परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 463
03 सितम्बर, 2020
क्या तू परमेश्वर के किसी युग विशिष्ट स्वभाव को ऐसी उचित भाषा में अभिव्यक्त कर सकता है जिसका युग में महत्व हो? परमेश्वर के कार्य के अपने अनुभव से, क्या तू परमेश्वर के स्वभाव का वर्णन विस्तार से कर सकता है? तू कैसे सटीक रूप से, उचित रूप से उसका वर्णन कर सकता है? जिसके माध्यम से, दूसरे तेरे अनुभवों के बारे में सीख सकें। तू दयनीय, बेचारे और धार्मिकता के भूखे प्यासे धर्मी भक्त विश्वासियों के साथ, जो तेरी चरवाही की आस लगाए बैठे हैं, अपने दर्शनों और अनुभवों को कैसे बांटेगा? किस प्रकार के पात्र तेरी प्रतीक्षा में हैं कि तू उनकी चरवाही करे? क्या तू कल्पना कर सकता है? क्या तू अपने कधों पर बोझ, अपने महान आदेश और अपनी उत्तरदायित्व के प्रति जागृत है? मिशन के प्रति तेरा ऐतिहासिक एहसास कहाँ चला गया? तू अगली पीढ़ी के वास्ते एक अच्छे गुरु समान, कैसे सेवा दे पाएगा? क्या तुझमें गुरुपन का बहुत गंभीरता से एहसास है? तू समस्त पृथ्वी के गुरु का वर्णन कैसे करेगा? क्या वह वास्तव में संसार की समस्त सजीवों और वस्तुओं का गुरु है? कार्य को बढ़ाने हेतु योजनाओं में तुम्हारा अगला कदम क्या है? तुझे चरवाहे के रूप में देखने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन सा है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, सब खो चुके हुए, अंधकार में विलाप कर रहे हैं, "मार्ग कहां है?" उनमें ज्योति, जैसे गिरते हुए तारे, के लिए कैसी ललक है कि वह नीचे आकर उस अंधकार की शक्ति को तितर बितर करे, जिसने कई वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे कैसे उत्सुकतापूर्वक आशा करते हैं और कैसे वे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? ये लोग जो बुरी तरह से सताए जाते हैं, अंधकार के जेल में कैद रहते हैं, छूटने की आशा के बिना, उस दिन भी जब किरण चमकती है; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएं, जिन्हें विश्राम की अनुमति ही नहीं दी गयी, सच में दुर्भाग्य से पीड़ित हैं। वे सदियों से क्रूर रस्सियों के बधंन में हैं, और इतिहास में उनको जमी हुई बर्फ के समान मुहरबंद करके रखा गया है। किसने उनके कराहने की आवाज को कभी सुना है? किसने उनके दयनीय चेहरे को कभी देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिसे उसने अपने हाथों से रचा उस निर्दोष मानव जाति को ऐसी पीड़ा में दुख उठाते हुए देखकर वह कैसे सह सकता है? वैसे भी मानव जाति तो वह दुर्भाग्यशाली है जिस पर विष प्रयोग किया गया है। यद्यपि वे आज के दिन तक जीवित हैं, कौन यह सोच सकता था कि उन्हें लंबे समय से उस दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि तू शिकार हुए लोगों मे से एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम के खातिर, क्या तू उन्हें बचाने को इच्छुक नहीं है जो जीवित बच गए हैं? क्या तू उस परमेश्वर को कीमत चुकाने हेतु अपना सारा जोर लगाने के लिए इच्छुक नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है? तू एक असाधारण जीवन व्यतित करने के लिए परमेश्वर द्वारा प्रयोग में लाए जाने की कैसे व्याख्या करता है? क्या सच में तुझमें एक धार्मिक, परमेश्वर की सेवा करने वाले, एक अर्थपूर्ण जीवन यापन करने का सकंल्प और विश्वास है?
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से उद्धृत
क्या तुम हो अपने लक्ष्य के प्रति आगाह?
क्या तुम हो अपने लक्ष्य से अवगत? क्या तुम अपने बोझ, फ़र्ज़, और कर्तव्यों से अवगत हो? कहाँ है तुम्हारा वो ऐतिहासिक कर्तव्य का अहसास? कैसे बनोगे अगले युग के मालिक तुम? क्या तुम्हारी स्वामित्व की समझ मज़बूत है? सभी का मालिक होने का अर्थ कैसे समझाओगे? क्या वो सारे जीवों का मालिक है या फिर इस पूरे भौतिक संसार का मुखिया? कार्य के अगले कदम की क्या है तुम्हारी योजना? जाने कितने हैं तरसते चरवाही के लिए तुम्हारी? क्या तुम्हें नहीं लगता ये कार्य अतिभारी? क्या तुम्हें नहीं लगता ये कार्य अतिभारी?
ये लाचार आत्माएं हैं दयनीय, अंधी और भटकी, चीखतीं अंधेरों में, इंतज़ार में बाहर निकलने के। कैसे वो चाहे रोशनी टूटते तारे-सी आए और ख़त्म करे अंधेरा जिसने ज़ुल्म किया उन पे सदियों से। कौन है जो जाने दिन-रात की उनकी तड़प को? जब रोशनी चमकती, बिना रिहाई की उम्मीद ये बदनसीब क़ैद रहते अंधेरे में। कब उनके आँसू रुकेंगे? कब उनके आँसूं रुकेंगे? ये बेचैन नाज़ुक आत्माएं हैं झेल रहीं ऐसा दुर्भाग्य। बेरहम धागे, जमे हुए इतिहास ने कब का इन्हें बंद कर दिया। किसी ने कब सुना उनका इतना रोना? किसी ने कब देखा उनका सारा कष्ट?
क्या तुमने कभी परमेश्वर के बारे में सोचा? वो कितना दुखी और बेचैन हो सकता है? कैसे सहे वो मानव जाति को पीड़ित देखके, जिसे उसने अपने हाथों से बनाया? इंसानियत विषाक्त, बदकिस्मत है। माना कि आज भी मानव जाति जीवित है, पर वो कब से विषाक्त है बुराई से। क्या तुम भूल गए तुम भी पीड़ित हो इसी से? क्या तुम नहीं चाहते अपने परमेश्वर के लिए उनको बचाना जो हैं अब भी बचे? क्या तुम नहीं चाहते अपने प्रयासों से परमेश्वर को चुकाना, जो प्यार करता मानव को जैसे खुद का खून और मांस? ईश्वर द्वारा उपयोग से असाधारण जीवन जीने को कैसे समझते हो? क्या तुम में इच्छा है, आत्मविश्वास है पुण्य जीवन जीने का, ऐसा जीवन जो समर्पित हो ईश्वर की सेवा के लिए? ऐसा जीवन जो समर्पित हो ईश्वर की सेवा के लिए?
'मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ' से
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