परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 437
कलीसियाई जीवन केवल इस प्रकार का जीवन है जहाँ लोग परमेश्वर के वचनों का स्वाद लेने के लिए एकत्र होते हैं, और यह किसी व्यक्ति के जीवन का एक...
हम परमेश्वर के प्रकटन के लिए बेसब्र सभी साधकों का स्वागत करते हैं!
परमेश्वर ने इन अशुद्ध और भ्रष्ट लोगों में कार्य करने और इस समूह के लोगों को पूर्ण बनाने के लिए इस स्तर तक स्वयं को दीन किया है। परमेश्वर लोगों के मध्य जीने और खाने-पीने, वह लोगों की चरवाही करने, और लोगों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ही देह में नहीं आया। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह उद्धार और जीतने का विशाल कार्य इन असहनीय रूप से भ्रष्ट लोगों पर करता है। वह इन सबसे अधिक भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए बड़े लाल अजगर के केन्द्र में आया, जिससे सभी लोग परिवर्तित हो सकें और नए बनाए जा सकें। वह अत्यधिक कष्ट, जो परमेश्वर सहन करता है, यह मात्र वह कष्ट नहीं है जो देहधारी परमेश्वर सहन करता है, परन्तु मुख्यतः यह वह अत्यधिक निरादर है जो परमेश्वर का आत्मा सहन करता है—वह स्वयं को इतना अधिक दीन करता है और छिपाए रखता है कि वह एक साधारण व्यक्ति बन जाता है। परमेश्वर ने देहधारण किया और देह का रूप ले लिया था ताकि लोग देखें कि उसका जीवन एक साधारण मानव-जीवन है, और उसकी साधारण मानवीय आवश्यकताएँ भी हैं। यह इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि परमेश्वर ने स्वयं को हद से ज़्यादा दीन किया है। परमेश्वर का आत्मा देह में साकार होता है। उसका आत्मा सर्वोच्च और महान है, परन्तु फिर भी वह अपने आत्मा का कार्य करने के लिए एक सामान्य मानव, तुच्छ मनुष्य का रूप ले लेता है। तुम में से प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता, अंतर्दृष्टि, समझ, मानवता और जीवन दर्शाते हैं कि तुम सब परमेश्वर के इस प्रकार के कार्य को स्वीकार करने के लिए वास्तव में अयोग्य हो। तुम सब परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए इस कष्ट को सहन किए जाने के लिए वास्तव में अयोग्य हो। परमेश्वर अत्यधिक महान है। वह इतना सर्वोच्च है और लोग बहुत नीच हैं, फिर भी वह उन पर कार्य करता है। उसने न केवल इसलिए देहधारण किया कि लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करे, लोगों से बात करे, अपितु वह लोगों के साथ रहता भी है। परमेश्वर इतना दीन और इतना प्रेम करने वाला है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं
परमेश्वर की विनम्रता बहुत प्यारी है
1
ईश्वर नम्र कर खुद को, करता है कार्य अशुद्ध और भ्रष्ट मानव पर, करने को पूर्ण इन्हें। ईश्वर है बनता मानव। चरवाही और सेवा है करता, वो आता है बड़े लाल अजगर के दिल में भ्रष्टों को जीतने और उन्हें बचाने को, उनको बदलने के कार्य और उन्हें नया करने के लिए। स्वयं को दीन कर वो मानव है बनता और इससे जुड़े सभी कष्टों को है सहता। ये उस पवित्र आत्मा का अत्यधिक निरादर है। ईश्वर, महान और ऊंचा; मानव, तुच्छ और नीच है। फिर भी ईश्वर बात करता, चीज़ें देता और उनके बीच रहता है। वो कितना नम्र है, कितना प्यारा है।
2
ईश्वर जीता है देह में सामान्य जीवन और सामान्य उसकी ज़रूरतें दर्शाता है कि वो विनम्र है। उसका आत्मा उच्च और महान, आता है मानव के रूप में अपने आत्मा के कार्य को करने। तुम सब उसके कार्य के अयोग्य हो, हर उस कष्ट के जिनको उसने सहा। यह तुम्हारे गुणों में दिखता है, अंतर्दृष्टि और समझ में। तुम सब उसके कार्य के अयोग्य हो, हर उस कष्ट के जिनको उसने सहा। ये दिखता है तुम्हारी मानवता में और तुम्हारे जीवन में। ईश्वर, महान और ऊंचा; मानव, तुच्छ और नीच है। फिर भी ईश्वर बात करता, चीज़ें देता और उनके बीच रहता है। वो कितना नम्र है, कितना प्यारा है।
— 'मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ' से
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