परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 371
मेरी नज़रों में, मनुष्य सभी चीज़ों का शासक है। मैंने उसे कम मात्रा में अधिकार नहीं दिया है, उसे पृथ्वी पर सभी चीज़ों—पहाड़ो के ऊपर की घास,...
हम परमेश्वर के प्रकटन के लिए बेसब्र सभी साधकों का स्वागत करते हैं!
सृजनकर्ता सृष्टि के सभी प्राणियों का आयोजन करने का इरादा रखता है। तुम्हें उसके द्वारा की जाने वाली किसी भी चीज़ को ठुकराना या उसकी अवज्ञा नहीं करनी चाहिए, न ही तुम्हें उसके प्रति विद्रोही होना चाहिए। जब उसके द्वारा किया जाने वाला कार्य अंततः उसके लक्ष्य हासिल करेगा, तो वह इसमें महिमा प्राप्त करेगा। आज ऐसा क्यों नहीं कहा जाता कि तुम मोआब के वंशज हो, या बड़े लाल अजगर की संतान हो? क्यों चुने हुए लोगों के बारे में कोई बातचीत नहीं होती, और केवल सृजित प्राणियों के बारे में ही बातचीत होती है? सृजित प्राणी—यह मनुष्य का मूल नाम था, और यही उसकी स्वाभाविक पहचान है। नाम केवल इसलिए अलग-अलग होते हैं, क्योंकि कार्य के युग और काल अलग-अलग होते हैं; वास्तव में, मनुष्य एक साधारण प्राणी है। सभी प्राणियों को, चाहे वे अत्यंत भ्रष्ट हों या अत्यंत पवित्र, एक प्राणी का कर्तव्य अवश्य निभाना चाहिए। जब परमेश्वर विजय का कार्य करता है, तो वह तुम्हारे भविष्य की संभावनाओं, भाग्य या मंज़िल का उपयोग करके तुम्हें नियंत्रित नहीं करता। वास्तव में इस तरह से कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं है। विजय के कार्य का लक्ष्य मनुष्य से एक सृजित प्राणी के कर्तव्य का पालन करवाना है, उससे सृजनकर्ता की आराधना करवाना है; केवल इसके बाद ही वह अद्भुत मंज़िल में प्रवेश कर सकता है। मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते? संक्षेप में, परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, उसका समस्त कार्य केवल मनुष्य के वास्ते होता है। उदाहरण के लिए, स्वर्ग और पृथ्वी और उन सभी चीज़ों को लो, जिन्हें परमेश्वर ने मनुष्य की सेवा करने के लिए सृजित किया : चंद्रमा, सूर्य और तारे, जिन्हें उसने मनुष्य के लिए बनाया, जानवर और पेड़-पौधे, बसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु इत्यादि—ये सब मनुष्य के अस्तित्व के वास्ते ही बनाए गए हैं। और इसलिए, परमेश्वर मनुष्य को चाहे जैसे भी ताड़ित करता हो या चाहे जैसे भी उसका न्याय करता हो, यह सब मनुष्य के उद्धार के वास्ते ही है। यद्यपि वह मनुष्य को उसकी दैहिक आशाओं से वंचित कर देता है, पर यह मनुष्य को शुद्ध करने के वास्ते है, और मनुष्य का शुद्धिकरण इसलिए किया जाता है, ताकि वह जीवित रह सके। मनुष्य की मंज़िल सृजनकर्ता के हाथ में है, तो मनुष्य स्वयं को नियंत्रित कैसे कर सकता है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।
मेरी नज़रों में, मनुष्य सभी चीज़ों का शासक है। मैंने उसे कम मात्रा में अधिकार नहीं दिया है, उसे पृथ्वी पर सभी चीज़ों—पहाड़ो के ऊपर की घास,...
विजयी राजा अपने शानदार सिंहासन पर बैठता है। उसने छुटकारा दिलाने का कार्य पूरा कर लिया है और महिमा में प्रकट होने के लिए अपने सभी लोगों की...
क्या यीशु का नाम—"परमेश्वर हमारे साथ"—परमेश्वर के स्वभाव को उसकी समग्रता से व्यक्त करता है? क्या यह पूरी तरह से परमेश्वर को स्पष्ट कर सकता...
अंत के दिनों का कार्य वचनों को बोलना है। वचनों के माध्यम से मनुष्य में बड़े परिवर्तन किए जा सकते हैं। इन वचनों को स्वीकार करने पर इन लोगों...