मसीह का सार प्रेम है

एक ओर, मसीह के सार को जानकर तुम देहधारी मसीह को भ्रष्ट मानवता से अलग कर पाओगे और देहधारी परमेश्वर को व्यावहारिक परमेश्वर मानकर उसकी आज्ञा का पालन करोगे। दूसरी ओर, तुम्हें देहधारी परमेश्वर के वास्तविक कार्य, सत्य के बारे में उसकी प्रामाणिक अभिव्यक्ति, और मानवता के बीच उसके वास्तविक रहन-सहन को भी देखना चाहिए। तुम्हें देखना चाहिए कि वह कैसे मानवजाति को शुद्ध करता और बचाता है; कैसे वह कोई नबी, प्रेरित या भविष्यवक्ता या परमेश्वर द्वारा भेजा गया कोई मामूली व्यक्ति नहीं, बल्कि देहधारी परमेश्वर, मसीह और स्वयं परमेश्वर है। हालांकि यह देह मानवता से जुड़ा है, फिर भी वह दिव्यता के सार वाला एक साधारण व्यक्ति है। देहधारी परमेश्वर की दिव्यता के इस सार को जानना सबसे महत्वपूर्ण है, कम-से-कम तुम जिन तथ्यों को समझ सकते हो उनका इस्तेमाल करके तुम्हें मसीह के दिव्य सार को साबित करना चाहिए। मसीह के दिव्य सार को जानने के लिए, तुम्हें परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना, उसके कार्य का अनुभव करना, और उसके स्वभाव को जानना चाहिए। देहधारी परमेश्वर के सार को जानने का प्रभाव लोगों को यह पक्का करने में सक्षम बनाता है कि परमेश्वर ने वास्तव में देहधारण किया है और यह देह वास्तव में परमेश्वर ही है। यही एकमात्र तरीका है जिससे लोग परमेश्वर में सच्चा विश्वास कर सकते हैं, सच्ची आज्ञाकारिता और सच्चा प्रेम प्राप्त कर सकते हैं, और केवल जब यह प्रभाव प्राप्त हो जाता है तभी तुम यह साबित कर सकते हो कि तुम्हें परमेश्वर के सार की समझ है।

आज, लोगों को मसीह के बारे में कोई वास्तविक ज्ञान नहीं है। वे परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं और उसे सत्य और पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति मान लेते हैं मगर देह को बिल्कुल नहीं स्वीकारते। वे नहीं जानते कि देह का मूल क्या है या देह और आत्मा का एक दूसरे से कैसा संबंध हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि देह वचन व्यक्त करने के लिए है, उसका उपयोग बोलने और कार्य करने के लिए किया जाता है और यही उसकी सेवकाई है। उनका मानना है कि देह तभी बोलता है जब वह प्रेरित होता है और उसका कार्य तभी पूरा होता है जब वह पूरा करता है, मानो वह कोई संदेशवाहक हो। अगर कोई इस पर विश्वास करता है, तो वह जिसे पहचानता और जिसमें विश्वास करता है वह देहधारी परमेश्वर या मसीह नहीं है, बल्कि केवल नबी के समान कोई व्यक्ति है। कुछ लोग यह भी सोचते हैं, “मसीह एक व्यक्ति है, और चाहे उसके देहधारण का सार जो भी हो या वह परमेश्वर के जिस भी स्वभाव को व्यक्त करता हो, वह स्वर्ग के परमेश्वर या ब्रह्मांड और सभी चीजों पर शासन करने वाले सृष्टिकर्ता का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। क्योंकि वह देहधारी परमेश्वर और सृष्टिकर्ता है जो पृथ्वी पर आया है, तो फिर उसने कोई अलौकिक चमत्कार क्यों नहीं किया है? अगर उसके पास अधिकार है तो वह बड़े लाल अजगर को नष्ट क्यों नहीं कर देता?” जो लोग ऐसी बातें करते हैं वे सभी आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी हैं। वे परमेश्वर के देह धारण करने का अर्थ नहीं समझते, तो देह में परमेश्वर के कार्य के प्रबंधन के दायरे, उसके उद्धार के पात्र कौन लोग हैं, वह क्या व्यक्त करता है या लोगों को क्या जानना चाहिए, यह सब जानना तो दूर की बातें हैं। देहधारी परमेश्वर का सार परमेश्वर का सार है, और वह परमेश्वर की ओर से सब कुछ कर सकता है। वह स्वयं परमेश्वर है, और वह जो करना चाहता है कर सकता है। हालांकि, इस बार परमेश्वर का देहधारण करना उसके प्रबंधन के दायरे में आने वाले कार्य का अंतिम चरण है, और इसका सभी चीजों पर शासन करने या राष्ट्रों पर शासन करने से कोई लेना-देना नहीं है। इसमें यह सब बिल्कुल भी शामिल नहीं है। इसलिए, तुम्हें यह जानना आवश्यक है कि कार्य के इस चरण के दौरान लोग किस चीज का सामना करेंगे और क्या समझ पाएँगे, कार्य के इस चरण का सार क्या है, मसीह के पास क्या है और वह क्या है, और उसके स्वभाव की अभिव्यक्ति क्या है। क्या मसीह परमेश्वर के सार को व्यक्त करता है? क्या यह परमेश्वर का स्वभाव है? बेशक है। लेकिन क्या यही सब कुछ है? मैं तुम लोगों को अभी बता रहा हूँ, यही सब कुछ नहीं हैं। यह केवल एक छोटा-सा और सीमित हिस्सा है, केवल वही जिसे लोग खुली आँखों से देख सकते हैं, जिसे वे छू सकते हैं, और जिसे वे अपने दिमाग से समझ सकते हैं, जब परमेश्वर ने देह धारण किया है। यही सब कुछ नहीं है, और यह केवल परमेश्वर की योजना के अंतर्गत किया जाने वाला कार्य है।

देहधारी परमेश्वर के बारे में सबसे स्पष्ट रूप से कैसे समझाया जा सकता है? सरल शब्दों में कहें, तो इसका अर्थ है परमेश्वर का पृथ्वी पर रूप धारण करना, यह परमेश्वर के आत्मा का एक साधारण व्यक्ति के रूप में देहधारण करना है। अगर परमेश्वर के आत्मा ने देहधारण किया है, तो क्या वह अभी कहीं और भी मौजूद है? हाँ। परमेश्वर ब्रह्मांड और सभी चीजों पर शासन करता है, और पूरे ब्रह्मांड पर एक ही परमेश्वर शासन करता है। वह सर्वशक्तिमान है, और वह अब देहधारण करके पृथ्वी पर आ गया है। वह वैसा नहीं है जैसी लोग उसकी कल्पना करते हैं, ऐसा नहीं है कि वह देहधारण करके केवल पृथ्वी पर ही कार्य करता है और दूसरी जगह की उसे कोई परवाह नहीं है। मैंने एक बार एक बहन से पूछा था, “क्योंकि परमेश्वर देहधारण करके पृथ्वी पर आ गया है, तो क्या अब भी स्वर्ग में कोई परमेश्वर मौजूद है?” उसने एक मिनट के लिए सोचा और कहा, “परमेश्वर केवल एक ही है और अब वह पृथ्वी पर आ गया है, तो अब स्वर्ग में कोई परमेश्वर नहीं है।” यह भी गलत है। परमेश्वर ब्रह्मांड और सभी चीजों पर शासन करता है और परमेश्वर आत्मा है, वह यहाँ पृथ्वी पर है लेकिन फिर भी स्वर्ग में सभी चीजों पर शासन करता है और पृथ्वी पर अपना कार्य करता है। मैंने फिर पूछा, “क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्वर का आत्मा भी कभी-कभी चला जाता है?” उसने एक पल सोचा और कहा, “शायद उसे जाना होता होगा और कभी-कभी देह को कुछ भी पता नहीं रहता होगा। जब देह सामान्य रूप से रहता है तो आत्मा चला जाता है, और जब उसे बोलना होता है तो वह वापस आ जाता है। हो सकता है कि देह के नींद में रहने के दौरान आत्मा अन्य कार्य करता हो, लेकिन जब देह जागता है, तो वह वापस आकर देह में बोलता और कार्य करता है। अगर करने के लिए कोई कार्य न हो, तो हो सकता है कि देह केवल सामान्य मानवीय व्यवहारों और कार्यों में व्यस्त रहे।” बहुत से लोग ऐसा ही सोचते हैं। कुछ अन्य लोग चिंता करते हैं, “मुझे नहीं पता कि परमेश्वर का पैसा कैसे बाँटा गया है, क्या यह किसी और को दिया गया होगा?” इंसान का मन बहुत जटिल होता है। गलत इरादे वाले लोग सत्य का अनुसरण करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? संक्षेप में, न तो परमेश्वर के देहधारण करने के सार को जानना और न ही उसके स्वभाव को जानना, परमेश्वर को जानने में बहुत आसान कार्य हैं। देह में परमेश्वर के कार्य के दौरान, जो कुछ भी तुम अनुभव कर सकते हो और जिसका भी तुम सामना कर सकते हो, तुम्हें वही जानना चाहिए, और उन चीजों के बारे में अनुमान नहीं लगाना चाहिए जिनके साथ तुम्हारा संपर्क में नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए, “परमेश्वर के देह के चले जाने के बाद, परमेश्वर किस रूप में प्रकट होकर फिर से अपना कार्य करेगा? क्या वह अब भी पृथ्वी पर हमसे मिलने आएगा?” आज ज्यादातर लोग इन बाहरी चीजों पर ध्यान देते हैं, जिनमें मसीह का सार बिल्कुल भी शामिल नहीं है; उन्हें समझना वास्तव में निरर्थक है। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें तुम्हें समझने की आवश्यकता नहीं होती, समय आने पर जब जरूरत होगी तुम उन्हें समझ जाओगे। इन चीजों को समझने, न समझने से कोई फर्क नहीं पड़ता, इनका देहधारी परमेश्वर में लोगों की आस्था, मसीह में विश्वास, या मसीह का अनुसरण करने पर जरा-सा भी प्रभाव नहीं पड़ता है। लोगों के सत्य का अनुसरण करने या अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से पूरा करने पर भी उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, और अगर तुम उन बातों को जान भी जाओ तो भी इससे तुम्हारी आस्था बढ़ेगी नहीं। अतीत में नबियों ने संकेत और चमत्कार दिखाए थे, इससे लोगों को क्या हासिल हुआ? यह सब इसलिए दिखाए गए थे ताकि लोग परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारें। वे नबी परमेश्वर नहीं हैं, चाहे उन्होंने कितने भी चमत्कार दिखाए हों, क्योंकि उन नबियों के पास परमेश्वर का सार नहीं था। चमत्कार दिखाए बिना भी देहधारी परमेश्वर परमेश्वर है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार है। वह संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह उन्हें नहीं दिखा सकता। उसके वचनों से जो कुछ हासिल होता है वह संकेत और चमत्कार दिखाने से कहीं अधिक सर्वशक्तिमान है; यह और भी बड़ा चमत्कार है। परमेश्वर के सार और स्वभाव को जानने की कोशिश करना बहुत महत्वपूर्ण है; यह तुम लोगों के जीवन में प्रवेश के लिए बहुत फायदेमंद है, और यह परमेश्वर में आस्था का सही मार्ग है।

तुम लोगों को पता होना चाहिए कि जब परमेश्वर देह में कार्य करता है, तभी लोग परमेश्वर के पास जो है या जो वह स्वयं है, उसके सार और उसके स्वभाव के अधिकांश अंश को देख सकते हैं। यह परमेश्वर को जानने का सबसे सही अवसर है। परमेश्वर के कार्यों और उसके स्वभाव को जानना, जिसके बारे में लोगों ने अतीत में बात की थी—इसे हासिल कर पाना कठिन था, क्योंकि उनकी परमेश्वर तक पहुँच नहीं थी। उस समय जब मूसा ने यहोवा को अपने सामने प्रकट होते देखा, तो उसने यहोवा के किए कुछ ही कार्य देखे। उसके पास परमेश्वर के बारे में कितना व्यावहारिक ज्ञान था? क्या यह आज के लोगों के ज्ञान से ज्यादा था? क्या लोग आज जितना जानते हैं यह उससे ज्यादा व्यावहारिक था? बिल्कुल नहीं। परमेश्वर ने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपने कई कार्यों का खुलासा किया। बहुत-से लोगों ने यहोवा को संकेत देते और चमत्कार करते हुए देखा, और कुछ लोगों ने यहोवा के पीछे से उसकी छाया-आकृति भी देखी। कई लोगों ने देवदूतों को भी देखा। फिर भी अंत में कितने लोग परमेश्वर को जान पाए? बहुत कम! व्यावहारिक रूप से कोई भी ऐसा नहीं था जो सचमुच परमेश्वर को जानता हो। केवल अंत के दिनों के लोग ही परमेश्वर के बारे में अधिक जान सकते हैं, जब वे देह में परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं, क्योंकि परमेश्वर लोगों को आमने-सामने बताता है कि वह क्या कार्य करता है, उसके कार्य का उद्देश्य क्या है, उसकी इच्छा क्या है, मानवता के प्रति उसका दृष्टिकोण क्या है, और शैतान द्वारा भ्रष्ट की गई मानवता की दशा और सार क्या है आदि। मनुष्य की भ्रष्टता का खुलासा करने वाले इन वचनों से ही लोग देख सकते हैं कि परमेश्वर सचमुच इतना व्यावहारिक और इतना वास्तविक है, वास्तव में मानवता को लेकर उसकी यही इच्छा है, और वास्तव में यही उसका स्वभाव है। उसके कार्य वास्तव में बहुत अद्भुत हैं, उसकी बुद्धि वास्तव में इतनी गहरी है, और मानवजाति के लिए उसकी दया वाकई इतनी वास्तविक है। परमेश्वर द्वारा बोले गए ये सभी वचन उसके कार्य, उसके प्रेम और स्वभाव, और उसके कार्यों की गवाही देते हैं। हम परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके इन बातों का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। परमेश्वर के बोले वचन इतने व्यावहारिक और इतने वास्तविक हैं। लोग अनुभव करते हैं कि मानवता के लिए परमेश्वर का प्रेम और सहनशीलता वाकई अनंत है। लोगों को बचाने की परमेश्वर की इच्छा उसके कार्य और उसके बोले वचनों में पूरी होती है, और यह सब लोग अपने वास्तविक अनुभव में महसूस कर पाते हैं। इसलिए, देहधारण के सार के बारे में तुम्हारा ज्ञान देहधारण की अवधि से है। किसी और अवधि का कोई भी ज्ञान यहाँ व्यावहारिक नहीं है। इसलिए, परमेश्वर के देहधारण करने के सार के बारे में केवल देह में परमेश्वर के कार्य के दौरान ही जाना जा सकता है, और इस समय के बाहर तुम जो कुछ भी समझते हो वह व्यावहारिक नहीं है। जब परमेश्वर देह में अपना कार्य पूरा करके चला जाएगा, तब उसका कार्य तुम्हारे लिए उतना वास्तविक नहीं होगा जितना कि अभी है, जब तुम इसे अनुभव करने की कोशिश करते हो। ऐसा इसलिए क्योंकि आज तुम देह में परमेश्वर के कार्य को देख और स्पर्श कर सकते हो। परमेश्वर लगातार लोगों के साथ आमने-सामने अपना कार्य भी कर रहा है, और उन्होंने उसके बोलने और कार्य करने के तरीकों को व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है। उस समय पतरस का अनुभव उतना वास्तविक नहीं था जितना आज तुम लोगों का है। पतरस ने यहूदिया में यीशु के कार्य के दौरान उसका अनुसरण किया और परमेश्वर की व्यावहारिकता और प्रेम का अनुभव किया, लेकिन तब उसका आध्यात्मिक कद छोटा था और उसने जो अनुभव किया वह सतही था। यीशु के जाने के बाद, पतरस ने ध्यान से सोचा और उसके वचनों को खाया-पीया, और उसने अपनी समझ को गहरा करके और ज्ञान प्राप्त किया। यीशु ने अपने के कार्य के दौरान परमेश्वर के पास जो है या जो वह स्वयं है, उसकी प्रेममयी उदारता, उसकी दया, मानवता के लिए उसके उद्धार, और लोगों के लिए उसकी असीम सहनशीलता और अनुग्रह को भी व्यक्त किया। उस समय जिन लोगों ने उसका अनुसरण किया था वे इनमें से कुछ चीजों का अनुभव कर पाए थे, और जो लोग बाद में आए वे कभी उसे उतनी गहराई से अनुभव नहीं कर पाए जितना कि उस समय के लोगों ने किया था। साथ ही, जब लोग पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर परमेश्वर की इच्छा को समझते हुए उससे प्रार्थना करते थे, तो उन दिनों उन्होंने जो अनुभव किया वह धुंधला और अस्पष्ट था। कभी-कभी इसे सटीक रूप से समझना कठिन होता था, और कोई भी यकीन से नहीं कह सकता था कि उनकी समझ सटीक है। इसलिए, जब पतरस को आखिर में गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया, तो कुछ लोगों ने यह भी पता लगाने की कोशिश की कि उसे कैसे बाहर निकाला जाए। वास्तव में, उस समय यीशु का इरादा पतरस को उसकी अंतिम गवाही के रूप में सूली पर चढ़ाने का था। उसकी यात्रा समाप्त हो गई थी, और परमेश्वर ने उसके लिए इस तरह से गवाही देने की व्यवस्था की, ताकि उसे एक अच्छी मंजिल मिले। पतरस ने यही मार्ग अपनाया। जब पतरस अपने मार्ग के अंत में आया, तब भी वह यीशु के सच्चे इरादे को नहीं समझ पाया। वह यीशु का आशय केवल तभी समझ पाया जब यीशु ने उसे इस बारे में बताया। इसलिए, यदि तुम परमेश्वर के सार को समझना चाहते हो, तो ऐसा करना सबसे अधिक लाभकारी परमेश्वर के देह में रहते हुए ही होगा। तुम गहराई से देख, सुन, स्पर्श और महसूस कर सकते हो। यदि तुम पवित्र आत्मा के कार्य को देह में परमेश्वर का कार्य समाप्त होने के बाद अनुभव करने की कोशिश करोगे, तो यह पहले जितना गहरा नहीं होगा, और तुम जो ज्ञान प्राप्त करोगे वह सतही होगा। उस समय वह केवल लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का ही शोधन कर पाएगा। एक बार शोधन किए जाने के बाद, लोग सत्य को थोड़ा और समझने में सक्षम होते हैं और अपने भीतर के भ्रष्ट स्वभाव को बदलते हुए, हासिल किए गए सत्य का उपयोग अपने जीवन की नींव के रूप में करते हैं। लेकिन चाहे तुम परमेश्वर से प्रेम करने और उसे जानने की कितनी भी कोशिश कर लो, तुम वास्तव में उतनी प्रगति नहीं कर पाओगे। मानव की प्रगति की एक सीमा है, और यह देह में परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने और परमेश्वर को जानने के लाभों की तुलना में बहुत कम है। परमेश्वर ने देह में रहते हुए बहुत-से सत्य व्यक्त किए हैं, जिन्हें कई लोगों ने देखा है पर वे समझते नहीं हैं, जिन्हें कई लोगों ने देखा है पर वे जानते नहीं हैं। ये वे लोग हैं जो आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी हैं और जिनके पास दिल नहीं है। लोगों में अंतरात्मा या समझ की कमी होती है, और वे लोगों के प्रति परमेश्वर के प्रेम और सहनशीलता को महसूस नहीं कर पाते हैं। लोग इतने सुन्न होते हैं कि वे परमेश्वर का कार्य पूरा होने के बाद ही थोड़ी-सी समझ हासिल करके सही मार्ग पर चलना शुरू करते हैं।

मसीह का सार क्या है? मनुष्यों के लिए, मसीह का सार प्रेम है। जो लोग उसका अनुसरण करते हैं, उनके लिए यह ऐसा प्रेम है जो असीम है। अगर उसमें कोई प्यार न होता या दया नहीं होती, तो लोग अभी तक उसका अनुसरण नहीं कर पाते। कुछ लोग कहते हैं : “मगर परमेश्वर धार्मिक भी है।” यह सही है कि परमेश्वर धार्मिक है, लेकिन उसके स्वभाव के लिहाज से, उसकी धार्मिकता मुख्य रूप से मानवजाति के भ्रष्ट स्वभाव के प्रति उसकी घृणा के रूप में, दानव शैतान को शाप देने, और किसी को अपने स्वभाव को नाराज न करने देने के रूप में अभिव्यक्त होती है। तो क्या उसकी धार्मिकता में प्रेम है? क्या लोगों का न्याय और उनकी भ्रष्टता का शुद्धिकरण करना परमेश्वर का प्रेम नहीं है? मानवता को बचाने के लिए, परमेश्वर ने असीम धैर्य के साथ घोर अपमान सहा है। क्या यह प्रेम नहीं है? इसलिए, मैं तुम्हारे साथ साफ-साफ बात करूँगा : देह में रहते हुए परमेश्वर मानवजाति के लिए जो काम करता है, उसमें उसके सार में सबसे स्पष्ट और सबसे प्रमुख प्रेम ही है; यह असीम सहिष्णुता है। अगर यह प्रेम न होता और वैसा होता जैसी तुम लोग कल्पना करते हो—जहाँ परमेश्वर लोगों को मार गिराता है, जहाँ वह किसी को पसंद करता है या जिससे वह घृणा करता है, उस व्यक्ति को दंड देता है, शाप देता है, उसका न्याय करता है और उसे ताड़ना देता है; तो वह बहुत सख्त होता है! यदि वह किसी पर क्रोधित होता है, तो लोग डर से कांप जाएँगे और उसके सामने टिक नहीं पाएँगे। यह केवल एक तरीका है जिससे परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त होता है। अंत में, अभी भी उसका लक्ष्य उद्धार करना ही है, और उसका प्रेम उसके स्वभाव के सभी प्रकाशनों में बना रहता है। अब जरा सोचो, देह में अपने कार्य के दौरान परमेश्वर लोगों के सामने सबसे अधिक क्या प्रकट करता है? वह है प्रेम, वह है धैर्य। धैर्य क्या है? दया रखना ही धैर्य है, क्योंकि भीतर में प्रेम है। परमेश्वर लोगों पर दया करने में सक्षम है क्योंकि उसके पास प्रेम है, और यह लोगों को बचाने के लिए ही है। ठीक उसी तरह जैसे अगर किसी विवाहित जोड़े के बीच सच्चा प्रेम है, तो वे एक-दूसरे की कमियों और गलतियों को अनदेखा कर देते हैं। जब वे तुम्हें गुस्सा दिलाते हैं, तो तुम उसे सह लेते हो, और यह सब प्रेम की नींव पर बना है। यदि यहाँ नफरत होती, तो उनका ऐसा रवैया नहीं होता या वे ये चीजें प्रकट नहीं करते, और इसका ऐसा प्रभाव भी नहीं पड़ता। यदि परमेश्वर केवल क्रोध और घृणा करता या बिना प्रेम के केवल न्याय और ताड़ना देता, तो स्थिति वैसी नहीं होती जैसी अभी तुम लोग देख रहे हो, तुममें से बहुत-से लोग परेशानी में होते। क्या परमेश्वर फिर भी तुम लोगों को सत्य प्रदान करने में सक्षम होता? जैसे ही न्याय और ताड़ना का कार्य पूरा होगा, जिन लोगों ने जरा भी सत्य को नहीं स्वीकारा है उन्हें श्राप दिया जाएगा। यहाँ तक कि अगर वे तुरंत नहीं मरते, तो वे बीमार, दुर्बल, पागल और अंधे हो जाएँगे, और दुष्ट आत्माओं और गंदे राक्षसों द्वारा रौंदे जाने के लिए सौंप दिए जाएँगे। वे वैसे नहीं रहेंगे जैसे अभी हैं। तुम सबने परमेश्वर के प्रेम और उसकी सहनशीलता, दया, और प्रेममयी उदारता का बहुत आनंद लिया है। लेकिन लोग इस बारे में कुछ नहीं सोचते हैं, वे मानते हैं, “परमेश्वर को लोगों के साथ ऐसा ही बर्ताव करना चाहिए। परमेश्वर के पास धार्मिकता और क्रोध भी है, और हमने इनका अच्छी तरह अनुभव किया है!” क्या तुमने वास्तव में उनका अनुभव किया है? यदि किया होता, तो तुम पहले ही मर चुके होते। आज मानवता कहाँ होती? परमेश्वर की घृणा, क्रोध, और धार्मिकता, सब ऐसे लोगों का उद्धार करने की इच्छा की नींव से व्यक्त होती है। इस स्वभाव में परमेश्वर का प्रेम और दया के साथ-साथ उसका महान धैर्य भी शामिल है। इस घृणा में कोई और विकल्प न होने का भाव है, और इसमें मानवता के लिए एक असीम चिंता और आशा शामिल है! परमेश्वर की घृणा मानवता की भ्रष्टता और लोगों के विद्रोह और पाप की ओर निर्देशित है। यह एकतरफा है और प्रेम की नींव पर बना है। वहाँ प्रेम है तभी घृणा भी है। मानवता के लिए परमेश्वर की घृणा शैतान के लिए उसकी घृणा से अलग है, क्योंकि परमेश्वर लोगों को बचाता है लेकिन शैतान को नहीं। परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव हमेशा से रहा है। क्रोध, धार्मिकता और न्याय हमेशा से रहे हैं; वे केवल तभी वहाँ नहीं थे जब उसने उन्हें मानवता की ओर निर्देशित किया था। यह परमेश्वर का स्वभाव तब से रहा है जब मनुष्यों ने इसे देखा भी नहीं था, और जब उन्होंने इसे देखा तभी उन्हें पता चला कि परमेश्वर की धार्मिकता इस प्रकार है। दरअसल, चाहे परमेश्वर के धार्मिक, प्रतापी, या क्रोधी होने का समय हो या मानवता के उद्धार के लिए सभी प्रकार के कार्य करने का समय हो, यह सब प्रेम के कारण ही है। कुछ लोग कहते हैं, “तो इसमें से प्रेम कितना है?” यह कितने का मामला नहीं है; वास्तव में यह सौ प्रतिशत प्रेम ही है। अगर यह इससे जरा भी कम होता, तो मानवता नहीं बचती। परमेश्वर ने अपना सारा प्रेम मानवता को समर्पित किया है। परमेश्वर ने देहधारण क्यों किया? यह पहले भी कहा जा चुका है कि परमेश्वर मानवता को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ता है, और उसके देहधारण में उसका सारा प्रेम शामिल है। इससे पता चलता है कि परमेश्वर के प्रति मानवता की अवज्ञा चरम सीमा पर है। ऐसा इसलिए था क्योंकि चीजें पहले से ही बचाए जाने से परे थीं; परमेश्वर के पास मानवता के लिए देहधारण करके खुद को समर्पित करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। परमेश्वर ने अपना सारा प्रेम समर्पित कर दिया है। यदि उसे मानवता से प्रेम नहीं होता, तो वह देहधारण नहीं करता। परमेश्वर स्वर्ग से वज्रपात कर सकता था, अपने प्रताप और क्रोध को सीधे प्रकट कर सकता था, और लोग जमीन पर गिर जाते। परमेश्वर को मुसीबत का सामना करने, इतनी बड़ी कीमत चुकाने, या देह में इतना अपमान सहने की कोई जरूरत नहीं होती। यह एक सटीक उदाहरण है। उसने कुछ और करने के बजाय मानवता को बचाने के लिए पीड़ा, अपमान, परित्याग और उत्पीड़न सहा। ऐसे विरोधी माहौल में भी वह मानवता को बचाने आया है। क्या यह सबसे महान प्रेम नहीं है? यदि परमेश्वर केवल धार्मिक होता और मानवता के लिए असीम घृणा से भरा होता, तो अपना कार्य करने के लिए वह देहधारण नहीं करता। वह मानवता के चरम सीमा तक भ्रष्ट हो जाने का इंतजार करता और फिर सबको एक साथ नष्ट करके अपना काम समाप्त कर सकता था। क्योंकि परमेश्वर मानवता से प्रेम करता है और मानवता के लिए उसमें बहुत स्नेह है, इसलिए वह ऐसे मनुष्यों को बचाने के लिए देह बन गया जो इतने अधिक भ्रष्ट थे। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से गुजरने और अपनी प्रकृति को जानने के बाद, बहुत से लोग कहते हैं, “मेरा सब कुछ खतम हो गया है। मुझे कभी नहीं बचाया जा सकता है।” जब तुम यह मान लेते हो कि तुम्हें बचाया नहीं जा सकता, तभी तुम जान पाते हो कि परमेश्वर के पास लोगों के लिए कितना अधिक प्रेम और धैर्य है! परमेश्वर के प्रेम के बिना लोग क्या करेंगे? मानव की प्रकृति इतनी भ्रष्ट हो गई है, फिर भी परमेश्वर तुम लोगों से बात करता है। जब भी तुम लोग कोई सवाल करते हो, तो वह फौरन उत्तर देता है, इस डर से कि कहीं लोगों को कोई गलतफहमी न हो या वे भटक न जाएँ या सीमाएँ न पार कर दें। इस सबके बाद भी क्या तुम लोग अब तक नहीं समझे कि मानवता के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महान है?

बहुत-से लोग आज समझने की कोशिश कर रहे हैं, “देहधारी परमेश्वर अभी भी पृथ्वी पर क्यों है जबकि उसका कार्य समाप्त हो गया है? क्या कार्य का एक और चरण अभी भी बाकी हो सकता है? वह कार्य का अगला चरण जल्दी शुरू क्यों नहीं कर रहा?” बेशक, इसमें कोई अर्थ छिपा है। देहधारी परमेश्वर के इतने सारे वचनों का लोगों में क्या प्रभाव पड़ा है? लोगों ने केवल इन्हें सुना और याद रखा है, पर ज्यादा कुछ समझा नहीं है, और उनमें कोई स्पष्ट बदलाव नहीं हुआ है। तुम लोग अभी जिस स्थिति में हो, उसमें ज्यादातर सत्य अस्पष्ट है, और इसकी वास्तविकता में प्रवेश करने का तो सवाल ही नहीं है। तुम्हें क्या लगता है, परमेश्वर के देहधारण करने और इतने सारे वचन कहने के पीछे उसका उद्देश्य क्या है? इसका चरम प्रभाव क्या है? यदि वह अभी कार्य का अगला चरण शुरू करता है और इन लोगों को अपनी कल्पना पर छोड़ देता है, तो कार्य आधे रास्ते में ही छूट जाएगा। लोगों को पूरी तरह से बचाने के लिए देह में परमेश्वर का कार्य पूरे दो चरणों में किया जाना चाहिए। जैसे अनुग्रह के युग में, जब यीशु आया तो उसके जन्म से लेकर क्रूस पर चढ़ने और स्वर्ग में आरोहित होने में साढ़े तैंतीस साल लग गए। यह एक सामान्य मानव के जीवनकाल के अनुसार एक लंबा समय नहीं है, लेकिन यह पृथ्वी पर परमेश्वर के लिए बहुत लंबा समय है! साढ़े तैंतीस साल बहुत कष्टदायी हैं! देहधारण किए परमेश्वर के पास परमेश्वर का सार और स्वभाव था, और वह साढ़े तैंतीस सालों तक भ्रष्ट मानवता के साथ रहा, यह एक दर्दनाक चीज थी। लोगों ने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया या नहीं या उसके पास अपना सिर रखने के लिए जगह थी या नहीं, इन सारी बातों को छोड़ दें, तो भले ही उसकी देह ने बहुत शारीरिक पीड़ा नहीं सही, पर मनुष्यों के साथ रहना परमेश्वर के लिए एक दर्दनाक बात थी, क्योंकि वे एक जैसे नहीं हैं! उदाहरण के लिए, यदि लोग पूरे दिन सूअरों के साथ रहें, तो कुछ समय बाद यह बहुत उत्तेजक हो जाएगा क्योंकि वे एक जैसे नहीं हैं। मनुष्य सूअरों के साथ किस भाषा में बात करेंगे? वे बिना पीड़ा सहे एक साथ कैसे रह सकते हैं? यहाँ तक कि एक पति और पत्नी को भी एक साथ रहना खराब लगता है, अगर उनके बीच अच्छा तालमेल न हो। परमेश्वर का साढ़े तैंतीस सालों तक देहधारण करके पृथ्वी पर रहना अपने आप में एक बेहद दर्दनाक चीज थी, और कोई भी उसे समझ नहीं सका। लोग यह भी सोचते हैं, “देहधारी परमेश्वर जो चाहे वह कह और कर सकता था, और बहुत-से लोग उसका अनुसरण भी करते थे। उसने कितनी पीड़ा सही? उसके पास केवल अपना सिर रखने के लिए कोई जगह नहीं थी और उसकी देह को थोड़ा दर्द और पीड़ा सहनी पड़ी। यह बहुत दर्दनाक नहीं लगता है!” यह सच है कि यह दर्द कुछ ऐसा है जिसे मनुष्य सहन कर सकता है, और देहधारी परमेश्वर इससे अलग नहीं है। वह भी इसे सहन कर सकता था, और यह उसके लिए बहुत बड़ी पीड़ा नहीं थी। अधिकांश कष्ट जो उसने सहे, वह चरम सीमा तक भ्रष्ट मानवता के साथ रहना था; उपहास, अपमान, आलोचना, और सभी प्रकार के लोगों की निंदा सहने के साथ-साथ राक्षसों द्वारा पीछा किया जाना और धार्मिक दुनिया से ठुकराया जाना और शत्रुता होना, और आत्मा पर ऐसे घाव पड़ना था जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता था। यह एक दर्दनाक चीज थी। उसने बहुत धैर्य के साथ भ्रष्ट मानवता को बचाया, अपने घावों के बावजूद उसने लोगों से प्रेम किया, यह बेहद कष्टदायी कार्य था। मानवता के दुष्ट प्रतिरोध, निंदा और बदनामी, झूठे आरोप, उत्पीड़न, और उनके द्वारा पीछा करने और मार डाले जाने के कारण परमेश्वर की देह ने खुद पर इतना बड़ा जोखिम उठाकर यह कार्य किया। इस दर्द में उसे समझने वाला कौन था, और कौन उसे आराम दे सकता था? मनुष्यों में केवल थोड़ा-सा उत्साह होता है, और वे अभी भी शिकायत कर सकते हैं या उसके साथ निष्क्रिय या उपेक्षापूर्ण व्यवहार कर सकते हैं। इस वजह से वह कैसे कष्ट नहीं सहता? उसने अपने दिल में इतना बड़ा दर्द महसूस किया। क्या कुछ सांसारिक सुख-सुविधाएं उस नुकसान की भरपाई कर सकती हैं जो परमेश्वर को मानवता के कारण हुई थी? क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि अच्छा खाना खाना और अच्छे कपड़े पहनना खुशहाली है? यह नजरिया बेतुका है! प्रभु यीशु तभी मुक्त हुआ जब उसने पृथ्वी पर अपना कार्य पूरा किया और साढ़े तैंतीस साल बिताए, वह क्रूस पर चढ़ा और वापस जिंदा होकर उसने मनुष्यों के बीच चालीस दिन बिताए, तभी मानवता के बीच रहने के उसके दर्दनाक साल समाप्त हुए। मगर लोगों की मंजिल की चिंता के कारण परमेश्वर का दिल अभी भी उसी पीड़ा में था। इस पीड़ा को कोई और समझ या सहन नहीं कर सकता था। प्रभु यीशु को सभी लोगों के पापों के लिए क्रूस पर चढ़ा दिया गया ताकि मानवता के पास उद्धार की एक नींव रहे। उसने स्वयं क्रूस पर चढ़कर मानवता को शैतान के हाथों से छुटकारा दिलाया, और इस दुनिया में अपने दर्दनाक अस्तित्व को तभी समाप्त किया जब उसका छुटकारे का कार्य पूरा हुआ। जब उसका सारा कार्य पूरा हो गया, तो उसने एक दिन की भी देरी नहीं की। वह लोगों के सामने केवल इसलिए प्रकट हुआ ताकि सबको पता चले कि परमेश्वर ने वास्तव में मानवता के लिए छुटकारे का कार्य और देहधारण करके अपनी एक योजना को पूरा किया था। यदि थोड़ा-सा कार्य भी अधूरा होता तो वह वापस नहीं जाता। अनुग्रह के युग में, यीशु अक्सर कहता था, “मेरा समय अभी नहीं आया है।” उसका समय अभी तक नहीं आया था, इसका मतलब यह था कि उसका कार्य अपनी समयसीमा तक नहीं पहुँचा था। यानी देह में परमेश्वर का कार्य केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, वचन बोलना, कलीसियाई जीवन की जाँच करना, और वह सब कहना नहीं है जो कहने की आवश्यकता है, जैसी कि लोग कल्पना करते हैं। अपना कार्य पूरा करने और ये सारी बातें कहने के बाद भी, देहधारी परमेश्वर को अंतिम परिणामों और उसने जो कहा उसके प्रभाव की प्रतीक्षा करनी चाहिए और देखना चाहिए कि मानवता का उद्धार कैसा होगा। क्या यह स्वाभाविक नहीं है? क्या वह अपनी इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बाद यू ही इस कार्य को छोड़ देगा? उसे अंत तक डटे रहना है, और परिणाम आने के बाद ही वह कार्य के अगले चरण पर जाने के लिए सहज होगा। परमेश्वर का कार्य और उसकी प्रबंधन योजना विशेष रूप से ऐसी चीजें हैं जो सिर्फ वही कर सकता है। मानवता और उसका अनुसरण करने वाले लोग क्या बनते हैं, जिन्हें बचाया जाता है वे आखिर में क्या बनते हैं, कितने लोग उसकी इच्छा के अनुरूप होते हैं, कितने लोग वास्तव में उससे प्रेम करते हैं, कितने लोग वास्तव में उसे जानते हैं, कितने लोग स्वयं को उसके लिए समर्पित करते हैं, और कितने लोग सचमुच उसकी आराधना करते हैं ... इन सभी प्रश्नों का एक परिणाम होना चाहिए। यह ऐसा नहीं है जैसी कि लोग कल्पना करते हैं, “एक बार जब पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाए, तो उसे स्वयं आनंद लेना चाहिए। वह कितने मजे कर सकता था!” इस बात को जानो : यह बिल्कुल भी मजेदार नहीं है, यह कष्टदायी है! कुछ लोग यह नहीं समझते और सोचते हैं, “यदि परमेश्वर देह में अपना कार्य कर चुका है और अब वह वचन नहीं बोलता है, तो क्या इसका अर्थ है कि उसका आत्मा चला गया है?” इससे ही, वे परमेश्वर पर संदेह करने लगते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका कहना है, “जब देह में परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाता है और वह आगे कुछ नहीं बोलता, तो क्या उसे इंतजार करने की जरूरत भी है?” बिल्कुल है। देह में परमेश्वर के कार्य का एक निश्चित दायरा है। यह ऐसा नहीं है जैसी लोग कल्पना करते हैं कि जहाँ कार्य समाप्त हो गया है वहाँ पवित्र आत्मा आगे का कार्य कर सकता है। ऐसा नहीं है। ऐसी कुछ चीजें हैं जिन्हें व्यक्तिगत रूप से राह दिखाने और संभालने के लिए देह की आवश्यकता होती है। कोई भी इन चीजों की जिम्मेदारी नहीं ले सकता, और यही कारण है कि देह में परमेश्वर का कार्य इतना महत्वपूर्ण है। क्या तुम इस बात को समझ सकते हो? अतीत में मैंने कुछ लोगों से गुस्से में कहा था, “तुम लोगों के साथ मिलकर रहना दयनीय है।” कुछ लोगों ने जवाब दिया, “यदि तुम हमारे साथ नहीं रहना चाहते, तो यहाँ इंतजार क्यों कर रहे हो?” यह मानवता के लिए परमेश्वर का प्रेम है! क्या परमेश्वर प्रेम के बिना अब तक यह सब सहन कर पाता? कभी-कभी वह क्रोधित हो जाता है और कठोरता से बोलता है, लेकिन वह अपने कार्य में कभी कोई कमी नहीं करता। वह एक कदम भी नहीं चूकता। जो कार्य किया जाना चाहिए उसे करने और जो बात कहनी चाहिए उसे बोलने से वह पीछे नहीं हटेगा। जो करना और कहना चाहिए वह वो सब कुछ करता और कहता है। कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर पहले की तुलना में अभी कम वचन क्यों बोल रहा है?” क्योंकि कार्य के वे चरण पूरे हो चुके हैं, और अंतिम चरण प्रतीक्षा करना है। मैं केवल मार्गदर्शन का कार्य कर रहा हूँ, और मुझे हर उस चीज से स्वयं को कष्ट देना है जो मैं कर सकता हूँ। इस अंतिम चरण में मेरा स्वास्थ्य हमेशा खराब क्यों रहा है? इसका भी कोई-न-कोई अर्थ है। यह इसलिए है क्योंकि मैं मानवता की कुछ बीमारी और दर्द को सहन करना चाहता हूँ। देहधारी परमेश्वर कुछ बीमारी और दर्द का अनुभव कर सकता है, लेकिन ये सभी अलग-अलग चरणों में आते हैं। जिस कार्य को करने की आवश्यकता नहीं है वह देह की बीमारियों द्वारा सीमित है और इसे नहीं किया जा सकता है, और फिर समय आने पर देह को थोड़ा कष्ट अवश्य उठाना चाहिए। बहुत-सी सीमाओं के बिना, वह हमेशा मानवता के साथ अधिक बात करना और उनकी अधिक सहायता करना चाहेगा, क्योंकि वह उद्धार का कार्य कर रहा है। शुरू से अंत तक देहधारी परमेश्वर के कार्य ने जो प्रकाशित किया है वह सब परमेश्वर का प्रेम है। उसके कार्य का सार प्रेम है, और वह मानवता के लिए सब कुछ और जो भी उसके पास है, उसे समर्पित कर देता है।

शरद ऋतु, 1999

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