परमेश्वर के दैनिक वचन : अंत के दिनों में न्याय | अंश 78

"न्याय" शब्द का जिक्र होने पर संभवत: तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे, जो यहोवा ने प्रत्येक क्षेत्र के लोगों को निर्देश देते हुए कहे थे और जो वचन यीशु ने फरीसियों को फटकार लगाते हुए कहे थे। अपनी समस्त कठोरता के बावजूद, ये वचन परमेश्वर द्वारा मनुष्य का न्याय नहीं थे; बल्कि वे विभिन्न परिस्थितियों, अर्थात् विभिन्न संदर्भों में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन हैं। ये वचन अंत के दिनों के मसीह द्वारा मनुष्यों का न्याय करते हुए कहे जाने वाले शब्दों से भिन्न हैं। अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है। अगर तुम इन सत्यों को महत्वपूर्ण नहीं समझते, अगर तुम सिवाय इसके कुछ नहीं समझते कि इनसे कैसे बचा जाए, या किस तरह कोई ऐसा नया तरीका ढूँढ़ा जाए जिनमें ये शामिल न हों, तो मैं कहूँगा कि तुम घोर पापी हो। अगर तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है, फिर भी तुम सत्य को या परमेश्वर की इच्छा को नहीं खोजते, न ही उस मार्ग से प्यार करते हो, जो परमेश्वर के निकट लाता है, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो न्याय से बचने की कोशिश कर रहा है, और यह कि तुम एक कठपुतली और ग़द्दार हो, जो महान श्वेत सिंहासन से भागता है। परमेश्वर ऐसे किसी भी विद्रोही को नहीं छोड़ेगा, जो उसकी आँखों के नीचे से बचकर भागता है। ऐसे मनुष्य और भी अधिक कठोर दंड पाएँगे। जो लोग न्याय किए जाने के लिए परमेश्वर के सम्मुख आते हैं, और इसके अलावा शुद्ध किए जा चुके हैं, वे हमेशा के लिए परमेश्वर के राज्य में रहेंगे। बेशक, यह कुछ ऐसा है, जो भविष्य से संबंधित है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है

अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के मायने

1

जान लो अंत के दिनों में मसीह अनेक सत्यों से इंसान को है सिखाता, सत्यों से वो इंसान के सार को उजागर करता है, विश्लेषण उसकी बातों, कर्मों का है करता।

2

मसीह के वचनों में अनेक सत्य होते हैं, इंसानी फ़र्ज़ के, ईश्वर के प्रति निष्ठा के, आज्ञापालन के, सामान्य मानवता में जीने के, परमेश्वर की बुद्धि के, स्वभाव आदि के।

3

इन सारे वचनों का निशाना है इंसान का सार और भ्रष्टता। जो वचन दिखाते हैं कि कैसे ईश्वर को नकारता है इंसान, वे बताते हैं शैतान का मूर्त रूप और ईश्वर का वैरी है इंसान। न्याय का कार्य इंसान में ईश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करता है, और इंसान के बागीपन के सच को उजागर करता है। ये ईश्वर की इच्छा का, उसके कार्य के मकसद का ज्ञान कराता है, कराता रहस्यों का ज्ञान जो समझे न इंसान, उसे उसकी भ्रष्टता और इसके मूल का, इंसान की बदसूरती का ज्ञान कराता है।

4

अपने न्याय के कार्य में ईश्वर, इंसान की प्रकृति को कुछ वचनों से नहीं, लम्बे वक्त में उसे उजागर करके, व्यवहार और काट-छाँट से स्पष्ट करता है।

5

सामान्य वचन न ले सकें इन रीतियों की जगह, सत्य ही कर सके ये काम जिससे वंचित है इंसान। यही तरीके न्याय हैं, इनकी मदद से सच्चा ज्ञान पाए इंसान, इनके अधीन हो, ईश्वर की आज्ञा सुने इंसान। न्याय का कार्य इंसान में ईश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करता है, और इंसान के बागीपन के सच को उजागर करता है। ये ईश्वर की इच्छा का, उसके कार्य के मकसद का ज्ञान कराता है, कराता रहस्यों का ज्ञान जो समझे न इंसान, उसे उसकी भ्रष्टता और इसके मूल का, इंसान की बदसूरती का ज्ञान कराता है। न्याय के काम के ये परिणाम होते हैं, क्योंकि जो आस्था रखते ईश्वर में, ये उनके लिये सत्य, मार्ग और जीवन खोलता है। यही न्याय का कार्य है जो ईश्वर करता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है से रूपांतरित

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