परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 493

जब लोग अपने हृदय से परमेश्वर से संपर्क करते हैं, जब उनके हृदय पूरी तरह से उसकी ओर मुड़ने में सक्षम होते हैं, तो यह परमेश्वर के प्रति मानव के प्रेम का पहला कदम होता है। यदि तू परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो तुझे सबसे पहले उसकी ओर अपना हृदय मोड़ने में सक्षम होना होगा। परमेश्वर की ओर अपना हृदय मोड़ना क्या है? ऐसा तब होता है जब तेरे हृदय के हर प्रयास परमेश्वर से प्रेम करने और उसे प्राप्त करने के लिए होते हैं, तो इससे पता चलता है कि तूने पूरी तरह से अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ लिया है। परमेश्वर और उसके वचनों के अलावा, तेरे हृदय में लगभग और कुछ भी नहीं होता है (परिवार, धन, पति, पत्नी, बच्चे या अन्य चीज़ें)। अगर ऐसी चीज़ें होती भी हैं तो वे तेरे हृदय पर अधिकार नहीं कर सकती हैं, और तू अपने भविष्य की संभावनाओं के बारे में नहीं सोचता है, तू केवल परमेश्वर के प्रेम के पीछे जाने की सोचता है। उस समय तूने पूरी तरह से अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ दिया होगा। मान ले कि तू अब भी अपने हृदय में अपने लिए योजना बना रहा है और हमेशा अपने निजी लाभ का पीछा करता रहता है, हमेशा सोचता है कि : "मैं कब परमेश्वर से एक छोटा सा अनुरोध कर सकता हूँ? कब मेरा परिवार धनी बन जाएगा? मैं कैसे कुछ अच्छे कपड़े प्राप्त कर सकता हूँ? ..." यदि तू उस स्थिति में रह रहा है तो यह दर्शाता है कि तेरा हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर नहीं मुड़ा है। यदि तेरे हृदय में केवल परमेश्वर के वचन हैं और तू हर समय परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता है और उसके करीब हो सकता है, मानो कि वह तेरे बहुत करीब हो, मानो परमेश्वर तेरे भीतर हो और तू उसके भीतर हो; यदि तू उस तरह की अवस्था में है, तो इसका मतलब है कि तेरा हृदय परमेश्वर की उपस्थिति में है। यदि तू हर दिन परमेश्वर से प्रार्थना करता है और उसके वचनों को खाता और पीता है, हमेशा कलीसिया के कार्य के बारे में सोचता रहता है, यदि तू परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशीलता दिखाता है, अपने हृदय का उससे सच्चा प्रेम करने और उसके हृदय को संतुष्ट करने के लिए उपयोग करता है, तो तेरा हृदय परमेश्वर का होगा। यदि तेरा हृदय अन्य कई चीजों में लिप्त है, तो इस पर अभी भी शैतान का कब्ज़ा है और यह पूरी तरह परमेश्वर की ओर नहीं मुड़ा है। जब किसी का हृदय वास्तव में परमेश्वर की ओर मुड़ जाता है, तो उसके पास परमेश्वर के लिए सच्चा, स्वाभाविक प्रेम होगा और वह परमेश्वर के कार्य पर विचार करने में सक्षम होगा। यद्यपि वे अभी भी किसी पल मूर्खता और विवेकहीनता दिखा सकते हैं, फिर भी वे परमेश्वर के घर के हितों के बारे में, उसके कार्य के लिए, और अपने स्वभाव में बदलाव के लिए विचार करने में सक्षम होंगे और उनके हृदय के इरादे पूरी तरह से सही होंगे। कुछ लोग हमेशा यह दावा करते हैं कि वे जो भी करते है वो कलीसिया के लिए होता है; लेकिन सच्चाई यह है कि वे अपने फायदे के लिए कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोगों के इरादे गलत होते हैं। वे कुटिल और धोखेबाज हैं और वे अधिकांश चीज़ें जो करते हैं, वह उनके निजी लाभ के लिए होती हैं। उस तरह का व्यक्ति परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण नहीं करता है; उसका हृदय अब भी शैतान का है और परमेश्वर की ओर नहीं मुड़ सकता है। इस प्रकार, परमेश्वर के पास उस तरह के व्यक्ति को प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं है।

परमेश्वर से वास्तव में प्रेम करने और उसके द्वारा प्राप्त किये जाने का पहला चरण है, अपना हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की तरफ मोड़ना। हर एक चीज़ में जो तू करता है, आत्म निरीक्षण कर और पूछ : "क्या मैं यह परमेश्वर के प्रति प्रेम से भरे हृदय के आधार पर कर रहा हूँ? क्या इसमें मेरा कोई निजी इरादा है? ऐसा करने में मेरा वास्तविक लक्ष्य क्या है?" यदि तू अपना हृदय परमेश्वर को सौंपना चाहता है तो तुझे पहले अपने हृदय को वश में करना होगा, अपने सभी प्रयोजनों को छोड़ देना होगा, और पूरी तरह से परमेश्वर के लिए समर्पित होने की अवस्था को हासिल करना होगा। यह अपने हृदय को परमेश्वर को देने के अभ्यास का मार्ग है। अपने स्वयं के हृदय को वश में करने का क्या अभिप्राय है? यह अपने शरीर की अनावश्यक इच्छाओं को छोड़ देना है, रुतबे के आशीष का लालच या सुविधाओं का लालच नहीं करना है। यह परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सब कुछ करना है, और यह अपना हृदय पूरी तरह से परमेश्वर के लिए बनाना है, स्वयं के लिए नहीं। इतना काफी है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम स्वाभाविक है

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