स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX

परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है (III) भाग एक

इस अवधि के दौरान, हमने परमेश्वर को जानने से संबंधित बहुत सारी चीज़ों के बारे में बात की है, और हाल ही में हमने इससे जुड़े एक अति महत्वपूर्ण विषय पर बात की है। वह विषय क्या है? (परमेश्वर सभी वस्तुओं के लिए जीवन का स्रोत है।) लगता है जिन चीज़ों और विषयों के बारे में मैंने बात की थी, उनका सभी लोगों पर साफ़ प्रभाव पड़ा। पिछली बार हमने जीवित रहने के लिए वातावरण के कुछ पहलुओं के बारे में बात की थी जिन्हें परमेश्वर ने मानवजाति के लिए सृजित किया था, साथ ही परमेश्वर द्वारा तैयार किए गए तमाम प्रकार के जीवनाधारों के बारे में भी बात की थी जो लोगों के ज़िंदा रहने के लिए आवश्यक हैं। वास्तव में, जो परमेश्वर करता है वह लोगों के जीवित रहने के लिए सिर्फ एक वातावरण तैयार करने तक सीमित नहीं है, न ही यह उनके दैनिक जीवनाधार को तैयार करने तक सीमित है, बल्कि यह लोगों के जीवित रहने और मानवजाति की ज़िंदगी के लिए बहुत सारे रहस्यमय और आवश्यक कार्य के विभिन्न पहलुओं को पूरा करने के लिए है। ये सब परमेश्वर के कर्म हैं। परमेश्वर के ये कर्म, सिर्फ लोगों के जीवित रहने और उनके दैनिक जीवन आधार के लिए एक वातावरण की तैयारी तक ही सीमित नहीं हैं—उनका दायरा अपेक्षाकृत कहीं अधिक व्यापक है। इन दो प्रकार के कार्यों के अलावा, वह जीते रहने के लिए अनेक वातावरण और स्थितियां भी तैयार करता है जो मनुष्य की ज़िंदगी के लिए आवश्यक हैं। यही वह विषय है जिस पर हम आज चर्चा करने जा रहे हैं। यह भी परमेश्वर के कर्मों से संबंधित है; अन्यथा, इसके बारे में यहाँ बात करना निरर्थक होगा। यदि लोग परमेश्वर को जानना चाहते हैं किन्तु उनके पास "परमेश्वर" की या परमेश्वर के स्वरूप के विभिन्न पहलुओं की सिर्फ शाब्दिक समझ है, तो यह सच्ची समझ नहीं है। अतः परमेश्वर को जानने का मार्ग क्या है? यह परमेश्वर को उसके कर्मों के माध्यम से जानना और उसे उसके सभी पहलुओं में जानना है। अतः आगे हम परमेश्वर के उस समय के कर्मों के विषय पर संगति करेंगे जब उसने सभी चीज़ों की रचना की थी।

जब से परमेश्वर ने सभी चीज़ों को बनाया है, वे व्यवस्थित रूप से उसके बनाए नियमों के अनुसार संचालित और निरन्तर विकसित हो रही हैं। उसकी निगाहों और शासन के अधीन, मानवजाति का अस्तित्व बरकरार है और सभी चीज़ें नियमित रूप से विकसित हो रही हैं। कोई भी चीज़ इन नियमों को बदलने या नष्ट करने में सक्षम नहीं है। परमेश्वर के शासन के कारण ही सभी प्राणी वंश-वृद्धि कर सकते हैं, और उसके शासन और प्रबंधन के कारण सभी प्राणी जीवित रह सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर के शासन के अधीन, सभी प्राणी जन्म लेते हैं, फलते-फूलते हैं, गायब हो जाते हैं, और एक सुव्यवस्थित विधि से पुनः शरीर धारण करते हैं। जब बसंत का आगमन होता है, हल्की-हल्की बारिश ताज़े मौसम का एहसास लेकर आती है और पृथ्वी को नम कर देती है। ज़मीन नर्म पड़ने लगती है, मिट्टी के भीतर से घास निकल आती है और अंकुरित होना शुरू करती है, और वृक्ष धीरे-धीरे हरे हो जाते हैं। ये सभी जीवित चीज़ें पृथ्वी पर नई जीवन-शक्ति लेकर आती हैं। यही सभी प्राणियों के अस्तित्व में आने और फलने-फूलने का दृश्य है। सभी प्रकार के पशु बसंत की गर्माहट को महसूस करने के लिए अपनी मांदों से बाहर निकल आते हैं और एक नए वर्ष की शुरुआत करते हैं। सभी प्राणी गर्मियों की धूप सेंकते हैं और मौसम के द्वारा लाई गई गर्माहट का आनंद लेते हैं। वे तीव्रता से बढ़ते हैं। पेड़, घास, और सभी प्रकार के पौधे खिलने और फल धारण करने तक बहुत तेजी से बढ़ते हैं। ग्रीष्म ऋतु के दौरान मनुष्य समेत सभी प्राणी बहुत व्यस्त रहते हैं। पतझड़ में, बारिश शरद ऋतु की ठंडक लेकर आती है, और सभी प्रकार के जीव फसलों की कटाई के मौसम के आगमन को महसूस करने लगते हैं। सभी जीव फल उत्पन्न करते हैं, और मनुष्य शीत ऋतु की तैयारी में भोजन की व्यवस्था करने के लिए विभिन्न प्रकार के फल इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। शीत ऋतु में ठंड के आने के साथ सभी जीव धीरे-धीरे आराम करना एवं शांत होना प्रारंभ कर देते हैं, और साथ ही लोग भी इस मौसम के दौरान विराम ले लेते हैं। बसंत का ग्रीष्म में, ग्रीष्म का शरद, फिर शरद का शीत में बदलना—ऋतुओं के ये सभी परिवर्तन परमेश्वर द्वारा स्थापित नियमों के अनुसार होते हैं। वह इन नियमों का उपयोग करके सभी चीज़ों और मानवजाति की अगुवाई करता है और उसने मानवजाति के लिए एक समृद्ध और खुशनुमा जीवन-शैली निर्मित की है, जीवित रहने के लिए एक ऐसा वातावरण तैयार किया है जिसमें अलग-अलग तापमान और ऋतुएँ हैं। जीवित रहने हेतु इन सुव्यवस्थित वातावरण के अंतर्गत, मनुष्य भी सुव्यवस्थित तरीके से जीवित रह सकता है और वंश-वृद्धि कर सकता है। मनुष्य इन नियमों को नहीं बदल सकता और न ही कोई व्यक्ति या प्राणी इन्हें तोड़ सकता है। यद्यपि असंख्य परिवर्तन हो चुके हैं—समुद्र खेत बन गए हैं, जबकि खेत समुद्र बन गए हैं—फिर भी ये नियम लगातार अस्तित्व में बने हुए हैं। ये अस्तित्व में हैं क्योंकि परमेश्वर अस्तित्व में है। यह परमेश्वर के शासन और उसके प्रबंधन की वजह से है। इस प्रकार के सुव्यवस्थित, एवं बड़े पैमाने के वातावरण के साथ, इन नियमों और विधियों के अंतर्गत लोगों की ज़िन्दगी आगे बढ़ती है। इन नियमों के अंतर्गत पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग विकसित हुए, और लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी इन नियमों के भीतर जीवित रहे हैं। लोगों ने जीवित बचे रहने के लिए इस सुव्यवस्थित वातावरण का और साथ ही परमेश्वर के द्वारा सृजित बहुत सारी चीज़ों का पीढ़ी-दर-पीढ़ी आनन्द लिया है। भले ही लोगों को महसूस होता है कि इस प्रकार के नियम स्वाभाविक हैं, और वे उनका सम्मान न करते हुए उनका मोल नहीं समझते हैं, और भले ही उन्हें महसूस न हो कि परमेश्वर इन नियमों का आयोजन कर रहा है, इन पर शासन कर रहा है, फिर भी हर परिस्थिति में, परमेश्वर इस अपरिवर्तनीय कार्य में हमेशा से लगा हुआ है। इस अपरिवर्तनीय कार्य में उसका उद्देश्य मानवजाति को अस्तित्व में बनाए रखना है, ताकि वह निरन्तर जीवित रहे।

परमेश्वर समस्त मानवजाति का पालन-पोषण करने हेतु सभी चीज़ों के लिये सीमाएँ तय करता है

आज मैं इस विषय के बारे में बात करने जा रहा हूँ कि परमेश्वर द्वारा समस्त चीज़ों के लिए लाए गए इस तरह के नियम कैसे पूरी मानवजाति का पालन-पोषण करते हैं। यह एक बहुत बड़ा विषय है, अतः हम इसे कई हिस्सों में विभाजित कर सकते हैं और एक-एक कर उन पर चर्चा करेंगे ताकि तुम्हारे लिए उन्हें स्पष्ट रूप से चित्रित किया जा सके। इस तरह से तुम्हारे लिए यह समझना आसान हो जाएगा और तुम इसे धीरे-धीरे समझ सकते हो।

तो, पहले भाग से शुरु करते हैं। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों का सृजन किया, तो उसने पहाड़ों, मैदानों, रेगिस्तानों, पहाड़ियों, नदियों और झीलों के लिए सीमाएँ खींचीं। पृथ्वी पर पर्वत, मैदान, मरूस्थल, और पहाड़ियों के साथ ही जल के विभिन्न स्रोत हैं। क्या ये विभिन्न प्रकार के भूभाग नहीं हैं? परमेश्वर ने विभिन्न प्रकार के इन भूभागों के बीच सीमाएँ खींची थी। जब हम सीमाओं के निर्माण की बात करते हैं, तो इसका अर्थ है कि पर्वतों की अपनी सीमा-रेखाएँ हैं, मैदानों की अपनी स्वयं की सीमा-रेखाएँ हैं, मरुस्थलों की कुछ सीमाएँ हैं, पहाड़ों का अपना एक निश्चित क्षेत्र है। साथ ही जल के स्रोतों, जैसे नदियों और झीलों की भी एक निश्चित संख्या है। अर्थात्, जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की तब उसने हर चीज़ को पूरी स्पष्टता से विभाजित किया। परमेश्वर ने पहले ही निर्धारित कर दिया है कि एक पहाड़ की त्रिज्या कितने किलोमीटर की होनी चाहिए, इसका दायरा क्या है। साथ ही उसने यह भी निर्धारित कर दिया कि एक मैदान की त्रिज्या कितने किलोमीटर की होनी चाहिए, और इसका दायरा क्या है। सभी चीज़ों की रचना करते समय उसने मरुस्थल के दायरे और साथ ही पहाड़ियों के विस्तार और उनके परिमाण और वे किनके द्वारा घिरे हुए हैं, उन सारी चीजों को निर्धारित कर दिया था। उसने नदियों और झीलों के दायरे को निर्धारित कर दिया था जब वह उनकी रचना कर रहा था—उन सभी की अपनी सीमाएँ हैं। जब हम "सीमाओं" की बात करते हैं तो इसका क्या अर्थ है? हमने अभी इस बारे में बात की थी कि कैसे सभी चीज़ों के लिए व्यवस्था स्थापित कर परमेश्वर उनपर शासन करता है। यानी, पहाड़ों के विस्तार और दायरे पृथ्वी की परिक्रमा या समय के गुज़रने के कारण बढ़ेंगे या घटेंगे नहीं। वे स्थिर और अपरिवर्तनीय हैं और उनकी यह अपरिवर्तनीयता परमेश्वर द्वारा निर्धारित है। जहाँ तक मैदानी क्षेत्रों की बात है, उनका दायरा कितना है, वे किन चीजों से सीमाबद्ध हैं—इसे परमेश्वर द्वारा तय किया गया है। उनकी अपनी सीमाएँ हैं, और मैदान के बीचोंबीच अचानक किसी पहाड़ी का उभर आना संभव नहीं है। मैदान अचानक पर्वत में परिवर्तित नहीं होगा—ऐसा होना असंभव है। जिन नियमों और सीमाओं की अभी हम बात कर रहे थे, उनका अर्थ यही है। जहाँ तक मरुस्थल की बात है, हम यहाँ मरुस्थल या किसी अन्य भूभाग या भौगोलिक स्थिति की विशिष्ट भूमिकाओं का जिक्र नहीं करेंगे, केवल उनकी सीमाओं की चर्चा करेंगे। परमेश्वर के शासन के अधीन, मरुस्थल का भी दायरा नहीं बढ़ेगा। क्योंकि परमेश्वर ने इसे इसका नियम और दायरा दिया हुआ है। इसका क्षेत्रफल कितना बड़ा है और इसकी भूमिका क्या है, वह किन चीजों से घिरा हुआ है, और इसकी जगह—इसे पहले से ही परमेश्वर द्वारा तय कर दिया गया है। वह अपने दायरे से आगे नहीं बढ़ेगा, न अपनी जगह बदलेगा, और न ही मनमाने ढंग से अपना क्षेत्रफल बढ़ाएगा। हालांकि, सभी नदियों और झीलों के प्रवाह सुव्यवस्थित और निरन्तर बने हुए हैं, वे कभी अपने दायरे या अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करेंगे। वे सभी एक सुव्यवस्थित तरीके से अपनी एक स्वाभाविक निर्धारित दिशा में बहती हैं। अतः परमेश्वर के शासन के नियमों के अंतर्गत, कोई भी नदी या झील अपने से सूख नहीं जाएगी, या अपनी दिशा या अपने बहाव की मात्रा को पृथ्वी की परिक्रमा या समय के गुज़रने के साथ बदल नहीं देगी । यह सब परमेश्वर के नियंत्रण में है। कहने का तात्पर्य है कि, परमेश्वर द्वारा मानवजाति के मध्य सृजित सभी चीज़ों के अपने निर्धारित स्थान, क्षेत्र और दायरे हैं। अर्थात्, जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की, तब उनकी सीमाओं को तय कर दिया गया था और उन्हें स्वेच्छा से पलटा, नवीनीकृत किया, या बदला नहीं जा सकता। "स्वेच्छा से" का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि वे मौसम, तापमान, या पृथ्वी के घूमने के कारण बेतरतीब ढंग से अपना स्थान नहीं बदलेंगे, अपना विस्तार नहीं करेंगे, या अपने मूल स्वरूप में परिवर्तन नहीं लाएँगे। उदाहरण के लिए, किसी पर्वत की एक निश्चित ऊँचाई है, इसके आधार का एक निश्चित क्षेत्रफल है, समुद्रतल से इसकी ऊँचाई निश्चित है, और यहाँ निश्चित मात्रा में वनस्पतियाँ हैं। इस सब की योजना और गणना परमेश्वर द्वारा की गई है और इसे मनमाने ढंग से बदला नहीं जाएगा। जहाँ तक मैदानों की बात है, अधिकांश मनुष्य मैदानों में निवास करते हैं, और मौसम में हुआ कोई परिवर्तन उनके क्षेत्र या उनके अस्तित्व की मूल्यवत्ता को प्रभावित नहीं करेगा। यहाँ तक कि इन विभिन्न भूभागों और भौगोलिक वातावरण में समाविष्ट हर चीज़ जिसे परमेश्वर द्वारा रचा गया था, उसे भी स्वेच्छा से बदला नहीं जाएगा। उदाहरण के लिए, मरुस्थल की संरचना, भूमिगत खनिज सम्पदाओं के प्रकार, मरुस्थल में पाई जाने वाली रेत की मात्रा, उसका रंग, उसकी मोटाई—ये स्वेच्छा से नहीं बदलेंगे। ऐसा क्यों है कि वे स्वेच्छा से नहीं बदलेंगे? यह परमेश्वर के शासन और उसके प्रबंधन के कारण है। परमेश्वर अपने द्वारा सृजित इन सभी विभिन्न भूभागों और भौगोलिक वातावरण के भीतर, सारी चीजों का प्रबंधन, एक योजनाबद्ध और सुव्यवस्थित तरीके से कर रहा है। अतः परमेश्वर द्वारा सृजे जाने के पश्चात कई हज़ार वर्षों से, दसियों हज़ार वर्षों से ये सभी भौगोलिक पर्यावरण अभी भी अस्तित्व में हैं और अपनी भूमिकाएँ निभा रहे हैं। हालांकि ऐसे समय आते हैं जब ज्वालामुखी फटते हैं, भूकंप आते हैं, और बड़े पैमाने पर भूमि की जगह बदल जाती है, फिर भी परमेश्वर किसी भी प्रकार के भू-भाग को अपने मूल कार्य को छोड़ने की अनुमति बिलकुल नहीं देगा। केवल परमेश्वर के इस प्रबंधन, उसके शासन और इन नियमों पर उसके नियंत्रण के कारण ये सारी चीजें—जिन्हें मानवजाति देखती और जिनका आनन्द लेती है—सुव्यवस्थित तरीके से पृथ्वी पर बरकरार रहने में सक्षम हैं। अतः परमेश्वर पृथ्वी पर मौजूद इन सभी अलग-अलग भूभागों का प्रबंधन इस तरह क्यों करता है? उसका उद्देश्य है कि विभिन्न भौगोलिक वातावरणों में जो प्राणी रहते हैं उन सभी के पास एक स्थायी वातावरण हो, और वे उस स्थायी वातावरण में निरन्तर जीवित रहने और वंश की वृद्धि करने में सक्षम हों। ये सभी चीज़ें—चल या अचल, वे जो अपने नथुनों से सांस लेते हैं और वे जो सांस नहीं लेते—मानवजाति के जीवित रहने के लिए एक अद्वितीय वातावरण का निर्माण करती हैं। केवल इस प्रकार का वातावरण ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी मनुष्यों का पालन-पोषण करने में सक्षम है, और केवल इस प्रकार का वातावरण ही मनुष्यों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी निरंतर शांतिपूर्वक जीवित रहने की अनुमति दे सकता है।

मैंने जिस विषय पर अभी-अभी बात की है वह काफी बड़ा है, तो यह शायद तुम्हारे जीवन से थोड़ा अलग-थलग लग सकता है, लेकिन मुझे विश्वास है कि तुम सब इसे समझ सकते हो, है न? कहने का तात्पर्य यह है कि सभी चीज़ों पर परमेश्वर के प्रभुत्व के नियम बहुत महत्वपूर्ण हैं—सचमुच बहुत महत्वपूर्ण! इन नियमों के अंतर्गत सभी प्राणियों के विकास की पूर्वशर्त क्या है? यह परमेश्वर के नियम के कारण है। यह उसके नियम के कारण है कि सभी चीज़ें उसके नियम के अंतर्गत अपने कार्यों को अंजाम देती हैं। उदाहरण के लिए, पहाड़ जंगलों का पोषण करते हैं, फिर जंगल उसके बदले में अपने भीतर रहने वाले विभिन्न पक्षियों और पशुओं का पोषण और संरक्षण करते हैं। मैदान एक समतल भूमि है जिसे मनुष्यों के लिए फ़सल उगाने के लिए और साथ ही विभिन्न पशु-पक्षियों के लिए तैयार किया गया है। वे मानवजाति के अधिकांश लोगों को समतल भूमि पर रहने की अनुमति देते हैं और लोगों के जीवन को सहूलियत प्रदान करते हैं। और मैदानों में घास के मैदान भी शामिल हैं—घास के मैदान की विशाल पट्टियाँ। घास के मैदान पृथ्वी की सतह को ढकने वाली वनस्पतियाँ हैं। वे मिट्टी का संरक्षण करते हैं और मैदानों में रहने वाले मवेशी, भेड़ और घोड़ों का पालन-पोषण करते हैं। मरुस्थल भी अपना कार्य करता है। यह मनुष्यों के रहने की जगह नहीं है; इसकी भूमिका नम जलवायु को शुष्क बनाना है। नदियों और झीलों का बहाव लोगों को सरल ढंग से पेयजल उपलब्ध कराता है। जहाँ कहीं वे बहेंगी, वहाँ लोगों के पास पीने के लिए जल होगा, और सभी चीज़ों की पानी की आवश्यकताएँ सरलता से पूरी होंगी। ये वे सीमाएँ हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा विभिन्न भूभागों के लिए बनाया गया है।

परमेश्वर द्वारा निर्मित इन सीमाओं के कारण, विभिन्न भूभागों ने जीवित रहने के लिए अलग-अलग वातावरण उत्पन्न किए हैं, और जीवित रहने के लिए ये वातावरण विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों के लिए सुविधाजनक रहे हैं, साथ ही ये जीवित रहने के लिए उन्हें एक स्थान भी उपलब्ध कराते हैं। इस तरह विभिन्न जीवों के जीवित रहने के लिए वातावरण की सीमाओं को विकसित किया गया है। यह दूसरा भाग है जिस पर हम आगे बात करने जा रहे हैं। सर्वप्रथम, पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े कहाँ रहते हैं? क्या वे वन-उपवन में रहते हैं? ये उनके निवास-स्थान हैं। इसलिए, विभिन्न भौगोलिक वातावरण के लिए सीमाएँ स्थापित करने के अलावा, परमेश्वर ने विभिन्न पशु-पक्षियों, मछलियों, कीड़े-मकोड़ों, और सभी पेड़-पौधों के लिए सीमाएँ खींचीं। उसने नियम भी स्थापित किये। विभिन्न भौगोलिक वातावरण के मध्य भिन्नताओं के कारण और विभिन्न भौगोलिक वातावरण की मौजूदगी के कारण, विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों, मछलियों, कीड़े-मकोड़ों, और पेड़-पौधों के पास जीवित रहने के लिए अलग-अलग वातावरण हैं। पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े विभिन्न पेड़-पौधों के बीच रहते हैं, मछलियां पानी में रहती हैं, और पेड़-पौधे भूमि पर उगते हैं। भूमि में विभिन्न क्षेत्र जैसे पर्वत, मैदान और पहाड़ियां शामिल हैं। एक बार पशु-पक्षियों के पास उनके अपने नियत घर हो जाएँ, तो वे इधर-उधर नहीं भटकेंगे। उनके निवास-स्थान जंगल और पहाड़ हैं। अगर कभी उनके निवास-स्थान नष्ट हो जाएँ, तो यह सारी व्यवस्था अराजकता में बदल जाएगी। इस व्यवस्था के अराजक होने के परिणाम क्या होंगे? सबसे पहले किसे नुकसान पहुँचेगा? (मानवजाति को।) मानवजाति को! परमेश्वर द्वारा स्थापित इन नियमों और सीमाओं के अंतर्गत, क्या तुम लोगों ने कोई अजीब-सी घटना देखी है? उदाहरण के लिए, हाथी का मरुस्थल में घूमना। क्या तुम लोगों ने ऐसा कुछ देखा है? यदि ऐसा हुआ, तो यह एक बहुत ही अजीब-सी घटना होगी, क्योंकि हाथी जंगल में रहते हैं, और परमेश्वर ने उनके जीने के लिए यही वातावरण बनाया है। जीने के लिए उनके पास अपना वातावरण है, अपना स्थायी घर है, तो वे इधर-उधर क्यों भागते फिरेंगे? क्या किसी ने शेरों या बाघों को महासागर के तट पर टहलते हुए देखा है? नहीं, तुमने नहीं देखा है। शेरों और बाघों का निवास-स्थान जंगल और पर्वत हैं। क्या किसी ने महासागर की व्हेल या शार्क मछलियों को मरुस्थल में तैरते हुए देखा है? नहीं, तुमने नहीं देखा है। व्हेल और शार्क मछलियां अपना घर महासागर में बनाती हैं। मनुष्य के जीने के वातावरण में, क्या ऐसे लोग हैं जो भूरे भालुओं के साथ रहते हैं? क्या ऐसे लोग हैं जो अपने घरों के भीतर और बाहर हमेशा मोर, या अन्य पक्षियों से घिरे रहते हैं? क्या किसी ने चीलों और जंगली कलहंसों को बन्दरों के साथ खेलते देखा है? (नहीं।) ये सब बहुत ही अजीब घटनाएँ होंगी। तुम लोगों की नज़रों में इन अजीब घटनाओं के विषय में मेरी बात करने की वजह यही है कि मैं तुम लोगों को समझाना चाहता हूँ कि परमेश्वर के द्वारा रची गयी सभी चीज़ों के जीवित रहने के लिए अपने नियम हैं—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे एक ही स्थान में स्थायी रूप से रहते हैं या वे अपने नथुनों से साँस ले सकते हैं या नहीं। परमेश्वर ने इन प्राणियों को सृजित करने के बहुत पहले ही उनके लिये निवास-स्थान, और जीवित रहने के लिए उनके अनुकूल वातावरण बना दिया था। इन प्राणियों के पास जीवित रहने के लिए उनका अपना स्थायी वातावरण, अपना भोजन, अपना निवास-स्थान था और उनके जीवित रहने के लिए उपयुक्त तापमानों से युक्त निर्धारित जगहें थीं। इस तरह वे इधर-उधर भटकते नहीं थे या मानवजाति के जीवन को कमज़ोर या प्रभावित नहीं करते थे। परमेश्वर सभी चीज़ों का प्रबंधन इसी तरह से करता है। वह मानवजाति के जीवित रहने हेतु उत्तम वातावरण प्रदान करता है। सभी चीज़ों के अंतर्गत जीवित प्राणियों में से प्रत्येक के पास जीवित रहने हेतु वातावरण के भीतर जीवन को बनाए रखने वाला भोजन है। उस भोजन के साथ, वे जीवित रहने के लिए अपने पैदाइशी वातावरण से जुड़े रहते हैं; उस प्रकार के वातावरण में, वे परमेश्वर द्वारा स्थापित नियमों के अनुसार निरंतर जीवन-यापन कर रहे हैं, वंश-वृद्धि कर रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं। इस प्रकार के नियमों के कारण, और परमेश्वर के पूर्वनिर्धारण के कारण, सभी चीज़ें मनुष्यजाति के साथ सामंजस्य में रहती हैं और मनुष्यजाति सभी चीज़ों के साथ परस्पर निर्भरता और सह-अस्तित्व में एक साथ रहती है।

परमेश्वर ने सभी चीज़ों की रचना की और उनके लिए सीमाएँ निर्धारित कीं; उनके मध्य उसने सभी प्रकार के जीवित प्राणियों का पालन-पोषण किया। इसी दौरान उसने मनुष्यों के जीवित रहने के लिए विभिन्न साधन भी तैयार किए, अतः तुम देख सकते हो कि मनुष्यों के पास जीवित रहने के लिये बस एक तरीका नहीं है, न ही उनके पास जीवित रहने के लिए एक ही प्रकार का वातावरण है। हमने पहले परमेश्वर के द्वारा मनुष्यों के लिए विभिन्न प्रकार के आहार और जल स्रोतों को तैयार करने के विषय में बात की थी, ये चीज़ें मानवजाति के जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। बहरहाल, इस मानवजाति के सभी लोग अनाज पर ही नहीं जीते। भौगोलिक वातावरण और भूभागों की भिन्नताओं के कारण लोगों के पास ज़िन्दा रहने के लिए अलग-अलग साधन हैं। ज़िन्दा रहने के इन सभी साधनों को परमेश्वर ने तैयार किया है। अतः सभी मनुष्य मुख्य तौर पर खेती में नहीं लगे हुए हैं। अर्थात्, सभी लोग फसल पैदा कर अपना भोजन प्राप्त नहीं करते हैं। यह तीसरा भाग है जिसके बारे में हम बात करने जा रहे हैं : मानवजाति की विभिन्न जीवनशैलियों के कारण सीमाएँ विकसित हुई हैं। तो मनुष्यों के पास और कौन-कौन से प्रकार की जीवनशैलियां हैं? भोजन के विभिन्न स्रोतों के आधार पर और कौन से प्रकार के लोग हैं? कई प्राथमिक प्रकार हैं।

पहला है शिकारी जीवनशैली। इसके बारे में हर कोई जानता है। जो लोग शिकार करके ज़िन्दा रहते हैं वे क्या खाते हैं? (गेम।) वे जंगल के पशु-पक्षियों को खाते हैं। "गेम" या शिकार एक आधुनिक शब्द है। शिकारी इसे शिकार के रूप में नहीं देखते; वे इसे भोजन के रूप में, और अपने दैनिक जीवन आहार के रूप में देखते हैं। उदाहरण के लिए, मानो उन्हें एक हिरण मिल जाता है। उनके लिये हिरण का मिलना बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी किसान को मिट्टी से फसलें मिल जाती हैं। एक किसान मिट्टी से फसल प्राप्त करता है, और जब वह अपनी फसल को देखता है, तो वह खुश होता है और सुकून महसूस करता है। खाने के लिए अनाज के होने से परिवार भूखा नहीं होगा। उसका हृदय सुकून और सन्तुष्टि महसूस करता है। एक शिकारी भी अपनी पकड़ में आए शिकार को देखकर सुकून और संतुष्टि का एहसास करता है, क्योंकि उसे भोजन के विषय में अब कोई चिन्ता नहीं करनी है। अगली बार के भोजन के लिए कुछ तो है, भूखे रहने की ज़रूरत नहीं है। यह ऐसा व्यक्ति है जो जीवन-यापन के लिए शिकार करता है। शिकार पर निर्भर रहने वाले अधिकांश लोग पहाड़ी जंगलों में रहते हैं। वे खेती नहीं करते। वहाँ कृषि योग्य भूमि पाना आसान नहीं है, अतः वे विभिन्न प्रकार के जीवों और शिकार पर ज़िन्दा रहते हैं। यह पहली प्रकार की जीवनशैली है जो सामान्य लोगों से अलग है।

दूसरे प्रकार की जीवनशैली चरवाही है। जो लोग जीविका के लिए मवेशी चराते हैं, क्या वे खेती भी करते हैं? (नहीं।) तो वे क्या करते हैं? वे कैसे जीते हैं? (अधिकांशतः, वे जीवन-यापन के लिए मवेशियों और भेड़ों के झुण्ड चराते हैं, और शीत ऋतु में वे अपने पालतू पशुओं को मारकर खाते हैं। उनका प्रमुख भोजन गाय और भेड़ का मांस होता है, और वे दूध की चाय पीते हैं। यद्यपि चरवाहे, चारों ऋतुओं में व्यस्त रहते हैं, वे अच्छी तरह खाते हैं। उनके पास प्रचुर मात्रा में दूध, दुग्ध-उत्पाद और मांस होता है।) जो लोग जीवन-यापन के लिए पशु चराते हैं वे मुख्य रूप से बीफ और मटन खाते हैं, भेड़ और गाय का दूध पीते हैं, और हवा में लहराते बालों और धूप में चमचमाते चेहरों के साथ खेतों में अपने पशुओं को चराते हुए गाय-बैलों और घोड़ों की सवारी करते हैं। उनके जीवन में आधुनिक जीवन का कोई तनाव नहीं होता। पूरे दिन वे नीले आसमान और घास के मैदानों के व्यापक विस्तार को निहारते हैं। मवेशी चराने वाले लोग घास के मैदानों में रहते हैं और वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी खानाबदोश जीवनशैली को बरकरार रख पाये हैं। हालांकि घास के मैदानों पर जीवन थोड़ा एकाकी होता है, फिर भी यह एक बहुत खुशहाल जीवन है। यह कोई बुरी जीवनशैली नहीं है!

तीसरे प्रकार की जीवनशैली मछली पकड़ने की है। मनुष्यों का एक छोटा-सा समूह ऐसा भी है जो महासागर के समीप या छोटे द्वीपों पर रहता है। वे चारों ओर पानी से घिरे हुए हैं, समुद्र के सामने हैं। ये लोग आजीविका के लिए मछली पकड़ते हैं। जो लोग जीविका के लिए मछली पकड़ते हैं, उनके भोजन का स्रोत क्या है? उनके भोजन के स्रोतों में सब प्रकार की मछलियाँ, समुद्री भोजन, और समुद्र के अन्य उत्पाद शामिल हैं। जो लोग जीविका के लिए मछली पकड़ते हैं वे जमीन में खेती-बाड़ी नहीं करते, बल्कि इसके बजाय हर दिन मछली पकड़ने में बिताते हैं। उनके प्रमुख भोजन में विभिन्न प्रकार की मछलियां और समुद्र के उत्पाद शामिल हैं। वे कभी-कभार चावल, आटा और दैनिक ज़रूरतों के लिए इन चीज़ों का व्यापार करते हैं। यह उन लोगों की एक अलग प्रकार की जीवनशैली है, जो पानी के समीप रहते हैं। जो लोग पानी के समीप रहते हैं वे अपने आहार के लिये पानी पर निर्भर रहते हैं और मछली उनकी जीविका होती है। मछली पकड़ना उनके भोजन का स्रोत ही नहीं, बल्कि उनकी जीविका का भी स्रोत है।

जीविका के लिए खेती-बाड़ी के अलावा, मानवजाति मुख्य रूप से तीन अलग-अलग जीवनशैलियों पर निर्भर है, जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है। मवेशी चराने, मछली पकड़ने, और शिकार से जीवन निर्वाह करने वाले केवल कुछ समूहों को छोड़कर, अधिकतर लोग जीविका के लिए खेती-बाड़ी करते हैं। और ऐसे लोग जो जीविका के लिए खेती-बाड़ी करते हैं, उन्हें किस चीज की आवश्यकता है? उन्हें खेत की आवश्यकता है। ऐसे लोग जीविका के लिये पीढ़ियों से फसल उगाते रहे हैं। चाहे वे सब्‍ज़ियाँ, फल या अनाज उगाएँ, किन्तु वे सभी पृथ्वी से भोजन और अपनी दैनिक ज़रुरतों को प्राप्त करते हैं।

इन अलग-अलग मानवीय जीवनशैलियों से जुड़ी मूल शर्तें क्या हैं? जिस वातावरण ने उनका जीवित रहना संभव बनाया है, क्या उसे मूलभूत रूप से संरक्षित करने की आवश्यकता नहीं है? अर्थात, यदि शिकार के भरोसे रहने वालों को पहाड़ी जंगलों या पशु-पक्षियों को खोना पड़े, तो उनकी जीविका का स्रोत ख़त्म हो जाएगा। इस जाति और प्रकार के लोग किस दिशा में जाएँगे, यह अनिश्चित हो जाएगा और वे लुप्त भी हो सकते हैं। और ऐसे लोग जो अपनी जीविका के लिए मवेशी चराते हैं, वे किस चीज पर आश्रित हैं? वास्तव में वे जिस पर निर्भर हैं वह उनके पालतू पशुओं का झुण्ड नहीं है, बल्कि वह वातावरण है, जिसमें उनके पालतू पशुओं का झुण्ड जीवित रहता है—घास के मैदान। यदि कहीं कोई घास के मैदान नहीं होते, तो वे अपने पालतू पशुओं के झुण्ड को कहाँ चराते? मवेशी और भेड़ क्या खाते? पालतू पशुओं के झुण्ड के बिना, इन खानाबदोश लोगों के पास कोई जीविका नहीं होती। अपनी जीविका के स्रोत के बिना, ऐसे लोग कहाँ जाते? उनके लिए ज़िन्दा रहना बहुत ही कठिन हो जाता; उनके पास कोई भविष्य नहीं होता। अगर पानी के स्रोत नहीं होते, और नदियां और झीलें सूख जातीं, तो क्या वे सभी मछलियां, जो अपनी जिंदगी के लिए पानी पर निर्भर हैं, तब भी जीवित रहतीं? वे मछलियां जीवित नहीं रहतीं। वे लोग जो अपनी जीविका के लिए उस जल और उन मछलियों पर आश्रित हैं, क्या वे जीवित रह पाते? यदि उनके पास भोजन नही होता, यदि उनके पास अपनी जीविका का स्रोत नहीं होता, तो क्या वे लोग जीवित रह पाते? यदि उनकी जीविका या उनके जीवित रहने में कोई समस्या आती है, तो वे जातियाँ आगे अपना वंश नहीं चला पातीं। वे लुप्त हो सकती थीं, पृथ्वी से मिट गई होतीं। और जो लोग अपनी जीविका के लिए खेती-बाड़ी करते हैं यदि वे अपनी भूमि खो देते, फसलें नहीं उगा पाते, और विभिन्न पेड़-पौधों से अपना भोजन प्राप्त नहीं कर पाते तो इसका परिणाम क्या होता? भोजन के बिना, क्या लोग भूख से मर नहीं जाते? यदि लोग भूख से मर रहे हों, तो क्या मानवजाति की उस नस्ल का सफाया नहीं हो जाएगा? अतः विभिन्न वातावरण को बनाए रखने के पीछे यही परमेश्वर का उद्देश्य है। विभिन्न वातावरण और पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने, और प्रत्येक वातावरण के अंतर्गत विभिन्न जीवित प्राणियों को बनाए रखने में परमेश्वर का सिर्फ एक ही उद्देश्य है—और वह है हर तरह के लोगों का पालन-पोषण करना, विभिन्न भौगोलिक वातावरण में जीने वाले लोगों का पालन-पोषण करना।

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