परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 7

कार्य के तीन चरण परमेश्वर के सम्पूर्ण कार्य का अभिलेख हैं, ये परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार का अभिलेख हैं, और ये काल्पनिक नहीं हैं। यदि तुम लोग परमेश्वर के सम्पूर्ण स्वभाव के ज्ञान की वास्तव में खोज करना चाहते हो, तो तुम लोगों को परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के तीनों चरणों को अवश्य जानना चाहिए और, इसके अलावा, तुम लोगों को किसी भी चरण को चूकना अवश्य नहीं चाहिए। यही सबसे न्यूनतम है जो परमेश्वर को जानने की खोज करने वालों के द्वारा प्राप्त अवश्य किया जाना चाहिए। मनुष्य स्वयं परमेश्वर के ज्ञान के साथ नहीं आ सकता है। यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे मनुष्य स्वयं कल्पना कर सकता है, न ही यह पवित्र आत्मा के द्वारा किसी एक व्यक्ति के प्रति विशेष अनुग्रह का परिणाम है। इसके बजाय, यह वह ज्ञान है जो तब आता है जब मनुष्य परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लेता है, और परमेश्वर का ज्ञान है जो केवल परमेश्वर के कार्य के तथ्यों का अनुभव करने के बाद ही आता है। इस प्रकार का ज्ञान यूँ ही हासिल नहीं किया जा सकता है, न ही यह कोई ऐसी चीज है जिसे सिखाया जा सकता है। यह पूरी तरह से व्यक्तिगत अनुभव से संबंधित है। परमेश्वर का मनुष्यों का उद्धार कार्य के इन्हीं तीन चरणों के मूल में निहित है, फिर भी उद्धार के कार्य के भीतर कार्य करने के कई तरीके और उपाय शामिल हैं जिनके माध्यम से परमेश्वर के स्वभाव व्यक्त होता है। यही है जो मनुष्य के लिए पहचानना सबसे कठिन है, और इसे समझना मनुष्य के लिए मुश्किल है। युगों का पृथक्करण, परमेश्वर के कार्य में बदलाव, कार्य के स्थान में बदलाव, इस कार्य को ग्रहण करने वाले में बदलाव, आदि—ये सभी कार्य के तीन चरणों में समाविष्ट हैं। विशेष रूप से, पवित्र आत्मा के कार्य करने के तरीकों में भिन्नता, और साथ ही परमेश्वर के स्वभाव, छवि, नाम, पहचान में परिवर्तन या अन्य बदलाव, ये सभी कार्य के तीन चरणों के ही भाग हैं। कार्य का एक चरण केवल एक ही भाग का प्रतिनिधित्व कर सकता है, और एक निश्चित दायरे के भीतर ही सीमित है। यह युगों के विभाजन, या परमेश्वर के कार्य में बदलाव से संबंधित नहीं है, और अन्य पहलुओं से तो बिल्कुल भी संबंधित नहीं है। यह एक सुस्पष्ट तथ्य है। कार्य के तीन चरण मानवजाति को बचाने में परमेश्वर के कार्य की संपूर्णता हैं। मनुष्य को परमेश्वर के कार्य को और उद्धार के कार्य में परमेश्वर के स्वभाव को अवश्य जानना चाहिए, और इस तथ्य के बिना, परमेश्वर का तुम्हारा ज्ञान केवल खोखले शब्द हैं, सैद्धांतिक बातों का शानदार दिखावा मात्र से अधिक नहीं हैं। इस प्रकार का ज्ञान मनुष्य को न तो यकीन दिला सकता है और न ही उस पर जीत दिला सकता है, इस प्रकार का ज्ञान वास्तविकता से बाहर की बात है और सत्य नहीं है। यह बहुत ही भरपूर मात्रा में, और कानों के लिए सुखद हो सकता है, परन्तु यदि यह परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव से विपरीत है, तो परमेश्वर तुम्हें नहीं छोड़ेगा। न केवल वह तुम्हारे ज्ञान की प्रशंसा नहीं करेगा बल्कि तुम्हारे पापी होने और उसकी निंदा करने के कारण तुम से अपना प्रतिशोध लेगा। परमेश्वर को जानने के वचन हल्के में नहीं बोले जाते हैं। यद्यपि तुम चिकनी-चुपड़ी बातें बोलने वाले और वाक्पटु हो सकते हो, और तुम्हारे वचन मृतकों में जीवन डाल सकते हों, और जीवित को मृत कर सकते हों, तब भी जब परमेश्वर के ज्ञान की बात आती है तो तुम्हारी अज्ञानता सामने आती है। परमेश्वर कोई ऐसा नहीं है जिसका तुम जल्दबाज़ी में आँकलन कर सकते हो या जिसकी लापरवाही से प्रशंसा कर सकते हो या जिसे उदासीनता से कलंकित कर सकते हो। तुम किसी की भी और सभी की प्रशंसा करते हो, फिर भी परमेश्वर की शुचिता और अनुग्रह का वर्णन करने के लिए तुम सही शब्दों को बोलने में संघर्ष करते हो—और यही सभी हारने वालों द्वारा सीखा जाता है। भले ही ऐसे कई भाषा विशेषज्ञ हैं जो परमेश्वर का वर्णन करने में सक्षम हैं, लेकिन वे जो वर्णन करते हैं उसकी सटीकता उन लोगों द्वारा बोले गए सत्य का सौवाँ हिस्सा है जो परमेश्वर से संबंधित होते हैं और उनका सीमित शब्द-संग्रह होता है, फिर भी समृद्ध अनुभव रखते हैं। इस प्रकार ऐसा देखा जा सकता है कि परमेश्वर का ज्ञान सटीकता और वास्तविकता में निहित है, न कि शब्दों का चतुराई से उपयोग करने या समृद्ध शब्द-संग्रह में है। मनुष्य का ज्ञान और परमेश्वर का ज्ञान पूरी तरह असम्बद्ध हैं। परमेश्वर को जानने का पाठ मानवजाति के किसी भी प्राकृतिक विज्ञान से ऊँचा है। यह ऐसा सबक है जो केवल उन्हीं अत्यंत थोड़े से लोगों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जो परमेश्वर को जानने की खोज कर रहे हैं और यूँही किसी भी प्रतिभावान व्यक्ति द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए तुम लोगों को अवश्य ही परमेश्वर को जानने और सत्य की तलाश करने को ऐसे नहीं देखना चाहिए मानो कि वे मात्र किसी बच्चे के द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। हो सकता है कि तुम अपने पारिवारिक जीवन, अपनी जीवन-वृत्ति या अपने वैवाहिक जीवन में पूरी तरह से सफल हो, परन्तु जब सत्य की और परमेश्वर को जानने के सबक की बात आती है, तो तुम्हारे पास अपने स्वयं के लिए दिखाने के लिए कुछ नहीं है, तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है। सत्य को व्यवहार में लाना, ऐसा कहा जा सकता है कि, तुम लोगों के लिए बहुत ही कठिनाई की बात है, और परमेश्वर को जानना तो और भी बड़ी समस्या है। यही तुम लोगों की कठिनाई है, और सम्पूर्ण मानवजाति द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाई भी है। जिन्होंने परमेश्वर को जानने के ध्येय में कुछ प्राप्त कर लिया है उनके बीच, ऐसे लगभग कोई नहीं हैं जो मानक के मुताबिक हों। मनुष्य नहीं जानता है कि परमेश्वर को जानने का अर्थ क्या है, या परमेश्वर को जानना क्यों आवश्यक है या किस हद तक जानना परमेश्वर को जानना समझा जाता है। यही मानवजाति के लिए बहुत उलझन वाली बात है और आसान शब्दों में मानवजाति द्वारा सामना की जा रही सबसे बड़ी पहेली है—कोई भी इस प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम नहीं है, न ही कोई इस प्रश्न का उत्तर देने की इच्छा रखता है, क्योंकि आज तक मानवजाति में से किसी को भी इस कार्य के अध्ययन में कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई है। शायद, जब कार्य के तीन चरणों की पहेली मानवजाति को बताई जाएगी, तो अनुक्रम से परमेश्वर को जानने वाली प्रतिभाओं का एक समूह प्रकट होगा। वास्तव में, मैं आशा करता हूँ कि ऐसा ही हो, और अधिक क्या, मैं इस कार्य को करने की प्रक्रिया में हूँ और निकट भविष्य में और भी अधिक इस प्रकार की प्रतिभाओं के प्रकटन को देखने की आशा करता हूँ। वे कार्य के इन तीन चरणों के तथ्य की गवाही देने वाले लोग बन जाएँगे और वास्तव में, कार्य के इन तीनों चरणों की गवाही देने वाले प्रथम भी होंगे। यदि जिस दिन परमेश्वर के कार्य की समाप्ति होती है उस दिन इस प्रकार की कोई प्रतिभा नहीं हो, या केवल एक या दो ही हों, और उन्होंने देहधारी परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाया जाना व्यक्तिगत रूप से स्वीकार कर लिया हो, तो इससे अधिक कष्टप्रद और खेदजनक कुछ भी नहीं है—यद्यपि यह सिर्फ़ सबसे बुरी स्थिति है। चाहे मामला कुछ भी हो, मैं अभी भी आशा करता हूँ कि जो वास्तव में परमेश्वर की तलाश करते हो वे इस आशीष को प्राप्त कर सकते हो। समय के आरम्भ से ही, इस प्रकार का कार्य पहले कभी नहीं हुआ, मानव विकास के इतिहास में कभी भी इस प्रकार का कार्य नहीं हुआ है। यदि तुम वास्तव में परमेश्वर को जानने वालों में सबसे प्रथम लोगों में से एक हो सकते हो, तो क्या यह सभी प्राणियों में सर्वोच्च आदर की बात नहीं होगी? क्या मानवजाति में कोई ऐसा प्राणी होगा जिसने परमेश्वर से बहुत अधिक प्रशंसा प्राप्त की होगी? इस प्रकार का कार्य प्राप्त करना आसान नहीं है, परन्तु तब भी अंत में प्रतिफल प्राप्त करेगा। उनके लिंग या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना, वे सभी लोग जो परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हैं, अंत में, परमेश्वर का सबसे महान सम्मान प्राप्त करते हैं और वे ही एकमात्र होंगे जो परमेश्वर का प्राधिकार धारण करते हैं। यही आज का कार्य है, और भविष्य का कार्य भी है; यह अंतिम, और 6,000 सालों के कार्य में निष्पादित किया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, और कार्य करने का एक तरीका है जो मनुष्य की प्रत्येक श्रेणी को प्रकट करता है। मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान करवाने के कार्य के माध्यम से, मनुष्य की विभिन्न श्रेणियाँ प्रकट होती हैं: जो परमेश्वर को जानते हैं वे परमेश्वर के आशीष प्राप्त करने और उसकी प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करने के योग्य होते हैं, जबकि जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे परमेश्वर के आशीषों और प्रतिज्ञाओं को स्वीकारने के योग्य नहीं होते हैं। जो परमेश्वर को जानते हैं वे परमेश्वर के अंतरंग हैं, और जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे परमेश्वर के अंतरंग नहीं कहे जा सकते हैं; परमेश्वर के अंतरंग परमेश्वर का कोई भी आशीष प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु जो उसके घनिष्ठ नहीं हैं वे उसके किसी भी काम के लायक नहीं हैं। चाहे यह क्लेश, शुद्धिकरण या न्याय हो, ये सभी अंततः मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के योग्य बनाने के वास्ते हैं और इसलिए हैं ताकि मनुष्य परमेश्वर के प्रति समर्पण करे। यही एकमात्र प्रभाव है जो अंततः प्राप्त किया जाएगा। कार्य के तीनों चरणों में से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, और यह मनुष्य के परमेश्वर के ज्ञान के लिए लाभकारी है, और परमेश्वर का अधिक पूर्ण और विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने में मनुष्य की सहायता करता है। यह समस्त कार्य मनुष्य के लिए लाभप्रद है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

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