परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 510

मनुष्य की दशा और अपने प्रति मनुष्य का व्यवहार देखकर परमेश्वर ने नया कार्य किया है, जिससे मनुष्य उसके विषय में ज्ञान और उसके प्रति आज्ञाकारिता दोनों से युक्त हो सकता है, और प्रेम और गवाही दोनों रख सकता है। इसलिए मनुष्य को परमेश्वर के शुद्धिकरण, और साथ ही उसके न्याय, व्यवहार और काट-छाँट का अनुभव अवश्य करना चाहिए, जिसके बिना मनुष्य कभी परमेश्वर को नहीं जानेगा, और कभी वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करने और उसकी गवाही देने में समर्थ नहीं होगा। परमेश्वर द्वारा मनुष्य का शुद्धिकरण केवल एकतरफा प्रभाव के लिए नहीं होता, बल्कि बहुआयामी प्रभाव के लिए होता है। केवल इसी तरह से परमेश्वर उन लोगों में शुद्धिकरण का कार्य करता है, जो सत्य को खोजने के लिए तैयार रहते हैं, ताकि उनका संकल्प और प्रेम परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया जाए। जो लोग सत्य को खोजने के लिए तैयार रहते हैं और जो परमेश्वर को पाने की लालसा करते हैं, उनके लिए ऐसे शुद्धिकरण से अधिक अर्थपूर्ण या अधिक सहायक कुछ नहीं है। परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य द्वारा सरलता से जाना या समझा नहीं जाता, क्योंकि परमेश्वर आखिरकार परमेश्वर है। अंततः, परमेश्वर के लिए मनुष्य के समान स्वभाव रखना असंभव है, और इसलिए मनुष्य के लिए परमेश्वर के स्वभाव को जानना सरल नहीं है। सत्य मनुष्य द्वारा अंतर्निहित रूप में धारण नहीं किया जाता, और वह उनके द्वारा सरलता से नहीं समझा जाता, जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हैं; मनुष्य सत्य से और सत्य को अभ्यास में लाने के संकल्प से रहित है, और यदि वह पीड़ित नहीं होता और उसका शुद्धिकरण या न्याय नहीं किया जाता, तो उसका संकल्प कभी पूर्ण नहीं किया जाएगा। सभी लोगों के लिए शुद्धिकरण कष्टदायी होता है, और उसे स्वीकार करना बहुत कठिन होता है—परंतु शुद्धिकरण के दौरान ही परमेश्वर मनुष्य के समक्ष अपना धर्मी स्वभाव स्पष्ट करता है और मनुष्य से अपनी अपेक्षाएँ सार्वजनिक करता है, और अधिक प्रबुद्धता, अधिक वास्तविक काट-छाँट और व्यवहार प्रदान करता है; तथ्यों और सत्य के बीच की तुलना के माध्यम से वह मनुष्य को अपने और सत्य के बारे में बृहत्तर ज्ञान देता है, और उसे परमेश्वर की इच्छा की और अधिक समझ प्रदान करता है, और इस प्रकार उसे परमेश्वर के प्रति सच्चा और शुद्ध प्रेम प्राप्त करने देता है। शुद्धिकरण का कार्य करने में परमेश्वर के ये लक्ष्य हैं। उस समस्त कार्य के, जो परमेश्वर मनुष्य में करता है, अपने लक्ष्य और अपना अर्थ होता है; परमेश्वर निरर्थक कार्य नहीं करता, और न ही वह ऐसा कार्य करता है, जो मनुष्य के लिए लाभदायक न हो। शुद्धिकरण का अर्थ लोगों को परमेश्वर के सामने से हटा देना नहीं है, और न ही इसका अर्थ उन्हें नरक में नष्ट कर देना है। बल्कि इसका अर्थ है शुद्धिकरण के दौरान मनुष्य के स्वभाव को बदलना, उसके इरादों को बदलना, उसके पुराने विचारों को बदलना, परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम को बदलना, और उसके पूरे जीवन को बदलना। शुद्धिकरण मनुष्य की वास्तविक परीक्षा और वास्तविक प्रशिक्षण का एक रूप है, और केवल शुद्धिकरण के दौरान ही उसका प्रेम अपने अंतर्निहित कार्य को पूरा कर सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है

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