परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 147
6,000 वर्षों के दौरान कार्य की समग्रता समय के साथ धीरे-धीरे बदल गई है। इस कार्य में बदलाव समस्त संसार की परिस्थितियों के अनुसार हुए हैं।...
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अब वह समय है जब मैं प्रत्येक व्यक्ति का अंत निर्धारित करता हूँ, न कि वह चरण जिसमें मैंने मनुष्य पर काम करना आरंभ किया था। मैं अपनी अभिलेख-पुस्तक में एक-एक करके प्रत्येक व्यक्ति के शब्द और कार्य, वह मार्ग जिसके द्वारा उन्होंने मेरा अनुसरण किया है, उनकी अंतर्निहित विशेषताएँ और अंतत: उन लोगों द्वारा किया गया आचरण लिखता हूँ। इस तरह, किसी भी प्रकार का मनुष्य मेरे हाथ से नहीं बचेगा, और सभी मेरे द्वारा नियत अपने प्रकार के साथ होंगे। मैं प्रत्येक व्यक्ति की मंजिल उसकी आयु, वरिष्ठता और उसके द्वारा सही गई पीड़ा की मात्रा के आधार पर तय नहीं करता, और जिस सीमा तक वे दया के पात्र होते हैं, उसके आधार पर तो बिलकुल भी तय नहीं करता, बल्कि इस बात के अनुसार तय करता हूँ कि उनके पास सत्य है या नहीं। इसके अतिरक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि जो लोग परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण नहीं करते, वे सब दंडित किए जाएँगे। यह एक अडिग तथ्य है। इसलिए, जो लोग दंडित किए जाते हैं, वे सब इस तरह परमेश्वर की धार्मिकता के कारण और अपने अनगिनत बुरे कार्यों के प्रतिफल के रूप में दंडित किए जाते हैं। मैंने अपनी योजना के आरंभ से उसमें एक भी परिवर्तन नहीं किया है। केवल इतना है कि जहाँ तक मनुष्य का संबंध है, ऐसा प्रतीत होता है कि जिनकी ओर मैं अपने वचनों को निर्देशित करता हूँ, उनकी संख्या उसी तरह से घटती जा रही है, जैसे कि उनकी संख्या घट रही है जिन्हें मैं सही मायनों में स्वीकार करता हूँ। लेकिन, मैं अभी भी यही कहता हूँ कि मेरी योजना में कभी बदलाव नहीं आया है; बल्कि, वे तो मनुष्य के विश्वास और प्रेम हैं जो हमेशा बदलते रहते हैं और सदैव घट रहे हैं, इस हद तक कि प्रत्येक मनुष्य के लिए संभव है कि वह मेरी खुशामद करना छोड़कर मेरे प्रति उदासीन हो जाए, यहाँ तक कि मुझे निकालकर बाहर कर दे। जब तक मैं नाराजगी या घृणा महसूस नहीं करता, और अंतत: दंड नहीं देने लगता, तब तक तुम लोगों के प्रति मेरी प्रवृत्ति न तो उत्साहपूर्ण होगी और न ही उत्साहहीन। हालाँकि, तुम लोगों के दंड के दिन भी मैं तुम लोगों को देखूँगा, लेकिन तुम लोग अब मुझे नहीं देख पाओगे। चूँकि तुम लोगों के बीच जीवन पहले से ही थकाऊ और सुस्त हो गया है, इसलिए कहने की आवश्यकता नहीं कि मैंने रहने के लिए एक अलग परिवेश चुन लिया है, बेहतर है कि मैं तुम लोगों के अभद्र शब्दों की चोट से बचूँ और तुम लोगों के असहनीय रूप से गंदे व्यवहार से दूर रहूँ, ताकि तुम लोग मुझे अब और मूर्ख न बना सको या मेरे साथ अनमने ढंग से व्यवहार न कर सको। इसके पहले कि मैं तुम लोगों को छोड़कर जाऊँ, मुझे अभी भी तुम लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि तुम वह करने से बचो, जो सत्य के अनुरूप नहीं है। बल्कि, तुम्हें वह करना चाहिए जो सबके लिए सुखद हो, जो सबको लाभ पहुँचाए, और जो तुम्हारी मंजिल के लिए लाभदायक हो, अन्यथा आपदा के बीच दुःख उठाने वाला इंसान कोई और नहीं, तुम होगे।
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से उद्धृत
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6,000 वर्षों के दौरान कार्य की समग्रता समय के साथ धीरे-धीरे बदल गई है। इस कार्य में बदलाव समस्त संसार की परिस्थितियों के अनुसार हुए हैं।...
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