मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें (भाग दो)

मनुष्य की प्रकृति को कैसे पहचानते हैं? सबसे महत्वपूर्ण बात इसे मनुष्य की विश्वदृष्टि, जीवन के दृष्टिकोण और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य से सूक्ष्मता से पहचानना है। जो लोग शैतान के हैं वे स्वयं के लिए जीते हैं। उनके जीवन के दृष्टिकोण और सिद्धांत मुख्यतः शैतान की कहावतों से आते हैं, जैसे कि “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “मनुष्य धन के लिए मरता है, जैसे पक्षी भोजन के लिए मरते हैं,” और ऐसी अन्य भ्रांतियाँ। उन पिशाच राजाओं, महान लोगों और दार्शनिकों द्वारा बोले गए ये सभी वचन मनुष्य का जीवन बन गए हैं। विशेष रूप से, कन्फ़्यूशियस, जिसे चीनी लोगों द्वारा “ऋषि” के रूप में प्रचारित किया जाता है, के अधिकांश वचन, मनुष्य का जीवन बन गए हैं। बौद्ध धर्म और ताओवाद की मशहूर कहावतें, और प्रसिद्ध व्यक्तियों की अक्सर उद्धृत की गई विशेष कहावते हैं। ये सभी शैतान के फ़लसफों और शैतान की प्रकृति के जोड़ हैं। वे शैतान की प्रकृति के सबसे अच्छे उदाहरण और स्पष्टीकरण भी हैं। ये विष, जिन्हें मनुष्य के हृदय में डाल दिया गया है, सब शैतान से आते हैं, और उनमें से छोटा-सा अंश भी परमेश्वर से नहीं आता है। ये शैतानी वचन भी परमेश्वर के वचन के बिल्कुल विरुद्ध हैं। यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि सभी सकारात्मक चीज़ों की वास्तविकता परमेश्वर से आती है, और सभी नकारात्मक चीजें जो मनुष्य में विष भरती हैं, वे शैतान से आती हैं। इसलिए, तुम किसी व्यक्ति की प्रकृति को और वह किससे संबंधित है इस बात को उसके जीवन के दृष्टिकोण और मूल्यों को देखकर जान सकते हो। शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन और प्रकृति बन गए हैं। “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। सांसारिक आचरण के फलसफों के लिए कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश के लोगों को शिक्षित करने, गुमराह करने और भ्रष्ट करने के लिए पारंपरिक संस्कृति का इस्तेमाल करता है, और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में, परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। कुछ लोग समाज में कई वर्षों से लोक अधिकारी रहे हैं। उनसे यह प्रश्न पूछने की कल्पना करो : “तुमने इस पद पर रहते हुए इतना अच्छा काम किया है, ऐसी कौन-सी मुख्य प्रसिद्ध कहावतें हैं जिनके अनुसार तुम लोग जीते हो?” शायद वे कहें, “मैंने एक चीज जो समझी है, वह है कि ‘अधिकारी उपहार देने वालों के लिए मुश्किलें खड़ी नहीं करते, और जो चापलूसी नहीं करते हैं वे कुछ भी हासिल नहीं करते हैं।’” उनका करियर इसी शैतानी दर्शन पर आधारित है। क्या ये शब्द ऐसे लोगों की प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं? पद पाने के लिए अनैतिक साधनों का इस्तेमाल करना उसकी प्रकृति बन गयी है, अफसरशाही और करियर में सफलता उसके लक्ष्य हैं। अभी भी लोगों के जीवन, आचरण और व्यवहार में कई शैतानी विष उपस्थित हैं। उदाहरण के लिए, सांसारिक आचरण के उनके फलसफे, काम करने के उनके तरीके, और उनकी सभी कहावतें बड़े लाल अजगर के विषों से भरी हैं, और ये सभी शैतान से आते हैं। इस प्रकार, लोगों की हड्डियों और रक्त से बहने वाली सभी चीजें शैतान की हैं। उन सभी अधिकारियों, सत्ताधारियों और प्रवीण लोगों के सफलता पाने के अपने ही मार्ग और रहस्य होते हैं, तो क्या ऐसे रहस्य उनकी प्रकृति का उत्तम रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं? वे दुनिया में कई बड़ी चीज़ें कर चुके हैं और उनके पीछे उनकी जो चालें और षड्यंत्र हैं उन्हें कोई समझ नहीं पाता है। यह दिखाता है कि उनकी प्रकृति आखिर कितनी कपटी और विषैली है। शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति भ्रष्ट, दुष्ट, प्रतिरोधात्मक और परमेश्वर के विरोध में है, शैतान के दर्शन और विषों से भरी हुई और उनमें डूबी हुई है। यह पूरी तरह शैतान का प्रकृति-सार बन गया है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं। अगर इस तरह मनुष्य की प्रकृति का विश्लेषण किया जा सके, तो वह आसानी से खुद को जान सकता है।

जब लोगों को परमेश्वर के स्वभाव की वास्तविक समझ होती है, जब वे देख पाते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव वास्तविक है, कि वह वास्तव में पवित्र है, और वास्तव में धार्मिक है, और जब वे परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता की अपने हृदय से स्तुति कर पाते हैं, तब वे वास्तव में परमेश्वर को जान गए होते हैं, और उन्होंने सत्य प्राप्त कर लिया होता है। जब लोग परमेश्वर को जानते हैं, तभी वे प्रकाश में रहते हैं। परमेश्वर को सच में जानने का सीधा परिणाम है परमेश्वर से सचमुच प्रेम करना और उसके प्रति समर्पित होने में सक्षम होना। जो लोग वास्तव में परमेश्वर को जानते हैं, सत्य समझते हैं, और सत्य प्राप्त करते हैं, उनके वैश्विक नजरिए और जीवन के प्रति नजरिये में वास्तविक परिवर्तन होता है, जिसके बाद उनके जीवन-स्वभाव में भी वास्तविक परिवर्तन होता है। जब लोगों के सही जीवन-लक्ष्य होते हैं, जब वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं, और सत्य के अनुसार आचरण करते हैं, जब वे पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं और उसके वचनों के अनुसार जीते हैं, जब वे अपने दिल की गहराई तक शांति और रोशनी महसूस करते हैं, जब उनके दिल अँधेरे से मुक्त होते हैं, और जब वे पूरी तरह से स्वतंत्र और बाधामुक्त होकर परमेश्वर की उपस्थिति में जीते हैं, केवल तभी वे एक सच्चा मानव-जीवन व्यतीत करते हैं और केवल तभी वे ऐसे लोग बन पाते हैं जिनमें सत्य और मानवता होती है। इसके अलावा, जो भी सत्य तुमने समझे और प्राप्त किए हैं, वे सभी परमेश्वर के वचनों से और स्वयं परमेश्वर से आए हैं। जब तुम सर्वोच्च परमेश्वर—सृष्टिकर्ता—का अनुमोदन प्राप्त करते हो, और वह कहता है कि तुम एक योग्य सृजित प्राणी हो जो इंसान की तरह जीता है, तभी तुम्हारा जीवन सबसे अधिक सार्थक होगा। परमेश्वर का अनुमोदन पाने का अर्थ है कि तुमने सत्य पा लिया है, और तुम्हारे पास सत्य और इंसानियत है। आज के शैतान द्वारा नियंत्रित विश्व में, और मानव-इतिहास के कम से कम हजारों वर्षों में, कौन है जिसने एक सच्चा मानवीय जीवन प्राप्त किया है? कोई भी नहीं। चूँकि लोग शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट किए जा चुके हैं और वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं, और जो कुछ भी वे करते हैं वह परमेश्वर के प्रतिकूल होता है, और उनका हर कथन और सिद्धांत शैतान की भ्रष्टता से पैदा होता है और परमेश्वर के वचनों के सीधे विरोध में होता है, इसलिए वे ठीक उस तरह के लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। अगर वे परमेश्वर का उद्धार नहीं स्वीकारते, तो वे नरक और विनाश में डूब जाएँगे, उनके पास कोई कहने लायक जीवन होगा ही नहीं। वे शोहरत और लाभ के पीछे दौड़ते हैं, महान या प्रसिद्ध व्यक्ति बनने की कोशिश करते हैं, और उम्मीद करते हैं कि उनके नाम “पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते चले जाएँगे,” और “पूरे इतिहास में प्रसिद्ध” होंगे। ये शैतानी शब्द हैं और पूरी तरह से असमर्थनीय हैं। हर महान या प्रसिद्ध व्यक्ति, दरअसल शैतान का है, और सजा के लिए लंबे समय से नरक के अठारहवें स्तर में गिर चुका है, जिसका कभी पुनर्जन्म नहीं होगा। जब भ्रष्ट मानवजाति इन लोगों की आराधना करती है और उनकी शैतानी बातों और भ्रांतियों को स्वीकारती है, तो भ्रष्ट मानवजाति दानवों और शैतान की शिकार बन जाती है। सृजित प्राणियों को सृष्टिकर्ता की आराधना करनी चाहिए। यह पूरी तरह स्वाभाविक और न्यायोचित है, क्योंकि सिर्फ परमेश्वर ही सत्य है। परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी और हर चीज नियंत्रित करता है और सभी पर संप्रभु है। परमेश्वर पर विश्वास न करने और परमेश्वर के प्रति समर्पित न होने का अर्थ है सत्य प्राप्त न कर पाना। यदि तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीते हो, तो तुम अपने दिल की गहराई में प्रकाशवान और सहज महसूस करोगे और तुम अतुलनीय मिठास का आनंद लोगे। जब ऐसा होगा, तो तुम वास्तव में जीवन प्राप्त कर लोगे। दुनिया के वैज्ञानिकों की उपलब्धियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, जब वे मौत के करीब आते हैं तो उन्हें अपना हाथ खाली महसूस होता है; उन्होंने कुछ नहीं प्राप्त किया होता है। यहां तक कि आइंस्टाइन और न्यूटन जैसे उच्च बुद्धिजीवियों ने भी खालीपन महसूस किया। ऐसा इसलिए था, क्योंकि उनके पास सत्य नहीं था, और इसलिए भी कि उन्हें परमेश्वर की सच्ची समझ नहीं थी। हालाँकि वे परमेश्वर में विश्वास करते थे, पर वे सिर्फ उसके अस्तित्व में विश्वास करते थे, उन्होंने सत्य नहीं खोजा। वे यह खोजने और साबित करने के लिए कि परमेश्वर है, सिर्फ विज्ञान और शोध पर भरोसा करना चाहते थे। नतीजतन, उनमें से प्रत्येक ने बिना कुछ हासिल किए जीवन भर शोध किया, और हालाँकि उन्होंने जीवन भर परमेश्वर में विश्वास रखा, पर उन्होंने कभी सत्य प्राप्त नहीं किया। उन्होंने केवल वैज्ञानिक ज्ञान की खोज की, पर उन्होंने परमेश्वर को जानने की कोशिश नहीं की। वे सत्य नहीं प्राप्त कर पाए, और न ही वे सच्चा जीवन प्राप्त कर पाए। जिस मार्ग पर तुम लोग आज चल रहे हो, वह उनका रास्ता नहीं है। तुम परमेश्वर की खोज में हो, और इसकी खोज में हो कि स्वयं को परमेश्वर को कैसे अर्पित करना है, कैसे परमेश्वर की आराधना करनी है, कैसे एक सार्थक जीवन जीना है। यह उससे पूरी तरह अलग है, जिसकी वे खोज कर रहे थे। हालाँकि वे परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग थे, फिर भी उन्होंने सत्य प्राप्त नहीं किया। अब, देहधारी परमेश्वर ने तुम लोगों को सत्य के हर पहलू के बारे में बताया है और तुम लोगों को सत्य और जीवन का मार्ग प्रदान किया है। सत्य न खोजना तुम लोगों के लिए मूर्खतापूर्ण होगा।

अब, सत्य के बारे में तुम लोगों की समझ अपर्याप्त है। तुम सिर्फ खोखला सिद्धांत बोल सकते हो। तुम अभी भी अपने हाथ में लिए गए किसी भी कार्य को लेकर खुद को कमतर और अनिश्चित महसूस करते हो। यह दर्शाता है कि तुम्हारा जीवन-प्रवेश बहुत ही सतही रहा है और तुमने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है। जब तुम वास्तव में सत्य को समझोगे और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करोगे, तो तुममें ऊर्जा होगी, एक अक्षय ऊर्जा, जो तुम्हारे शरीर को भर देगी। उस समय तुम अपने भीतर सदा से ज्यादा उज्ज्वल महसूस करोगे, और मार्ग उतना ही ज्यादा उज्ज्वल होता जाएगा, जितना ज्यादा तुम उस पर चलोगे। इन दिनों, परमेश्वर में विश्वास रखने वाले अधिकांश लोग अभी तक सही रास्ते पर नहीं चले हैं और सत्य नहीं समझ पाए हैं, इसलिए वे अभी भी अंदर से खालीपन महसूस करते हैं, और यह भी कि जीवन कष्टमय है और उनमें अपने कर्तव्य निभाने की ऊर्जा नहीं है। अपने हृदय में दृष्टि होने तक परमेश्वर के विश्वासी ऐसे ही होते हैं। लोगों ने सत्य प्राप्त नहीं किया है और वे अभी तक परमेश्वर को नहीं जानते, इसलिए वे अभी भी ज्यादा आनंद महसूस नहीं करते। तुम सबने, विशेष रूप से, उत्पीड़न सहा है और घर लौटने में कठिनाई का सामना किया है। जब तुम कष्ट उठाते हो, तुममें मृत्यु के विचार और जीने की अनिच्छा भी होती है। ये देह की कमजोरियाँ हैं। कुछ लोग यह तक सोचते हैं : “परमेश्वर में विश्वास करना सुखद होना चाहिए। अनुग्रह के युग में पवित्र आत्मा ने लोगों को शांति और आनंद दिया। अब बहुत कम शांति और आनंद है, और अनुग्रह के युग जैसी प्रसन्नता विद्यमान नहीं है। आज परमेश्वर में विश्वास करना अत्यंत कष्टप्रद है।” तुम केवल यह जानते हो कि देह का सुख ही सब कुछ है। तुम नहीं जानते कि आज परमेश्वर क्या कार्य कर रहा है। परमेश्वर को तुम सब की देह को कष्ट उठाने की अनुमति देनी पड़ती है ताकि तुम्हारे स्वभाव को बदल सके। भले ही तुम्हारी देह कष्ट उठाती है, पर तुम्हारे पास परमेश्वर का वचन है और तुम्हारे पास परमेश्वर का आशीर्वाद है। अगर तुम चाहो तो भी तुम मर नहीं सकते। क्या तुम परमेश्वर को न जानने और सत्य प्राप्त न करने से संतोष कर सकते हो? अब, अधिकांशतः, बस इतना है कि लोगों ने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है और उनके पास जीवन नहीं है। वे उद्धार की खोज के बीच में हैं, इसलिए उन्हें इस प्रक्रिया में थोड़ा कष्ट उठाना होगा। आज दुनिया में हर व्यक्ति परीक्षण से गुजर रहा है, यहाँ तक कि परमेश्वर भी कष्ट उठा रहा है, इसलिए क्या तुम्हारा कष्ट न उठाना उचित है? बड़ी आपदाओं के माध्यम से शोधन के बिना सच्ची आस्था नहीं हो सकती और सत्य और जीवन प्राप्त नहीं किया जा सकता। परीक्षण और शोधन न होने से काम नहीं चलेगा। पतरस को ही देखो—आखिरकार वह सात सालों के परीक्षणों से गुजरा (जब वह तिरेपन वर्ष का था)। उन सात सालों के दौरान उसने सैकड़ों परीक्षणों का अनुभव किया। उसे हर कुछ दिनों में इन परीक्षणों में से एक से गुजरना पड़ता था, और तमाम तरह के परीक्षणों से गुजरने के बाद ही उसे जीवन प्राप्त हुआ और उसने अपने स्वभाव में परिवर्तन अनुभव किया। जब तुम वास्तव में सत्य प्राप्त कर लेते हो और परमेश्वर को जान जाते हो, तब तुम महसूस करते हो कि तुम्हें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर के लिए नहीं जीते, तो तुम्हें अफसोस होगा; तुम अपने बाकी दिन भारी खेद और घोर पछतावे में बिताओगे। तुम अभी मर नहीं सकते। तुम्हें अपनी मुट्ठियाँ भींचकर संकल्प के साथ जीते रहना होगा। तुम्हें परमेश्वर के लिए जीवन जीना चाहिए। जब लोगों के भीतर सत्य होता है, तब उनमें यह संकल्प होता है और वे फिर कभी मरने की इच्छा नहीं करते। जब मृत्यु तुम्हें डराएगी, तो तुम कहोगे, “हे परमेश्वर, मैं मरने का इच्छुक नहीं हूँ; मैं अभी भी तुझे नहीं जानता। मैंने अभी तक तेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं दिया है। मैं तब तक नहीं मर सकता, जब तक मैं तुझे अच्छी तरह से नहीं जान लेता।” क्या तुम लोग अब इस मुकाम पर हो? अभी तक नहीं, है न? कुछ लोग परिवार की पीड़ा झेलते हैं, कुछ विवाह की पीड़ा झेलते हैं और कुछ उत्पीड़न सहते हैं, यहाँ तक कि उनके रहने के लिए जगह की भी कमी होती है। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वह किसी और का ही घर होता है, और वे अपने दिल में दर्द महसूस करते हैं। जो पीड़ा तुम लोग अभी अनुभव कर रहे हो, क्या यह वही पीड़ा नहीं है जो परमेश्वर ने झेली है? तुम लोग परमेश्वर के साथ पीड़ित हो रहे हो और परमेश्वर मनुष्यों के दुख में उसके साथ है। आज मसीह के क्लेश, राज्य और सहनशीलता में तुम सभी लोगों का हिस्सा है, और तुम अंत में महिमा प्राप्त करोगे! यह पीड़ा सार्थक है। क्या ऐसा ही नहीं है? तुम इस इच्छा से रहित नहीं हो सकते। तुम्हें आज पीड़ा का अर्थ समझना चाहिए और इस बात का भी कि तुम इतनी पीड़ा क्यों झेलते हो। तुम्हें सत्य खोजना चाहिए और परमेश्वर के इरादे की समझ हासिल करनी चाहिए, तब तुममें पीड़ा सहने की इच्छा होगी। अगर तुम परमेश्वर का इरादा नहीं समझते, और सिर्फ पीड़ा के बारे में सोचते हो, तो जितना अधिक तुम इसके बारे में सोचते हो, यह उतनी ही असुविधाजनक हो जाती है और तुम उतने ही निराश महसूस करते हो, मानो तुम्हारे जीवन का मार्ग समाप्त हो रहा हो। तुम मृत्यु की पीड़ा भोगने लगोगे। अगर तुम अपना हृदय और समस्त प्रयास सत्य में लगाओ और सत्य को समझने में सक्षम हो जाओ, तो तुम्हारा हृदय उज्ज्वल हो जाएगा, और तुम आनंद का अनुभव करोगे। तुम जीवन में अपने दिल के भीतर शांति और आनंद पाओगे, और जब बीमारी आए या मौत मँडराए, तो तुम कहोगे, “मैंने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है, इसलिए मैं मर नहीं सकता। मुझे परमेश्वर के लिए अच्छी तरह खपना चाहिए, अच्छी तरह से परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, और परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाना चाहिए। मैं अंत में कैसे मरता हूँ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैंने एक संतोषजनक जीवन जी लिया होगा। चाहे कुछ भी हो, मैं अभी मर नहीं सकता। मुझे बने रहना चाहिए और जीते रहना चाहिए।” अब तुम्हारे मन में इस मामले में स्पष्टता होनी चाहिए, और तुम्हें इन चीजों से सत्य को समझना चाहिए। जब लोगों के पास सत्य होता है, तो उनके पास ताकत होती है। जब उनके पास सत्य होता है, तो उनके पास एक अक्षय ऊर्जा होती है जो उनके शरीर को भर देती है। जब उनके पास सत्य होता है, तो उनमें दृढ़ संकल्प होता है। सत्य के बिना लोग सड़ी हुई सब्जियों की तरह नर्म होते हैं; जब उनके पास सत्य होता है, तो वे फौलाद की तरह सख्त हो जाते हैं। चीजें चाहे जितनी भी कड़वी हों, उन्हें जरा भी कड़वी नहीं लगेंगी। तुम्हें क्या लगता है, तुम लोगों की छोटी-सी पीड़ा कितनी बड़ी है? देहधारी परमेश्वर अभी भी पीड़ा झेल रहा है! तुम ऐसे लोग हो, जिन्हें शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है और जिनकी प्रकृति परमेश्वर को धोखा देना है। तुमने अनजाने ही परमेश्वर के प्रति विद्रोह और उसका विरोध करने वाले कई काम किए हैं और तुम न्याय और ताड़ना के पात्र हो। जिस तरह बीमार लोगों को ठीक करना होता है, उसी तरह क्या उनके लिए पीड़ा से डरना उचित है? तुम लोगों में भ्रष्ट स्वभाव हैं, तो क्या तुम्हें लगता है कि तुम बिना किसी पीड़ा के अपना स्वभाव बदल कर जीवन प्राप्त कर सकते हो? तुम लोगों की पीड़ा तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों के कारण है। तुम इसके योग्य हो, और इसे सहन किया जाना चाहिए। यह न तो बिना किसी अपराध के दी गई है और न ही परमेश्वर द्वारा थोपी गई है। तुम लोग वर्तमान में जो पीड़ा सह रहे हो, वह अपने कर्तव्य में तुम्हारी भाग-दौड़ और कड़ी मेहनत करने से थोड़ी ज्यादा है। कभी-कभी तुम पाते हो कि तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव बिल्कुल नहीं बदला है, इसलिए तुम कुछ शोधन से गुजरते हो। कभी-कभी तुम परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते हो या उन्हें पढ़ना पीड़ादायक होता है, इसलिए तुम परमेश्वर के वचनों के शोधन से थोड़ा पीड़ित होते हो। या, शायद, तुम अपना वास्तविक कार्य बुरे ढंग से करते हो और अपने कर्तव्य में गलतियाँ करते रहते हो, तुम अपना काम न कर पाने के लिए अपराध-बोध और आत्म-घृणा अनुभव करते हो, और इससे तुम्हें कुछ पीड़ा होती है। शायद तुम दूसरों को प्रगति करते हुए देखते हो और महसूस करते हो कि तुम्हारी प्रगति बहुत धीमी है, कि तुम्हें परमेश्वर के वचन समझने में प्रगति करने में बहुत अधिक समय लगता है, कि प्रकाश बहुत कम है, और ये मामले तुम्हारे लिए कुछ पीड़ा का कारण बनते हैं। कभी-कभी तुम बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तारी और उत्पीड़न के कारण अपने शत्रुतापूर्ण परिवेश से खतरा महसूस करते हो, इसलिए तुम हमेशा डरे हुए, बेचैन और भयभीत रहते हो, और इससे तुम्हें कुछ पीड़ा होती है। इस पीड़ा के अलावा, तुमने और कौन-सी पीड़ा अनुभव की है? तुम लोग भारी शारीरिक श्रम करने के लिए नहीं बने हो, न ही तुम्हारे कोई वरिष्ठ या बॉस हैं जो तुम लोगों को पीटते और डाँटते हों, और कोई तुम लोगों से गुलामों जैसे पेश नहीं आता। तुम्हें ऐसी कोई कठिनाई नहीं होती। वास्तव में, जो कठिनाइयाँ तुम लोग झेलते हो, वे वास्तव में कठिनाइयाँ नहीं हैं। इस बारे में सोचो। क्या यही मामला नहीं है? तुम लोगों को समझना चाहिए कि परमेश्वर के वास्ते खपने के लिए अपने परिवार को त्यागने का क्या महत्व है, और तुम ऐसा क्यों कर रहे हो। अगर तुम इसे सत्य और जीवन का अनुसरण करने के लिए और साथ ही अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए करते हो, तो यह पूरी तरह से उचित है। यह एक सकारात्मक चीज है, यह पूरी तरह स्वाभाविक और न्यायसंगत है, और तुम्हें इसका कभी पछतावा नहीं होगा। तुम्हारे परिवार के साथ चाहे कुछ भी हो जाए, तुम उसे जाने दे सकते हो। अगर तुम इस महत्ता को स्पष्ट रूप से समझते हो, तो तुम्हें कोई पछतावा नहीं होगा, और तुम नकारात्मक नहीं होगे। अगर तुम परमेश्वर के लिए खुद को सचमुच नहीं खपा रहे हो, और सिर्फ आशीष प्राप्त करने के लिए परिश्रम कर रहे हो, तो यह अर्थहीन है। जब तुम इस मामले पर गौर कर लेते हो, तो समस्या का समाधान हो जाता है, और तुम्हें अपने परिवार के बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है। अब तक तुम सभी लोगों ने कुछ परीक्षणों का अनुभव कर लिया है। कुछ लोगों ने कुछ सत्य प्राप्त किए हैं, लेकिन कुछ लोगों ने सिर्फ कुछ धर्मसिद्धांत समझे हैं, कोई सत्य प्राप्त नहीं किया है। कुछ लोगों में अच्छी काबिलियत होती है और इसलिए उनमें अपेक्षाकृत गहरी समझ होती है, और जिन कुछ लोगों की काबिलियत कम होती है, उनकी समझ अपेक्षाकृत उथली होती है। चाहे तुम्हारी समझ गहरी हो या उथली, अगर तुम कुछ सत्य समझते हो और किसी परीक्षण के जरिये पीड़ा झेलते समय अपनी गवाही में अडिग रह पाते हो, तो तुम्हारी पीड़ा का अर्थ और मूल्य होता है। अगर तुम परमेश्वर से चीजें स्वीकार नहीं कर पाते, और चीजों को हमेशा मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के साथ देखते हो, तो चाहे तुम कितनी भी पीड़ा सहो, तुम्हारे पास कभी सच्ची अनुभवात्मक गवाही नहीं होगी। तुम्हारी पीड़ा का कोई मूल्य नहीं होगा, क्योंकि तुमने सत्य प्राप्त नहीं किया है।

तुम्हें हर चीज में परमेश्वर के इरादों की खोज करनी चाहिए और तुम्हें हर चीज में सत्य की तलाश करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, तुम जीवन में खाने, पहनने और निजी बातों जैसे मामलों में सत्य कैसे खोजते हो? क्या इन चीजों में तलाश करने के लिए सत्य है? कुछ लोग कहते हैं, “चाहे तुम परमेश्वर में विश्वास रखो या न रखो, भरपेट खाना और अच्छे कपड़े पहनना ही खुशी है। उसके बिना सब दुख है।” क्या यह सत्य के अनुरूप है? ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो अच्छे भोजन और वस्त्रों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं, जो दैहिक सुखों के लोभी हैं। वे आसानी से सत्य नहीं स्वीकारते या उसे अभ्यास में नहीं लाते, परमेश्वर के लिए खुद को खपाने के लिए सब-कुछ छोड़ देना तो दूर की बात है। इस तरह के व्यक्ति को परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं होगी, और अंततः, वह रोते और दाँत पीसते हुए आपदाओं में डूब जाएगा। क्या ऐसे व्यक्ति के पास कोई कहने लायक खुशी हो सकती है? बहुत सारे लोग मजदूरों या किसानों के परिवारों में पैदा हो कर बचपन से ही काफी कुछ झेल चुके हैं। अगर वे सत्य समझने में सक्षम हैं, तो हो सकता है कि वे उसे स्वीकार कर अभ्यास में लाएँ, और वे पीड़ा से डरे बिना परमेश्वर के लिए चीजों का त्याग कर पाएँ और खुद को खपा पाएँ। वे परमेश्वर की आज्ञा के प्रति अपनी वफादारी पूरी करने में सक्षम होते हैं, और कुछ तो परमेश्वर के लिए अपने प्राण भी दे देने की हद तक चले जाते हैं। परमेश्वर के घर में ऐसा व्यक्ति सराहा जाता है। बहुत-से लोग दैहिक सुखों पर बहुत ध्यान देते हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि अच्छा खाना और कपड़े होना वास्तव में महत्वपूर्ण है? बिल्कुल नहीं। अगर व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर को जानने और सत्य प्राप्त करने में सक्षम है, तो वह जो कुछ भी करता है, उसमें वह परमेश्वर की गवाही देता है और परमेश्वर को संतुष्ट करता है। चाहे ऐसा व्यक्ति कितना भी खराब खाता या पहनता हो, उसके जीवन में फिर भी मूल्य होता है, और वह परमेश्वर की मंजूरी प्राप्त कर सकता है। क्या यह सबसे सार्थक चीज नहीं है? न तो अच्छा खाना और न ही अच्छे कपड़े पहनना इस बात की गारंटी है कि तुम धन्य होगे। अगर तुम परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करोगे या गलत मार्ग पर जाओगे, तो तुम फिर भी शापित होगे, जबकि वह व्यक्ति, जो मैले-कुचैले कपड़े पहनता है और रूखा-सूखा खाता है लेकिन जिसके पास सत्य है, हर हाल में परमेश्वर के आशीष प्राप्त करेगा। इसलिए, यह जानने के लिए कि तुम्हें खाने और पहनने के बारे में किस तरह सोचना चाहिए, तुम्हें सत्य की खोज करनी होगी, और अपने कर्तव्य के प्रदर्शन को तुम्हें कैसे लेना चाहिए, यह जानने के लिए और भी अधिक सत्य की खोज की जरूरत है। तुम परमेश्वर के आदेशों को कैसे लेते हो, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। परमेश्वर ने जो लोगों को सौंपा है, यदि तुम उसे पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उसकी उपस्थिति में जीने के योग्य नहीं हो और तुम्हें दंडित किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है कि मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले सभी आदेश पूरे करने चाहिए। यह मनुष्य का सर्वोच्च दायित्व है, और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनका जीवन है। यदि तुम परमेश्वर के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके साथ सबसे कष्टदायक तरीके से विश्वासघात कर रहे हो। इसमें, तुम यहूदा से भी अधिक शोचनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए। परमेश्वर के सौंपे हुए कार्य को कैसे लिया जाए, लोगों को इसकी पूरी समझ हासिल करनी चाहिए, और उन्हें कम से कम यह समझना चाहिए कि वह मानवजाति को जो आदेश देता है, वे परमेश्वर से मिले उत्कर्ष और विशेष कृपाएँ हैं, और वे सबसे शानदार चीजें हैं। अन्य सब-कुछ छोड़ा जा सकता है। यहाँ तक कि अगर किसी को अपना जीवन भी बलिदान करना पड़े, तो भी उसे परमेश्वर का आदेश पूरा करना चाहिए। देखो, क्या यहाँ सत्य नहीं खोजा जाना चाहिए? अपने स्वभाव में बदलाव लाना सत्य की खोज से बहुत घनिष्ठता से जुड़ा है! यदि तुम्हें यह सत्य समझ में आ जाए कि लोग क्यों जीते हैं और तुम्हें जीवन को कैसे देखना चाहिए, तो क्या जीवन के विषय में तुम्हारा दृष्टिकोण बदल नहीं जाएगा? यहाँ और भी ज्यादा सत्य खोजा जाना चाहिए। परमेश्वर से प्रेम करने में क्या सत्य पाया जा सकता है? क्यों मनुष्य को परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए? परमेश्वर से प्रेम करने का क्या महत्व है? यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर से प्रेम करने के सत्य के बारे में स्पष्ट है और वह उसे अपने दिल की गहराइयों से प्रेम कर सकता है और उसका दिल थोड़ा परमेश्वर प्रेमी है, तो उसके पास वास्तविक जीवन है और वह सबसे धन्य लोगों में से है। जो लोग हर चीज में सत्य खोजते हैं, वे जीवन में सबसे तेज प्रगति करते हैं और अपने स्वभाव में परिवर्तन ला सकते हैं। बिल्कुल वही लोग जो हर चीज में सत्य की तलाश करते हैं, परमेश्वर को प्रिय होते हैं। अगर कोई व्यक्ति धारणाओं और धर्म-सिद्धांतों पर निर्भर रहता है या सभी चीज़ों में विनियमों का पालन करता है, तो वह प्रगति नहीं करेगा। वह कभी सत्य प्राप्त नहीं करेगा और देर-सवेर उसे हटा दिया जाएगा। परमेश्वर ऐसे व्यक्ति से सबसे ज्यादा घृणा करता है।

बसंत ऋतु 1999

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