परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 105

उत्पत्ति 19:1-11 साँझ को वे दो दूत सदोम के पास आए; और लूत सदोम के फाटक के पास बैठा था। उन को देखकर वह उनसे भेंट करने के लिये उठा, और मुँह के बल झुककर दण्डवत् कर कहा, "हे मेरे प्रभुओ, अपने दास के घर में पधारिए, और रात भर विश्राम कीजिए, और अपने पाँव धोइये, फिर भोर को उठकर अपने मार्ग पर जाइए।" उन्होंने कहा, "नहीं, हम चौक ही में रात बिताएँगे।" पर उसने उनसे बहुत विनती करके उन्हें मनाया; इसलिये वे उसके साथ चलकर उसके घर में आए; और उसने उनके लिये भोजन तैयार किया, और बिना खमीर की रोटियाँ बनाकर उनको खिलाईं। उनके सो जाने से पहले, सदोम नगर के पुरुषों ने, जवानों से लेकर बूढ़ों तक, वरन् चारों ओर के सब लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया; और लूत को पुकारकर कहने लगे, "जो पुरुष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहाँ हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ कि हम उनसे भोग करें।" तब लूत उनके पास द्वार के बाहर गया, और किवाड़ को अपने पीछे बन्द करके कहा, "हे मेरे भाइयो, ऐसी बुराई न करो। सुनो, मेरी दो बेटियाँ हैं जिन्होंने अब तक पुरुष का मुँह नहीं देखा; इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊँ, और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उनसे करो; पर इन पुरुषों से कुछ न करो; क्योंकि ये मेरी छत तले आए हैं।" उन्होंने कहा, "हट जा!" फिर वे कहने लगे, "तू एक परदेशी होकर यहाँ रहने के लिये आया, पर अब न्यायी भी बन बैठा है; इसलिये अब हम उनसे भी अधिक तेरे साथ बुराई करेंगे।" और वे उस पुरुष लूत को बहुत दबाने लगे, और किवाड़ तोड़ने के लिये निकट आए। तब उन अतिथियों ने हाथ बढ़ाकर लूत को अपने पास घर में खींच लिया, और किवाड़ को बन्द कर दिया। और उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरुषों को जो घर के द्वार पर थे, अन्धा कर दिया, अत: वे द्वार को टटोलते टटोलते थक गए।

उत्पत्ति 19:24-25 तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई; और उन नगरों को और उस सम्पूर्ण तराई को, और नगरों के सब निवासियों को, भूमि की सारी उपज समेत नष्‍ट कर दिया।

परमेश्वर को नाराज़ करने के कारण सदोम को पूरी तरह से तबाह कर दिया गया

जब सदोम के लोगों ने इन दो सेवकों को देखा, तो उन्होंने उनके आने का कारण नहीं पूछा, न ही किसी ने यह पूछा कि क्या वे परमेश्वर की इच्छा का प्रचार करने के लिए आए हैं। इसके विपरीत, उन्होंने एक भीड़ इकट्ठी की और स्पष्टीकरण का इंतज़ार किए बिना, जंगली कुत्तों या दुष्ट भेड़ियों के समान उन दोनों सेवकों को पकड़ने के लिए आ गए। क्या परमेश्वर ने इन चीज़ों को होते हुए देखा था? इस प्रकार के मानवीय व्यवहार, इस प्रकार की घटना को लेकर परमेश्वर अपने हृदय में क्या सोच रहा था? परमेश्वर ने इस नगर को नष्ट करने का मन बनाया; वह न तो हिचकिचाया और न ही उसने इंतज़ार किया, न ही उसने और अधिक धीरज दिखाया। उसका दिन आ चुका था, अतः उसने वह कार्य कर दिया, जिसे वह करना चाहता था। इस प्रकार, उत्पत्ति 19:24-25 कहती है, "तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई; और उन नगरों को और उस सम्पूर्ण तराई को, और नगरों के सब निवासियों को, भूमि की सारी उपज समेत नष्‍ट कर दिया।" ये दो पद परमेश्वर द्वारा उस नगर को नष्ट करने के तरीके और साथ ही उसके द्वारा नष्ट की गई चीज़ों के बारे में बताते हैं। प्रथम, बाइबल वर्णन करती है कि परमेश्वर ने उस नगर को आग से जला दिया, और आग की मात्रा समस्त लोगों और जो कुछ भूमि पर उगता था उसे, नष्ट करने के लिए पर्याप्त थी। कहने का तात्पर्य है कि स्वर्ग से गिरने वाली उस आग ने न केवल उस नगर को नष्ट कर दिया; बल्कि उसने उसके भीतर के समस्त लोगों और जीवित प्राणियों को भी नष्ट कर दिया, और उनका कोई नामोनिशान नहीं रहा। जब नगर नष्ट हो गया, तो वह भूमि जीवित प्राणियों से विहीन हो गई; वहाँ कोई जीवन नहीं रहा, और न ही जीवन के कोई निशान रहे। नगर एक बंजर भूमि बन गया, एक खाली जगह, जो मौत के सन्नाटे से भरी हुई थी। इस स्थान पर परमेश्वर के विरुद्ध अब और कोई बुरा कार्य नहीं होगा; अब और कोई हत्या या ख़ून-ख़राबा नहीं होगा।

परमेश्वर क्यों इस नगर को पूरी तरह से जलाना चाहता था? तुम लोग यहाँ क्या देख सकते हो? क्या परमेश्वर वाकई मनुष्य और प्रकृति, अपनी स्वयं की सृष्टि को इस तरह नष्ट होते हुए सहन कर सकता था? यदि तुम उस आग से, जिसे स्‍वर्ग से बरसाया गया था, यहोवा परमेश्वर के कोप को समझ सको, तो उसके विनाश के लक्ष्यों को और जिस हद तक इस नगर को नष्ट किया गया, उसे देखते हुए यह समझना कठिन नहीं है कि उसका कोप कितना बड़ा था। जब परमेश्वर किसी नगर से घृणा करता है, तो वह उस पर अपना दंड बरसाएगा। जब परमेश्वर किसी नगर से अप्रसन्न होता है, तो वह लोगों को अपने क्रोध से अवगत कराते हुए बार-बार चेतावनियाँ जारी करेगा। किंतु जब परमेश्वर किसी नगर का खात्मा और विनाश करने का निर्णय लेता है—अर्थात् जब उसके कोप और वैभव को ठेस पहुँचती है—तो वह आगे कोई दंड और चेतावनी नहीं देगा। इसके बजाय, वह सीधे उसे नष्ट कर देगा। वह उसे पूरी तरह से मिटा देगा। यह परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II

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