परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 524

मनुष्य को एक अर्थपूर्ण जीवन का अनुसरण करना होगा, और मनुष्य को अपनी वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। पतरस के स्वरूप जीवन बिताने के लिए, उसे पतरस के ज्ञान और अनुभवों को धारण करना होगा। मुनष्य को ऐसी चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए जो ऊँची और बहुत ज़्यादा गम्भीर हैं। उसे परमेश्वर के गहरे एवं शुद्ध प्रेम, और एक ऐसे जीवन का अनुसरण करना होगा, जिसका मूल्य और अर्थ है। केवल यह ही जीवन है; केवल तब ही मनुष्य पतरस के समान होगा। तुझे सकारात्मक पहलु में प्रवेश करने के लिए सक्रिय होने की ओर ध्यान केन्द्रित करना होगा, और अति गम्भीर, अति विशिष्ट, और अति व्यावहारिक सच्चाईयों को नज़रअंदाज करते हुए क्षणिक आराम के लिए तुझे स्वयं को अधीनतापूर्वक पीछे हटने नहीं देना चाहिए। तेरा प्रेम व्यावहारिक होना चाहिए, और तुझे स्वयं को इस भ्रष्ट, और बेपरवाह जीवन से स्वतंत्र होने के लिए रास्ते ढूँढ़ने होंगे जो किसी जानवर की ज़िन्दगी से अलग नहीं है। तुझे एक अर्थपूर्ण जीवन, एवं एक ऐसा जीवन व्यतीत करना होगा जिसका मूल्य है, और तुझे स्वयं को मूर्ख नहीं बनाना चाहिए, या अपने जीवन के साथ खेले जाने वाले खिलौने की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर किसी के लिए जो परमेश्वर से प्रेम करने की आकांक्षा करता है, कोई सत्य अप्राप्य नहीं है, और कोई न्याय ऐसा नहीं है जिसके लिए वे खडे़ नहीं हो सकते हैं। तुझे अपना जीवन कैसे बिताना चाहिए? तुझे परमेश्वर से प्रेम कैसे करना चाहिए, और इस प्रेम का उपयोग करके उसकी इच्छा को कैसे संतुष्ट करना चाहिए? तेरे जीवन में इस से बड़ा कोई मुद्दा नहीं है? सब से बढ़कर, तेरे पास ऐसी आकांक्षा और दृढ़ता होनी चाहिए, और तुझे उन बेहद कमज़ोर दुर्बल प्राणियों के समान नहीं होना चाहिए। तुझे सीखना होगा कि एक अर्थपूर्ण जीवन को कैसे अनुभव किया जाता है, और तुझे अर्थपूर्ण सच्चाईयों को सीखना होगा, और तुझे अपने आपसे लापरवाही के साथ बर्ताव नहीं करना चाहिए। तू इसका एहसास ही नहीं कर पाता है, और तेरा जीवन यों ही गुज़र जाएगा; और उसके बाद, क्या तेरे पास परमेश्वर से प्रेम करने का दूसरा अवसर होगा? क्या मनुष्य मरने के बाद परमेश्वर से प्रेम कर सकता है? तेरे पास पतरस के समान ही आकांक्षाएँ और विवेक होना चाहिए; तेरा जीवन अर्थपूर्ण होना चाहिए, और तुझे स्वयं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए! एक मनुष्य के रूप में, और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले एक व्यक्ति के रूप में, तुझे इस योग्य होना होगा कि तू सावधानी से विचार कर सके कि तुझे अपने जीवन के साथ कैसा व्यवहार करना है, कि तुझे स्वयं को किस प्रकार परमेश्वर के सामने अर्पण करना चाहिए, कि तुझमें परमेश्वर के प्रति और अधिक अर्थपूर्ण विश्वास कैसे होना चाहिए, और चूँकि तू परमेश्वर से प्रेम करता है, तुझे उससे उस रीति से कैसे प्रेम करना चाहिए जो कहीं ज़्यादा पवित्र, सुन्दर, एवं अच्छा हो। आज, तू केवल इस बात से संतुष्ट नहीं हो सकता है कि तुझ पर किस प्रकार विजय पायी गयी है, बल्कि तुझे उस पथ पर भी विचार करना होगा जिस पर तू भविष्य में चलेगा। तेरे पास आकांक्षाएँ और साहस अवश्य होना चाहिए जिस से तुझे सिद्ध बनाया जा सके, और तुझे हमेशा यह नहीं सोचना चाहिए कि तू असमर्थ है। क्या सत्य की भी अपनी पसंदीदा चीज़ें होती हैं? क्या सत्य जानबूझकर लोगों का विरोध कर सकता है? यदि तू सत्य के पीछे पीछे चलता है, तो क्या यह तुझे अभीभूत कर सकता है? यदि तू न्याय के लिए मज़बूती से खडा होता है, तो क्या यह तुझे मार कर नीचे गिरा देगा? यदि यह सचमुच में तेरी आकांक्षा है कि तू जीवन का अनुसरण करे, तो क्या जीवन तुझसे बच कर निकल जाएगा? यदि तेरे पास सत्य नहीं है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि सत्य तुझे नहीं पहचानता है, बल्कि इसलिए है क्योंकि तू सत्य से दूर रहता है; यदि तू न्याय के लिए मज़बूती से खड़ा नहीं हो सकता है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि न्याय के साथ कुछ न कुछ गड़बड़ी है, परन्तु इसलिए है क्योंकि तू विश्वास करता है कि यह प्रमाणित सच्चाई से अलग है; कई सालों तक जीवन का पीछा करते हुए भी यदि तूने जीवन प्राप्त नहीं किया है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि जीवन के पास तेरे लिए कोई सद्विचार नहीं है, परन्तु इसलिए है क्योंकि तेरे पास जीवन के लिए कोई सद्विचार नहीं है, और तूने जीवन को बाहर निकाल दिया है; यदि तू ज्योति में जीता है, और यदि तू ज्योति को पाने में असमर्थ रहा है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि ज्योति के लिए तेरे ऊपर चमकना असंभव है, परन्तु इसलिए है क्योंकि तूने ज्योति की उपस्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया, और इस प्रकार ज्योति तेरे पास से खामोशी से चली गई है। यदि तू अनुसरण नहीं करेगा, तो केवल यह कहा जा सकता है कि तू फालतू कचरा है, और तेरे जीवन में कोई साहस नहीं है, और अंधकार की ताकतों को रोकने के लिए तेरे पास आत्मा नहीं है। तू बहुत ही ज़्यादा कमज़ोर है! तू शैतान की उन ताकतों से बचने में असमर्थ है जो तुझे जकड़ लेती हैं, और तू केवल इस प्रकार के सकुशल और सुरक्षित जीवन में आगे बढ़ना और अपनी अज्ञानता में मरना चाहता है। जो तुझे हासिल करना चाहिए वह है विजय पा लिए जाने की तेरी प्रवृत्ति; यह तेरा परम कर्तव्य है। यदि तू इस बात से संतुष्ट है कि तुझ पर विजय पा ली गयी है, तो तू ज्योति की मौजूदगी को दूर हटा देता है। तुझे सत्य के लिए कठिनाई उठानी पड़ेगी, तुझे स्वयं को सत्य के लिए देना होगा, तुझे सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुझे अधिक कष्ट से होकर गुज़रना होगा। तुझे यही करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण ज़िन्दगी के लिए तुझे सत्य को दूर नहीं फेंकना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुझे अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुझे उन सब चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए जो ख़ूबसूरत और अच्छा है, और तुझे अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो कहीं ज़्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तू एक ऐसे घिनौने जीवन में आगे बढ़ता है, और किसी उद्देश्य का पीछा नहीं करता है, तो क्या तू अपने जीवन को बर्बाद नहीं करता है? तू एक ऐसे जीवन से क्या हासिल कर पाएगा? तुझे एक सच्चाई के लिए देह के सारे सुख विलासों को छोड़ देना चाहिए, और तुझे थोड़े से सुख विलास के लिए सारी सच्चाईयों को दूर नहीं फेंकना चाहिए। ऐसे लोगों के पास कोई सत्यनिष्ठा और गरिमा नहीं होती है; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

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