अध्याय 23. परमेश्वर की देह और आत्मा के एकत्व को कैसे समझें

कुछ लोग पूछते हैं, "परमेश्वर मनुष्यजाति के हृदय में गहराई से देखता है, और परमेश्वर की देह और आत्मा एक हैं। जो लोग कहते हैं परमेश्वर सब जानता है, तो क्या परमेश्वर जानता है कि अभी मैं उस पर विश्वास करता हूँ?" इस प्रश्न का उत्तर देने में, परमेश्वर के देहधारण और उसके आत्मा और देह के मध्य के सम्बन्ध को कैसे समझें, सम्मिलित है। कुछ लोग कहते हैं, "परमेश्वर यथार्थपूर्ण रीति से वास्तविक है।" अन्य लोग कहते हैं, "वह एक यथार्थपूर्ण रीति से वास्तविक है। परन्तु उसका देह और आत्मा एक हैं, अतः उसे यह जानना चाहिए!" परमेश्वर को जानना प्रधानतः उसके सार और उसके आत्मा की विशेषताओं को जानना है, और मनुष्य को यह निर्धारण करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए कि परमेश्वर का देह सब कुछ जानता है या उसका आत्मा सब कुछ जानता है; परमेश्वर प्रज्ञावान और अद्भुत, और मनुष्य के लिए अथाह है। कल्पना करो कि रात को तुम सो गए, और तुम्हारी आत्मा छोड़कर चली गई और फिर लौट आई। क्या तुम्हें पता होगा कि यह कहाँ गई थी? क्या तुम अपने भीतर आत्मा को छू सकते हो? क्या तुम जानते हो कि तुम्हारा आत्मा क्या कर रहा है? शरीर, आत्मा और वह व्यक्ति जिसके शरीर के भीतर आत्मा ने मूर्त रूप लिया है-ये वे मुद्दे हैं जो तुम सब स्पष्टता से नहीं समझे हो। जब परमेश्वर देहधारण करता है और आत्मा देह में मूर्त रूप धारण करता है, इसके परिणामस्वरूप बने व्यक्ति का सार दिव्य होता है, एक मनुष्य के सार और एक मानव शरीर के भीतर किस प्रकार की आत्मा वास करती है उससे पूरी तरह से भिन्न; वे दो पूरी तरह से भिन्न बातें हैं। एक मनुष्य का सार और उसकी आत्मा उसी व्यक्ति से जुड़ी हुई है। परमेश्वर का आत्मा उसके देह से जुड़ा हुआ है, परन्तु अभी भी वह सर्व-सामर्थी है। जब वह देह के भीतर अपना कार्य कर रहा है, तो उसका आत्मा भी हर जगह कार्य कर रहा है। तुम इस सर्वसामर्थ्य के स्वभाव या इसे स्पष्टता से देखने की मांग नहीं कर सकते। इसे स्पष्टता से देखने का कोई तरीका नहीं है। तुम्हारे लिए यह देखना पर्याप्त है कि जब देह अपना कार्य करता है, तो पवित्र आत्मा अपना कार्य कैसे करता है। आत्मा के पास सर्व-सामर्थी होने की विशेषता है; वह सम्पूर्ण सृष्टि को नियन्त्रित करता है और उन्हें बचाता है, जिन्हें वह चुनता है, और वह प्रत्येक व्यक्ति को प्रबुद्ध करने के लिए भी कार्य करता है, जब उसी समय देह भी अपना कार्य कर रहा है। तुम नहीं कह सकते कि जब आत्मा कार्य करता है तो देह को आत्मा की घटी है। यदि तुम यह कहते हो, तो क्या तुम परमेश्वर के देहधारण का इन्कार नहीं करोगे? परन्तु, कुछ बातें हैं, जो देह नहीं जानती है। यह न जानना मसीह का सामान्य और व्यावहारिक पहलू है। कि देह में परमेश्वर का आत्मा यथार्थपूर्ण रूप से साधित है, यह प्रमाणित करता है कि स्वयं परमेश्वर ही उस देह का सार है। उसका आत्मा पहले से ही सब बातें जानता है, जो उसकी देह का व्यावहारिक पहलू नहीं जानता, तो कहा जा सकता है कि परमेश्वर वह बात पहले से ही जानता है। यदि तुम देह के व्यावहारिक पहलू के कारण आत्मा के पहलू से इन्कार करते हो और यह इन्कार करते हो कि यह देह स्वयं परमेश्वर है, तो तुम ने भी फरीसियों जैसी ही गलती की है। कुछ लोग कहते हैं, "परमेश्वर की देह और आत्मा एक हैं, तो क्या परमेश्वर जानता है कि एक ही बार में हम ने कितने लोग उसके लिए जीते, जब हम ने सुसमाचार-प्रचार किया? हो सकता है वह जानता है, क्योंकि क्या यह नहीं कहा गया है कि आत्मा और देह एक हैं? आत्मा जानता है और इस प्रकार देह भी इसके बारे में जान जाता है, क्योंकि वे एक समान हैं!" तुम्हारा इस प्रकार बोलना आत्मा का इन्कार करता है। देह उसके व्यावहारिक और सामान्य पहलू को मूर्त रूप प्रदान करता है: कुछ बातें हैं जो देह जान सकती है और कुछ बातें देह को जानने की आवश्यकता नहीं है। यही उसका सामान्य और व्यावहारिक पहलू है। कुछ लोग कहते हैं, "आत्मा जानता है, जिससे देह निश्चयतः जानती है।" इस प्रकार की बात वास्तविकता के दायरे से बाहर है, और उसके कारण तुम देह के सार से इन्कार करते हो। देहधारी परमेश्वर के विषय में कुछ बातें उससे भिन्न हैं जैसे मनुष्य उनके बारे में सोचता है कि वे अदृश्य, अस्पर्शनीय, रहस्यमयी हैं, और वह आकाश और भूगोल के द्वारा सीमित किए गए बिना सब कुछ जानने के योग्य है। यदि ऐसा है, तो यह देह नहीं, अपितु आत्मिक शरीर है। यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के और फिर पुनर्जीवित होने के पश्चात, वह दरवाज़े में से पार जा सका, परन्तु वह पुनर्जीवित यीशु था। पुनरुत्थान से पहले यीशु दीवार के पार नहीं जा सकता था; यह सम्भव ही नहीं है। वह आकाश, भूगोल और समय के द्वारा बंधा था। यही देह का सामान्य पहलू है।

एक मसले को तौला जाना और उसके बारे में विस्तार से बात करनी आवश्यक है। तुम महज़ कह देते हो कि परमेश्वर की देह और आत्मा एक हैं और इस प्रकार जो आत्मा जानता है, वह देह भी जानती है, परन्तु देह सामान्य और व्यावहारिक पहलू को मूर्त रूप प्रदान करती है। उससे आगे यह एक अन्य मसला है। देह में अपना कार्य करते हुए वह स्वयं वही है जो यह कर रहा है: आत्मा और देह दोनों कार्य में लगे हुए हैं। मुख्यतः, यह देह के द्वारा किया जाता है; देह प्राथमिक है। आत्मा लोगों को प्रबुद्ध करने, मार्गदर्शन करने, सहायता करने, सुरक्षित रखने और उनकी निगरानी करने के लिए कार्य करता है, जबकि कार्य में देह मुख्य भूमिका रखती है। परन्तु यदि वह किसी को जानना चाहता है, तो यह एक साधारण मसला है। जब एक मनुष्य दूसरे को समझना चाहता है, तो वह दूसरे के कार्य की बुराई की हद को नहीं जान पाएगा, जब तक वह उन्हें देख न ले। परन्तु देहधारी परमेश्वर इस विषय में सर्वदा एक अहसास रखता है कि एक नीचे का व्यक्ति किस प्रकार व्यवहार करता है और वह इसके विषय में न्याय करने में समर्थ होता है। यह असम्भव है कि वह ऐसी कोई अनुभूति नहीं रखता है। ऐसा कहना, कि वह उस व्यक्ति को नहीं जानता, शब्दों के अर्थ की विद्या का मसला है, परन्तु यह असम्भव है कि वह उस व्यक्ति के बारे में कुछ भी नहीं जानता। उदाहरण के लिए, वह जानता और समझता है कि नीचे तुम सब में से कोई भी कैसा व्यवहार करता है और तुम सब क्या करोगे, और तुम कौन सी और किस हद तक बुराई करोगे। कुछ लोग कहते हैं, "तो क्या परमेश्वर जानता है मैं अभी कहाँ हूँ?" वह यह नहीं जानता; यह जानना आवश्यक नहीं है। तुम्हें वास्तविक रीति से जानना यह जानना नहीं है कि प्रतिदिन तुम कहाँ होते हो। उसे जानने की कोई आवश्यकता नहीं है। स्वभाव से तुम क्या करोगे, यह जानना ही पर्याप्त है, और अपना कार्य करने के लिए उसके लिए यह काफ़ी है। परमेश्वर अपना कार्य कैसे करता है इसके विषय में वह व्यावहारिक है। यह ऐसा नहीं है जैसा लोग कल्पना करते हैं कि जब परमेश्वर एक व्यक्ति को जानता है, तो उसे यह जानना आवश्यक है कि वह व्यक्ति कहाँ है, वह क्या सोच रहा है, वह क्या कह रहा है, वह बाद में क्या करेगा, वह कैसे कपड़े पहनता है, वह कैसा दिखाई देता है, इत्यादि। वस्तुतः, उद्धार का कार्य जो परमेश्वर करता है, उसके लिए मूलभूत रीति से उन बातों को जानने की आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर मात्र एक व्यक्ति के सार और उसके जीवन में विकास की प्रक्रिया को जानने पर केन्द्रित रहता है। जब परमेश्वर देहधारण करता है, तो देह की अभिव्यक्तियाँ व्यावहारिक और सामान्य हैं, और यह व्यावहारिकता और सामान्यता जीतने के कार्य और मनुष्यजाति के उद्धार को पूर्ण करने के लिए धारण की गईं हैं। परन्तु, किसी को भी यह नहीं भूलना है कि देह की वह व्यावहारिकता और सामान्यता, जब परमेश्वर का आत्मा उसकी देह में वास करता है, उसकी सबसे सामान्य अभिव्यक्ति है। तो क्या आत्मा जानता है? आत्मा जानता है। फिर भी क्या वह इन बातों पर ध्यान देता है? वह ध्यान नहीं देता है, और न ही देह तुम्हारे इन मसलों की परवाह करता है। चाहे कुछ भी हो जाए, आत्मा और देह एक हैं, और इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता है। कभी कभी तुम्हारे मन में विचार होते हैं-क्या आत्मा जानता है कि तुम क्या सोच रहे हो? निस्सन्देह, आत्मा जानता है। आत्मा हृदय की गहराई में देखता और जानता है कि लोग क्या सोचते हैं, परन्तु उसका कार्य प्रत्येक के विचारों के बारे में अवगत रहना ही नहीं है। इसके बजाय वह लोगों के हृदयों के विचारों को बदलने के लिए देह के भीतर से सत्य को अभिव्यक्त करने के लिए है। कुछ बातों के बारे में तुम लोगों के विचार बहुत ही अपरिपक्व हैं। तुम सब सोचते हो कि परमेश्वर सब कुछ जानने वाला होना चाहिए। कुछ लोग देहधारी परमेश्वर पर सन्देह करते हैं, यदि परमेश्वर वह नहीं जानता, जिसकी वे कल्पना करते हैं कि उसे जाननी चाहिए। यह सब इसलिए है क्योंकि लोगों के पास परमेश्वर के देहधारी परमेश्वर के सार की अपर्याप्त समझ है। कुछ बातें देह के कार्य की हद से बाहर हैं, जिसकी वह परवाह नहीं करेगा। यह परमेश्वर कैसे कार्य करता है उसका सिद्धान्त है। क्या अब तुम सब ये बातें समझते हो?

मुझे बताओ, क्या तुम जानते हो तुम सब किस आत्मा के हो? क्या तुम अपनी आत्मा को महसूस करने के योग्य हो? क्या तुम अपनी आत्मा को छूने के योग्य हो? क्या तुम सब यह जानने के योग्य हो कि तुम सब की आत्मा क्या कर रही है? तुम सब नहीं जानते हो, है ना? यदि तुम ऐसी बातों को महसूस करने और समझने के योग्य हो, तो यह तुम्हारे भीतर एक अन्य आत्मा बलपूर्वक कुछ करवा रहा है-तुम्हारे कार्यों और शब्दों को नियन्त्रित कर रहा है। तुम में यह कुछ बाहर का है-यह तुम्हारा नहीं है। वे लोग जिनमें दुष्टतात्मा होती है, उन्हें इसका बहुत अनुभव होता है। यद्यपि परमेश्वर की देह उसके व्यावहारिक और सामान्य पहलू को मूर्त रूप प्रदान करती है, एक मनुष्य के रूप में कोई भी स्पष्टता से इसकी परिभाषा नहीं दे सकता और न ही उसके विषय में निष्कर्ष निकाल सकता है। एक मनुष्य के समान बनने के लिए परमेश्वर स्वयं को झुकाता और छुपाता है; उसके कार्य अथाह हैं।

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