब तुम उनके द्वारा विवश नहीं रहोगे और तुम स्वतंत्र हो जाओगे। कभी-कभी, भ्रष्ट स्वभाव अभी भी तुम्हारे हृदय में उभरेंगे और खुद को प्रकट करेंगे, तुम्हारे भीतर दुष्ट सोच और गलत विचारों को जन्म देंगे, ऐसे विचार प्रकट होकर तुम्हें आत्म-मुग्ध या दूसरों से श्रेष्ठ महसूस कराएँगे; हालाँकि, जब तुम कार्य करोगे, तो अब तुम्हारे हाथ-पैर उनसे बंधे हुए नहीं होंगे और तुम्हारा हृदय अब उनके वश में नहीं होगा। तुम कहोगे, “मेरा इरादा परमेश्वर के घर के हितों को ध्य़ान में रखने, परमेश्वर को संतुष्ट करने हेतु काम करने और एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य और वफादारी को अच्छे से निभाने का है। हालाँकि मैं अब भी कभी-कभी इस तरह का स्वभाव प्रकट करता हूँ, लेकिन इसका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।” यह पर्याप्त है। इस प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव का मूलतः समाधान हो चुका होगा। क्या मनुष्य का स्वभावगत परिवर्तन अस्पष्ट और अमूर्त है? (ऐसा नहीं है।) यह कितना व्यावहारिक है। कुछ लोग कहते हैं, “हालाँकि मैं सत्य को थोड़ा-बहुत समझता हूँ, फिर भी कभी-कभी मेरे मन में भ्रष्ट सोच और विचार होते हैं और मैं अभी भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करता हूँ। मुझे क्या करना चाहिए?” यदि तुम वास्तव में ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अनुसरण करता है, तो जब भी तुम्हारे मन में गलत सोच और विचार हों, या भ्रष्ट स्वभाव प्रकट हों, तो उन्हें हल करने के लिए तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और सत्य की तलाश करनी चाहिए। यह अभ्यास का सबसे बुनियादी सिद्धांत है; तुम यह नहीं भूलोगे, है ना? इसके अलावा, तुम्हें यह भी पता होना चाहिए कि जब तुम्हारे मन में गलत विचार हों तो तुम्हें उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए। तुम उनके द्वारा बाधित और बाध्य नहीं हो सकते, उनका पालन करना तो दूर की बात है। जब तक तुम सच्चाई को थोड़ा-बहुत समझते हो, इसे पूरा करना आसान होना चाहिए। यदि तुम भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हो, तो उन्हें ठीक करने के लिए तुम्हें सत्य की तलाश करने का प्रयास करना चाहिए। तुम यह नहीं कह सकते, “हे परमेश्वर, मैंने फिर से भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया है, मुझे अनुशासित कर! मैं अपने भ्रष्ट स्वभावों पर नियंत्रण नहीं रख सकता।” यदि तुम इस तरह से प्रार्थना करते हो, तो यह दर्शाता है कि तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो सत्य का अनुसरण करते हो। यह दर्शाता है कि तुम नकारात्मक और निष्क्रिय हो और तुमने खुद को छोड़ दिया है—तुम अपने लिए ताबूत तैयार कर सकते हो और अपने अंतिम संस्कार की व्यवस्था कर सकते हो। बताओ, कैसा व्यक्ति ऐसी प्रार्थना करता है? केवल कोई निकम्मा ही परमेश्वर से ऐसी प्रार्थना करेगा। सत्य से प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी भी ऐसे शब्द नहीं बोलेगा। यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य से प्रेम करता है, तो तुम्हें सत्य का अनुसरण करने का मार्ग चुनना चाहिए और तुम्हें यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि अभ्यास कैसे करना है। यदि तुम नहीं जानते कि जब ऐसी बहुत ही सामान्य समस्याएँ तुम्हारे सामने आएँ तो कैसे अभ्यास करें, तो तुम कतई निकम्मे हो। भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करना एक आजीवन प्रयास है, यह ऐसा नहीं है जिसे केवल कुछ वर्षों में हासिल किया जा सकता है। तुम सत्य और जीवन को प्राप्त करने के बारे में कल्पनाएँ क्यों पालते हो? क्या यह मूर्खता और नादानी नहीं है?
जीवन स्वभाव में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया में, भ्रष्ट स्वभाव की बाधाएँ प्रत्येक व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी कठिनाई पैदा करती हैं। जब लोग थोड़ा सा भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं, या इसे बार-बार प्रकट करते हैं और जब वे इसे काबू करने में असमर्थ महसूस करते हैं, तो वे खुद की निंदा करते हैं, यह निर्धारित करते हुए कि उनका काम हो गया है और वे बदल नहीं सकते हैं। यह एक भ्रम और गलत धारणा है जो ज्यादातर लोगों में मौजूद है। अभी-अभी, सत्य का अनुसरण करने वाले कुछ लोगों ने महसूस किया है कि जब तक लोगों के भीतर भ्रष्ट स्वभाव मौजूद हैं, वे बार-बार उन्हें प्रकट कर सकते हैं, जिससे उनके कर्तव्य का प्रदर्शन प्रभावित होगा और सत्य के उनके अभ्यास में बाधा आएगी और अपने भ्रष्ट स्वभाव की समस्या को हल करने के लिए यदि वे आत्म-चिंतन नहीं कर सकते हैं, वे अपना कर्तव्य पर्याप्त रूप से नहीं निभा पाएँगे। इसलिए, जो लोग हमेशा अपने कर्तव्य नकारात्मक और अनमने ढंग से निभाते हैं, उन्हें गंभीरता से आत्म-चिंतन करना चाहिए और अपनी समस्या का मूल कारण खोजकर उसका समाधान करना चाहिए। हालाँकि, कुछ लोगों की विकृत समझ होती है और वे सोचते हैं, “जो अपने कर्तव्यों का पालन करते समय भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं, उन सभी को रुक जाना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करना जारी रखने से पहले भ्रष्ट स्वभावों को पूरी तरह ठीक करना चाहिए।” क्या यह एक तर्कसंगत दृष्टिकोण है? यह एक मानवीय कल्पना है और यह पूरी तरह से तर्कहीन है। दरअसल, अधिकांश लोगों के लिए, चाहे वे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय किसी भी भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करें, जब तक वे उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश करते हैं, वे धीरे-धीरे भ्रष्टाचार के उजागर होने की संख्या को कम कर सकते हैं और अंततः अपने कर्तव्यों को पर्याप्त रूप से निभा सकते हैं। यह परमेश्वर का कार्य अनुभव करने की प्रक्रिया है। जैसे ही तुम कोई भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हो, तुम्हें इसे हल करने के लिए सत्य की तलाश करनी चाहिए और अपने शैतानी स्वभाव को समझना और उसका विश्लेषण करना चाहिए। यह तुम्हारे शैतानी स्वभाव से लड़ने की प्रक्रिया है और यह तुम्हारे जीवन के अनुभव के लिए आवश्यक है। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए और अपने स्वभाव को बदलते हुए, तुम उन सत्यों को आजमाते हो जिन्हें अपने शैतानी स्वभाव के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने के लिए तुम समझते हो, अंततः अपने भ्रष्ट स्वभावों का समाधान करते हुए और शैतान पर विजय प्राप्त करते हुए, तुम स्वभाव में परिवर्तन प्राप्त करते हो। व्यक्ति के स्वभाव को बदलने की प्रक्रिया सत्य को खोजना और स्वीकारना है ताकि मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं, शब्दों और धर्म-सिद्धांतों और शैतान से आने वाले विभिन्न पाखंडों और भ्रांतियों और सांसारिक आचरण के फलसफों को हटाकर इन चीजों को धीरे-धीरे परमेश्वर के वचनों और सत्य से बदला जा सके। सत्य को प्राप्त करने और व्यक्ति के स्वभाव को बदलने की यही प्रक्रिया है। यदि तुम यह जानना चाहते हो कि तुम्हारा स्वभाव कितना बदल गया है, तो तुम्हें यह स्पष्ट रूप से देखना होगा कि तुम कितने सत्यों को समझते हो, तुम कितने सत्यों को व्यवहार में लाए हो और तुम कितने सत्यों को जीने में सक्षम हो। तुम्हें स्पष्ट रूप से देखना चाहिए कि तुम्हारे कितने भ्रष्ट स्वभावों को उन सत्यों से प्रतिस्थापित किया गया है जिन्हें तुमने समझा और प्राप्त किया है और वे किस हद तक तुम्हारे भीतर के भ्रष्ट स्वभावों को नियंत्रित करने में सक्षम हैं, अर्थात्, तुम जिन सत्यों को समझते हो वे किस हद तक तुम्हारे विचारों और इरादों और तुम्हारे दैनिक जीवन और अभ्यास में मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं। तुम्हें स्पष्ट रूप से देखना चाहिए कि क्या, जब चीजें तुम्हारे ऊपर आती हैं, तो तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों का ही बोलबाला होता है, या जिन सत्यों को तुम समझते हो, वे प्रबल होते हैं और तुम्हारा मार्गदर्शन करते हैं। यह वह मानक है जिसके द्वारा तुम्हारे आध्यात्मिक कद और जीवन प्रवेश को मापा जाता है।
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।