परमेश्वर के दैनिक वचन : देहधारण | अंश 102

अपने पहले देहधारण में परमेश्वर ने देहधारण के कार्य को पूरा नहीं किया; उसने उस कार्य के पहले चरण को ही पूरा किया जिसे परमेश्वर के लिए देह में रहकर करना आवश्यक था। इसलिए, देहधारण के कार्य को समाप्त करने के लिए, परमेश्वर एक बार फिर देह में वापस आया है, और देह की समस्त सामान्यता और वास्तविकता को जी रहा है, अर्थात्, एकदम सामान्य और साधारण देह में परमेश्वर के वचन को प्रकट कर रहा है, इस प्रकार उस कार्य का समापन कर रहा है जिसे उसने देह में अधूरा छोड़ दिया था। दूसरा देहधारण सार रूप में पहले के ही समान है, लेकिन यह अधिक वास्तविक और पहले से भी अधिक सामान्य है। परिणामस्वरूप, दूसरा देहधारी देह पहले देहधारण से भी अधिक पीड़ा सहता है, किन्तु यह पीड़ा देह में उसकी सेवकाई का परिणाम है, जो कि एक भ्रष्ट मानव की पीड़ा से भिन्न है। यह भी उसके देह की सामान्यता और वास्तविकता से उत्पन्न होती है। क्योंकि वह अपनी सेवकाई का कार्य सर्वथा सामान्य और वास्तविक देह में करता है, इसलिए उसके देह को अत्यधिक कठिनाई सहनी होगी। उसका देह जितना अधिक सामान्य और वास्तविक होगा, उतना ही अधिक वह अपनी सेवकाई में कष्ट उठाएगा। परमेश्वर का कार्य एक बहुत ही आम देह में अभिव्यक्त होता है, ऐसा देह जो कि बिल्कुल भी अलौकिक नहीं है। चूँकि उसका देह सामान्य है और उसे मनुष्य को बचाने के कार्य का दायित्व भी लेना है, इसलिए वह अलौकिक देह की अपेक्षा और भी अधिक पीड़ा भुगतता है—और ये सारी पीड़ा उसके देह की वास्तविकता और सामान्यता से उत्पन्न होती है। सेवकाई का कार्य करते समय जिस पीड़ा से दोनों देहधारी देह गुज़रे हैं, उससे देहधारी देह के सार को देखा जा सकता है। देह जितना अधिक सामान्य होगा, उसे कार्य करते समय उतनी ही अधिक कठिनाई सहनी होगी; कार्य करने वाला देह जितना अधिक वास्तविक होता है, लोगों की धारणाएँ भी उतनी ही अधिक कठोर होती हैं, और उस पर आने वाले ख़तरों की आशंका उतनी ही अधिक होती है। फिर भी, देह जितना अधिक वास्तविक होता है, और उसमें सामान्य मानव की जितनी अधिक आवश्यकताएँ और पूर्ण बोध होता है, वह उतना ही अधिक परमेश्वर के कार्य को देह में कर पाने में सक्षम होता है। यीशु के देह को सलीब पर चढ़ाया गया था, उसी ने पापबलि के रूप में अपने देह को दिया था; उसने सामान्य मानवता वाले देह से ही शैतान को हराकर सलीब से मनुष्य को पूरी तरह से बचाया था। और पूरी तरह से देह के रूप में ही परमेश्वर अपने दूसरे देहधारण में विजय का कार्य करता है और शैतान को हराता है। केवल ऐसा देह जो पूरी तरह से सामान्य और वास्तविक है, अपनी समग्रता में विजय का कार्य करके एक सशक्त गवाही दे सकता है। अर्थात्, देह में परमेश्वर की वास्तविकता और सामान्यता के माध्यम से ही मानव पर विजय को प्रभावी बनाया जाता है, न कि अलौकिक चमत्कारों और प्रकटनों के माध्यम से। इस देहधारी परमेश्वर की सेवकाई बोलना, मनुष्य को जीतना और उसे पूर्ण बनाना है; दूसरे शब्दों में, देह में साकार हुए पवित्रात्मा का कार्य, देह का कर्तव्य, बोलकर मनुष्य को पूरी तरह से जीतना, उजागर करना, पूर्ण बनाना और हटाना है। इसलिए, विजय के कार्य में ही देह में परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से सम्पन्न होगा। आरंभिक छुटकारे का कार्य देहधारण के कार्य का आरंभ मात्र था; विजय का कार्य करने वाला देह देहधारण के समस्त कार्य को पूरा करेगा। लिंग रूप में, एक पुरुष है और दूसरा महिला; यह परमेश्वर के देहधारण की महत्ता को पूर्णता देकर, परमेश्वर के बारे में मनुष्य की धारणाओं को दूर करता है : परमेश्वर पुरुष और महिला दोनों बन सकता है, सार रूप में देहधारी परमेश्वर स्त्रीलिंग या पुल्लिंग नहीं है। उसने पुरुष और महिला दोनों को बनाया है, और उसके लिए कोई लिंगभेद नहीं है। कार्य के इस चरण में, परमेश्वर संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता, ताकि कार्य वचनों के माध्यम से अपने परिणाम प्राप्त करे। क्योंकि देहधारी परमेश्वर का इस बार का कार्य बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना नहीं है, बल्कि बोलकर मनुष्य को जीतना है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर के इस देहधारण का सहज गुण वचन बोलना और मनुष्य को जीतना है, न कि बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना। सामान्य मानवता में उसका कार्य चमत्कार करना नहीं है, बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना नहीं है, बल्कि बोलना है, और इसलिए दूसरा देहधारी देह लोगों को पहले वाले की तुलना में अधिक सामान्य लगता है। लोग देखते हैं कि परमेश्वर का देहधारण मिथ्या नहीं है; बल्कि यह देहधारी परमेश्वर यीशु के देहधारण से भिन्न है, हालाँकि दोनों ही परमेश्वर के देहधारण हैं, फिर भी वे पूरी तरह से एक नहीं हैं। यीशु में सामान्य और साधारण मानवता थी, लेकिन उसमें अनेक संकेत और चमत्कार दिखाने की शक्ति थी। जबकि इस देहधारी परमेश्वर में, मानवीय आँखों को न तो कोई संकेत दिखाई देगा, और न कोई चमत्कार, न तो बीमार चंगे होते हुए दिखाई देंगे, न ही दुष्टात्माएँ बाहर निकाली जाती हुई दिखाई देंगी, न तो समुद्र पर चलना दिखाई देगा, न ही चालीस दिन तक उपवास रखना दिखाई देगा...। वह उसी कार्य को नहीं करता जो यीशु ने किया, इसलिए नहीं कि उसका देह सार रूप में यीशु से भिन्न है, बल्कि इसलिए कि बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना उसकी सेवकाई नहीं है। वह अपने ही कार्य को ध्वस्त नहीं करता, अपने ही कार्य में विघ्न नहीं डालता। चूँकि वह मनुष्य को अपने वास्तविक वचनों से जीतता है, इसलिए उसे चमत्कारों से वश में करने की आवश्यकता नहीं है, और इसलिए यह चरण देहधारण के कार्य को पूरा करने के लिए है। आज तुम जिस देहधारी परमेश्वर को देखते हो वह पूरी तरह से देह है, और उसमें कुछ भी अलौकिक नहीं है। वह दूसरों की तरह ही बीमार पड़ता है, उसी तरह उसे भोजन और कपड़ों की आवश्यकता होती है; वह पूरी तरह से देह है। यदि इस बार भी देहधारी परमेश्वर अलौकिक संकेत और चमत्कार दिखाता, बीमारों को चंगा करता, दुष्टात्माओं को निकालता, या एक वचन से मार सकता, तो विजय का कार्य कैसे हो पाता? कार्य को अन्यजाति राष्ट्रों में कैसे फैलाया जा सकता था? बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना अनुग्रह के युग का कार्य था, छुटकारे के कार्य का यह पहला चरण था, और अब जबकि परमेश्वर ने लोगों को सलीब से बचा लिया है, इसलिए अब वह उस कार्य को नहीं करता। यदि अंत के दिनों में यीशु के जैसा ही कोई "परमेश्वर" प्रकट हो जाता, जो बीमार को चंगा करता और दुष्टात्माओं को निकालता, और मनुष्य के लिए सलीब पर चढ़ाया जाता, तो वह "परमेश्वर", बाइबल में वर्णित परमेश्वर के समरूप तो अवश्य होता और उसे मनुष्य के लिए स्वीकार करना भी आसान होता, लेकिन तब वह अपने सार रूप में, परमेश्वर के आत्मा द्वारा नहीं, बल्कि एक दुष्टात्मा द्वारा धारण किया गया देह होता। क्योंकि जो परमेश्वर ने पहले ही पूरा कर लिया है, उसे कभी नहीं दोहराना, यह परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत है। इसलिए परमेश्वर के दूसरे देहधारण का कार्य पहले देहधारण के कार्य से भिन्न है। अंत के दिनों में, परमेश्वर विजय का कार्य एक सामान्य और साधारण देह में पूरा करता है; वह बीमार को चंगा नहीं करता, उसे मनुष्य के लिए सलीब पर नहीं चढ़ाया जाएगा, बल्कि वह केवल देह में वचन कहता है, देह में मानव को जीतता है। ऐसा देह ही देहधारी परमेश्वर का देह है; ऐसा देह ही देह में परमेश्वर के कार्य को पूर्ण कर सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार

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