परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I

भाग दो

परमेश्वर के स्वभाव एवं स्वयं परमेश्वर को समझने के लिए तुम्हें बहुत थोड़े से ही आरम्भ करना होगा। लेकिन किसके थोड़े से तुम क्या आरम्भ करोगे? सबसे पहले, मैंने बाइबल के कुछ अध्यायों को पढ़कर जानकारी एकत्र की है। नीचे दी गई जानकारी में बाइबल के वचन सम्मिलित हैं, उनमें से सब परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर के स्वभाव एवं स्वयं परमेश्वर के विषय से सम्बन्धित हैं। मैंने विशेष रूप से इन अंशों को सन्दर्भ की सामग्रियों के रूप में खोजा है ताकि परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर के स्वभाव, एवं स्वयं परमेश्वर को समझने में तुम लोगों की सहायता करूं। यहाँ मैं यह देखने के लिए उन्हें तुम लोगों के साथ बाटूंगा कि परमेश्वर ने अपने अतीत के कार्य के जरिए किस प्रकार के स्वभाव एवं सार को प्रकट किया है किन्तु लोग उसके बारे में नहीं जानते हैं। हो सकता है कि ये अध्याय पुराने हों, लेकिन वह विषय जिसके बारे में हम बातचीत कर रहें है वह कुछ नया है जो लोगों के पास नहीं है और जिसके बारे में उन्होंने कभी नहीं सुना है। हो सकता है कि तुम लोगों में से कुछ को यह अकल्पनीय लगे—क्या यह आदम और हव्वा की चर्चा करना और नूह के पास वापस जाकर उन्हीं चरणों को फिर से दोहराना नहीं है? इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि तुम लोग क्या सोचते हो, ये अध्याय इस विषय पर बातचीत करने के लिए अत्यंत लाभकारी है और आज की संगति के लिए ये शिक्षा देने के पाठों या प्रत्यक्ष सामग्रियों के रूप में कार्य कर सकते हैं। जिस समय तक मैं इस संगति को समाप्त करूंगा तुम लोग इन भागों को चुनने के पीछे के मेरे उद्देश्य को समझ जाओगे। ऐसे लोग जिन्होंने पहले से बाइबल पढ़ी है शायद उन्होंने इन कुछ वचनों को देखा हो, लेकिन शायद उन्होंने इन्हें सचमुच में समझा नहीं है। आइए हम एक सरसरी निगाह डालें इससे पहले कि एक एक करके अधिक विस्तार से उनसे होकर जाएँ।

आदम और हव्वा मानवजाति के पूर्वज हैं। यदि हमें बाइबल से पात्रों का उल्लेख करना पड़े, तब हमें उन दोनों से शुरू करना होगा। इसके आगे है नूह, मानवजाति का दूसरा पूर्वज। क्या तुम लोग उसे देखते हो? तीसरा पात्र कौन है? (इब्राहीम।) क्या तुम सब लोग इब्राहीम की कहानी के बारे में जानते हो? हो सकता है कि तुम लोगों में से कुछ जानते हों, लेकिन दूसरों के लिए शायद यह ज़्यादा स्पष्ट न हो। चौथा पात्र कौन है? सदोम के विनाश की कहानी में किसका उल्लेख किया गया है? (लूत।) लेकिन यहाँ लूत का सन्दर्भ नहीं दिया गया है। यह किसकी ओर संकेत करता है? (इब्राहीम।) जो कुछ यहोवा परमेश्वर ने कहा था वह इब्राहीम की कहानी में उल्लिखित मुख्य बात है। क्या तुम लोग सब इसे देखते हो? पांचवां पात्र कौन है? (अय्यूब।) क्या परमेश्वर ने अपने कार्य के इस चरण के दौरान अय्यूब की कहानी के बारे बहुत कुछ उल्लेख नहीं किया है? तो क्या तुम लोग इस कहानी के बारे में बहुत अधिक ध्यान देते हो? यदि तुम लोग वास्तव में बहुत अधिक ध्यान देते हो, तो क्या तुम लोगों ने सावधानी से बाइबल में अय्यूब की कहानी को पढ़ा है? क्या तुम लोगों को पता है कि अय्यूब ने कौन सी बातें कहीं, उसने कौन सी चीज़ें कीं? वे लोग जिन्होंने इसे सबसे अधिक पढ़ा है, तुम लोगों ने इसे कितनी बार पढ़ा है? क्या तुम लोग इसे अकसर पढ़ते हो? हौंग कौंग की बहनों, कृपया हमें बताओ। (इससे पहले जब हम अनुग्रह के युग में थे तब मैंने इसे कई बार पढ़ा था।) तुम लोगों ने तब से इसे दोबारा नहीं पढ़ा है? यदि ऐसा है, तो यह बड़ी शर्म की बात है। मुझे तुम लोगों को बताने दो: परमेश्वर के कार्य के इस चरण के दौरान उसने कई बार अय्यूब का उल्लेख किया, जो उसके इरादों का एक प्रतिबिम्ब है। यह कि उसने कई बार अय्यूब का उल्लेख किया लेकिन तुम लोगों के ध्यान को जागृत नहीं किया यह इस तथ्य का एक प्रमाण है: तुम लोगों की ऐसे लोग बनने में कोई रूचि नहीं है जो अच्छे हैं और ऐसे जो परमेश्वर का भय मानते और बुराई से दूर रहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम लोग बस इस बात से संतुष्ट हो कि तुम्हारे पास परमेश्वर के द्वारा उद्धरण दिए गए अय्यूब की कहानी के विषय में एक अनुमानित विचार हैं। तुम लोग स्वयं कहानी को मात्र समझने से ही संतुष्ट हो, लेकिन तुम लोग उन विवरणों की परवाह नहीं करते हो या समझने की कोशिश नहीं करते हो कि अय्यूब कौन है और परमेश्वर किस लिए विविध अवसरों पर अय्यूब की ओर संकेत करता है उसके पीछे के उद्देश्य को समझने की कोशिश नहीं करते हो। यदि तुम लोगों को एक ऐसे व्यक्ति में रूचि भी नहीं है जिसकी परमेश्वर ने प्रशंसा की है, तो तुम लोग वास्तव में किस बात पर ध्यान दे रहे हो? यदि तुम लोग परवाह नहीं करते हो और एक ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को समझने की कोशिश नहीं करते हो जिसका परमेश्वर ने उल्लेख किया है, तो परमेश्वर के वचन के प्रति तुम लोगों की मनोवृत्ति के विषय में वह क्या कहता है? क्या यह एक दुखद बात नहीं है? क्या इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम लोगों में से अधिकतर लोग व्यावहारिक चीज़ों में शामिल नहीं हैं और तुम सभी सत्य की निरन्तर खोज में नहीं हो? यदि तुम सत्य को खोजते हो, तो तुम उन लोगों पर जिन्हें परमेश्वर स्वीकार करता है और उन पात्रों की कहानियों पर आवश्यक ध्यान दोगे जिनके बारे में परमेश्वर बोलता है। इसकी परवाह किए बगैर कि तुम इसकी सराहना कर सकते हो या इसे महसूस कर सकते हो, तुम जल्दी से जाओगे और इसे पढ़ोगे, इसे समझने की कोशिश करोगे, इसके उदाहरण का अनुसरण करने के तरीकों को ढूँढोगे, और वह करोगे जिसे तुम अपनी बेहतरीन योग्यता के साथ कर सकते हो। यह किसी व्यक्ति का व्यवहार है जो सत्य की लालसा करता है। लेकिन सच्चाई यह है कि तुम लोगों में से अधिकांश लोग जो यहाँ बैठे हैं उन्होंने अय्यूब की कहानी को कभी नहीं पढ़ा है। यह सचमुच में कुछ बताता है।

आओ हम उस विषय पर वापस जाएँ जिस पर मैं अभी अभी बात कर रहा था। पवित्र शास्त्रों का यह भाग जो पुराना नियम व्यवस्था के युग से व्यवहार करता है वह मुख्य रूप से पात्रों की कहानियाँ हैं जिन्हें मैंने अंशों के रूप में लिया था। ये वे कहानियाँ हैं जिनसे बहुत सारे लोग परिचित हैं जिन्होंने बाइबल को पढ़ा है। ये पात्र बहुत ही प्रतिनिधिक हैं। ऐसे लोग जिन्होंने उनकी कहानियाँ पढ़ीं हैं वे यह महसूस करने के योग्य होंगे कि वह कार्य जिसे परमेश्वर ने उन पर किया है और वे वचन जिन्हें परमेश्वर ने उनसे कहा है वे आज के लोगों के लिए स्पर्शगम्य एवं सुगम हैं। जब तुम बाइबल से इन कहानियों और लेखों को पढ़ते हो, तो तुम यह बेहतर ढंग से समझने के योग्य होगे कि किस प्रकार परमेश्वर ने अपना कार्य किया और उस समय लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया। लेकिन आज इन अध्यायों को खोजने का मेरा उद्देश्य यह नहीं है कि तुम इन कहानियों और उनके पात्रों को समझने की कोशिश कर सको। इसके बजाए यह इसलिए है ताकि तुम इन पात्रों की कहानियों के द्वारा परमेश्वर के कार्यों और उसके स्वभाव को देख सको, इस प्रकार परमेश्वर को जानना एवं समझना, उसके वास्तविक पहलू को देखना, अपनी कल्पनाओं को विराम देना, उसके विषय में अपनी अवधारणाओं को रोकना, और अस्पष्टता के मध्य तुम्हारे विश्वास को समाप्त करना आसान बन जाये। बिना किसी आधार के परमेश्वर के स्वभाव का अर्थ निकालना और स्वयं परमेश्वर को जानने की कोशिश करना अकसर तुम्हें असहाय, एवं दुर्बल महसूस करा सकता है, और तुम अनिश्चित होते हो कि कहाँ से शुरूआत करें। इसीलिए मैंने एक ऐसे तरीके एवं पहुँच का उपयोग करने के उपाय के विषय में सोचा था कि तुम्हें बेहतर ढंग से परमेश्वर को समझने, और अधिक प्रमाणिक रूप से परमेश्वर की इच्छा की सराहना करने और परमेश्वर के स्वभाव एवं स्वयं परमेश्वर को जानने की अनुमति दूँ, और सचमुच में तुम्हें परमेश्वर के अस्तित्व को महसूस करने और मानवजाति के प्रति उसकी इच्छा की सराहना करने की अनुमति दूँ। क्या यह तुम लोगों के लाभ के लिए नहीं है? अब तुम लोग अपने हृदयों के भीतर क्या महसूस करते हो जब तुम सब इन कहानियों और पवित्र वचनों को दोबारा देखते हो? क्या तुम लोग सोचते हो कि पवित्र शास्त्र के अंश जिन्हें मैंने चुना है वे ज़रूरत से ज़्यादा हैं? जो कुछ मैंने तुम लोगों को अभी अभी बताया था मुझे उस पर दोबारा ज़ोर देना चाहिए: इन पात्रों की कहानियों को तुम लोगों से पढ़वाने का लक्ष्य है कि यह समझने में तुम लोगों की सहायता की जाए कि कैसे परमेश्वर लोगों पर अपना कार्य करता है और मानवजाति के प्रति उसकी मनोवृत्ति कैसी है। तुम लोग इसे किस माध्यम से समझ सकते हो? उस कार्य के जरिए जिसे परमेश्वर ने अतीत में किया है और उसे उस कार्य के साथ मिलाया है जिसे परमेश्वर अपने विषय में विभिन्न चीज़ों को समझने में तुम लोगों की सहायता करने के लिए इस समय कर रहा है। ये विभिन्न चीज़ें वास्तविक हैं, और इन्हें उन लोगों के द्वारा जाना और सराहा जाना चाहिए जो परमेश्वर को जानने की इच्छा करते हैं।

अब हम आदम और हव्वा की कहानी से शुरू करेंगे। पहले, आओ हम पवित्र शास्त्र के अंशों को पढ़ें।

क. आदम और हव्वा

1. आदम के लिए परमेश्वर की आज्ञा

(उत्पत्ति 2:15-17) तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रक्षा करे। और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।"

क्या तुम लोगों को इन वचनों से कुछ मिला था? पवित्र शास्त्र का यह भाग तुम लोगों को कैसा महसूस कराता है? पवित्र शास्त्र से "आदम के लिए परमेश्वर की आज्ञा" के उद्धरण को क्यों लिया गया था? क्या अब तुम लोगों में से प्रत्येक के पास अपने-अपने मन में परमेश्वर और आदम की एक तस्वीर है? तुम लोग कल्पना करने की कोशिश कर सकते हो: यदि तुम लोग उस दृश्य में एक पात्र होते, तो तुम लोगों के हृदय में परमेश्वर किस के समान होगा? यह तस्वीर तुम लोगों को कौन सी भावनाओं का एहसास कराती है? यह एक द्रवित करनेवाली और दिल को छू लेनेवाली तस्वीर है। यद्यपि इसमें केवल परमेश्वर एवं मनुष्य ही है, फिर भी उनके बीच की घनिष्ठता ईर्ष्या के कितने योग्य है: परमेश्वर के प्रचुर प्रेम को मनुष्य को मुफ्त में प्रदान किया गया है, यह मनुष्य को घेरे रहता है; मनुष्य भोला भाला एवं निर्दोष, भारमुक्त एवं लापरवाह है, वह आनन्दपूर्वक परमेश्वर की दृष्टि के अधीन जीवन बिताता है; परमेश्वर मनुष्य के लिए चिंता करता है, जबकि मनुष्य परमेश्वर की सुरक्षा एवं आशीष के अधीन जीवन बिताता है; हर एक चीज़ जिसे मनुष्य करता एवं कहता है वह परमेश्वर से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ होता है और उससे अविभाज्य है।

तुम लोग कह सकते हो कि यह पहली आज्ञा है जिसे परमेश्वर ने मनुष्य को दिया था जब उसने उसे बनाया था। यह आज्ञा क्या उठाए हुए है? यह परमेश्वर की इच्छा को उठाए हुए है, परन्तु साथ ही यह मानवजाति के लिए उसकी चिंताओं को भी उठाए हुए है। यह परमेश्वर की पहली आज्ञा है, और साथ ही यह पहली बार भी है जब परमेश्वर मनुष्य के विषय में चिंता करता है। कहने का तात्पर्य है, जब से परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया उस घड़ी से उसके पास उसके प्रति एक ज़िम्मेदारी है। उसकी ज़िम्मेदारी क्या है? उसे मनुष्य की सुरक्षा करनी है, और मनुष्य की देखभाल करनी है। वह आशा करता है कि मनुष्य भरोसा कर सकता है और उसके वचनों का पालन कर सकता है। यह मनुष्य से परमेश्वर की पहली अपेक्षा भी है। इसी अपेक्षा के साथ परमेश्वर निम्नलिखित वचन कहता है: "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।" ये साधारण वचन परमेश्वर की इच्छा को दर्शाते हैं। वे यह भी प्रकट करते हैं कि परमेश्वर के हृदय ने पहले से ही मनुष्य के लिए चिंता प्रकट करना शुरू कर दिया है। सब चीज़ों के मध्य, केवल आदम को ही परमेश्वर के स्वरुप में बनाया गया था; आदम ही एकमात्र जीवित प्राणी था जिसके पास परमेश्वर के जीवन की श्वास है; वह परमेश्वर के साथ चल सकता था, परमेश्वर के साथ बात कर सकता था। इसी लिए परमेश्वर ने उसे एक ऐसी आज्ञा दी थी। परमेश्वर ने इस आज्ञा में बिलकुल साफ कर दिया था कि वह क्या कर सकता है, साथ ही साथ वह क्या नहीं कर सकता है।

इन कुछ साधारण वचनों में, हम परमेश्वर के हृदय को देखते हैं। लेकिन हम किस प्रकार का हृदय देखते हैं? क्या परमेश्वर के हृदय में प्रेम है? क्या इसके पास कोई चिंता है? इन वचनों में परमेश्वर के प्रेम एवं चिंता को न केवल लोगों के द्वारा सराहा जा सकता है, लेकिन इसे भली भांति एवं सचमुच में महसूस भी किया जा सकता है। क्या यह ऐसा ही नहीं है? अब जब मैंने इन बातों को कह दिया है, क्या तुम लोग अब भी सोचते हो कि ये बस कुछ साधारण वचन हैं? इतने साधारण नहीं हैं, ठीक है? क्या तुम लोग इसे पहले से देख सकते थे? यदि परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से तुम्हें इन थोड़े से साधारण वचनों को कहा होता, तो तुम भीतर से कैसा महसूस करते? यदि तुम एक दयालु व्यक्ति नहीं हो, यदि तुम्हारा हृदय बर्फ के समान ठण्डा पड़ गया है, तो तुम कुछ भी महसूस नहीं करोगे, तुम परमेश्वर के प्रेम की सराहना नहीं करोगे, और तुम परमेश्वर के हृदय को समझने की कोशिश नहीं करोगे। लेकिन यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसके पास विवेक है, एवं मानवता है, तो तुम कुछ अलग महसूस करोगे। तुम सुखद महसूस करोगे, तुम महसूस करोगे कि तुम्हारी परवाह की जाती है और तुम्हें प्रेम किया जाता है, और तुम खुशी महसूस करोगे। क्या यह सही नहीं है? जब तुम इन चीज़ों को महसूस करते हो, तो तुम परमेश्वर के प्रति किस प्रकार कार्य करोगे? क्या तुम परमेश्वर से जुड़ा हुआ महसूस करोगे? क्या तुम अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर से प्रेम और सम्मान करोगे? क्या तुम्हारा हृदय परमेश्वर के और करीब जाएगा? तुम इससे देख सकते हो कि मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन जो और भी अधिक महत्वपूर्ण है वह परमेश्वर के प्रेम के विषय में मनुष्य की सराहना एवं समझ है। वास्तव में, क्या परमेश्वर ने अपने कार्य के इस चरण के दौरान ऐसी बहुत सी चीज़ों को नहीं कहा था? लेकिन क्या आज के लोग परमेश्वर के हृदय की सराहना करते हैं? क्या तुम लोग परमेश्वर की इच्छा का आभास कर सकते हो जिसके बारे में मैंने बस अभी-अभी कहा था? तुम लोग परमेश्वर की इच्छा को भी परख नहीं सकते हो जब यह इतना ठोस, स्पर्शगम्य, एवं यथार्थवादी है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोगों के पास परमेश्वर के विषय में वास्तविक ज्ञान एवं समझ नहीं है। क्या यह सत्य नहीं है? हम इस भाग में बस इतनी ही चर्चा करेंगे।

2. परमेश्वर हव्वा को बनाता है

(उत्पत्ति 2:18-20) फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, "आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उस से मेल खाए।" और यहोवा परमेश्‍वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। अत: आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उस से मेल खा सके।

(उत्पत्ति 2:22-23) और यहोवा परमेश्‍वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। तब आदम ने कहा, "अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।"

पवित्र शास्त्र के इस भाग में यहाँ कुछ मुख्य वाक्यांश है: कृपया उन्हें रेखांकित करें: "और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।" अतः किसने सभी जीवित प्राणियों को उनका नाम दिया था? यह आदम था, परमेश्वर नहीं। यह वाक्यांश मानवजाति को एक तथ्य बताता है: परमेश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी जब उसने उसकी सृष्टि की थी। कहने का तात्पर्य है, मनुष्य की बुद्धि परमेश्वर से आई थी। यह एक निश्चितता है। लेकिन क्यों? परमेश्वर ने आदम को बनाया उसके बाद, क्या आदम विद्यालय गया था? क्या वह जानता था कि कैसे पढ़ते हैं? परमेश्वर ने विभिन्न जीवित प्राणियों को बनाया उसके बाद, क्या आदम ने इन सभी पशुओं को पहचाना था? क्या परमेश्वर ने उसे बताया कि उनके नाम क्या थे? हाँ वास्तव में, परमेश्वर ने उसे यह भी नहीं सिखाया था कि इन प्राणियों के नाम कैसे रखने हैं। यही सच्चाई है! तो उसने कैसे जाना कि इन जीवित प्राणियों को उनके नाम कैसे देने थे और उन्हें किस प्रकार के नाम देने थे? यह उस प्रश्न से जुड़ा हुआ है कि परमेश्वर ने आदम में क्या जोड़ा जब उसने उसकी सृष्टि की थी। तथ्य यह साबित करते हैं कि जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तो उसने अपनी बुद्धि को उसमें जोड़ दिया था। यह एक मुख्य बिन्दु है। क्या तुम सब लोगों ने ध्यानपूर्वक सुना? एक अन्य मुख्य बिन्दु है जो तुम लोगों को स्पष्ट होना चाहिए: आदम ने इन जीवित प्राणियों को उनका नाम दिया उसके बाद, ये नाम परमेश्वर के शब्दकोश में निर्धारित हो गए थे। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? यह परमेश्वर के स्वभाव को भी शामिल करता है, और मुझे इसे समझाना ही होगा।

परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की, उसमें जीवन का श्वास फूंका, और उसे अपनी कुछ बुद्धि, अपनी योग्यताएँ, और अपना स्वरूप भी दिया। परमेश्वर ने मनुष्य को ये सब चीज़ें दीं उसके बाद, मनुष्य आत्मनिर्भरता से कुछ चीज़ों को करने और अपने आप सोचने के योग्य था। यदि मनुष्य जो सोचता है और जो करता है वह परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, तो परमेश्वर इसे स्वीकार करता है और हस्तक्षेप नहीं करता है। यदि जो कुछ मनुष्य करता है वह सही है, तो परमेश्वर उसे भलाई के लिए ऐसे ही होने देगा। अतः वह वाक्यांश "और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया" क्या सूचित करता है? यह दर्शाता है कि परमेश्वर ने विभिन्न जीवित प्राणियों के नामों में कोई भी सुधार नहीं किया था। आदम उनका जो भी नाम रखता, परमेश्वर कहता "हाँ" और उस नाम को वैसे ही दर्ज करता है। क्या परमेश्वर ने कोई राय व्यक्त की? नहीं, यह बिलकुल निश्चित है। तो तुम लोग यहाँ क्या देखते हो? परमेश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी और मनुष्य ने कार्यों को अंजाम देने के लिए अपनी परमेश्वर-प्रदत्त बुद्धि का उपयोग किया। यदि जो कुछ मनुष्य करता है वह परमेश्वर की नज़रों में सकारात्मक है, तो इसे बिना किसी मूल्यांकन या आलोचना के परमेश्वर के द्वारा पुष्ट, मान्य, एवं स्वीकार किया जाता है। यह कुछ ऐसा है जिसे कोई व्यक्ति या दुष्ट आत्मा, या शैतान नहीं कर सकता है। क्या तुम लोग यहाँ परमेश्वर के स्वभाव के एक प्रकाशन को देखते हो? क्या एक मानव प्राणी, एक भ्रष्ट किए गए मानव प्राणी, या शैतान दूसरों को स्वीकार करेंगे कि उनकी नाक के नीचे कार्यों को अंजाम देने के लिए उनका प्रतिनिधित्व करें? बिलकुल भी नहीं! क्या वे पदवी के लिए उस अन्य व्यक्ति या अन्य शक्ति से लड़ाई करेंगे जो उनसे अलग है? हाँ वास्तव में वे करेंगे! उस घड़ी, यदि वह एक भ्रष्ट किया गया व्यक्ति या शैतान होता जो आदम के साथ था, तो जो कुछ आदम कर रहा था उन्होंने निश्चित रूप से उसे ठुकरा दिया होता। यह साबित करने के लिए कि उनके पास स्वतन्त्र रूप से सोचने की योग्यता है और उनके पास अपनी अनोखी अन्तःदृष्टियाँ हैं, तो जो कुछ भी आदम ने किया था उन्होंने पूरी तरह से उसे नकार दिया होता: क्या तुम इसे यह कहकर बुलाना चाहते हो? ठीक है, मैं इसे यह कहकर नहीं बुलानेवाला हूँ, मैं इसे वह कहकर बुलानेवाला हूँ; तुमने इसे टॉम कहा था लेकिन मैं इसे हैरी कहकर बुलानेवाला हूँ। मुझे अपनी प्रतिभा का दिखावा करना है। यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या यह अनियन्त्रित रूप से अहंकारी होना नहीं है? लेकिन क्या परमेश्वर के पास ऐसा स्वभाव है? यह कार्य जिसे आदम ने किया था क्या उसके प्रति परमेश्वर की कुछ असामान्य आपत्तियाँ थीं? स्पष्ट रूप से उत्तर है नहीं! उस स्वभाव के विषय में जिसे परमेश्वर प्रकाशित करता है, उसमें जरा सी भी तार्किकता, अहंकार, या आत्म-दंभ नहीं है। यहाँ यह बहुतायत से स्पष्ट है। यह तो बस एक छोटी सी बात है, लेकिन यदि तुम परमेश्वर के सार को नहीं समझते हो, यदि तुम्हारा हृदय यह पता लगाने की कोशिश नहीं करता है कि परमेश्वर कैसे कार्य करता है और उसकी मनोवृत्ति क्या है, तो तुम परमेश्वर के स्वभाव को नहीं जानोगे या परमेश्वर के स्वभाव की अभिव्यक्तियों एवं प्रकाशन को नहीं देखोगे। क्या यह ऐसा नहीं है? क्या तुम उससे सहमत हो जिसे मैंने अभी अभी तुम्हें समझाया था? आदम के कार्यों के प्रत्युत्तर में, परमेश्वर ने जोर से घोषणा नहीं की, "तुमने अच्छा किया। तुमने सही किया मैं सहमत हूँ"। फिर भी, जो कुछ आदम ने किया परमेश्वर ने अपने हृदय में उसकी स्वीकृति दी, उसकी सराहना, एवं तारीफ की थी। सृष्टि के समय से यह पहला कार्य था जिसे मनुष्य ने उसके निर्देशन पर परमेश्वर के लिए किया था। यह कुछ ऐसा था जिसे मनुष्य ने परमेश्वर के स्थान पर और परमेश्वर की ओर से किया था। परमेश्वर की नज़रों में, यह उस बुद्धिमत्ता से उदय हुआ था जिसे परमेश्वर ने मनुष्य को प्रदान किया था। परमेश्वर ने इसे एक अच्छी चीज़, एवं एक सकारात्मक चीज़ के रूप में देखा था। जो कुछ आदम ने उस समय किया था वह मनुष्य पर परमेश्वर की बुद्धिमत्ता का पहला प्रकटीकरण था। परमेश्वर के दृष्टिकोण से यह एक उत्तम प्रकटीकरण था। जो कुछ मैं यहाँ तुम लोगों को बताना चाहता हूँ वह यह है कि उसकी बुद्धिमत्ता और स्वरूप के एक अंश को मनुष्य से जोड़ने में परमेश्वर का यह लक्ष्य था ताकि मानवजाति ऐसा जीवित प्राणी बन सके जो उसको प्रदर्शित करे। एक ऐसे जीवित प्राणी के लिए उसकी ओर से ऐसे कार्यों को करना बिलकुल वैसा था जिसे देखने हेतु परमेश्वर लालसा कर रहा था।

3. (उत्पत्ति 3:20-21) आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।

आओ हम इस तीसरे अंश पर एक नज़र डालें, जो बताता है कि उस नाम के पीछे एक अर्थ है जिसे आदम ने हव्वा को दिया था, ठीक है? यह दर्शाता है कि सृजे जाने के बाद, आदम के पास अपने स्वयं के विचार थे और वह बहुत सी चीज़ों को समझता था। लेकिन फिलहाल हम जो कुछ वह समझता था या कितना कुछ वह समझता था उसका अध्ययन या उसकी खोज करने नहीं जा रहे हैं क्योंकि यह वह मुख्य बिन्दु नहीं है जिस पर मैं तीसरे अंश में चर्चा करना चाहता हूँ। अतः तीसरे अंश का मुख्य बिन्दु क्या है। आइए हम इस पंक्ति पर एक नज़र डालें, "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।" यदि आज हम पवित्र शास्त्र की इस पंक्ति के बारे में संगति नहीं करें, तो हो सकता है कि तुम लोग इन वचनों के पीछे निहित अर्थों का कभी एहसास न कर पाओ। सबसे पहले, मुझे कुछ सुराग देने दो। अपनी कल्पना को विस्तृत करो और अदन के बाग की तस्वीर देखो, जिसमें आदम और हव्वा रहते हैं। परमेश्वर उनसे मिलने जाता है, लेकिन वे छिप जाते हैं क्योंकि वे नग्न हैं। परमेश्वर उन्हें देख नहीं सकता है, और जब वह उन्हें पुकारता है उसके बाद, वे कहते हैं, "हम में तुझे देखने की हिम्मत नहीं है क्योंकि हमारे शरीर नग्न हैं।" वे परमेश्वर को देखने की हिम्मत नहीं करते हैं क्योंकि वे नग्न हैं। तो यहोवा परमेश्वर उनके लिए क्या करता है? मूल पाठ कहता है: "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।" अब क्या तुम लोग जानते हो कि परमेश्वर ने उनके वस्त्रों को बनाने के लिए क्या उपयोग किया था? परमेश्वर ने उनके वस्त्रों को बनाने के लिए जानवर के चमड़े का उपयोग किया था। कहने का तात्पर्य है, जो वस्त्र परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया वह एक रोएँदार कोट था। यह वस्त्र का पहला टुकड़ा था जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया था। एक रोएँदार कोट आज की जीवनशैली के अनुसार ऊँचे बाज़ार का मद है, ऐसी चीज़ जिसे पहनने के लिए हर कोई खरीद नहीं सकता है। यदि तुमसे कोई पूछे: मानवजाति के पूर्वजों के द्वारा पहना गया वस्त्र का पहला टुकड़ा क्या था? तुम उत्तर दे सकते हो: यह एक रोएँदार कोट था। यह रोएँदार कोट किसने बनाया था? तुम आगे प्रत्युत्तर दे सकते हो: परमेश्वर ने इसे बनाया था! यही मुख्य बिन्दु है: इस वस्त्र को परमेश्वर के द्वारा बनाया गया था। क्या यह ऐसी चीज़ नहीं है जो ध्यान देने के योग्य है? फिलहाल मैंने अभी-अभी इसका वर्णन किया है, क्या तुम्हारे मनों में एक छवि उभर कर आई है? इसकी कम से कम एक अनुमानित रुपरेखा होनी चाहिए। आज तुम लोगों को बताने का बिन्दु यह नहीं है कि तुम लोग जानो कि मनुष्य के वस्त्र का पहला टुकड़ा क्या था। तो फिर बिन्दु क्या है? यह बिन्दु रोएँदार कोट नहीं है, परन्तु यह है कि परमेश्वर के द्वारा प्रकट किए गए स्वभाव एवं स्वरूप को कैसे जाने जब वह यह कार्य कर रहा था।

"और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए," इसकी छवि में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका निभाता है जब वह आदम और हव्वा के साथ है? मात्र दो मानव प्राणियों के साथ एक संसार में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका में प्रकट होता है? परमेश्वर की भूमिका के रूप में? हौंग कौंग के भाइयों एवं बहनों, कृपया उत्तर दीजिए। (एक अभिवावक की भूमिका में।) दक्षिण कोरिया के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो कि परमेश्वर किस भूमिका में प्रकट होता है? (परिवार के मुखिया।) ताइवान के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो? (आदम और हव्वा के परिवार में किसी व्यक्ति की भूमिका, परिवार के एक सदस्य की भूमिका।) तुम लोगों में से कुछ सोचते हैं कि परमेश्वर आदम और हव्वा के परिवार के एक सदस्य के रूप में प्रकट होता है, जबकि कुछ कहते हैं कि परमेश्वर परिवार के एक मुखिया के रूप में प्रकट होता है वहीं दूसरे कहते हैं वो अभिभावक के रूप में है। इनमें से सब बिलकुल उपयुक्त हैं। लेकिन वह क्या है जिस तक मैं पहुँच रहा हूँ? परमेश्वर ने इन दो लोगों की सृष्टि की और उनके साथ अपने सहयोगियों के समान व्यवहार किया था। उनके एकमात्र परिवार के समान, परमेश्वर ने उनके रहन-सहन का ख्याल रखा और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा। यहाँ, परमेश्वर आदम और हव्वा के माता-पिता के रूप में प्रकट होता है। जब परमेश्वर यह करता है, मनुष्य नहीं देखता कि परमेश्वर कितना ऊंचा है; वह परमेश्वर की सबसे ऊँची सर्वोच्चता, उसकी रहस्यमयता को नहीं देखता है, और ख़ासकर उसके क्रोध या प्रताप को नहीं देखता है। जो कुछ वह देखता है वह परमेश्वर की नम्रता, उसका स्नेह, मनुष्य के लिए उसकी चिंता और उसके प्रति उसकी ज़िम्मेदारी एवं देखभाल है। वह मनोवृत्ति एवं तरीका जिसके अंतर्गत परमेश्वर आदम और हव्वा के साथ व्यवहार करता है वह इसके समान है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए चिंता करते हैं। यह इसके समान भी है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने पुत्र एवं पुत्रियों से प्रेम करते हैं, उन पर ध्यान देते हैं, और उनकी देखरेख करते हैं—वास्तविक, दृश्यमान, और स्पर्शगम्य। अपने आपको एक ऊँचे एवं सामर्थी पद पर रखने के बजाए, परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से मनुष्य के लिए पहरावा बनाने के लिए चमड़ों का उपयोग किया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनकी लज्जा को छुपाने के लिए या उन्हें ठण्ड से बचाने के लिए इस रोएँदार कोट का उपयोग किया गया था। संक्षेप में, यह पहरावा जो मनुष्य के शरीर को ढंका करता था उसे परमेश्वर के द्वारा उसके अपने हाथों से बनाया गया था। इसे सरलता से विचार के माध्यम से या चमत्कारीय तरीके से बनाने के बजाय जैसा लोग सोचते हैं, परमेश्वर ने वैधानिक तौर पर कुछ ऐसा किया जिसके विषय में मनुष्य सोचता है कि परमेश्वर नहीं कर सकता था और उसे नहीं करना चाहिए था। यह एक साधारण कार्य हो सकता है कि कुछ लोग यहाँ तक सोचें कि यह जिक्र करने के लायक भी नहीं है, परन्तु यह उन सब को अनुमति भी देता है जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं परन्तु उसके विषय में पहले अस्पष्ट विचारों से भरे हुए थे कि वे उसकी विशुद्धता एवं मनोहरता में अन्तःदृष्टि प्राप्त करें, और उसके विश्वासयोग्य एवं दीन स्वभाव को देखें। यह अत्यधिक अभिमानी लोगों को, जो सोचते हैं कि वे ऊँचे एवं शक्तिशाली हैं, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता के सामने लज्जा से अपने अहंकारी सिरों को झुकाने के लिए मजबूर करता है। यहाँ, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता लोगों को यह देखने के लिए और अधिक योग्य बनाती है कि परमेश्वर कितना प्यारा है। इसके विपरीत, "असीम" परमेश्वर, "प्यारा" परमेश्वर और "सर्वशक्तिमान" परमेश्वर लोगों के हृदय में कितना छोटा, एवं नीरस है, और एक प्रहार को भी सहने में असमर्थ है। जब तुम इस वचन को देखते हो और इस कहानी को सुनते हो, तो क्या तुम परमेश्वर को नीचा देखते हो क्योंकि उसने एक ऐसा कार्य किया था? शायद कुछ लोग सोचें, लेकिन दूसरों के लिए यह पूर्णत: विपरीत होगा। वे सोचेंगे कि परमेश्वर विशुद्ध एवं प्यारा है, यह बिलकुल परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता है जो उन्हें द्रवित करती है। जितना अधिक वे परमेश्वर के वास्तविक पहलू को देखते हैं, उतना ही अधिक वे परमेश्वर के प्रेम के सच्चे अस्तित्व की, अपने हृदय में परमेश्वर के महत्व की, और वह किस प्रकार हर घड़ी उनके बगल में खड़ा होता है, उसकी सराहना कर सकते हैं।

इस बिन्दु पर, हमें हमारी बातचीत को वर्तमान से जोड़ना चाहिए। यदि परमेश्वर मनुष्यों के लिए ये विभिन्न छोटी छोटी चीज़ें कर सकता था जिन्हें उसने बिलकुल शुरुआत में सृजा था, यहाँ तक कि ऐसी चीज़ें भी जिनके विषय में लोग कभी सोचने या अपेक्षा करने की हिम्मत भी नहीं करेंगे, तो क्या परमेश्वर आज के लोगों के लिए ऐसी चीज़ें करेगा? कुछ लोग कहते हैं, "हाँ!" ऐसा क्यों है? क्योंकि परमेश्वर का सार जाली नहीं है, उसकी मनोहरता जाली नहीं है। क्योंकि परमेश्वर का सार सचमुच में अस्तित्व में है और यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसमें दूसरों के द्वारा कुछ जोड़ा गया है, और निश्चित रूप से ऐसी चीज़ नहीं है जो समय, स्थान एवं युगों में परिवर्तन के साथ बदलता जाता है। परमेश्वर की विशुद्धता एवं मनोहरता को कुछ ऐसा करने के द्वारा सामने लाया जा सकता है जिसे लोग सोचते हैं कि साधारण एवं मामूली है, ऐसी चीज़ जो बहुत छोटी है कि लोग सोचते भी नहीं हैं कि वह कभी करेगा। परमेश्वर ढोंगी नहीं है। उसके स्वभाव एवं सार में कोई अतिशयोक्ति, छद्मवेश, गर्व, या अहंकार नहीं है। वह कभी डींगें नहीं मारता है, बल्कि इसके बजाए प्रेम करता है, चिंता करता है, ध्यान देता है, और मानव प्राणियों की अगुवाई करता है जिन्हें उसने विश्वासयोग्यता एवं ईमानदारी से बनाया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग इसमें से कितनी चीज़ों की सराहना, एवं एहसास कर सकते हैं, या देख सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर निश्चय ही इन चीज़ों को कर रहा है। क्या यह जानना कि परमेश्वर के पास ऐसा सार है उसके लिए लोगों के प्रेम को प्रभावित करेगा? क्या यह परमेश्वर के विषय में उनके भय को प्रभावित करेगा? मैं आशा करता हूँ कि जब तुम परमेश्वर के वास्तविक पहलु को समझ जाते हो तो तुम उसके और भी करीब हो जाओगे और तुम मानवजाति के प्रति उसके प्रेम एवं देखभाल की सचमुच में और भी अधिक सराहना करने के योग्य होगे, जबकि ठीक उसी समय तुम अपना हृदय भी परमेश्वर को देते हो और आगे से तुम्हारे पास उसके प्रति कोई सन्देह या शंका नहीं होती है। परमेश्वर मनुष्य के लिए सबकुछ चुपचाप कर रहा है, वह यह सब अपनी ईमानदारी, विश्वासयोग्यता एवं प्रेम के जरिए खामोशी से कर रहा है। लेकिन उन सब के लिए जिसे वह करता है उसे कभी कोई शंका या खेद नहीं हुआ, न ही उसे कभी आवश्यकता हुई कि कोई उसे किसी रीति से बदले में कुछ दे या न ही उसके पास कभी मानवजाति से कोई चीज़ प्राप्त करने के इरादे हैं। वह सब कुछ जो उसने हमेशा किया है उसका एकमात्र उद्देश्य यह है ताकि वह मानवजाति के सच्चे विश्वास एवं प्रेम को प्राप्त कर सके। आइए हम यहाँ पहले विषय को बन्द कर दें।

क्या इन चर्चाओं ने तुम लोगों की सहायता की है? यह कितनी सहायक थी? (परमेश्वर के प्रेम की और अधिक समझ एवं ज्ञान।) (वार्तालाप का यह तरीका भविष्य में हमारी सहायता कर सकता है कि परमेश्वर के वचन की बेहतर ढंग से सराहना करें, कि उन भावनाओं को समझें जो उसके पास थीं और उन चीज़ों के पीछे के अर्थों को समझें जिन्हें उसने कहा था जब उसने उन्हें बोला था, और जो कुछ उसने उस समय महसूस किया था उसका एहसास करें।) क्या तुम लोगों में से कोई इन वचनों को पढ़ने के बाद परमेश्वर के वास्तविक अस्तित्व का और भी अधिक आभास करता है? क्या तुम लोग एहसास करते हो कि परमेश्वर का अस्तित्व अब और खोखला या अस्पष्ट नहीं है? जब एक बार तुम लोगों के पास यह एहसास होता है, क्या तुम लोग आभास करते हो कि परमेश्वर बिलकुल तुम लोगों के बगल में है? कदाचित् संवेदना ठीक इस समय स्पष्ट नहीं है या हो सकता है कि तुम लोग इसे अब तक महसूस करने के योग्य नहीं हो। लेकिन एक दिन, जब तुम लोगों के पास अपने हृदय में परमेश्वर के स्वभाव एवं सार के विषय में सचमुच में एक गहरी सराहना एवं वास्तविक ज्ञान होता है, तो तुम आभास करोगे कि परमेश्वर बिलकुल तुम्हारे बगल में है—यह बस इतना है कि तुमने अपने हृदय में असल में परमेश्वर को कभी ग्रहण नहीं किया था। यह वास्तविक है।

इस वार्तालाप के तरीके के बारे में तुम लोग क्या सोचते हो? क्या तुम लोग इसे समझ पाए? क्या तुम लोग सब सोचते हो कि परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर के स्वभाव के विषय में इस प्रकार की संगति बहुत बोझिल है? तुम लोगों ने कैसा महसूस किया था? (बहुत अच्छा, उत्साहित।) किस चीज़ ने तुम लोगों को अच्छा महसूस कराया? तुम लोग क्यों उत्साहित थे? (यह अदन के बाग में वापस लौटने, वापस परमेश्वर के पास लौटने के समान है।) "परमेश्वर का स्वभाव" वास्तव में प्रत्येक के लिए बिलकुल अपरिचित विषय है, क्योंकि जो कुछ तुम सामान्यतः सोचते हो, जो कुछ तुम पुस्तकों में पढ़ते या संगतियों में सुनते हो, यह तुम्हें हमेशा एक नेत्रहीन मनुष्य के समान महसूस कराता है जो एक हाथी को स्पर्श कर रहा है—तुम बस अपने हाथों से आस पास की चीज़ों को महसूस करते हो, लेकिन तुम असल में अपनी आँखों से कुछ भी नहीं देखते हो। "हाथ का स्पर्श" तुम्हें आसानी से परमेश्वर के ज्ञान की एक आधारभूत रूपरेखा नहीं दे सकता है, एक स्पष्ट धारणा की तो बात ही छोड़ दो। जो कुछ यह तुम्हारे लिए लेकर आता है वह और अधिक कल्पना है, ताकि तुम सही रीति से परिभाषा न दे सको कि परमेश्वर का स्वभाव एवं सार क्या है। इसके बजाए, अनिश्चितता के ये कारक जो तुम्हारी कल्पना से उठते हैं वे तुम्हारे हृदय को शंकाओं से भरते हुए प्रतीत होते हैं। जब तुम किसी चीज़ के विषय में निश्चित नहीं हो सकते हो और फिर भी तुम इसे समझने की कोशिश करते हो, तो तुम्हारे हृदय में हमेशा विरोधाभास एवं संघर्ष होते हैं, और कई बार यह एक अशांति का रूप भी ले लेता है, और तुम भ्रमित महसूस करते हो। क्या यह एक अत्यंत दुखदायी बात नहीं है जब तुम परमेश्वर को खोजना चाहते हो, परमेश्वर को जानना चाहते हो, और उसे साफ साफ देखना चाहते हो, लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि तुम्हें हमेशा उत्तर मिलते हैं? हाँ वास्तव में, इन शब्दों का निशाना केवल उन लोगों की ओर है जो परमेश्वर के आदर को खोजने और परमेश्वर को संतुष्ट करने की इच्छा करते हैं। क्योंकि ऐसे लोग जो आसानी से ऐसी चीज़ों पर कोई ध्यान नहीं देते हैं, इससे असल में कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि वे आशा करते हैं कि यह अच्छा है कि परमेश्वर की यथार्थता एवं अस्तित्व एक दंतकथा या कल्पना है, जिससे जो कुछ भी वे चाहते हैं उसे कर सकें, जिससे वे सबसे महान एवं अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकें, जिससे वे परिणामों की परवाह किए बगैर बुरे काम कर सकें, जिससे उन्हें सज़ा का सामना करना या किसी ज़िम्मेदारी को उठाना न पड़े, जिससे यहाँ तक कि वे चीज़ें भी उन पर लागू नहीं होंगी जिन्हें परमेश्वर कुकर्मियों के विषय में कहता है। ये लोग परमेश्वर के स्वभाव को समझने के लिए तैयार नहीं हैं, वे परमेश्वर और उसके बारे में सब कुछ जानने के लिए कोशिश करते करते उकता गए हैं और थक चुके हैं। वे ज़्यादा पसंद करेंगे कि परमेश्वर अस्तित्व में न हो। ये लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और वे ऐसे लोग हैं जिन्हें बहिष्कृत कर दिया जाएगा।

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