परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 307

परमेश्वर ने मनुष्यों को बहुत-कुछ सौंपा है और अनगिनत प्रकार से उनके प्रवेश के बारे में भी संबोधित किया है। परंतु चूँकि लोगों की क्षमता बहुत ख़राब है, इसलिए परमेश्वर के बहुत सारे वचन जड़ पकड़ने में असफल रहे हैं। इस ख़राब क्षमता के विभिन्न कारण हैं, जैसे कि मनुष्य के विचार और नैतिकता का भ्रष्ट होना, और उचित पालन-पोषण की कमी; सामंती अंधविश्वास, जिन्होंने मनुष्य के हृदय को बुरी तरह से जकड़ लिया है; दूषित और पतनशील जीवन-शैलियाँ, जिन्होंने मनुष्य के हृदय के गहनतम कोनों में कई बुराइयाँ स्थापित कर दी हैं; सांस्कृतिक ज्ञान की सतही समझ, लगभग अठानवे प्रतिशत लोगों में सांस्कृतिक ज्ञान की शिक्षा की कमी है और इतना ही नहीं, बहुत कम लोग उच्च स्तर की सांस्कृतिक शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसलिए, मूल रूप से लोगों को पता नहीं है कि परमेश्वर या पवित्रात्मा का क्या अर्थ है, उनके पास परमेश्वर की सामंती अंधविश्वासों से प्राप्त केवल एक धुँधली और अस्पष्ट तसवीर है। वे घातक प्रभाव, जो हज़ारों वर्षो की "राष्ट्रवाद की बुलंद भावना" ने मनुष्य के हृदय में गहरे छोड़े हैं, और साथ ही सामंती सोच, जिसके द्वारा लोग बिना किसी स्वतंत्रता के, बिना महत्वाकांक्षा या आगे बढ़ने की इच्छा के, बिना प्रगति की अभिलाषा के, बल्कि निष्क्रिय और प्रतिगामी रहने और गुलाम मानसिकता से घिरे होने के कारण बँधे और जकड़े हुए हैं, इत्यादि—इन वस्तुगत कारकों ने मनुष्यजाति के वैचारिक दृष्टिकोण, आदर्शों, नैतिकता और स्वभाव पर अमिट रूप से गंदा और भद्दा प्रभाव छोड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मनुष्य आतंक की अँधेरी दुनिया में जी रहे हैं, और उनमें से कोई भी इस दुनिया के पार नहीं जाना चाहता, और उनमें से कोई भी किसी आदर्श दुनिया में जाने के बारे में नहीं सोचता; बल्कि, वे अपने जीवन की सामान्य स्थिति से संतुष्ट हैं, बच्चे पैदा करने और पालने-पोसने, उद्यम करने, पसीना बहाने, अपना रोजमर्रा का काम करने; एक आरामदायक और खुशहाल परिवार के सपने देखने, और दांपत्य प्रेम, नाती-पोतों, अपने अंतिम समय में आनंद के सपने देखने में दिन बिताते हैं और शांति से जीवन जीते हैं...। सैकड़ों-हजारों साल से अब तक लोग इसी तरह से अपना समय व्यर्थ गँवा रहे हैं, कोई पूर्ण जीवन का सृजन नहीं करता, सभी इस अँधेरी दुनिया में केवल एक-दूसरे की हत्या करने के लिए तत्पर हैं, प्रतिष्ठा और संपत्ति की दौड़ में और एक-दूसरे के प्रति षड्यंत्र करने में संलग्न हैं। किसने कब परमेश्वर की इच्छा जानने की कोशिश की है? क्या किसी ने कभी परमेश्वर के कार्य पर ध्यान दिया है? एक लंबे अरसे से मानवता के सभी अंगों पर अंधकार के प्रभाव ने कब्ज़ा जमा लिया है और वही मानव-स्वभाव बन गए हैं, और इसलिए परमेश्वर के कार्य को करना काफी कठिन हो गया है, यहाँ तक कि जो परमेश्वर ने लोगों को आज सौंपा है, उस पर वे ध्यान भी देना नहीं चाहते। कुछ भी हो, मैं विश्वास करता हूँ कि मेरे द्वारा ये वचन बोलने का लोग बुरा नहीं मानेंगे, क्योंकि मैं हज़ारों वर्षों के इतिहास के बारे में बात कर रहा हूँ। इतिहास के बारे में बात करने का अर्थ है तथ्य, और इससे भी अधिक, घोटाले, जो सबके सामने प्रत्यक्ष हैं, इसलिए तथ्य के विपरीत बात कहने का क्या अर्थ है? परंतु मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि इन शब्दों को देख-सुनकर समझदार लोग जागृत होंगे और प्रगति करने का प्रयास करेंगे। परमेश्वर आशा करता है कि मनुष्य शांति और संतोष के साथ जीने और कार्य करने तथा परमेश्वर से प्रेम करने का कार्य एक-साथ कर सकते हैं। यह परमेश्वर की इच्छा है कि सारी मनुष्यजाति विश्राम में प्रवेश करे; इससे भी अधिक, परमेश्वर की इच्छा यह है कि संपूर्ण भूमि परमेश्वर की महिमा से भर जाए। यह शर्म की बात है कि मनुष्य विस्मरण की स्थिति में डूबे और प्रसुप्त रहते हैं, उन्हें शैतान द्वारा इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट किया गया है कि अब वे मनुष्य जैसे रहे ही नहीं। इसलिए मनुष्य के विचार, नैतिकता और शिक्षा एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाते हैं, और सांस्कृतिक ज्ञान के प्रशिक्षण से दूसरी कड़ी बनती है, जो मनुष्यों की सांस्कृतिक क्षमता बढ़ाने और उनका आध्यात्मिक दृष्टिकोण बदलने के लिए बेहतर है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (3)

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