परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 354

प्रारम्भ में मैं तुम लोगों को और अधिक सच्चाई प्रदान करना चाहता था, लेकिन चूंकि सत्य के प्रति तुम्हारी मनोवृत्ति इतनी नीरस और उदासीन है कि मुझे पीछे हटना पड़ा है। मैं नहीं चाहता कि मेरी कोशिशें व्यर्थ जाएँ, न ही मैं यह देखना चाहता हूँ कि लोग मेरे वचनों को थामे रहें और फिर हर जगह वह करें जिससे मेरा विरोध होता हो, मुझे कलंकित करता हो और मेरी निन्दा करता हो। तुम्हारे स्वभावों और तुम्हारी मानवता के कारण, तुम्हें वचनों का एक छोटा-सा भाग ही प्रदान करता हूँ जो तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसा अब तक नहीं हुआ है कि मैं सचमुच में इस बात की पुष्टि करुं कि जो निर्णय और योजनाएँ मैंने बनाई हैं वे तुम्हारी जरूरतों के अनुसार हैं, और इसके अतिरिक्त, यह प्रमाणित करुं कि मानवजाति के प्रति मेरी मनोवृत्ति सही है। मेरे सामने तुम्हारे इतने वर्षों के काम ने मुझे वह उत्तर दे दिया जो मुझे पहले कभी नहीं मिला था। और इस उत्तर से यह प्रश्न सामने आता हैः "सच्चाई और सच्चे परमेश्वर के सामने मनुष्य की मनोवृत्ति क्या है?" जो प्रयास मैंने मनुष्य में प्रवाहित किया है मेरे मनुष्य से मेरे प्रेम के सार-तत्व को साबित करता है, और मेरे सामने मनुष्य के कार्यों ने सत्य से घृणा करने और मेरा विरोध करने के इंसान के मुख्य सार-तत्व को भी प्रमाणित कर दिया है। मैं हर समय उन सबके लिए चिंतित रहता हूँ जिन्होंने मेरा अनुसरण किया है, फिर भी ऐसा कोई समय नहीं होता है जब मेरा अनुसरण करने वाले मेरे वचनों को ग्रहण करने में समर्थ होते हों; वे मेरे किसी भी सुझाव को जो मुझसे आता है, स्वीकार करने में पूरी तरह असमर्थ हैं। यही वह बात है जो मुझे सबसे ज़्यादा उदास करती है। कोई भी मुझे समझने में समर्थ नहीं है, इसके अतिरिक्त, कोई भी मुझे ग्रहण करने में सक्षम नहीं है, भले ही मेरी मनोवृत्ति निष्कपट और मेरे वचन सौम्य हैं। सभी अपने मूल इरादों के अनुसार मेरे द्वारा सौंपे गए कार्य को कर रहे हैं; वे मेरे विचारों को नहीं खोजते हैं और मेरी अपेक्षाओं की खोज तो बहुत ही कम करते हैं। वे अभी भी दावा करते हैं कि वफादारी के साथ मेरी सेवा करते हैं, जबकि पूरे समय मुझसे विद्रोह करते रहते हैं। बहुत से लोग यह विश्वास करते हैं कि वे सच्चाइयां जो उन्हें स्वीकार्य नहीं हैं या जिन्हें वे व्यवहार में नहीं ला सकते हैं वे सत्य ही नहीं हैं। ऐसे मनुष्यों के लिए, मेरी सच्चाइयां नकारने और दरकिनार करने के लिये हैं तब उसी समय, मैं वह बन जाता हूँ जिसे मनुष्य एकमात्र परमेश्वर के रूप में अपने शब्दों में स्वीकार करता है, परन्तु साथ ही मुझे एक ऐसे परदेशी के रूप में मानता है जो सत्य, मार्ग और जीवन नहीं है। कोई इस सत्य को नहीं जानता हैः मेरे वचन सदा-सर्वदा न बदलने वाली सच्चाइयां हैं। मैं मनुष्य के लिए जीवन की आपूर्ति हूँ और मानवजाति के लिए एकमात्र मार्गदर्शक हूँ। मेरे वचनों की कीमत और उसका अर्थ इसके द्वारा निर्धारित नहीं होता है कि उन्हें मानवजाति के द्वारा पहचाना और स्वीकारा गया है कि नहीं, परन्तु यह स्वयं वचनों के सार-तत्व के द्वारा होता है। भले ही इस पृथ्वी पर एक भी ऐसा इंसान मेरे वचनों को ग्रहण न कर पाए, फिर भी मेरे वचन का मूल्य और मानवजाति के प्रति उसकी सहायता का मूल्यांकन किसी मनुष्य के द्वारा नहीं किया जा सकता है। इसलिए जब बहुत सारे लोगों का सामना मेरे वचनों से होता है जो विद्रोह करते हैं, उनका खण्डन करते हैं, या उनसे पूरी तरह घृणा करते हैं, तो उन सब के प्रति मेरा रवैया यह हैः समय और तथ्यों को मेरी गवाही देने दो और यह दिखाने दो कि मेरे वचन सत्य, मार्ग और जीवन हैं। उन्हें यह दिखाने दो कि जो कुछ मैंने कहा है वह सही है, और वह ऐसा है जिसकी आपूर्ति लोगों को की जानी चाहिए, और इसके अतिरिक्त, जिसे मनुष्य को स्वीकार करना चाहिए। मैं उन सबको जो मेरा अनुसरण करते हैं, यह तथ्य ज्ञात करवाऊँगाः जो लोग पूरी तरह से मेरे वचनों को स्वीकार नहीं कर सकते, जो मेरे वचनों को अभ्यास में नहीं ला सकते, और जो मेरे वचनों के कारण उद्धार प्राप्त नहीं कर पाते, वे हैं जो मेरे वचनों के कारण निंदित हुए हैं और इसके अलावा, जिन्होंने मेरे उद्धार को खो दिया है, मेरी लाठी उन पर से कभी नहीं हटेगी।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए

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