स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VIII

परमेश्वर सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत है (II) भाग दो

जीवनयापन का मूलभूत वातावरण जिसकी रचना परमेश्वर मानवजाति के लिए करता है

3. आवाज़

तीसरी चीज़ है आवाज़। साथ ही यह कुछ ऐसा भी है जिसे मनुष्यों के लिए एक सामान्य सजीव वातावरण में होना चाहिए। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की थी तब आवाज़ अस्तित्व में आया था। उस समय परमेश्वर उससे बहुत अच्छी तरह से निपटा। यह कुछ ऐसा है जो परमेश्वर के लिए और मानवजाति के जीवित रहने के लिए भी अति महत्वपूर्ण है। यदि परमेश्वर ने आवाज़ के मसले को अच्छे से संभाला न होता, तो यह मानवजति के जीवित रहने के लिए एक बहुत बड़ी बाधा बन जाता। दूसरे शब्दों में यह कि इसका मनुष्य के शरीर एवं उसके जीवन पर बहुत जरूरी प्रभाव पड़ता, इस हद तक कि मानवजाति ऐसे वातावरण में जीवित रहने के काबिल नहीं होता। ऐसा भी कहा जा सकता है कि सभी जीवित प्राणी ऐसे वातावरण में जीवित नहीं रह सकते हैं। अतः यह चीज़ क्या है? यह आवाज़ है। परमेश्वर ने हर एक चीज़ को बनाया है, और हर एक चीज़ परमेश्वर के हाथों में जीवित रहता है। परमेश्वर की निगाहों में, सभी चीज़ें गतिमान एवं जीवित हैं। परमेश्वर ने सभी चीज़ों को बनाया है, और उनमें से हर एक के अस्तित्व का मूल्य एवं अर्थ है। अर्थात्, उन सभी की उनके अस्तित्व के पीछे एक जरूरत है। फिर भी, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई सभी चीज़ों के मध्य, प्रत्येक चीज़ के पास एक जीवन है; चूँकि वे सभी जीवित एवं गतिमान हैं, वे स्वभाविक रीति से आवाज़ उत्पन्न करेंगे। उदाहरण के लिए, पृथ्वी लगातार घूम रही है, सूर्य निरन्तर घूम रहा है, और चाँद भी लगातार घूम रहा है। सभी चीज़ों के जीवन एवं उनकी गति में निरन्तर आवाज़ उत्पन्न हो रहा है। पृथ्वी की चीज़ें भी निरन्तर आगे बढ़ रही हैं और विकसित हो रही हैं और गतिमान हैं। उदाहरण के लिए, पहाड़ों के आधार खिसक रहे हैं और बदल रहे हैं, जबकि समुद्र की गहराईयों में सभी जीवित चीज़ें गतिमान हैं और तैर रही हैं। परमेश्वर की निगाहों में ये जीवित चीज़ें एवं सभी चीज़ें लगातार, सामान्य रूप से और नियमित रूप से गतिमान हैं। अतः इन चीज़ों की छलयुक्त बढ़ौतरी और विकास और गति क्या लेकर आती है? शक्तिशाली आवाज़ों को। पृथ्वी के अलावा भी, सभी प्रकार के ग्रह लगातार गतिमान हैं, और इन ग्रहों पर जीवित प्राणी एवं जीवाश्म भी निरन्तर बढ़ रहे हैं, और विकसित हो रहे हैं एवं गतिमान हैं। अर्थात्, सभी चीज़ें जिनमें जीवन है और जिनमें जीवन नहीं है वे परमेश्वर की निगाहों में निरन्तर आगे बढ़ रहे हैं, और जब सभी प्रकार की चीज़ें गतिमान होती हैं तो उस समय वे आवाज़ भी उत्पन्न करते हैं। परमेश्वर ने इन आवाज़ों का भी बन्दोबस्त किया है। क्यों? तुम लोगों को यह जानना चाहिए, सही है? जब तू एक हवाई जहाज़ के करीब जाता है, तो हवाई जहाज़ की गरजती हुई आवाज़ तेरे साथ क्या करती है? (कान बहरे हो जाएँगे।) क्या यह लोगों की सुनने की शक्ति को नुकसान पहुँचाएगी? क्या उनका हृदय उस आवाज़ का सामना कर पाएगा? (नहीं।) कुछ लोग जिनके पास कमज़ोर हृदय है वे उसे सहन नहीं कर सकेंगे। हाँ वास्तव में, जिनके पास मज़बूत हृदय है वे भी इसे सहन नहीं कर पाएँगे यदि यह काफी देर तक होता है। दूसरे शब्दों में, मनुष्य के शरीर पर आवाज़ का असर, चाहे वह कानों पर हो या हृदय पर, हर एक व्यक्ति के लिए बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है, और ऐसी आवाजें जो बहुत ही ऊँची हैं वे लोगों को नुकसान पहुँचाएँगी। इसलिए, जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की और उसके बाद जब उन्होंने सामान्य रीति से कार्य करना शुरू कर दिया, तब परमेश्वर ने इन आवाज़ों को—सभी गतिमान चीज़ों की आवाजें—उचित उपचार के जरिए स्थापित किया। यह एक जरूरी विचार भी है जो परमेश्वर के पास था जब वह मनुष्य के लिए एक वातावरण बना रहा था।

सबसे पहले, पृथ्वी की सतह से वायुमण्डल की ऊँचाई आवाज़ों को दूर करेगी और रोकेगी। साथ ही, भूमि के बीच अन्तर का आकार, अर्थात्, मिट्टी में खालीपन का आकार, वे भी आवाज़ को कुशलता से सँभालेंगी और प्रभावित करेंगी। फिर वहाँ विभिन्न भौगोलिक वातावरणों में नदियों का संगम है, वो भी आवाज़ को प्रभावित करते हैं। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर कुछ आवाज़ों से छुटकारा पाने के लिए कुछ निश्चित पद्धतियों का इस्तेमाल करता है, ताकि मनुष्य एक ऐसे वातावरण में ज़िन्दा रह सकें जिसमें उनके कान सुन सकें और सह सकें। अन्यथा आवाज़ मानवजाति के जीवित रहने में एक बड़ी रूकावट लाएँगे, और यह उनके जीवनों में एक बड़ी परेशानी पैदा करेंगे। यह एक बड़ी समस्या है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर ने भूमि, वायुमण्डल और विभिन्न प्रकार की भौगोलिक वातावरण को बनाते समय बहुत ध्यान रखा। इन सभी चीज़ों में परमेश्वर की बुद्धि निहित है। इसके विषय में मानवजाति की समझ को बहुत अधिक विस्तृत होने की आवश्यकता नहीं है। उनको बस यह जानने की आवश्यकता है कि इसमें परमेश्वर का कार्य शामिल है। परमेश्वर के द्वारा सभी चीज़ों की सृष्टि वास्तव में मानवजाति के जीवित रहने के लिए था। अब तुम लोग मुझे बताओ, क्या आवाज़ का कुशलता से उपयोग करने के लिए परमेश्वर का कार्य जरूरी था? क्या तुम लोग परमेश्वर के द्वारा यह करने की आवश्यकता को महसूस नहीं कर सकते हो? वह कार्य जो परमेश्वर ने किया था वह उचित रीति से आवाज़ का कुशलतापूर्वक उपयोग था। उसने ऐसा मानवजाति के सजीव वातावरण और उनके सामान्य जीवनों को बरकरार रखने के लिए किया था। क्या यह कार्य जरूरी था? (हाँ।) यदि यह कार्य जरूरी था, तो इस दृष्टिकोण से, क्या ऐसा कहा जा सकता है कि परमेश्वर ने सभी चीज़ों की आपूर्ति के लिए ऐसी पद्धति का उपयोग किया था। परमेश्वर ने मानवजाति को एक शांत वातावरण प्रदान किया था और एक ऐसा शांत वातावरण बनाया गया था, ताकि मानवजाति का शरीर एक ऐसे वातावरण में बिल्कुल सामान्य रीति से रह सके, और जिससे मानवजाति के जीवन में कोई दखल न हो और वह अस्तित्व में बना रहे और सामान्य रूप से जीवन बिताए। क्या यह एक तरीका नहीं है जिसके तहत परमेश्वर मनुष्यों के लिए आपूर्ति करता है? (हाँ।) क्या यह कार्य जो परमेश्वर ने किया अति महत्वपूर्ण था? (हाँ।) यह बहुत जरूरी था। अतः तुम लोग इसकी तारीफ कैसे करते हो? भले ही तुम लोग महसूस नहीं कर सकते हो कि यह परमेश्वर का कार्य था, और न ही तुम लोग जान सकते हो कि उस समय परमेश्वर ने इसे कैसे किया था, क्या तुम लोग अभी भी परमेश्वर के द्वारा इस कार्य को करने की आवश्यकता को महसूस कर सकते हो? क्या तुम लोग परमेश्वर की बुद्धिमत्ता या उस देखरेख और विचार का एहसास कर सकते हो जिन्हें वह इसमें डालता है? (हाँ।) बस उसे महसूस करने के योग्य होना ही काफी है। यह पर्याप्त है। बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें परमेश्वर ने सभी चीज़ों के मध्य किया है जिन्हें लोग महसूस नहीं कर सकते हैं और उनके लिए इन्हें देखना कठिन है। मेरे द्वारा यहाँ इसका जिक्र करने का उद्देश्य है कि बस तुम लोगों को परमेश्वर के कार्यों के बारे में जानकारी दूँ और इस प्रकार तुम लोग परमेश्वर को जान सको। ये संकेत तुम लोगों को परमेश्वर के कार्यों को बेहतर ढंग से जानने एवं समझने देते हैं।

4. प्रकाश

चौथी चीज़ लोगों की आँखों से सम्बन्धित है—अर्थात् प्रकाश। यह बहुत ही आवश्यक है। जब तू चमकता हुआ प्रकाश देखता है, और जब इस प्रकाश की चमक एक निश्चित सीमा तक पहुँच जाती है, तो तेरी आँखें अन्धी हो जाएँगी। आखिरकार, मानवीय आँखें शरीर की आँखें हैं। वे नुकसान से प्रतिरक्षित नहीं हैं। क्या किसी में हिम्मत है कि वह सीधे सूर्य को घूरे? (नहीं।) क्या किसी ने कोशिश की है? कुछ लोगों ने इसकी कोशिश की है। तू सूर्य की किरणों से बचाने वाले चश्मे को पहनकर ऐसा कर सकता है, सही है? इसमें उपकरणों की सहायता की आवश्यकता होती है। बिना किसी उपकरण के, मनुष्य की आँखें सीधे सूर्य को देखने की हिम्मत नहीं कर सकती हैं। मनुष्यों के पास ऐसी योग्यता नहीं है। परमेश्वर ने सूर्य को मानवजाति के लिए प्रकाश पहुँचाने के लिए सृजा था, परन्तु उसने इस प्रकाश का भी कुशलता से उसका प्रयोग किया था। परमेश्वर ने सूर्य को बनाने के बाद उसकी उपेक्षा नहीं की थी और उसे यूँ ही नहीं छोड़ा था। "मनुष्य की आँखें इसका सामना कर सकती हैं या नहीं इसकी परवाह कौन करता है!" परमेश्वर उस तरह काम नहीं करता है। वह बहुत कोमलता के साथ कार्य करता है और सभी पहलुओं पर विचार करता है। परमेश्वर ने मानवजाति को आँखें दी हैं ताकि वे देख सकें, किन्तु परमेश्वर ने चमक की सीमा भी बनाई है जिसके भीतर वे देख सकते हैं। यह काम नहीं करेगा यदि पर्याप्त प्रकाश नहीं है। यदि इतना अंधकार है कि लोग अपने सामने अपने हाथ को नहीं देख सकते हैं, तो उनकी आँखें अपनी कार्य प्रणाली को खो देंगी और किसी काम की न होंगी। लोगों की आँखें ऐसी जगहों का सामना नहीं कर पाएँगी जो बहुत ही अधिक चमकीले हैं, और साथ ही वे कुछ भी देखने के योग्य नहीं होंगी। अतः उस वातावरण में जहाँ मनुष्य रहता है, परमेश्वर ने उन्हें प्रकाश की वो मात्रा दी है जो मानवीय आँखों के लिए उचित है। यह प्रकाश लोगों की आँखों को नुकसान या क्षति नहीं पहुँचाएगा। इसके अतिरिक्त, यह लोगों की आँखों की कार्य प्रणाली को बन्द नहीं करेगा, और यह गारंटी दे सकता है कि लोगों की आँखें उन सब चीज़ों को साफ साफ देखने के योग्य होंगी जिन्हें उन्हें देखना चाहिए। इसी लिए परमेश्वर ने उपयुक्त मात्रा में बादलों को पृथ्वी और सूर्य के चारों ओर फैला दिया है, और हवा का घनत्व भी सामान्य रीति से उस प्रकाश को छानने के योग्य है जो लोगों की आँखों एवं त्वचा को नुकसान पहुँचा सकता है। यह आपस में जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के द्वारा सृजी गई पृथ्वी का रंग भी सूर्य की रोशनी और हर प्रकार की रोशनी को परावर्तित करता है और प्रकाश में उजाले के उस भाग को दूर करता है जो मनुष्य की आँखों को बेचैन कर देती हैं। उस तरह से, लोगों को बाहर घूमने और अपने जीवन को बिता पाने के लिए हमेशा अत्यंत काले सूर्यरोधी चश्मे पहनने की आवश्यकता नहीं है। सामान्य परिस्थितियों के अन्तर्गत, मनुष्य की आँखें अपनी दृष्टि के दायरे के भीतर चीज़ों को देख सकती हैं और प्रकाश के द्वारा विघ्न नहीं डाला जाएगा। अर्थात्, यह प्रकाश न तो बहुत अधिक चुभनेवाला और न ही बहुत अधिक धुँधला हो सकता हैः यदि यह बहुत धुँधला है, तो लोगों की आँखों को क्षति पहुँचेगी और इससे पहले कि उनकी आँखें काम करना बन्द कर दें वे उन्हें बहुत लम्बे समय तक उपयोग नहीं कर पाएँगे; यदि यह बहुत अधिक चमकीला है, तो लोगों की आँखें इसका सामना नहीं कर पाएँगी, और उनकी आँखें 30 से 40 वर्ष या 40 से 50 वर्ष के भीतर बेकार हो जाएँगी। दूसरे शब्दों में, यह प्रकाश देखने के लिए मनुष्य की आँखों के लिए उपयुक्त है, और प्रकाश के द्वारा मनुष्य की आँखों को जो नुकसान होता था उसे परमेश्वर के द्वारा विभिन्न तरीकों के जरिए कम किया गया है। इस पर ध्यान दिए बगैर कि प्रकाश मनुष्य की आँखों के लिए लाभ लाता है या नुकसान, यह लोगों की आँखों के लिए उनके जीवन के अंत तक बने रहने देने के लिए पर्याप्त है। सही है? (हाँ।) क्या परमेश्वर ने पूरी तरह इस पर सोच-विचार नहीं किया है? परन्तु जब शैतान, वह दुष्ट, चीज़ों को करता है, तो वह इनमें से किसी पर भी विचार नहीं करता है। वह बिल्कुल भी परवाह नहीं करता है कि कुछ चीज़ लोगों को नुकसान पहुँचाएगी। उसने इस पारिस्थितिक वातावरण को नुकसान पहुँचाने के लिए बहुत सारी चीज़ें की हैं, और अब लोगों ने उसमें से कुछ को देख लिया है। प्रकाश बहुत चमकीला है या बहुत धुँधला है—वह मानवजाति की भावनाओं पर बिल्कुल भी विचार नहीं करता है।

परमेश्वर ने मानवजाति के जीवित रहने की अनुकूलता को बढ़ाने हेतु मानव शरीर के सभी पहलुओं के लिए इन चीज़ों को किया है—देखना, सुनना, चखना, साँस लेना, एहसास करना ताकि वे सामान्य रूप से जी सकें और निरन्तर जी सकें। परमेश्वर के द्वारा बनाया गया ऐसा मौजूदा सजीव वातावरण ही वह सजीव वातावरण है जो मानवजाति के जीवित रहने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त और हितकारी है। कुछ लोग सोच सकते हैं कि यह बहुत ज़्यादा नहीं है और यह सब कुछ बहुत ही सामान्य है। आवाज़, प्रकाश और वायु ऐसी चीज़ें हैं जिनके विषय में लोग सोचते हैं कि वे उनके साथ पैदा हुए हैं, वे ऐसी चीज़ें हैं जिनका आनन्द वे पैदा होने के समय से ही उठा सकते हैं। परन्तु जो कुछ परमेश्वर ने तेरे द्वारा इन चीज़ों का आनन्द लिए जाने के पीछे किया था वह कुछ ऐसा है जिन्हें तुझे जानने एवं समझने की आवश्यकता है। इस पर ध्यान दिए बगैर कि तू यह महसूस करता है या नहीं कि इन चीज़ों को समझने या जानने की कोई आवश्यकता है, संक्षेप में, जब परमेश्वर ने इन चीज़ों की सृष्टि की, तब उसने बहुत सोच विचार किया था, उसके पास एक योजना थी, उसके पास निश्चित युक्तियाँ थीं। उसने सरलता से, अकस्मात ही या बिना सोचे विचारे मानवजाति को ऐसे सजीव वातावरण में नहीं रखा था। तुम लोग सोच सकते हो कि इनमें से हर एक चीज़ जिसके विषय में मैंने कहा है वह कोई बड़ी बात नहीं है, परन्तु मेरे दृष्टिकोण में, प्रत्येक चीज़ जो परमेश्वर ने मानवजाति को प्रदान की है वह मानवता के ज़िन्दा रहने के लिए जरूरी है। इसमें परमेश्वर का कार्य है।

5. वायु का बहाव

पाँचवीं चीज़ क्या है? यह चीज़ प्रत्येक मनुष्य के जीवन से बहुत ज़्यादा जुड़ी हुई है, और यह कुछ ऐसा है जिसके बगैर मानव शरीर इस भौतिक संसार में जीवित नहीं रह सकता है। यह चीज़ वायु का बहाव है। "वायु का बहाव" एक शब्द है जिसे शायद सभी लोग समझते हैं। अतः वायु का बहाव क्या है? अपने स्वयं के शब्दों में समझाने की कोशिश करो। (वायु के बहाव का अर्थ है हवा का बहना।) तुम लोग ऐसा कह सकते हो। हवा के बहने को "वायु का बहाव" कहते हैं। क्या कोई और व्याख्याएँ है? "वायु के बहाव" शब्द का अर्थ क्या है? वायु का बहाव एक हवा है जिसे मानवीय आँखें देख नहीं सकती हैं। यह एक ऐसा तरीका भी है जिसके तहत गैस बहती है। यह भी सही है। किन्तु वायु का बहाव क्या है जिसके विषय में हम यहाँ पर बात कर रहे हैं? जैसे ही मैं कहूँगा तुम लोग समझ जाओगे। पृथ्वी घूमती हुई पहाड़ों, महासागरों और सभी चीज़ों को उठाए रहती है, और जब यह घूमती है तो उसमें गति होती है। यद्यपि तुम किसी परिक्रमा को महसूस नहीं कर सकते हो, फिर भी उसकी परिक्रमा वास्तव में विद्यमान है। उसकी परिक्रमा क्या लेकर आती है? जब एक व्यक्ति दौड़ता है तो क्या होता है? जब तुम दौड़ते हो तो तुम्हारे कानों के आस पास हवा होती है? (हाँ।) बस यही। यदि जब तुम दौड़ते हो तो हवा पैदा हो सकती है, तो वहाँ हवा की शक्ति क्यों नहीं हो सकती है जब पृथ्वी परिक्रमा करती है? जब पृथ्वी परिक्रमा करती है, तब सभी चीज़ें गतिमान होती हैं। यह गतिमान होती है और एक निश्चित गति से परिक्रमा करती है, जबकि पृथ्वी पर सभी चीज़ें निरन्तर आगे बढ़ रही हैं और विकसित हो रही हैं। इसलिए, एक निश्चित गति से गतिमान होने से स्वाभाविक रूप से वायु का बहाव उत्पन्न होगा। वायु का बहाव ऐसा ही है। क्या यह वायु का बहाव कुछ निश्चित हद तक मानव शरीर को प्रभावित करता है? (हाँ।) यह करेगा। यदि सारी पृथ्वी समतल भूमि से भरी होती, और जब पृथ्वी एवं सभी चीज़ें एक निश्चित गति से परिक्रमा करती, तो छोटी सी मानवीय देह हवा के इस बल को सहन नहीं कर पाती। ताईवान और होंग कोंग दोनों देशों में तूफान आते हैं। वे तूफान उतने प्रबल नहीं हैं, परन्तु जब वे आते हैं, लोग स्थिर खड़े नहीं हो सकते हैं और उन्हें हवा में चलने में कठिनाई होती है। यहाँ तक कि एक कदम लेने में भी मुश्किल होती है। यह एक माध्यम है जिससे वायु का बहाव मानवजाति को प्रभावित कर सकता है। यदि सारी पृथ्वी समतल भूमि से भरी होती, और जब पृथ्वी परिक्रमा करती तो जो वायु का बहाव उत्पन्न होता वह कुछ ऐसा नहीं होता जिसका सामना मानव शरीर कर सकता था। इसे संभालना बहुत ही कठिन होता। यदि मामला ऐसा होता, तो यह वायु का बहाव न केवल मानवजाति के लिए क्षति लेकर आता, बल्कि विध्वंस भी लेकर आता। कोई भी ऐसे वातावरण में ज़िन्दा बचने के योग्य नहीं होगा। इसी लिए ऐसे वायु के बहाव का समाधान करने के लिए परमेश्वर विभिन्न भौगोलिक वातावरणों को इस्तेमाल करता है, वह उनकी दिशा, गति और बल को परिवर्तित करने के द्वारा एवं विभिन्न वातावरणों के जरिए ऐसे वायु के बहावों को कमज़ोर करता है। इसी लिए लोग विभिन्न भौगोलिक वातावरणों को देख सकते हैं, जैसे पहाड़, पर्वत मालाएँ, समतल भूमि, पहाड़ियाँ, घाटियाँ, तराईयाँ, पठार एवं नदियाँ। परमेश्वर वायु के बहाव की गति, दिशा और बल को परिवर्तित करने के लिए इन विभिन्न भौगोलिक वातावरणों को काम में लाता है, वह ऐसी पद्धतियों का इस्तेमाल करके उसे घटाता है एवं कुशलता से उसका उपयोग करता है जिससे वह एक उचित वायु गति, वायु दिशा और वायु बल बन जाए, ताकि मनुष्यों के पास एक सामान्य सजीव वातावरण हो सके। कुछ ऐसा करना मनुष्यों के लिए कठिन प्रतीत होता है, किन्तु यह परमेश्वर के लिए आसान है क्योंकि वह सभी चीज़ों का अवलोकन करता है। उसके लिए मानवजाति के लिए उपयुक्त वायु के बहाव के साथ एक वातावरण बनाना बहुत ही सरल है और बहुत ही आसान है। इसलिए, परमेश्वर के द्वारा बनाए गए एक ऐसे वातावरण में, सभी चीज़ों के मध्य हर चीज़ एवं प्रत्येक चीज़ अति आवश्यक है। उन सभी के अस्तित्व का महत्व एवं आवश्यकता है। फिर भी, शैतान और भ्रष्ट मानवजाति के पास ऐसा दर्शनज्ञान नहीं है। वे लगातार नष्ट होते रहते हैं और विकसित होते रहते हैं, पहाड़ों को समतल भूमि बनाने के लिए व्यर्थ स्वप्न देखते रहते हैं, घाटियों को भरते रहते हैं, और सीमेंट के जंगल बनाने के लिए समतल भूमि में गगनचुम्बी इमारतें बनाते रहते हैं। यह परमेश्वर की आशा है कि मानवजाति प्रसन्नता से रहे, प्रसन्नता से प्रगति करे, और प्रत्येक दिन को उस उपयुक्त वातावरण में प्रसन्नता से बिताए जिसे उसने उनके लिए बनाया है। इसी लिए जब मानवजाति के लिए सजीव वातावरण के प्रबंधन की बात आती है तो परमेश्वर कभी असावधान नहीं रहा है। तापमान से लेकर वायु तक, आवाज़ से लेकर प्रकाश तक, परमेश्वर ने जटिल योजनाएँ बनाई हैं और जटिल समायोजन किए हैं, जिससे मानवजाति का सजीव वातावरण और उनका शारीर प्राकृतिक स्थितियों की ओर से किसी विघ्न के अधीन नहीं होगा, और उसके बजाए मानवजाति जीवित रहने और सभी चीज़ों के मध्य शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के साथ सामान्य रूप से बहुगुणित होने और जीने के योग्य होगा। इन सबको परमेश्वर के द्वारा सभी चीज़ों और मानवजाति को प्रदान किया गया है।

जिस तरह से उसने मनुष्य के जीवित रहने के लिए इन पाँच मूल स्थितियों से व्यवहार किया था, उससे क्या तुम, मानवजाति के लिए परमेश्वर की आपूर्ति को देख सकते हो? (हाँ।) दूसरे शब्दों में परमेश्वर ने मनुष्य के जीवित रहने के लिए सभी पाँच मूल स्थितियों को बनाया था। उसी समय, परमेश्वर इन चीज़ों को कायम और नियन्त्रित भी कर रहा है, और अब भी, मानवजाति के हज़ारों सालों से अस्तित्व में रहने के बाद, परमेश्वर अभी भी निरन्तर उनके सजीव वातावरण को बदल रहा है, और मानवजाति के लिए बेहतरीन एवं बिल्कुल उपयुक्त वातावरण प्रदान कर रहा है ताकि उनके जीवन को सामान्य रीति से बरकरार रखा जा सके। इसे कब तक कायम रखा जा सकता है? दूसरे शब्दों में, परमेश्वर कितने लम्बे समय तक ऐसे वातावरण को प्रदान करेगा? जब तक परमेश्वर अपने प्रबन्धन कार्य को पूर्ण न कर ले। तब, परमेश्वर मानवजाति के सजीव वातावरण को बदल देगा। यह उन्हीं पद्धतियों के द्वारा भी हो सकता है, या यह अलग अलग पद्धतियों के द्वारा हो सकता है, परन्तु अब जिसे लोगों को वास्तव में जानने की आवश्यकता है वह है कि परमेश्वर लगातार मानवजाति की जरूरतों की आपूर्ति कर रहा है, मानवजाति के सजीव वातावरण का प्रबन्ध कर रहा है, और मानवजाति के सजीव वातावरण को बचारहा है, उनकी सुरक्षा कर रहा है और उसे बरकरार रख रहा है। यह ऐसे वातावरण के कारण ही है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग इस तरह से सामान्य रीति से जी सकते हैं और परमेश्वर के उद्धार एवं ताड़ना एवं न्याय को स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर के शासन के कारण सभी चीज़ें निरन्तर अस्तित्व में बनी हुई हैं, जबकि इस रीति से परमेश्वर की आपूर्ति के कारण समूची मानवजाति लगातार आगे बढ़ रही है।

क्या इस भाग ने जिसके विषय में मैंने बस अभी—अभी चर्चा की है तुम लोगों को कुछ नए विचार दिये हैं? क्या अब तुम लोग परमेश्वर एवं मानवजाति के बीच के बड़े अन्तर का आभास करते हो? सभी चीज़ों का स्वामी कौन है? क्या मनुष्य है? (नहीं।) तो क्या तुम लोग जानते हो कि जिस प्रकार परमेश्वर और मनुष्य सभी चीज़ों के साथ व्यवहार करते हैं उनके बीच क्या अन्तर है? (परमेश्वर सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है और सभी चीज़ों का बंदोबस्त करता है, जबकि मनुष्य उन सबका आनन्द उठाता है।) क्या तुम लोग उन वचनों से सहमत हो? (हाँ।) परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में सबसे बड़ा अन्तर है कि परमेश्वर सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है और सभी चीज़ों की आपूर्ति करता है। परमेश्वर प्रत्येक चीज़ का स्रोत है, और मानवजाति सभी चीज़ों का आनन्द उठाता है जबकि परमेश्वर उनकी आपूर्ति करता है। दूसरे शब्दों में, मानवजाति तब सभी चीज़ों का आनन्द उठाता है जब वह उस जीवन का स्वीकार कर लेता है जिसे परमेश्वर सभी चीज़ों को प्रदान करता है। मानवजाति परमेश्वर के द्वारा सभी चीज़ों की सृष्टि के परिणामों का आनन्द उठाता है, जबकि परमेश्वर स्वामी है। सही है? तो सभी चीज़ों के दृष्टिकोण से, परमेश्वर और मानवजाति के बीच क्या अन्तर है? परमेश्वर सभी चीज़ों की बढ़ौतरी के श्रेणियों को साफ साफ देख सकता है, और सभी चीज़ों की बढ़ौतरी के नमूनों को नियन्त्रित करता है और उन पर शासन करता है। अर्थात्, सभी चीज़ें परमेश्वर की दृष्टि में हैं और उसके निरीक्षण के दायरे के भीतर हैं। क्या मानवजाति सभी चीज़ों को देख सकता है? (नहीं।) जो मानवजाति देखता है वह सीमित है। तुम नहीं कह सकते हो कि "सभी चीज़ें"—वे ही हैं जिन्हें वे अपनी आँखों के सामने देखते हैं। यदि तुम इस पर्वत पर चढ़ते हो, तो जो तुम देखते हो वह यह पर्वत है। पर्वत के उस पार क्या है तुम उसे नहीं देख सकते गो। यदि तुम समुद्र के किनारे जाते हो, तो तुम महासागर के इस भाग को देखते हो, परन्तु तुम नहीं जानते हो कि महासागर का दूसरा भाग किसके समान है। यदि तुम इस जंगल में आते हो, तो तुम उन पेड़ पौधों को देख सकते हो जो तुम्हारी आँखों के सामने और तुम्हारे चारों ओर हैं, किन्तु जो कुछ और आगे है उसे तुम नहीं देख सकते हो। मनुष्य उन स्थानों को नहीं देख सकते हैं जो अधिक ऊँचे, अधिक दूर और अधिक गहरे हैं। वे वह सब कुछ जो उनकी आँखों के सामने हैं और उनकी दृष्टि के भीतर है उन्हें ही देख सकते हैं। यद्यपि मनुष्य एक वर्ष की चार ऋतुओं के श्रेणियों और सभी चीज़ों की बढ़ौतरी के श्रेणियों को जानता है, फिर भी वे सभी चीज़ों का प्रबन्ध करने या उन पर शासन करने में असमर्थ है। दूसरे रूप में, जिस तरह से परमेश्वर सभी चीज़ों को देखता है वह ऐसा है जैसे परमेश्वर एक मशीन को देखता है जिसे उसने व्यक्तिगत रीति से बनाया है। वह हर एक तत्व को बहुत ही अच्छी रीति से जानता है। उसके सिद्धांत क्या हैं, उसके नमूने क्या हैं, और उसका उद्देश्य क्या है—परमेश्वर इन सभी चीज़ों को सरलता एवं स्पष्टता से जानता है। इस प्रकार परमेश्वर परमेश्वर है, और मनुष्य मनुष्य है! भले ही मनुष्य लगातार विज्ञान एवं सभी चीज़ों के नियमों पर अनुसन्धान करता रहे, फिर भी यह एक सीमित दायरे में होता है, जबकि परमेश्वर सभी चीज़ों को नियन्त्रित करता है। मनुष्य के लिए, यह असीमित है। यदि मनुष्य किसी छोटी सी चीज़ पर अनुसन्धान करता है जिसे परमेश्वर ने किया था, तो वे उस पर अनुसन्धान करते हुए बिना किसी सच्चे परिणाम को हासिल किए अपने पूरे जीवन को बिता सकते हैं। इसीलिए यदि तुम ज्ञान का इस्तेमाल करते हो और परमेश्वर का अध्ययन करने के लिए जो कुछ भी तुमने सीखा है उसे इस्तेमाल करते हो, तो तुम कभी भी परमेश्वर को जानने या समझने के योग्य नहीं होगे। किन्तु यदि तुम सत्य के मार्ग का उपयोग करते हो और परमेश्वर को खोजते हो, और परमेश्वर को जानने के दृष्टिकोण से परमेश्वर की ओर देखते हो, तो एक दिन तुम स्वीकर करोगे कि परमेश्वर के कार्य और उसकी बुद्धि हर जगह है, और तुम यह भी जानोगे कि क्यों परमेश्वर को सभी चीज़ों का स्वामी और सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत कहा जाता है। तुम्हारे पास जितना अधिक ऐसा ज्ञान होगा, तुम उतना ही अधिक समझोगे कि क्यों परमेश्वर को सभी चीज़ों का स्वामी कहा जाता है। सभी चीज़ें एवं प्रत्येक चीज़, जिसमें तुम भी शामिल हो, निरन्तर परमेश्वर की आपूर्ति के नियमित बहाव को प्राप्त कर रहे हैं। तुम भी स्पष्ट रूप से आभास कर सकोगे कि इस संसार में, और इस मानवजाति के बीच में, परमेश्वर के अलावा कोई नहीं है जिसके पास सभी चीज़ों के अस्तित्व के ऊपर शासन करने, उसका प्रबन्ध करने, और उसको बरकरार रखने के लिए ऐसी सामर्थ और ऐसा सार तत्व हो सकता है। जब तुम ऐसी समझ प्राप्त कर लेते हो, तब तुम सचमुच में स्वीकार करते हो कि परमेश्वर तुम्हारा परमेश्वर है। जब तुम इस बिन्दु तक पहुँच जाते हो, तब तुमने सचमुच में परमेश्वर को स्वीकार कर लिया है और तुमने उसे अपना परमेश्वर एवं अपना स्वामी बनने की अनुमति दी है। जब तुम्हारे पास ऐसी समझ होती है और तुम्हारा जीवन एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच जाता है, तो परमेश्वर आगे से तुम्हारी परीक्षा नहीं लेगा और तुम्हारा न्याय नहीं करेगा, और न ही वह तुमसे कोई माँग करेगा, क्योंकि तुम परमेश्वर को समझते हो, उसके हृदय को जानते हो और तुमने सचमुच में परमेश्वर के हृदय को स्वीकार कर लिया है। सभी चीज़ों पर परमेश्वर के शासन और प्रबंधन के विषय में इन शीर्षकों पर बातचीत करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है। यह लोगों को और अधिक ज्ञान एवं समझ देने के लिए है; मात्र तुमसे स्वीकार करवाने के लिए नहीं, लेकिन तुम्हें परमेश्वर के कार्यों का और अधिक व्यावहारिक ज्ञान एवं समझ देने के लिए है।

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